ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम परिवादी ने यह अनुतोष मांगा है कि उसके विरूद्ध विपक्षी सं0-1 द्वारा जारी नोटिस में उल्लिखित धनराशि रूपया 71,630/- निरस्त की जाऐ तथा उसका मूल बैनामा उसे वापिस दिलाया जाये। क्षतिपूर्ति तथा परिवाद व्यय परिवादी ने अतिरिक्त मांगा है।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि विपक्षी सं0-1 से उसने वर्ष 1988 में मकान बनाने हेतु 50,000/- रूपया तथा 1990 में 25,000/- रूपया ऋण लिया, ऋण खाता सं0-4191 है। परिवादी ऋण की किश्तें नियमानुसार अदा करता रहा, लिऐ गऐ ऋण से लगभग दोगुने से अधिक धनराशि अदा कर चुका है। इसके बावजूद विपक्षीगण की ओर से 71,630/- रूपया का एक डिमांड नोटिस प्राप्त हुआ जो कतई गलत और निराधार है। परिवादी के अनुसार उसने विपक्षीगण से प्रार्थना पत्र देकर कई बार अनुरोध किया कि उसे ऋण से मुक्त कर उसका बैनामा उसे वापिस कर दिया जाये, किन्तु उन्होंने कोई सुनवाई नहीं की। परिवादी ने एक रिट याचिका मा0 उच्च न्यायालय में भी दायर की थी जिसमें मा0 उच्च न्यायालय ने विपक्षीगण को चार सप्ताह के भीतर मामले का निपटारा करने का आदेश दिया था इसका भी अनुपालन विपक्षीगण ने नहीं किया। परिवादी के अनुसार फोरम के समक्ष परिवाद योजित करने के अतिरिक्त उसके पास अब कोई विकल्प नहीं बचा, उसने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने की प्रार्थना की।
- विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-13/1 लगायत 13/3 दाखिल हुआ जिसमें परिवादी को आवास बनाने हेतु 75,000/- रूपया ऋण दिया जाना तो स्वीकार किया गया, किन्तु शेष परिवाद कथनों से इन्कार किया गया। अतिरिक्त कथनों में कहा गया कि उ0प्र0 सहकारी समिति अधिनियम की धारा-70 के अनुसार इस परिवाद की सुनवाई का फोरम को क्षेत्राधिकार नहीं है, परिवादी ने वर्ष 2002 के बाद ऋण की किश्तें जमा नहीं की। ऋण लेते समय परिवादी और उत्तरदाता विपक्षीगण के मध्य एक पंजीकृत मारगेज डीड निष्पादित हुआ था जिसके अनुसार परिवादी को 77 त्रैमासिक किश्तों में ब्याज सहित ऋण की अदायगी करनी थी। यह भी तय हुआ था कि यदि किश्त समय से जमा नहीं होगी तो परिवादी को दण्ड ब्याज भी देना होगा, ब्याज की दर 13.25 प्रतिशत तय हुई थी। परिवादी की ओर ब्याज सहित 1,11,945/- रूपया की धनराशि बकाया है। बकाया धनराशि अदा करने से बचने के लिए परिवादी ने असत्य कथनों के आधारपर यह परिवाद योजित किया है। उत्तरदाता विपक्षीगण ने विशेष व्यय सहित परिवाद को खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- प्रतिवाद पत्र के साथ विपक्षी सं0-1 व 2 ने पंजीकृत बनधक विलेख दिनांक 23/04/1988 तथा अतिरिक्त चार्ज डीड दिनांक 15/12/1990 की फोटो प्रतियों को दाखिल किया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-13/4 लगायत 13/9 हैं।
- विपक्षी सं0-3 व 4 के विरूद्ध परिवाद की सुनवाई फोरम के आदेश दिनांक 22/10/2008 के अनुपालन में एकपक्षीय की गई।
- परिवादी ने रेप्लिकेशन कागज सं0-15/1 लगायत 15/3 दाखिल किया जिसमें विपक्षी सं0-1 व 2 के प्रतिवाद पत्र के कथनों से इन्कार करते हुऐ परिवाद कथनों की पुष्टि की और कहा कि फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है। रेप्लिकेशन में परिवादी ने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष दिलाऐ जाने का पुन: अनुरोध किया।
- परिवादी ने परिवाद के समर्थन में अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-32/1 लगायत 32/2 दाखिल किया जिसके साथ उसने स्वीकृत ऋण के सापेक्ष समय-समय पर जमा की गई धनराशि की रसीदात कागज सं0-33/9 लगायत 33/18 को दाखिल किया।
- विपक्षी सं0-2 ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-34/1 लगायत 34/3 दाखिल किया जिसके साथ स्वीकृत ऋण के सापेक्ष परिवादी द्वारा निष्पादित मारगेज डीड दिनांकित 23/04/1988 और अतिरिक्त चार्ज डीड दिनांक 15/12/1990 की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-34/4 लगायत 34/9 हैं।
- प्रत्युत्तर में परिवादी द्वारा प्रत्युत्तर शपथ पत्र कागज सं0-35/1 लगायत 35/3 दाखिल किया। परिवादी तथा विपक्षी सं0-1 व 2 की ओर से लिखित बहस दाखिल हुई।
- हमने परिवादी तथा विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी सं0-3 व 4 की और से कोई उपस्थित नहीं हुऐ।
- पक्षकारों के मध्य इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि विपक्षीगण से परिवादी ने मकान बनाने हेतु कुल 75,000/- रूपया ऋण लिया था, 50,000/- रूपया ऋण परिवादी द्वारा वर्ष 1988 में तथा शेष 25,000/- रूपया ऋण वर्ष 1990 में परिवादी को स्वीकृत हुआ था। इस ऋण के बन्धक विलेख पत्रावली के क्रमश: कागज सं0-13/4 लगायत 13/7 एवं 13/8 लगायत 13/9 हैं। इन बन्धक विलेखों में ऋण की अदायगी की शर्ते, ऋण अदा करने की अवधि, ब्याज की दर तथा दण्ड ब्याज इत्यादि विषयक शर्तें उल्लिखित हैं।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि लिये गऐ 75,000/- रूपये के ऋण के सापेक्ष परिवादी द्वारा 1,65,218/- रूपये 86 पैसे का भुगतान विपक्षीगण को किया जा चुका है और इस प्रकार लिये गऐ ऋण से दुगने से भी अधिक धनराशि परिवादी ऋण की अदायगी में दे चुका है इसके बावजूद उसकी ओर धनराशि देय बताई जा रही है, जो कतई गलत औरनिराधार है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने डिमांड नोटिस कागज सं0-7/1 को उपरोक्त तर्कों के आधार पर निरस्त किऐ जाने की प्रार्थना की।
- प्रत्युत्तर में विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा बन्धक विलेखों में उल्लिखित ऋण अदायगी की शर्तों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ तर्क दिया कि परिवादी ने बन्धक विलेखों में उल्लिखित समयावधि में नियमित रूप से ऋण की अदायगी नहीं की तथा वर्ष 2002 के बाद तो परिवादी ने एक भी पैसा अदा नहीं किया ऐसी दशा में परिवादी का यह कहना कि उसे डिमांड नोटिस गलत भेजा गया, निराधार है। हम विपक्षीगण की ओर से दिऐ गऐ तर्कों से सहमत हैं।
- 50,000/- रूपये के ऋण के सापेक्ष निष्पादित बन्धक विलेख में अन्य के अतिरिक्त यह उल्लेख है कि परिवादी को ऋण की किश्तें नियमित रूप से 77 त्रैमासिक किश्तें ब्याज सहित अदा करनी होगी और अदायगी में विलम्ब की दशा में परिवादी को दण्ड ब्याज भी देना होगा। इसी प्रकार 25,000/- रूपये के ऋण के सम्बन्ध में निष्पादित अतिरिक्त बन्धक विलेख में भी यह उल्लेख है कि 25,000/- रूपये के इस ऋण को परिवादी द्वारा लगातार 57 त्रैमासिक किश्तों में ब्याज सहित वापिस करना होगा। विपक्षीगण के अनुसार 75,000/- रूपये के इस ऋण की किश्तें यदि परिवादी नियमित रूप से अदा करता तो 20 वर्षों में उसे ऋण के सपेक्ष 2,06,095/- रूपया जमा करना होता जबकि स्वयं परिवादी के अनुसार उसने वर्ष 2002 तक कुल 1,65,218/- रूपया 86 पैसे ही अदा किये हैं। परिवादी द्वारा अपने साक्ष्य शपथ पत्र के साथ सूची कागज सं0-33/1 लगायत 33/2 दाखिल की है जिसमें उसने तिथि बार जमा की गई ऋण की किश्तों का उल्लेख किया है। इस सूची के अवलोकन से प्रकट है कि दिनांक 28/03/2002 के बाद परिवादी ने ऋण का एक भी पैसा अदा नहीं किया है, ऋण की किश्तें भी उसने नियमित अदा नहीं कीं। परिवादी का यह कथन कि लिये गऐ ऋण के सापेक्ष वह दोगुने से भी अधिक धनराशि की अदायगी कर चुका है, डिमांड नोटिस के गलत और निराधार होने का आधार नहीं माना जा सकता।
- परिवादी ने चॅूंकि डिमांड नोटिस गलत और निराधार होना परिवाद में अभिकथित किया है अत: परिवादी का यह उत्तरदायित्व था कि वह फोरम को यह दिखाता कि किस प्रकार उसने लिये गऐ ऋण की पूरी अदायगी ब्याज सहित कर दी है, किन्तु वह ऐसा दर्शाने में सफल नहीं हुआ है। परिवादी यह भी नहीं दर्शा पाया कि बन्धक विलेखों में उल्लिखित शर्तों का विपक्षीगण ने अभिकथित रूप से क्या उल्लंघन किया है। परिवादी द्वारा बन्धक विलेखों में उल्लिखित शर्तों के अनुरूप ऋण की पूरी धनराशि ब्याज सहित अदा किया जाना प्रमाणित नहीं हुआ है।
- तर्क के दौरान विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता ने फोरम के सुनवाई के क्षेत्राधिकार पर भी आपत्ति उठाई। विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क दिया कि को-आपरेटिव एक्ट के प्राविधानों के अनुसार इस फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने विपक्षीगण के उक्त तर्क का प्रतिवाद किया और कहा कि फोरम को परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है। क्षेत्राधिकार के सम्बन्ध में विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा उठाई गयी आपत्ति से हम सहमत नहीं हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 की धारा-3 के प्रावधानानुसार फोरम को इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार है। हमारे इस मत की पुष्टि I(2004) सी0पी0जे0 पृष्ठ-1, थिरूमुरूगन को-आपरेटिव एग्रीकल्चरल क्रेडिट सोसाइटी बनाम एम0 ललिथा (मृतक) द्वारा विधिक प्रतिनिधि के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायाल द्वारा दी गई विधि व्यवस्था से होती है।
- पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री के आधार पर विपक्षीगण की ओर से परिवादी को प्रेषित डिमांड नोटिस चॅूंकि गलत और निराधार होना प्रमाणित नहीं हुआ है अत: परिवाद खारिज होने योग्य है।
- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवाद खारिज किया जाता है। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
19.01.2016 19.01.2016 19.01.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 19.01.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
19.01.2016 19.01.2016 19.01.2016 | |