Rajasthan

Kota

CC/155/2014

Pushplata sharma - Complainant(s)

Versus

Divisonal Manager, The Oriental Insurence company Ltd. - Opp.Party(s)

Manish Kumar Gupta

09 Oct 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
परिवाद संख्या:- 155 /14
श्रीमति पुष्पलता शर्मा पत्नी कृपा शंकर शर्मा जाति ब्राहमण निवासी मं. नं. 916 शास्त्री नगर दादाबाडी, कोटा, राजस्थान।          -परिवादिया
                    बनाम
डिविजनल मैनेजर, दी ओरियन्टल इन्श्यारेन्स कंपनी लिमिटेड, डिविजनल आॅफिस एल.आई.सी. बिल्डिंग छावनी चैराहा, कोटा, राजस्थान।                                               -विपक्षी

समक्ष:-
भगवान दास     ः    अध्यक्ष
हेमलता भार्गव    ः    सदस्य                                                                                         
    परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01.    श्री मनीष कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, परिवादिया की ओर से। 
02.    श्री वी0के0 सक्सेना, अधिवक्ता, विपक्षी की ओर से। 
 

            निर्णय             दिनांक 09.10.2015
         
         परिवादिया ने विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में उसका यह सेवा-दोष बताया है कि उसका बीमित वाहन आर.जे. 20 यू ए 3751 बीमा अवधि में उसके मकान से चोरी हो गया, जिसकी रिपोर्ट पुलिस में कराई गई,  विपक्षी बीमा कंपनी को क्लेम प्रस्तुत किया गया, जिसके संबंध में रजिस्टर्ड पत्र दिनांक 11.04.13 को भेजा जो उसे दिनांक 20.04.13 को मिला, जिसके बारे में स्पष्टीकरण रजिस्टर्ड  डाक से दिनांक 26.04.13 को भेजा गया। विपक्षी ने अपने कार्यालय में बुलाकर 25 प्रतिशत राशि काट कर 6,57,000/- रूपये के क्लेम का भुगतान करने का वायदा करते हुये सहमति-पत्र एवं डिस्चार्ज बाउचर के खाली फार्म पर हस्ताक्षर करके देने के लिये कहा, परिवादिया को 25 प्रतिशत राशि काटे जाने का कोई कारण नहीं बताया। परिवादिया ने प्रस्तावित क्लेम रकम अंडर प्रोटेस्ट प्राप्त करने के लिये कहा तो विपक्षी ने इंकार कर दिया। दिनांक 03.07.13 को परिवादिया ने अभिभाषक के जरिये कानूनी नोटिस  विपक्षी को भेजा जो उसे मिल गया फिर भी भुगतान नहीं किया। बार-बार सम्पर्क करने पर भी सहमति-पत्र एवं डिस्चार्ज बाउचर के खाली फार्म पर हस्ताक्षर करने का ही दबाव दिया, मजबूरी में परिवादिया ने सहमति-पत्र व खाली बाउचर पर हस्ताक्षर करके दे दिये, इसके बावजूद विपक्षी ने क्लेम राशि का भुगतान नहीं किया। विपक्षी को फरवरी, 14 मंे रजिस्टर्ड पत्र भेजा गया जो उसे मिल गया, उसके बावजूद भुगतान नहीं किया। विपक्षी का पत्र दिनांक 25.04.14, दिनांक 29.04.14 को प्राप्त हुआ, जिसमें उसने गैर कानूनी आधारों पर मनमाने तौर से क्लेम खारिज करके सूचित किया, क्योंकि परिवादिया ने वाहन चोरी होने की सूचना पुलिस को दे दी थी  तथा वाहन की चाबी सुरक्षित रखने में कोई लापरवाही नहीं होने का स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर दिया था।  विपक्षी के कार्यालय में दिनांक 14.05.12 को बीमित वाहन चोरी होने की मौखिक सूचना दे दी गई जिस पर कहा गया था कि थाने पर दर्ज रिपोर्ट की प्रतिलिपि के साथ क्लेम फार्म प्रस्तुत करने पर कार्यवाही की जायेगी। विपक्षी कंपनी द्वारा क्लेम खारिज करने के कारण आर्थिक- नुकसान के साथ मानसिक संताप हुआ। 

    मंच की ओर से परिवादिया के परिवाद का नोटिस रजिस्टर्ड डाक से विपक्षी बीमा कंपनी को दिनांक 20.06.14 को भेजा गया। डाक विभाग के प्रमाण-पत्र के अनुसार नोटिस विपक्षी बीमा कंपनी को 23.06.14 को प्राप्त हो गया। इसके बावजूद विपक्षी बीमा कंपनी की ओर से उपस्थिति नहीं देने के कारण उसके विरूद्ध दिनांक 08.01.15 को एक पक्षीय-कार्यवाही के आदेश दिये गये । 

    विपक्षी की ओर से कोई जवाब प्रस्तुत नही किया गया और साक्ष्य भी प्रस्तुत नहीं की गई।  

    परिवादिया ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा उसके किरायेदार दयाल गूर्जर, दिनेश कुमार मीना व अहसान बैग के शपथ-पत्र प्रस्तुत किये  । परिवादिया ने प्रथम सूचना रिपोर्ट, एफ. आर., आर.सी., बीमा पालिसी, बीमित वाहन खरीद बिल, विपक्षी से प्राप्त पत्र दिनांक 11.04.13, उसको प्रेषित स्पष्टीकरण दिनांक 26.04.13, उसकी पोस्टल रसीद व ए/डी, विपक्षी को प्रेषित कानूनी नोटिस दिनांक 03.07.13, उसकी पोस्टल रसीद व ए/डी, विपक्षी को प्रेषित रजिस्टर्ड पत्र दिनांक 26.02.14 व उसकी पोस्टल रसीद दिनंाकित 05.03.14, विपक्षी से प्राप्त पत्र दिनांक 25.04.14 आदि की प्रति प्रस्तुत की। 
        
        हमने दिनांक 30.09.15 को परिवादिया के वकील एवं विपक्षी की ओर से उपस्थित वकील की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया। 

       परिवादिया ने उसके बीमित वाहन की चोरी के क्लेम को गैर कानूनी एवं मनमाने तौर से विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा खारिज करने का जो विवरण परिवाद में दिया है उसका खंडन करने हेतु विपक्षी बीमा कंपनी को पर्याप्त अवसर मिलने के बावजूद खंडन नहीं किया गया।

    जहाॅ तक परिवादिया द्वारा विपक्षी बीमा कंपनी के सेवा-दोष को सिद्ध करने का प्रष्न है ? परिवादिया ने उसके क्लेम को विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा खारिज करने के पत्र दिनांक 25.04.14 की प्रति प्रस्तुत की है, इस पत्र में विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादिया को सूचित किया है कि उनके पूर्व पत्र दिनांक 11.04.13 का संदर्भ लिया जावे, परिवादिया ने जो उत्तर एवं दस्तावेज प्रस्तुत किये है उनका परीक्षण करने पर यह पाया गया है कि उनके पूर्व पत्र दिनांक 11.04.13 में जो बिन्दु उठाये गये उनका संतोषजनक जवाब नहीं है, कोई नये तथ्य प्रकट नहीं किये गये है, इसलिये उनके पूर्व पत्र में वर्णित कारणों से क्लेम खारिज किया जाता है, जिन कारणों को नीचे पुनः दोहराया जा रहा हैः-
01.    अन्वेषण रिपोर्ट व साक्षियों के बयानों से यह प्रमाणित पाया गया कि बीमित वाहन की मूल चाबियाॅ खुली दुकान में रखी गई उनसे वाहन चोरी किया गया जो गंभीर लापरवाही है।
02.    पालिसी की षर्त के अनुसार वाहन चोरी की सूचना 48 घंटे के अंदर नहीं दी गई, अपितु 22 दिन में दी गई है, इस प्रकार पालिसी की षर्त का उल्लधंन किया गया। पुलिस में रिपोर्ट भी 5 दिन बाद कराई गई। 

    बीमा कपंनी ने उक्त पत्र में अपने पूर्व पत्र दिनांक 11.04.13 का उल्लेख किया है और उस पत्र में वर्णित कारणों से ही क्लेम को खारिज करना बताया है, वह पत्र भी परिवादिया की ओर से प्रस्तुत किया गया है। इस पत्र में विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादिया को सूचित किया है कि ष्उसके पत्र दिनांक 05.06.12 के द्वारा प्रस्तुत किये गये क्लेम की जांच करने पर अन्वेषण रिपोर्ट के आधार पर पाया गया है कि वाहन की चाबी से वाहन की चोरी की गई है जिसमें उसकी गंभीर लापरवाही प्रतीत होती है, इसलिये पालिसी प्रावधानों के अनुसार दावा स्वीकार योग्य नही है, फिर भी उक्त आधार पर क्लेम खारिज करने के अंतिम निर्णय से पूर्व पत्र प्राप्ति के दो सप्ताह में अपने क्लेम के समर्थन में रिप्रजेन्टेषन/स्पष्टीकरण दे सकती है यदि इस अवधि में उसका कोई रिप्रजेन्टेषन/स्पष्टीकरण नहीं आता है तब इस पत्र में वर्णित कारण से उसका क्लेम खारिज किया जावेगा।ष् विपक्षी बीमा कंपनी के उक्त पत्र दिनांक 11.04.13 से स्पष्ट है कि विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादिया की ओर से प्रस्तुत क्लेम दिनांक 05.06.12 की पूरी जांच करने के बाद केवल इसी आधार पर उसका क्लेम स्वीकृत योग्य नही पाया कि बीमित वाहन की चाबी से उसे चोरी किया गया, जिसमें उसकी लापरवाही रही अन्य किसी आधार पर क्लेम खारिज होने योग्य नहीं पाया। लेकिन पत्र दिनांक 25.04.14 में  पालिसी की शर्त के अनुसार 48 घंटे में चोरी की सूचना नही देने एवं पुलिस को 5 दिन पष्चात् सूचना देने का नया आधार जोड दिया। अर्थात् क्लेम खारिज करने के बारे में पूर्व निर्णय बदला गया।
    प्रष्न उठता है कि क्या विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादिया के बीमित वाहन की चोरी का क्लेम अनुचित एवं मनमाने तौर से खारिज   किया ?

    परिवादिया के क्लेम दिनांक 05.06.12 के संबंध में सर्वप्रथम   10-11 माह बाद पत्र दिनांक 11.04.13 से  उसकी लापरवाही से वाहन चोरी होने के आधार पर क्लेम खारिज होने के निर्णय की सूचना देते हुये उसका स्पष्टीकरण  चाहा गया जो मिल गया, जिसको विपक्षी ने अपने पत्र दिनांक 25.04.14 मंे स्वीकार किया है।
    परिवादिया ने स्पष्ट केस रखा है कि उसका स्पष्टीकरण मिलने पर विपक्षी ने अपने कार्यालय में बुलाकर 25 प्रतिशत रकम काटकर शेष भुगतान भविष्य में कानूनी कार्यवाही नहीं करने के सहमति-पत्र व खाली डिस्चार्ज बाउचर पर हस्ताक्षर करके देने की अवस्था में भुगतान करने का आश्वासन दिया, राशि काटने का कोई कारण नहीं बताया। परिवादिया ने अंडर प्रोटेस्ट रकम प्राप्त करने का प्रस्ताव रखा जिसे मना कर दिया। परिवादिया ने विपक्षी को कानूनी नोटिस दिनांक 03.07.13 को भेजा जिसे मिलने की ए/डी रसीद पेश की गई, इस नोटिस मे भी परिवादिया ने विपक्षी के उक्त भुगतान प्रस्ताव का उल्लेख किया है, जिसका उत्तर भेजकर विपक्षी ने खंडन नहीं किया।
    परिवादिया का आगे यह भी केस है कि उसका स्पष्टीकरण मिलने के बाद पुनः विपक्षी ने कार्यालय में बुलाकर धमकी दी कि सहमति-पत्र एवं खाली डिस्चार्ज-बावउचर पर हस्ताक्षर करके देने की स्थिति में ही क्लेम का भुगतान किया जावेगा, जिस पर उसने सहमति-पत्र एवं खाली डिस्चार्ज-पत्र हसताक्षर करके दे दिये उसके बावजूद भुगतान नहीं किया, उसने पुनः रजिस्टर्ड पत्र डाक से दिनांक 05.03.14 को भेजा उसके बाद भी भुगतान नहीं किया। विपक्षी ने दिनांक 25.04.14 के पत्र से उसका क्लेम खारिज करने की सूचना दी जिसमें पूर्व पत्र दिनांक 11.04.13 के अलावा एक अन्य नया गैर कानूनी एवं मनमाना आधार निश्चित समय पर सूचना नहीं देने का जोड दिया, पूर्व पत्र दिनांक 11.04.13 के संबंध में परिवादिया ने उसकी लापरवाही नहीं होने का युक्ति-युक्त स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर दिया था, इसके बावजूद उक्त उक्त पत्र में क्लेम खारिज करने का गलत आधार बनाया गया  एवं समय पर सूचना नही देने का भी मनमाना आधार जोडा गया  जबकि वाहन चोरी के दिन ही पुलिस को सूचना दे दी गई थी उसको तलाश करने के लिये कहा था व 3-4 दिन बाद रिपोर्ट दर्ज की थी। उसी दिन सूचना देने का हवाला रिपोर्ट मंे अंकित है। विपक्षी बीमा कंपनी को भी उसके कार्यालय में दिनांक 14.05.12 को मौखिक सूचना दी गई थी तब उसे पुलिस थाने की रिपोर्ट की प्रति के साथ क्लेम प्रस्तुत करने की कार्यवाही के लिये कहा गया था। परिवादिया ने अपने उक्त केस की पुष्टि हेतु न केवल अपना शपथ-पत्र दिया अपितु उसके यहाॅ किरायेदार दयाल गूर्जर, जिसकी डेयरी पर वाहन की चाबी रखी हुई थी, उसका शपथ-पत्र, एक अन्य किरायेदार दिनेश कुमार मीना एवं परिचित अहसन बैग के भी शपथ-पत्र प्रस्तुत किये हंै । दयाल गूर्जर व दिनेश कुमार मीना ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि वे दिनांक 13.05.12 को परिवादिया के साथ उसकी चोरी की रिपोर्ट पुलिस थाना दादाबाडी, कोटा में  करने गये थे, जहाॅ पर 3-4 दिन तलाश करने के बाद रिपोर्ट दर्ज करने के लिये कहा था। अहसान बैग ने भी शपथ-पत्र में उक्त तथ्यों के अलावा इस बात की भी पुष्टि की है कि वह दिनांक 14.05.12 को परिवादिया के साथ विपक्षी के कार्यालय में वाहन चोरी होने की सूचना देने गया था तब वहाॅ कार्यालय के कर्मचारियों ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने व उसकी प्रति के साथ आने के लिये कहा था।
    इस प्रकार हम पाते है कि परिवादी द्वारा यह भी सिद्ध कर दिया गया है कि उसने विपक्षी बीमा कंपनी को वाहन के चोरी होने की सूचना देने में कोई विलम्ब नहीं किया। वाहन 12.05.13 व 13.05.13 की मध्य रात्रि को चोरी हुआ, जिसकी दिनांक 14.05.13 को विपक्षी बीमा- कंपनी को सूचना दे दी गई तथा पुलिस को 13.05.13 को ही सूचना दे दी, जिन्होने तत्काल रिपोर्ट दर्ज नहीं की, 3-4 दिन बाद दर्ज की । प्रथम सूचना रिपोर्ट में यह उल्लेख है कि उसी दिन थाने में सूचना दी गई थी। यदि पुलिस थाने की ओर से तत्काल रिपोर्ट दर्ज नहीं की जाकर विलम्ब से दर्ज की गई तब इसके लिये  परिवादिया को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। वाहन की चाबी रखने में  लापरवाही नहीं किये जाने का भी युक्ति-युक्त स्प्ष्टीकरण परिवादिया की ओर से पत्र दिनांक 26.04.13 से भेजा, जो भी विपक्षी को मिल गया व उसका उल्लेख कानूनी नोटिस दिनांक .3.07.13 में भी किया गया वह भी विपक्षी को मिल गया, जिसको तत्काल अस्वीकार करने का कोई उत्तर विपक्षी ने नहीं भेजा। यदि स्पष्टीकरण स्वीकार्य नहीं था तब तत्काल क्लेम पर निर्णय लेकर सूचित किया जाना चाहिये था, लेकिन विपक्षी द्वारा क्लेम को लंबित रखा गया। 
    परिवादिया की ओर से प्रेषित कानूनी नोटिस दिनांक 03.07.13 में विपक्षी के इस प्रस्ताव का स्पष्ट खुलासा किया गया कि- क्लेम की राशि 25 प्रतिशत काटकर दिया जायेगा इसके लिये सहमति-पत्र व खाली डिस्चार्ज-बाउचर पर दस्तखत करके देने होगंे, जिसका कोई कारण नहीं बताया गया । परिवादिया द्वारा अंडर-प्रोटेस्ट रकम प्राप्ति के प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया गया यह नोटिस मिलने के बावजूद परिवादिया द्वारा वर्णित उक्त कहानी का तत्काल विपक्षी की ओर से कोई खंडन नहीं किया गया तथा क्लेम का निस्तारण  भी नहीं किया गया उसे अकारण लंबित रखा गया । परिवादिया ने विपक्षी के आचरण व व्यवहार का परिवाद मे यह भी खुलासा किया है कि वह बार-बार विपक्षी के कार्यालय के चक्कर लगाती रही, उसे 25 प्रतिशत राशि काटकर देने व इस हेतु सहमति-पत्र व बाउचर पर हस्ताक्षर करके देने के लिये ही धमकी दी, जिसके लिये उसने विवश होकर  सहमति-पत्र व बाउचर पर हस्ताक्षर करके भी दे दिये उसके बावजूद उसको भुगतान नहीं किया गया। 5 मार्च, 2014 को पुनः रजिस्टर्ड पत्र भेजकर भुगतान की मांग की गई  उसके भी लगभग डेढ माह पश्चात क्लेम खारिज करने का पत्र दिनांक 25.04.14 भेजा गया जिसमें वर्णित आधारों को पूरी तरह मनमाने, अनुचित व गैर कानूनी होना परिवादिया ने सिद्ध किया हैै।
    अतः हम पाते है कि परिवादिया द्वारा यह स्पष्ट सिद्ध कर दिया है कि विपक्षी ने परिवादिया के क्लेम को दुर्भावना से लगभग 2 साल तक लंबित रखा था अन्त में गैर कानूनी एवं अनुचित कारण  से मनमाने तौर पर खारिज कर दिया जो कि स्पष्टतः विपक्षी का सेवा दोष है।  

    विपक्षी बीमा कम्पनी के योग्य अधिवक्ता ने न्यायिक दृष्टान्त  कुलवन्तसिंह बनाम यूनाईटेड इण्डिया इष्योरेंस कंपनी लिमिटेड, भाग 4 (2014)सी.पी.जे. 350 (एन सी)को उदृत किया जिसका सम्मान पूर्वक अध्ययन किया गया । हम पाते है कि प्रस्तुत मामले के विषिष्ठ तथ्य व परिस्थिति में उक्त निर्णय लागू नहीं होता है क्योंकि परिवादिया ने यह बखूबी सिद्ध किया है कि बीमित वाहन चोरी होने के दूसरे ही दिन उसने बीमा कम्पनी को वाहन चोरी होने की सूचना दे दी थी, जिसका कोई खण्डन विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा नही किया गया एवं परिवादिया ने यह भी बखूबी सिद्ध किया है कि वाहन चोरी होने की जानकारी दिनाॅंक 13.05.12 को प्रातः हुई उसी रोज संबधित पुलिस थाने को उसकी सूचना दे दी गई।
    यहाॅ यह भी उल्लेख करना होंगा कि प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षी बीमा कंपनी द्वारा परिवादिया के बीमित वाहन के चोरी होने के क्लेम को सेटल करने की जो कार्यशैली व रीति प्रारंभ से अपनाई गई है वह स्पष्ट है कि विपक्षी बीमा कंपनी ऐन-केन-प्रकारेन उसे खारिज ही करना चाहती थी तथा इसी निमित उसे अनुचित रूप से अकारण लगभग 2 वर्ष तक लंबित रखा युक्ति-युक्त समय पर निस्तारित नहीं किया। विपक्षी के पत्र दिनांक 11.04.13 से प्रकट है कि परिवादिया का क्लेम  05.06.12 को प्राप्त हो गया था उसके संबंध में विपक्षी बीमा कंपनी ने लगभग 10 माह पश्चात यह पत्र भेजा उसमें वाहन की चाबी रखने में लापरवाही करने के आधार पर उसके क्लेम को खारिज करने का निर्णय  लेने व इस संबंध में 2 सप्ताह के अंदर स्पष्टीकरण का अवसर दने हेतु उसे सूचित किया, इस पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि उसके क्लेम एवं दस्तावेज की बारीकी से जांच की जा चुकी है। परिवादिया ने यह पत्र मिलते ही तत्काल रजिस्टर्ड पत्र दिनांक 26.04.13 से अपना युक्ति-युक्त स्पष्टीकरण भेज दिया जो विपक्षी बीमा कंपनी को मिल गया, लेकिन उसके बाद भी युक्ति-युक्त समय में तत्काल क्लेम का निस्तारण नहीं किया गया। परिवादिया ने अपने वकील के जरिये विपक्षी को 03.07.13 को नोटिस भेजा जिसमें यह स्पष्ट किया कि उसे विपक्षी ने कार्यालय पर बुलाकर 25 प्रतिशत राशि काटकर भुगतान करने का प्रस्ताव दिया था तथा इसके लिये सहमति-पत्र व हस्ताक्षरित खाली बाउचर मांगे थे जिसका कारण नहीं बताया। परिवादिया ने अंडर प्रोटेस्ट रकम प्राप्ति का प्रस्ताव रखा तब उसे इंकर कर दिया। यह लीगल नोटिस  भी विपक्षी को मिल गया तब भी उसके क्लेम का युक्ति-युक्त समय पर निस्तारण नहीं किया, उसकी कहानी का खंडन नहीं किया, क्लेम को लंबित रखा। परिवादिया ने विवश्ता में सहमति-पत्र व खाली बाउचर पर हस्ताक्षर करके दे दिये उसके बावजूद उक्त प्रस्ताव के अनुसार भी भुगतान नहीं किया। परिवादिया ने 5 मार्च 14 को रजिस्टर्ड पत्र विपक्षी को भेज कर भुगतान देने की मांग की उसके भी डेढ माह बाद उसका क्लेम खारिज करने के निर्णय से सूचित किया गया ।
    उपरोक्त परिस्थितियों से स्पष्ट है कि विपक्षी बीमा कंपनी ने परिवादिया के क्लेम पर युक्ति-युक्त समय पर उचित निर्णय लेने के बजाय उसे अकारण लंबित रखा, उसने अपना युक्ति-युक्त स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर दिया फिर भी तत्काल निर्णय नहीं लिया उसे अस्वीकार भी नहीं किया  परिवादिया के कानूनी नोटिस का भी उत्तर नहीं दिया उस पर 25 प्रतिशत राशि काटकर भुगतान करने का अनुचित दबाव बनाया, उसने विवशता में मांग किये दस्तावेज प्रस्तुत कर दिये तब भी भुगतान नहीं किया गया, उपर्युक्त कार्यशैली एवं रीति विपक्षी के इस आचरण एवं व्यवहार को स्पष्ट करती है कि- विपक्षी बीमा कंपनी उसके क्लेम का भुगतान ही नहीं करना चाहती थी उसे अकारण परेशान करना चाहती था। 
    अतः हम पाते है कि विपक्षी बीमा कंपनी, परिवादिया के बीमित वाहन के चोरी के क्लेम बाबत् बीमा पालिसी में वर्णित आई.डी.वी.(घोषित मूल्य ) 9,12,380/- रूपये में से 5 प्रतिशत डेप्रिसिऐशन राशि काटकर शेष राशि व उस पर परिवाद प्रस्तुत करने से भुगतान करने की दिनांक तक 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अदा करने  एवं मानसिक संताप की भरपाई हेतु उचित क्षतिपूर्ति व परिवाद व्यय की भरपाई करने के लिये उत्तरदायी है। 
     अतः    परिवाद  स्वीकार किये जाने योग्य है।
                आदेष
    परिवादिया का परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर निर्देष दिया जाता है कि परिवादिया के बीमित वाहन आर.जे.-20 यू0ए0/3751 (चेचिस नम्बर एम ए आई टी ए 2 एम एच एनवी2एच24912एवं इंजन नम्बर एम एचबी4एच63925)की आई.डी.वी. राषि 9,12, 380 /- रू0 में से 5 प्रतिषत राषि काटकर शेष राषि एवं उस राषि पर परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक 11.06.14 से  भुगतान करने की तिथि तक 9 प्रतिषत वार्षिक साधारण ब्याज सहित कुल राषि का भुगतान विपक्षी द्वारा परिवादिया को दो माह में किया जावे, इसके अलावा परिवादिया को मानसिक संताप की भरपाई के पेटे 20,000/-रू0एवं परिवाद व्यय की भरपाई के पेटे 2,500/-रू0 भी अलग से अदा किये जावें ।

(हेमलता भार्गव)                                        (भगवान दास)  
    सदस्य                                               अध्यक्ष
 
     निर्णय आज दिनंाक 09.10.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
                                     
  सदस्य                                                 अध्यक्ष           

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