Mohd. Shahaab filed a consumer case on 18 May 2023 against District Minority Welfare Officer etc. in the Barabanki Consumer Court. The case no is CC/143/2018 and the judgment uploaded on 19 May 2023.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।
परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 25.09.2018
अंतिम सुनवाई की तिथि 03.05.2023
निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि 18.05.2023
परिवाद संख्याः 143/2018
मो0 शहाब उम्र करीब 54 वर्ष पुत्र मोहियादीन उर्फ मुन्ना नि0-मकान नं0-8/0662 मोहल्ला कानूनगोयान शहर पर0 व तह0 नवाबगंज जिला-बाराबंकी।
द्वारा- श्री राम कुमार वर्मा, अधिवक्ता
श्री हेमन्त कुमार जैन, अधिवक्ता
बनाम
1. जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी विकास भवन, बाराबंकी।
2. प्रबन्ध निदेशक उ0 प्र0 अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम लिमिटेड कक्ष सं0-746 सातवाॅ तल जवाहर भवन,
लखनऊ।
द्वारा-श्री एस0 के0 मौर्या, ए.डी.जी.सी. सिविल, अधिवक्ता
समक्षः-
माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष
माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य
उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री रामकुमार वर्मा, एडवोकेट
विपक्षीगण की ओर से-श्री एस0 के0 मौर्या, ए.डी.जी.सी. सिविल
द्वारा-संजय खरे, अध्यक्ष
निर्णय
परिवादी ने विपक्षी के विरूद्व धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत विपक्षीजनो को शेष रू0 900/-परिवादी से प्राप्त कर शेष चेके मय अदेय प्रमाण पत्र वापस करने का अनुतोष की माँग किया है।
संक्षेप में परिवाद कथानक इस प्रकार है कि परिवादी ने उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्तीय विकास निगम लिमिटेड, लखनऊ द्वारा संचालित टर्म लोन योजनान्तर्गत बार्बर(नाई) हेतु जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बाराबंकी के द्वारा पत्रांक 162/30.06.2005/27.07.2005 को मु0 27,000/-का ऋण लिया था जिसकी अदायगी दिनांक 15.12.2005 से 15.09.2010 तक करनी थी। ऋण की अदायगी हेतु 20 सादी हस्ताक्षर युक्त चेकें परिवादी के खाता सं0-5439 ग्रामीण बैंक बाराबंकी की चेक सं0-277071-277080 एवं 277671, 277680 तक ली थी। उक्त चेकों के माध्यम से बीस किश्तों में त्रैमासिक किश्त मु0 1,595/-के हिसाब से ऋण अदा होना था। विपक्षी संख्या-01 द्वारा याची के खाते में चेके न लगाकर धनराशि भुगतान में विलम्ब किया जाता रहा। परिवादी कई बार स्वयं जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी से मिलकर प्रार्थना पत्र दिनांक 27.09.2006, 20.12.2014, 07.01.2015, 23.02.2015 व 30.10.2017 को शिकायत की तथा ऋण अदायगी चेक से वसूलने का अनुरोध किया। परिवादी की पूर्व में जमा चेक संख्या-277072 से रू0 31,000/-किश्तों में भुगतान किया गया। पाँच वर्षो में बीस किश्तों की चेको से अदायगी होने के उपरान्त अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी द्वारा रू0 31,000/-ही ऋण खाते में जमा कराया। शेष रू0 900/-जमा नहीं कराया जबकि परिवादी के खाते में पर्याप्त धनराशि थी। परिवादी ने कई बार शिकायती प्रार्थना पत्र दिया परन्तु आज तक न तो उससे रू0 900/-परिवादी द्वारा दी गई पूर्व चेकों से लिया गया और न ही अदेय प्रमाण पत्र दिया गया। इसके विपरीत परिवादी को रू0 27,281/-की बकाया नोटिस दिनांक 14.03.2018 को प्रेषित की गई। परिवादी ने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 19.02.2018 को लीगल नोटिस भी दिया परन्तु न तो कोई उत्तर दिया गया और न ही अदेय प्रमाण पत्र निर्गत किया गया। अदेय प्रमाण पत्र न प्राप्त होने से परिवादी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादी ने उपरोक्त अनुतोष हेतु यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादी ने परिवाद के कथन के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया है।
परिवादी ने सूची से नोटिस बकाया रू0 27,281/-, प्रार्थना पत्र दिनांक 26.05.2017, 18.12.2017, सूचना अधिकार अधिनियम का प्रार्थना पत्र दिनांक 12.04.2017, सांसद बाराबंकी को प्रार्थना पत्र दिनांक 02.05.2017, दिनांक 23.05.2017, दिनांक 15.12.2015, दिनांक 30.03.2015, दिनांक 20.12.2019, दिनांक 23.02.2015, दिनांक 13.02.2015, दिनांक 07.01.2015, 07.09.2005, 31.10.2007, स्टेटमेन्ट आफ एकाउन्ट, 22 खाली चेक, आधार कार्ड, विधिक नोटिस तथा परिवादी के बचत खाते के स्टेटमेन्ट की छायाप्रति दाखिल किया है।
विपक्षीगण की ओर से जवाबदावा में कहा गया है कि परिवादी को टर्मलोन योजना के अंतर्गत पत्रांक 162 दिनांक 30.06.2005 के माध्यम से रू0 27,000/-का ऋण स्वीकृत किया गया जिसे जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी द्वारा दिनांक 27.07.2005 को वितरित किया गया। ऋण की अदायगी 20 त्रैमासिक किश्तो में 6 प्रतिशत ब्याज सहित किया जाना था। समय से भुगतान न करने पर बकाया राशि पर दो प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज देय था। परिवादी का आवेदन दिनांक 27.09.2006 व 31.10.2007 कार्यालय को कभी प्राप्त नहीं हुआ। चेक संख्या-277071 दिनांक 11.02.2015 को निगम के खाते में जमा कर दी गई थी परन्तु खाते में धनराशि न होने के कारण परिवादी के बैंक द्वारा वापस कर दी गई। परिवादी के अनुरोध पर रू0 31,000/-का चेक सं0-27772 दिनांक 09.03.2015 को निगम के खातें में जमा किया गया। अदेय प्रमाण पत्र तभी जारी किया जाता है जब खाते में समस्त धनराशि जमा हो जाती है। परिवाद किसी भी दशा में पोषणीय नहीं है। विपक्षीगण ने जवाबदावा के तथ्यों के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया है।
विपक्षी बैंक द्वारा सूची से ऋण से सम्बन्धित 16 प्रपत्र दाखिल किये गये है।
परिवादी ने शपथपत्र साक्ष्य दाखिल किया है।
परिवादी तथा विपक्षीगण ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है।
उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना तथा पत्रावली पर प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों/अभिलेखों का गहन परिशीलन किया।
वर्तमान प्रकरण में परिवादी के कथनानुसार परिवादी ने विपक्षी संख्या-02 द्वारा संचालित टर्म लोन योजना के अंतर्गत नाई के व्यवसाय हेतु जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी, बाराबंकी (विपक्षी सं0-01) से पत्रांक संख्या-162/30.06.2005/27.07.2005 को रू0 27,000/-टर्म लोन लेना कहा है जिसकी अदायगी दिनांक 15.12.2005 से 15.09.2009 तक करनी थी। परिवादी ने ऋण अदायगी हेतु बीस सादे हस्ताक्षर युक्त चेक (परिवादी के ग्रामीण बैंक बाराबंकी के खाता संख्या-5439), चेक सं0-277071-277080, 277671-277680 की ले ली थी। उक्त चेकों के माध्यम से ही बीस किश्तों में प्रति त्रैमासिक किश्त रू0 1,595/-प्रति त्रैमास अदायगी होनी थी। विपक्षी ने प्रत्येक त्रैमास पर परिवादी का कोई भी चेक त्रैमासिक किश्त के भुगतान हेतु बैंक में प्रस्तुत नहीं किया और दिनांक 16.05.2015 को परिवादी की उपरोक्त जमा की गई सारी चेक में से 277072 नम्बर के चेक के माध्यम से रू0 31,000/-ऋण के भुगतान में प्राप्त किये गये। पाँच वर्ष में तीस त्रैमासिक किश्तों में ब्याज सहित ऋण की अदायगी कुल रू0 31,900/-विपक्षी को प्राप्त करना था। परिवादी के खाते में पर्याप्त धनराशि मौजूद थी, केवल रू0 31,000/-का चेक लगाया रू0 900/- छोड़ दिये। परिवादी द्वारा विपक्षी से शेष रू0 900/-लेकर अदेयता प्रमाण पत्र निर्गत करने की याचना की गई तो विपक्षी ने कोई अदेयता प्रमाण पत्र जारी नहीं किया बल्कि याची को रू0 27,281/-ऋण बकाया होना अंकित करते हुये दिनांक 14.03.2018 को नोटिस जारी कर दी गई।
परिवादी ने परिवाद पत्र की धारा-2 में यह स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि ऋण लेते समय परिवादी के हस्ताक्षर युक्त जो बीस चेक विपक्षी बैंक द्वारा ली गई थी उन्हीं बीस चेकों में से प्रत्येक त्रैमास पर एक चेक को त्रैमासिक किश्त रू0 1,595/-के माध्यम से जमा कर ऋण खातें में प्राप्त करना था। विपक्षी ने अपने जवाबदावे में परिवाद पत्र की धारा-2 को स्वीकार किया है। विपक्षी का कथन है कि परिवादी ने ही प्रत्येक त्रैमास पर चेक लगाकर ऋण की किश्त का भुगतान करने से मना किया था। विपक्षी का जवाबदावे में कथन है कि दिनांक 11.02.2015 तक परिवादी पर ब्याज सहित रू0 52,600/-बकाया होने के आधार पर चेक संख्या-277071 को ऋण की अदायगी के संबंध में विपक्षी द्वारा खातें में जमा किया गया परन्तु परिवादी के खाते में पर्याप्त धनराशि न होने के कारण चेक अनादृत होकर वापस प्राप्त हुआ। परिवादी के अनुरोध पर रू0 31,000/-चेक संख्या-277072 दिनांक 09.03.2015 को खातें में जमा कर ऋण खातें में भुगतान प्राप्त किया गया। शेष बकाया धनराशि के सम्बन्ध में नोटिस प्रेषित की गई जिसके आधार पर परिवादी द्वारा कोई भुगतान न करना कहा गया है।
परिवादी की ओर से सूची दिनांकित 04.09.2018 से परिवादी मो0 शहाब की नाई की दुकान के लिये विपक्षी द्वारा दिये गये ऋण खातें की प्रति दाखिल की है जिसमे ऋण वितरण में परिवादी को रू0 27,000/-ऋण देना अंकित है जिसके रिपेमेन्ट शेड्यूल में बीस त्रैमासिक किश्तों में मूल ऋण व उस पर ब्याज के आधार पर रू0 1,595/-प्रति त्रैमासिक किश्त अंकित की गई है जिसके कालम के अंतिम भाग में बीसवीं किश्त अदा होने पर रू0 31,900/-कुल ब्याज सहित मूल ऋण धनराशि अदा किये जाने का प्रस्ताव है। परिवाद पत्र के प्रस्तर-2 को जवाबदावे में विपक्षी द्वारा स्वीकार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि जो बीस सादी चेक विपक्षी ने परिवादी से हस्ताक्षर कराके अपने पास उपरोक्त ऋण के सम्बन्ध में लिये थे, उनका मुख्य उद्देश्य प्रत्येक चेक को त्रैमास पर रू0 1,595/-के भुगतान हेतु लगाकर परिवादी के बचत खातें से प्राप्त करना था। यह कार्य विपक्षी को स्वयं करना था। परिवादी को प्रत्येक त्रैमास पर ऋण की अदायगी में कोई नगद धनराशि ऋण खातें में जमा नहीं करनी थी। विपक्षी के जवाबदावे में अंकित तथ्य से स्पष्ट है कि दिनांक 15.12.2005 से लेकर 15.09.2010 तक की अवधि के मध्य बीस त्रैमास में से किसी भी त्रैमास के पूरा होने पर विपक्षी द्वारा परिवादी का कोई भी चेक रू0 1,595/-किश्त की भुगतान हेतु परिवादी के बचत खातें में नहीं लगाया गया। बैंक द्वारा जारी रिपेमेन्ट शेड्यूल से यह स्पष्ट है कि मूल ऋण रू0 27,000/-पर ब्याज सहित दिनांक 15.09.2010 तक कुल रू0 31,900/-विपक्षी को परिवादी से प्राप्त करने थे। यदि विपक्षी ने परिवादी से लिये गये चेक में से प्रत्येक त्रैमास पर कोई चेक किश्त भुगतान हेतु नही लगाया, ऐसी स्थिति में ऋण अदायगी में किसी प्रकार का कोई व्यतिक्रम परिवादी द्वारा किये जाने की स्थिति नहीं बनती है। विपक्षी के जवाबदावें के प्रस्तर-9 में अंकित तथ्य से स्पष्ट है कि परिवादी से लिये गये रिक्त चेकों में से एक चेक संख्या-277071 को रू0 52,600/-बकाया धनराशि दिखाते हुये दिनांक 11.02.2015 को खातें में जमा करने पर धनराशि के अभाव में चेक वापस होना अंकित है जिससे स्पष्ट होता है कि विपक्षी ने परिवादी से लिये गये खाली चेकों में से एक चेक सर्वप्रथम दिनांक 11.02.2015 को उस दिन तक का मूल व उस पर ब्याज लगाते हुये खातें में प्रस्तुत किया। विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावे के प्रस्तर-9 में अंकित किया गया है कि याची ने स्वयं अपने द्वारा दिये गये चेको को बैंक में न जमा करने का अनुरोध किया था इस लिये बैंक में चेक नहीं लगाई गई। परिवादी द्वारा दिये गये चेकों को भुगतान हेतु न लगाने की याचना का कोई लिखित प्रमाण पत्रावली पर नहीं है। जब ऋण अनुबन्ध में यह तय था कि ली गई बीस चेक में से प्रत्येक त्रैमास पर एक चेक त्रैमासिक प्रीमियम की अदायगी के लिये त्रैमास पूरा होने पर लगाई जायेगी तो विपक्षी ने तय शर्तो के अनुसार कार्यवाही क्यों नहीं की, इसका कोई पुष्टिकारक साक्ष्य नहीं है। परिवादी ने चेक भुगतान हेतु न लगाने का अनुरोध कब किया, इसका भी कोई साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है। उपरोक्त से स्पष्ट होता है कि विपक्षी बैंक ने ऋण की शर्तो के अनुसार प्रत्येक त्रैमास पर त्रैमासिक किश्तों के भुगतान हेतु परिवादी से लिये गये चेकों को नहीं लगाकर परिवादी से ऋण मय ब्याज प्राप्त करने में स्वयं लापरवाही की है और उक्त लापरवाही का संज्ञान होने पर दिनांक 11.02.2015 को उस दिन तक का ब्याज लगाते हुये रू0 52,600/-का चेक संख्या-277071 प्रस्तुत करने, खातें में धनराशि न होने के आधार पर चेक का वापस होना कहा गया है। जब दिनांक 15.09.2010 तक कुल रू0 31,900/-की ही अदायगी की जानी थी तो विपक्षी बैंक ने रू0 52,600/-का चेक दिनांक 11.02.2015 को क्यों लगाया। विपक्षी अपनी त्रुटि व लापरवाही के आधार पर परिवादी पर ऋण अदायगी के सम्बन्ध में अतिरिक्त भार नहीं डाल सकते है।
परिवादी के कथनानुसार रू0 31,000/-का चेक संख्या-277072 दिनांक 09.03.2015 को निगम के खातें में विपक्षी ने जमा किया जिसका भुगतान हो गया। विपक्षी ने अपने जवाबदावे में रू0 31,000/-का चेक दिनांक 09.03.2015 को जमा करना अंकित किया है। विपक्षी का कथन है कि रू0 31,000/-का चेक परिवादी के अनुरोध पर जमा किया गया था। परिवादी द्वारा रू0 31,000/-का चेक विपक्षी द्वारा दिनांक 09.03.2015 को लगाने के सम्बन्ध में अनुरोध करने का भी कोई पुष्टिकारक लिखित प्रमाण नहीं है। परिवादी ने स्वयं अनुरोध करके रू0 31,000/-का चेक लगाने के लिये विपक्षी से कहने के तथ्य से स्पष्ट रूप से इंकार किया है।
उपरोक्त समस्त विवेचन से स्पष्ट है कि विपक्षी ऋण के अनुबन्ध शर्तो के अनुसार यदि प्रत्येक त्रैमास पर परिवादी से लिये गये चेकों को देय ऋण धनराशि के संबंध में खातें में लगाते रहते और उसके बाद यदि परिवादी के खातें में धनराशि उपलब्ध न होने के आधार पर कोई चेक अनादृत होता तो निश्चित रूप से ऋण अदायगी में व्यतिक्रम का उत्तरदायित्व परिवादी का होता। विपक्षी ने स्वयं कोई चेक किसी भी त्रैमास पर न तो लगाया और न ही परिवादी नेे किसी त्रैमास पर चेक प्रस्तुत न करने का विपक्षी से कोई अनुरोध किया। ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट हो जाता है कि विपक्षी द्वारा परिवादी को दिये गये ऋण के भुगतान में विपक्षी, परिवादी से अधिकतम रू0 31,900/-प्राप्त करने के अधिकारी है। विपक्षीगण द्वारा परिवादी से रू0 31,000/-जरिये चेक प्राप्त किये जा चुके है। अब केवल रू0 900/-ही विपक्षी परिवादी से प्राप्त कर सकते है। इससे अधिक जो भी धनराशि विपक्षी बैंक ने परिवादी पर शेष होना दशाई है, वह गलत है।
ऋण अदायगी हेतु बैंक द्वारा चेक लगाने के लिये बकाया धनराशि की गणना करके केवल रू0 31,000/-का चेक लगाने का विपक्षी बैंक द्वारा बताया गया आधार, परिवादी की इसी धनराशि तक की सहमति, ऐसे किसी साक्ष्य से समर्थित नहीं है जिससे परिवादी की सहमति सिद्व होती हो। यदि परिवादी की सहमति का पुष्टिकारक साक्ष्य नहीं है तो विपक्षी बैंक ने रू0 31,000/-की धनराशि का चेक ऋण भुगतान के संबंध में किस गणना के आधार पर लगाया। इसका भी कोई सम्पुष्टिकारक साक्ष्य नहीं है। जो इस तथ्य को बल देता हो कि विपक्षी बैंक ने रू0 52,600/-का चेक अनादरित होने पर परिवादी को कोई लिखित नोटिस आदि इसीलिए नहीं दी क्योंकि विपक्षी बैंक को अपनी गलती की जानकारी हो गई थी इसीलिये, दूसरी बार विपक्षी बैंक ने केवल रू0 31,000/-का चेक लगाया, क्योंकि विपक्षी बैंक परिवादी से ऋण की अदायगी में अनुबन्ध की शर्तो के अनुसार कुल रू0 31,900/-बीस किश्तों में ही प्रत्येक त्रैमास पर परिवादी का चेक लगाकर वसूल सकता था। इस प्रकार रू0 31,000/-के चेक का भुगतान प्राप्त करने के बाद केवल रू0 900/-ही विपक्षी बैंक को परिवादी द्वारा देय है। विपक्षी बैंक द्वारा प्रत्येक त्रैमास किश्त वसूली हेतु परिवादी से लिये गये बीस चेकों में से त्रैमासिक किश्त का चेक न लगाने की त्रुटि करने का परिणाम परिवादी नहीं भुगतेगा। ऋण वसूली में विपक्षी बैंक की त्रुटि है। विपक्षी बैंक द्वारा प्रत्येक त्रैमास पर चेक न लगाना और एक चेक में गलत अनुचित धनराशि वसूलने हेतु बैंक से रू0 52,600/-का चेक लगाना भी ऋण की शर्तो का स्पष्ट उल्लंघन है और रू0 31,900/-से अधिक आगणित परिवादी पर दिखाया जा रहा बकाया ब्याज विपक्षी बैंक की त्रुटि का परिणाम है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत अपने बचत खाते के विवरण कि प्रति के अवलोकन से विदित है कि विपक्षी द्वारा रू0 31,000/-के चेक का भुगतान लेने के बाद भी परिवादी के खाते में रू0 8,417/-शेष है। विपक्षी ने कोई ऐसा अभिलेखीय साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया है जिसके अनुसार परिवादी को प्रत्येक त्रैमासिक किश्त स्वयं नगद जमा करनी थी। विपक्षी ने परिवाद के धारा-2 के तथ्यों को जवाबदावा में स्वीकार किया है जिसके अनुसार ली गई बीस सादे चेक में से प्रत्येक चेक को प्रत्येक त्रैमास पर किश्त के भुगतान हेतु बैंक में लगाकर प्रत्येक किश्त वसूली जानी थी। ऋण की वसूली हेतु बीस सादे चेक परिवादी से लेना विपक्षी द्वारा स्वीकृत तथ्य है। रू0 31,000/-की धनराशि वसूलने के बाद केवल रू0 900/-ऋण ही शेष होने पर भी रू0 27,281/-, रू0 36,720/-तथा रू0 43,200/-बकाया की विपक्षी द्वारा परिवादी को दी गई नोटिसें भी गलत है।
परिवादी ने परिवाद दायर करने के पूर्व विपक्षी को कई पत्र प्रेषित करना तथा विधिक नोटिस देना कहा है। विपक्षी ने परिवादी का पत्र दिनांक 20.12.2014 जिलाधिकारी के माध्यम से प्राप्त होना स्वीकार किया है। उपरोक्त पत्र तथा लीगल नोटिस के बाद भी विपक्षी ने त्रुटि सुधार नहीं किया।
परिवाद में कोई अनुतोष प्रस्तर न होने का विपक्षी ने तर्क लिया है। यह तकनीकी आधार है। परिवाद के अंतिम प्रस्तर में अनुतोष स्पष्ट रूप से अंकित है। इसका कोई विपरित प्रभाव परिवाद पर नहीं है।
परिवादी का तर्क है कि बैंक द्वारा चेक की जमा पर्ची पर मो0 शहाब के बैंक द्वारा बनाए गए फर्जी हस्ताक्षर पर कार्यवाई की जाए। विपक्षीगण का तर्क है कि रू0 52,600/-तथा रू0 31,000/-के चेक जिस पर्ची से बैंक में जमा किये गये है, उन जमा पर्चियों पर मो0 शहाब का नाम अंकित है क्योंकि उनके खातें का चेक है। मो0 शहाब के अंकित नाम के बायीं तरफ जमाकर्ता के हस्ताक्षर के कालम में बैंक में पर्ची जमा करने वाले का लघु हस्ताक्षर है। चेक जमा करने की पर्ची के अवलोकन से स्पष्ट है कि मो0 शहाब केवल नाम अंकित है और जमा करने वाले के लघु हस्ताक्षर अंकित है। ऐसी स्थिति में जमा पर्ची पर मो0 शहाब के फर्जी हस्ताक्षर करके चेक बैंक में प्रस्तुत करने का परिवादी का तर्क बलहीन है।
परिवादी उपभोक्ता है। परिवादी ने विपक्षी से रू0 27,000/-के ऋण की सेवाये ब्याज सहित अदायगी की शर्तो के प्रतिफल सहित, प्राप्त की है। विपक्षी द्वारा तयशुदा तरीके से ऋण की वसूली न कर और अनुबन्ध की शर्तो के विपरीत जाकर, निश्चित गणना से अधिक ब्याज की गणना करके निश्चित रूप से सेवा में कमी की है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि विपक्षी, परिवादी से ऋण की अदायगी में अधिकतम रू0 31,900/-ब्याज सहित धनराशि प्राप्त करने के अधिकारी थे। विपक्षी द्वारा प्रत्येक त्रैमास पर परिवादी से लिये गये चेक त्रैमासिक किश्त की अदायगी के संबंध में बैंक में प्रस्तुत न किये जाने से परिवादी का ब्याज विपक्षी द्वारा अधिक आगणित किया गया है। रू0 31,900/-से अधिक परिवादी पर बकाया दिखाना विपक्षीगण की स्वयं की गलती एवं घोर लापरवाही का परिणाम है। ऐसी स्थिति में विपक्षी बैंक परिवादी से केवल बकाया रू0 900/-प्राप्त करने के अधिकारी है तथा परिवादी के पक्ष में अदेयता प्रमाण पत्र तथा परिवादी के शेष बचे सादे चेक वापस करने के लिये उत्तरदायी है साथ ही परिवादी को विपक्षी की उपरोक्त लापरवाही के कारण वर्तमान परिवाद दाखिल करना पड़ा, इसके लिये परिवादी, विपक्षी से मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति तथा वाद व्यय भी प्राप्त करने के अधिकारी है।
उपरोक्त विवेचन के आलोक में परिवादी का वर्तमान परिवाद पत्र स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद संख्या-143/2018 स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण परिवादी से बकाया ऋण रू0 900/-की धनराशि चेक के माध्यम से परिवादी के बचत खाते से पैंतालिस दिन में प्राप्त करते हुये इसी अवधि में परिवादी की शेष सादी चेकें अदेयता प्रमाण पत्र के साथ परिवादी को वापस करें। विपक्षीगण परिवादी को मानसिक कष्ट व आर्थिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 5,000/-तथा परिवाद व्यय रू0 2,000/-भी पैंतालिस दिन में अदा करेगें।
(मीना सिंह) (संजय खरे)
सदस्य अध्यक्ष
यह निर्णय आज दिनांक को आयोग के अध्यक्ष एंव सदस्य द्वारा खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(मीना सिंह) (संजय खरे)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांक 18.05.2023
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