// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम,बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक cc/58/2014
प्रस्तुति दिनांक 10/04/2014
आर्यवीर सिंह,
आ.करमवीर सिंह,
उम्र 52 वर्ष,निवासी गांधीनगर
नेहरूनगर जिला बिलासपुर छ.ग. ......आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक
छ0ग0राज्य सहकारी बैंक मर्यादित
(अपेक्स बैंक) नेहरूचौक
जिला बिलासपुर छ.ग. .........अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 30/03/2015 को पारित)
१. आवेदक आर्यवीर सिंह ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक बैंक के विरूद्ध सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक बैंक से अधिक वसूल की गई राशि 1,02,058/;रूपये को क्षतिपूर्ति के साथ दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक अनावेदक बैंक से मकान क्रय करने हेतु 3,00,000/.रूपये ऋण लिया था, जिसे वह परेशानी के चलते समय पर अदा नहीं कर पाया, जिसके कारण अनावेदक बैंक द्वारा उसके मकान को बिक्री हेतु समाचारपत्र में निविदा प्रकाशित किया गया, जिसके अनुसार, दिनांक 31/12/11 तक कुल राशि 6,42,272/.रूपये बकाया था तथा कर्ज पटाने की अंतिम तिथि दिनांक 11/02/2012 निर्धारित की गई थी। यह कहा गया है कि आवेदक दिनांक 09/02/2012 को एकमुश्त 2,20,000/.रूपये तथा दिनांक 10/02/2012 को एकमुश्त 5,43,547/.रूपये इस प्रकार कुल 7,63,547/. रूपये जमा किया, जो कि निविदा सूचना में प्रकाशित राशि से ज्यादा थी, जबकि अनावेदक बैंक को उसके द्वारा एकमुश्त राशि अदा करने पर ब्याज में छूट प्रदान करना था जो नहीं किया गया और अनुचित रूप से भूतकाल का भी ब्याज लगाते हुए निविदा में प्रकाशित राशि से अधिक राशि की वसूली की गई, जो कि सेवा में कमी की श्रेणी में आता है अत: उसके द्वारा यह परिवाद प्रस्तुत करते हुए अनावेदक बैंक से वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया गया है ।
3. अनावेदक बैंक जवाब पेश कर इस बात से इंकार किया कि उनके द्वारा आवेदक की परेशानी का फायदा उठाते हुए उससे अधिक राशि की वसूली की गई, बल्कि कहा गया है कि आवेदक कालातीत ऋण के भुगतान में अत्यधिक लापरवाह रहा, जो कि हरसंभव प्रयास के बाद भी ऋण के भुगतान में चूक करता रहा, जिसके कारण उन्हें मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी बिलासपुर के समक्ष प्रश्नाधीन मकान का कब्जा प्राप्त करने के लिए प्रकरण संस्थित करना पडा , जहां भी लंबे समय तक आवेदक ऋण भुगतान के संबंध में उपेक्षावान रहा, अत: उन्होंने पूर्ण वैधानिक कार्यवाही के जरिये आवेदक से लोकधन की वसूली करना अभिकथित किया तथा किसी भी प्रकार की सेवा में कमी से इंकार किया ।
4. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
5. देखना यह है कि क्या अनावेदक बैंक द्वारा आवेदक से अधिक ऋण की वसूली कर सेवा में कमी की गई
सकारण निष्कर्ष
6. आवेदक का परिवाद मुख्य रूप से इस बात पर आधारित है कि समाचार पत्र में प्रकाशित निविदा सूचना के अनुसार, दिनांक 31/12/11 तक बकाया राशि 6,42,272/.रूपये थी और कर्ज पटाने की अंतिम तिथि दिनांक 11/02/2012 तक निर्धारित की गई थी, जिसके अंदर उसने एकमुश्त ऋण की राशि अदा की, किंतु अनावेदक बैंक द्वारा उसे ब्याज में कोई छूट प्रदान नहीं की गई और 1,02,258/.रूपये अधिक धनराशि की वसूली की गई, किंतु इस संबंध में आवेदक ने ऐसा कोई विधिक प्रावधान पेश नहीं किया है, जिससे दर्शित हो कि वह एकमुश्त राशि की अदायगी पर ब्याज में छूट पाने का अधिकारी था। इस संबंध में आवेदक का आधार मात्र निविदा सूचना में उल्लेखित देय राशि के अलावा और कुछ ugha gS फलस्वरूप यह निष्कर्ष निकाल पाना संभव नहीं कि अनावेदक बैंक द्वारा आवेदक से अधिक ऋण की वसूली कर सेवा में कमी की गई । अत: आवेदक का परिवाद निरस्त किया जाता है
7. उभयपक्ष अपना-अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे।
आदेश पारित
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य