Ritesh Gautam filed a consumer case on 09 Sep 2015 against Director, I.T.I Institute, Kuldeep Mathur in the Kota Consumer Court. The case no is CC/44/2012 and the judgment uploaded on 16 Sep 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
परिवाद संख्या:-44/2012
रितेश गौतम पुत्र भवानी शंकर गौतम आयु 29 साल जाति ब्राहमण निवासी 746, दादाबाडी, कोटा, राजस्थान। -परिवादी
बनाम
कुलदीप माथुर, डायरेक्टर आई0टी0आई0 संस्थान सेक्टर न. 1 महावीर नगर विस्तार योजना केशवपुरा चैराहा, कोटा, राजस्थान। -विपक्षी
समक्ष:-
भगवान दास ः अध्यक्ष
हेमलता भार्गव ः सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-
01. श्री सुरेश चन्द गौतम, अधिवक्ता, परिवादी की ओर से।
02. श्री एस0पी0 गौतम, विपक्षी की ओर से।
निर्णय दिनांक 09.09.2015
परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में सेवा दोष बताया है कि उनके संस्थान में इलेक्ट्रेशन ट्रेड, हेतु आवेदन किया एवं उसकी 42,350/- रूपये फीस के पेटे 20,000/- रूपये जमा कराये, प्रशिक्षण हेतु गया तो कहा कि बाद में आना, परिवादी बीमार हो गया, ठीक होने पर गया, तब प्रशिक्षण देने से मना कर दिया। कक्षा शुरू होने की जानकारी नहीं दी गई। परिवादी ने जमा कराई गई फीस वापस मांगी लेकिन नहीं लौटाई, इंकार कर दिया। अधिवक्ता के जरिये भेजा गया नोटिस प्राप्त हो गया उसका जवाब नहीं दिया, फीस भी नहीं लौटाई, जिससे आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक संताप हुआ।
विपक्षी के जवाब का सार है कि उसका एडमीशन दिनांक 31.08.09 को हो गया उसने फीस की कुल राशि 42,350/- रूपये के पेटे कुल 20,000/- रूपये जमा कराये, प्रशिक्षण हेतु बाद में आने व प्रशिक्षण देने से इंकार करने की कहानी पूरी तरह गलत है। परिवाद मियाद बाहर है। परिवादी राशि वापिस प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है, वह उपभोक्ता भी नहीं है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा विपक्षी को अदा की गई राशि, उसे प्रेषित नोटिस, पोस्टल रसीद आदि दस्तावेजात की प्रति प्रस्तुत की।
विपक्षी की ओर से साक्ष्य में कुलदीप माथुर (डायरेक्टर) का शपथ-पत्र प्रस्तुत किया गया है।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया।
विचारणीय प्रश्न है कि क्या विपक्षी ने परिवादी को प्रशिक्षण देने से इंकार किया एवं फीस नही लौटा कर सेवा दोष किया ?
विपक्षी की यह प्रारंभिक आपत्ति है कि परिवाद मियाद बाहर है।
स्वयं परिवादी के अनुसार उसने फीस पेटे दिनांक 24.06.09 तक कुल 20,000/- रूपये अदा किये तथा परिवाद दिनांक 08.12.11 को प्रस्तुत किया गया है अर्थात् 2 वर्ष की कानूनी अवधि में परिवाद प्रस्तुत नहीं किया है तथा इसका कोई युक्ति-युक्त कारण भी नहीं दिया है। इसलिये इसी आधार पर परिवाद खारिज होने योग्य है।
जहाॅ तक गुण-दोष का प्रश्न है, परिवादी ने ऐसा कोई विवरण नहीं दिया है कि विपक्षी ने उसे प्रशिक्षण देने से कब-कब इंकार किया, अर्थात् कोई खुलासा नहीं किया है इस संबंध में तथ्य पूरी तरह से भ्रामक है। यदि फीस जमा कराते ही प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा था तब तत्काल ही परिवादी की ओर से विपक्षी को नोटिस इत्यादि दिया जाना चाहिये था, जबकि उसका कोई प्रयास करना प्रकट नहीं किया है और ना ही प्रमाण प्रस्तुत किया है, इससे स्पष्ट है कि स्वयं परिवादी ही प्रशिक्षण लेने नहीं गया, जिसे विपक्षी का दोष नहीं माना जा सकता। परिवादी की ओर से न्यायिक दृष्टान्त सरवप्रीत सिंह बनाम दी प्रिसिंपल लाला लाजपतराय इन्स्टीट्यूट आॅफ इंजीनियरिंग और टेक्टनोलोजी, मोगा और अन्य 2011 डी.एन.जे. (सी.सी.) पेज 1 को प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों में उक्त दृष्टान्त लागू नहीं होता है क्योंकि तथ्य भिन्न है। उक्त दृष्टान्त के तथ्यों में प्रवेश लेने वाले आवेदक ने कक्षा शुरू होने से पूर्व ही अध्य्यन नहीं करने की सूचना दे दी तथा फीस वापिस करने का आवेदन-पत्र भी दे दिया, इसलिये माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने यू.जी.सी. की गाइड लाईन के अनुसार फीस वापिस नहीं करना सेवा दोष पाया। जबकि प्रस्तुत मामले में परिवादी का यह केस नहीं है कि उसने अध्य्यन जारी नहीं करने की सूचना विपक्षी को दी।
उपरोक्त विवेचन के अनुसार हम पाते है कि परिवादी विपक्षी का कोई सेवा दोष सिद्ध नहीं कर सका है। स्वयं परिवादी अध्य्यन करने नहीं गया, इसलिये वह जमाशुदा राशि वापिस पाने का अधिकारी नहीं है। परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी रितेश गौतम का परिवाद विपक्षी के खिलाफ खारिज किया जाता है। खर्चा परिवाद पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।
(महावीर तंवर) (हेमलता भार्गव) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
निर्णय आज दिनंाक 09.09.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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