Lavesh kumar sharma filed a consumer case on 08 Dec 2015 against Dipti Journal Manager, HDFC ltd. in the Kota Consumer Court. The case no is CC/284/2010 and the judgment uploaded on 11 Dec 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
प्रकरण संख्या-28410
01. लवेश कुमार शर्मा पुत्र जगन्नाथ प्रसाद,
02. श्रीमति मधु शर्मा पत्नी लवेश कुमार शर्मा
03. मधुप शर्मा पुत्र लवेश कुमार शर्मा निवासीगण म.नं. 21, जनकपुरी, मालारोड़, कोटा, जंक्शन, कोटा, राजस्थान। -परिवादीगण।
बनाम
01. डिप्टी जनरल मैनेजर, एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड,0-19-ए, अशोक मार्ग,
सी-स्कीम, जयपुर राजस्थान पिन : 302001
02. रेजीडेन्ट मैनेजर, एच.डी.एफ.सी. लिमिटेड, 2-क-27, विज्ञान नगर, कोटा राजस्थान पिन: 324005 -विपक्षीगण
समक्ष :
भगवान दास - अध्यक्ष
हेमलता भार्गव - सदस्य
परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपसिथत :-
1 श्री एस0पी0 सोरल, अधिवक्ता, परिवादीगण की ओर से।
2 श्री राजेश यादव, अधिवक्ता, विपक्षीगण की ओर से ।
निर्णय दिनांक 08.12.15
परिवादीगण ने विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर उनका संक्षेप में यह सेवा-दोष बताया है कि उन्होने विपक्षी बैंक से 25.06.07 को ऋण खाता संख्या 523315681 के जरिये मकान निर्माण हेतु चार लाख रूपये का ऋण लिया, जिसकी सुरक्षा हेतु परिवादी सं. 1 व 2 ने अपने स्वामित्व के भूखंडमकान नं. 21 जनकपुरी, माला रोड़, कोटा जंक्शन के मूल स्वामित्व दस्तावेज (मूल रजिस्टर्ड विक्रय-पत्र मय नक्शा) विपक्षी बैंक को सुपुर्द कर रहन किये थे। परिवादीगण ने विपक्षी बैंक को पूरी ऋण राशि ब्याज सहित 06.05.09 को अदा कर दी, लेकिन बार-बार सम्पर्क करने पर भी रहन रख संपतित के मूल दस्तावेजात व पोस्ट डेटेड चैक वापस नहीं किये। विपक्षी बैंक को बार-बार पत्र प्रेषित किये गये, इसके उपरान्त भी दस्तावेजात व चैक नहीं लौटाये, इससे परिवादी को काफी शारीरिक एवं मानसिक पीडा हुर्इ है।
विपक्षी बैंक के जवाब का सार है कि परिवादीगण द्वारा समस्त ऋण (राशि मय ब्याज) अदा कर दिया गया है व उसका अदेय प्रमाण-पत्र भी जारी कर दिया गया है। परिवादीगण के रहन रखे गये दस्तावेेजात काफी तलाश करने के बाद भी रिकार्ड में उपलब्ध नहीं हो पाये है, उपलब्ध होते ही उन्हे लौटा दिये जावेगें। चैक लौटाने से कभी इंकार नहीं किया गया। सेवामें कोर्इ कमी नहीं की गर्इ है।
परिवादीगण ने साक्ष्य में सभी परिवादीगण के शपथ-पत्र के अलावा विपक्षी बैेंक को सुपुर्द पंजीकृत विक्रय-पत्र मय नक्शा, ऋण स्वीकृति आदेश, विपक्षी बैंक को प्रेषित पत्र व उससे प्राप्त पत्र दिनांक 28.11.09, विपक्षी बैंक को प्रेषित कानूनी नोटिस, पोस्टल रसीद, विपक्षी बैंक के यहा रहन रखे गये दस्तावेजात की सूची आदि की प्रतियांं प्रस्तुत की हैं ।
विपक्षी बैंक ने साक्ष्य में ज्योतिष चंन्द शर्मा, शाखा प्रबंधंक, कोटा का शपथ-पत्र प्रस्तुत किया इसके अलावा अन्य कोर्इ दस्तावेजात प्रस्तुत नहीं किये।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी। पत्रावली का अवलोकन किया।
इस बारे में विवाद की सिथति नहीं है कि परिवादीगण ने विपक्षी बैंक से लिये गये ऋण की पूरी अदायगी कर दी, इस बाबत विपक्षी बैंक ने परिवादी को अदेय प्रमाण-पत्र भी जारी कर दिया। यह भी विवाद रहित है कि न केवल परिवाद प्रस्तुत होने तक अपितु अभी तक भी विपक्षी बैंक ने परिवादीगण को ऋण के पेटे रखे गये मूल दस्तावेजात वापस नहीं लौटाये। विपक्षी बैंक का केस है कि दस्तावेजात रिकार्ड में उपलब्ध में नहीं हो रहे हंै,Þ इस कारण नहीं लौटाये जा सके। परिवादीगण ने 06.05.09 को ही ऋण राशि की पूरी अदायगी कर दी। लगभग 6 वर्ष तक भी उसकी संपतित के मूल दस्तावेजात नहीं लौटाना निसंदेह विपक्षी बैंक की गंभीर लापरवाही है। इस बारे में दो मत नहीं हो सकते कि किसी व्यकित के लिये उसकी अचल संपतित के स्वामित्व से संबंधित मूल दस्तावेज बहुत महत्वपूर्ण होते है क्योंकि उन्हीं दस्तावेजो से उसकी संपतित में स्वत्व, हित एवं अधिकार स्थापित होते है तथा उन्ही के आधार पर व्यकित अपने स्वत्व, हित एवं अधिकारों की रक्षा कर सकता है तथा वे दस्तावेजात संपतित के आगे किसी भी प्रकार से अन्तरण या उतराधिकार आदि के लिये भी आवश्यक प्रकृति के होते है तथा उनके नहीं होने से स्वाभाविक तौर पर व्यकित को अत्यधिक कठिनार्इ एवं मानसिक वेदना होती है।
विपक्षी बैंक ने परिवादीगण से उसकी अचल संपतित के जो मूल दस्तावेजात प्राप्त किये हंै, उन्हें वांछित सावधानी से अपनी अभिरक्षा में पूरी तरह सुरक्षित नहीं रख कर न केवल गंभीर लापरवाही की है अपितु सेवा में कमी की है। माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने ऐसे ही तथ्यों व परिसिथतियों में 'न्यायिक विनिश्चय Þ सी0एल0खन्ना बनाम देना बैंक पअ ख्2005, सी.पी.जे. 137 (एन0सी0) में यह व्यवस्था दी है कि ऋण हेतु रहन रखे गए अचल सम्पति के टाइटल दस्तावेज नहीं लौटाना स्पष्टत: सेवा में कमी है तथा इस हेतु माानीय आयोग ने बैंक को अन्य यथोचित निर्देश देते हुए परिवादी को एक लाख रूपये क्षतिपूर्ति अदा करने के निर्देश दिए हैं। यह विनिश्चय प्रस्तुत मामलें में भलीभाति लागू होता है।
आदेश
परिवादीगण का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर विपक्षी बैंक को निम्नलिखित निर्देश दिये जाते है :-
01. परिवादीगण को एक माह में इस आशय का प्रमाण-पत्र जारी किया जावे कि प्रस्तुत सूची के अनुसार उनके द्वारा अचल संपतित के जो मूल दस्तावेज बैंक को सुपुर्द किए गये वे सभी उन्हे वापिस नहीं किए जा सके है।
02. परिवादीगण को उन दस्तावेजात की डुप्लीकेट प्रमाणित प्रतिलिपि सम्बंधित संस्था से प्राप्त करने हेतु एक माह में यथोचित सहयोगसहायता उपलब्ध कराने के साथ-2 इस हेतु वांछित खर्चा भी वहन किया जावे।
03. परिवादीगण को एक माह में सेवा में कमी हेतु एक लाख रूपया क्षतिपूर्ति अदा की जावे।
04. परिवादीगण को एक माह में मानसिक ंसताप की भरपार्इ पेटे पच्चीस हजार रूपये एवं परिवाद व्यय पेटे पांच हजार रूपये भी अदा किए जावे।
(हेमलता भार्गव) ( भगवान दास)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
निर्णय आज दिनांक 08.12.15 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष मंच, कोटा। प्रतितोष मंच, कोटा।
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