राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण सं0- 18/2018
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोण्डा द्वारा परिवाद सं0- 145/2016 में पारित आदेश दि0 06.12.2017 के विरूद्ध)
Allahabad bank having its branch office at Bahraich road branch, Gonda through its Chief Manager.
………….Revisionist
Versus
- Sri Dinesh pratap singh son of Sri Bela pratap singh.
- Smt Manju singh W/o Sri Dinesh pratap both Residents of Hydle colony, Civil Lines, Jail road, Gonda.
…………… Respondent
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री विनय शंकर पाण्डेय की सहयोगी
सुश्री मेघा पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता। ,
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री यू0के0 पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 27.04.2018
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विनय शंकर पाण्डेय की सहयोगी सुश्री मेघा पाण्डेय उपस्थित हैं। विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री यू0के0 पाण्डेय उपस्थित हैं।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और परिवाद सं0- 145/2016 दिनेश प्रताप सिंह बनाम इलाहाबाद बैंक में पारित आदेश दि0 06.12.2017 का अवलोकन किया।
जिला फोरम के समक्ष उपरोक्त परिवाद में पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी ने आपत्ति 9ख इस आशय की प्रस्तुत किया है कि विपक्षी/परिवादी के प्रश्नगत चेक के खोने और चेक कूट रचित होने के सम्बन्ध में आपराधिक वाद सम्बन्धित थाना पुलिस में पंजीकृत है और पुलिस द्वारा विवेचना की जा रही है। अत: कथित कूट रचना के सम्बन्ध में पुलिस द्वारा साक्ष्य एकत्रित किया जाना है। अत: ऐसी स्थिति में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत परिवाद में कथित कूट रचना का निर्णय किया जाना सम्भव नहीं है। अत: परिवाद जिला फोरम के समक्ष ग्राह्य नहीं है।
जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी की आपत्ति पर विचार करने के उपरांत अपने आक्षेपित निर्णय में यह निष्कर्ष अंकित किया है कि प्रस्तुत परिवाद में बैंक द्वारा बिना उचित जांच किये एवं बिना परिवादिनी को सूचित किये हुए इतनी बड़ी धनराशि निकाले जाने का विवाद है तथा विपक्षी सं0- 2 ने बिना उचित पहचान किये कथित कौशल कुमार का खाता खोले जाने का प्रश्नगत प्रस्तुत विवाद में विपक्षी बैंक के दायित्वों का प्रश्न भी निस्तारित होना है और उपभोक्ता फोरम द्वारा उचित रूप से देखा जा सकता है। जिला फोरम ने अपने आक्षेपित आदेश में यह आदेशित किया है कि परिवादिनी विपक्षी सं0- 1 की उपभोक्ता है और यह विवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की श्रेणी में आता है, जिसे फोरम के द्वारा उचित रूप से देखा जा सकता है। अत: जिला फोरम ने पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा उपरोक्त परिवाद में प्रस्तुत आपत्ति 9ख आक्षेपित आदेश के द्वारा निरस्त कर दिया है।
पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रश्नगत वाद कूट रचना से सम्बन्धित है जिसके निर्णय हेतु विस्तृत साक्ष्य और विवेचना की आवश्यकता है जो जिला फोरम के समक्ष सम्भव नहीं है। अत: यह परिवाद जिला फोरम के समक्ष ग्राह्य नहीं है। जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित आदेश त्रुटि पूर्ण और विधि विरुद्ध है।
पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में मा0 राष्ट्रीय आयोग के निम्न निर्णयों को संदर्भित किया है:-
- पी0एन0 खन्ना बनाम बैंक ऑफ इंडिया II(2015)C.P.J. 54 N.C.
- कृष्णा पोद्दार बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया II(2016)C.P.J. 387 N.C.
विपक्षी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश विधि अनुकूल है। परिवाद पत्र के कथन से स्पष्ट है कि विपक्षीगण द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करते हुए इतनी बड़ी धनराशि के चेक का भुगतान किया गया है जो विपक्षीगण की सेवा में त्रुटि है। अत: जिला फोरम का आदेश उचित है और इसमें हस्तक्षेप हेतु कोई उचित आधार नहीं है।
पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा Oriental Insurance Co. Ltd. Versus Muni Mahesh Patel (2006)7 Supreme court cases 655 के वाद में दिया गया निर्णय भी अपने तर्क के समर्थन में संदर्भित किया है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का संगत अंश नीचे उद्धरित किया जा रहा है:-
“The nature of the proceedings before the Commission as noted above, are essentially summary in nature. The factual position was required to be established by documents. The Commission was required to examine whether in view of the disputed facts it would exercise the jurisdiction. The State Commission was right in its view that the complex factual position requires that the matter should be examined by an appropriate court of law and not by the Commission.”
जिला फोरम ने अपने आक्षेपित आदेश में यह उल्लेख किया है कि परिवाद में मुख्य रूप से यह बिन्दु रखा गया है कि विपक्षी सं0- 1 द्वारा तीन बार चेक को अनादृत करने के उपरांत भी परिवादिनी को मोबाइल द्वारा अथवा एस0एम0एस0 द्वारा कोई सूचना दिये बिना चौथा चेक पास कर दिया गया है और बैंक द्वारा चेक के हस्ताक्षर का मिलान परिवादिनी के हस्ताक्षर से हुए बिना भुगतान किया गया है। इसी आधार पर जिला फोरम ने यह माना है कि वर्तमान परिवाद विपक्षी सं0- 1 की सेवा में कमी के सम्बन्ध में है और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत ग्राह्य है।
निर्विवाद रूप से अपराध सं0- 673/2016 अंतर्गत धारा 406, 419, 420, 467, 468 एवं 471 आई0पी0सी0 विपक्षी/परिवादी द्वारा थाने में दर्ज करायी गई है जिसकी विवेचना पुलिस द्वारा की जा रही है जिसमें कौशल किशोर, मैनेजर इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक मैनेजर व स्टाफ अभियुक्त नामित किये गये हैं।
विपक्षी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि इस अपराध में पुलिस ने वाद विवेचना मात्र एक्सिस बैंक के कर्मचारी के विरुद्ध आरोप पत्र प्रेषित किया है। अत: पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी बैंक या उसके कर्मचारी उक्त आपराधिक वाद में अभियुक्त नहीं पाये गये हैं। ऐसी स्थिति में वर्तमान परिवाद में मात्र विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या प्रश्नगत चेक के भुगतान में निर्धारित मानदंड और प्रक्रिया का पालन पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी बैंक ने नहीं किया है और सेवा में कमी की है और इस बिन्दु के निर्णय हेतु जिला फोरम पूर्ण रूप से सक्षम है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर वर्तमान वाद के तथ्यों और परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय में हस्तक्षेप हेतु उचित प्रतीत नहीं होता है। सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों एवं उभयपक्ष के तर्क पर विचार करने के उपरांत वर्तमान पुनरीक्षण याचिका इस प्रकार से निस्तारित की जाती है कि जिला फोरम के समक्ष अन्तिम सुनवाई के समय पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी परिवाद की ग्राहयता के सम्बन्ध में अपनी आपत्ति व तर्क प्रस्तुत करने हेतु स्वतंत्र है।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0,
कोर्ट नं0-1