राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2508/2012
(जिला उपभोक्ता फोरम, अम्बेडकरनगर द्वारा परिवाद संख्या 30/11 में पारित निर्णय दिनांक 11.09.12 के विरूद्ध)
1.यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इं0कंपनी लि0 401-406, शालीमार लोजिस
फोर्थ फ्लोर, राणा प्रताप मार्ग, लखनऊ।
2.यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इं0कंपनी लि0 रजिस्टर्ड आफिस 201-208,
क्रिस्टल प्लाजा इन फ्रान्ट आफ इनफिनिटी मॉल, लिंक अंधेरी वेस्ट
मुम्बई-400058, महाराष्ट्र। .......अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
1. दिनेश कुमार दुबे पुत्र स्व0 कृष्ण दत्त दुबे, प्रापेराइटर बालाजी ट्रेडर्स
निवासी ग्राम जैतपुर पोस्ट जामू तहसील भीटी, जिला अम्बेडकरनगर।
2. ब्रांच मैनेजर, इलाहाबाद बैंक, ब्रांच शहजादपुर, अम्बेडकरनगर।
........प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दिनेश कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :श्री आलोक कुमार सिंह व श्री एस0पी0 पाण्डेय,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 15.06.2017
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम अम्बेडकरनगर द्वारा परिवाद संख्या 30/11 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दि. 11.09.2012 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। जिला मंच द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
'' परिवाद विपक्षी संख्या 1 व 2 के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षी संख्या 1 व 2 को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादी के दुकान की बीमित धनराशि 15 लाख रूपये अदायगी निर्णय की तिथि से एक माह के अंदर अदा करे। विपक्षी संख्या 1 व 2 उपरोक्त धनराशि परिवादी के ऋण खाता सं0- सी0सी0 सं0-50016547942 में जमा करे। विपक्षी संख्या 3 को यह भी निर्देश दिया जाता है कि ऋण खाता में जमा धनराशि समायोजित करने के बाद जो धनराशि अवशेष बचती है वह परिवादी को वापस करे। विपक्षी संख्या 1 व 2 क्षतिपूर्ति के मद में रू. 25000/- तथा परिवाद व्यय के मद में रू. 2000/- भी परिवादी को अदा करें।''
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संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी की जनरल स्टोर की एक दुकान है। उसके द्वारा विपक्षी संख्या 3 इलाहाबाद बैंक से सात लाख रूपये की कैश क्रेडिट की सुविधा प्राप्त की। उसकी दुकान बालाजी ट्रेडर्स के नाम से थी, जिसमें 15 लाख रूपये का सामान रखा था। बीमा कंपनी से इसका बीमा कराया गया था। बीमा अवधि में दि. 17/18.10.10 की रात में अज्ञात कारणों से दुकान में आग लग गई जिससे दुकान का सारा सामान जलकर राख हो गया। विपक्षी संख्या 1 व 2 को इसकी सूचना दी गई थी। बीमा कंपनी ने सर्वेयर की नियुक्ति की और निरीक्षण के दौरान 15 लाख रूपये की क्षति का अनुमान लगाया, लेकिन उसको बीमा दावे की धनराशि नहीं दी गई।
जिला मंच के समक्ष विपक्षी संख्या 1, 2 व 3 ने अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया। विपक्षी संख्या 1 व 2/अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत अपने प्रतिवाद पत्र में यह अभिकथन किया कि परिवादी ने फायर इंश्योरेंस क्लेम फार्म में नाम व पता बालाजी ट्रेडर्स कृष्णानगर जैतपुर पोस्ट जामूकला जिला अम्बेडकरनगर जनरल मर्चेन्ट की दुकान का दिया है जो कि पालिसी में लिखे पते से बिल्कुल भिन्न है। सर्वेयर द्वारा सर्वे का कार्य फायर इंश्योरेंस फार्म में अंकित पते पर किया गया है। पालिसी में गलत पता व सूचना देने के कारण पालिसी की शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन है और इस आधार पर परिवादी क्लेम पाने का अधिकारी नहीं है। विपक्षी संख्या 1 व 2 के अनुसार यदि क्षतिपूर्ति देने का मामला बनता भी है तो वह केवल सर्वेयर द्वारा आकलित धनराशि ही पाने का अधिकारी है।
विपक्षी संख्या 3 बैंक ने अपने प्रतिवाद पत्र में परिवादी को कैश क्रेडिट सुविधा दिए जाना स्वीकार किया है और यह भी स्वीकार किया है कि परिवादी ने नियमानुसार दुकान का बीमा कराया था।
पीठ ने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस सुनी एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों एवं साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।
अपीलार्थी ने अपने अपील आधार में यह अभिकथन किया है कि परिवादी ने गलत पता दिखाकर बीमा पालिसी प्राप्त की। जिला मंच ने कुल हानि के आधार पर परिवादी की याचना को स्वीकार करके भूल की है। दुकान में आग परिवादी ने स्वयं अपने प्रयासों से बुझाई है और फायर बिग्रेड द्वारा आग नहीं बुझाई गई है। केवल बैंक के स्टाक विवरण एवं चाटेर्ड एकाउन्टेन्ट की रिपोर्ट के आधार पर 15 लाख रूपये की पूरी धनराशि को दिलाया
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जाना त्रुटिपूर्ण है। परिवादी ने कोई ठोस साक्ष्य स्टाक की वैल्यू के बारे में प्रस्तुत नहीं किया है। जिला मंच द्वारा सर्वेयर की रिपोर्ट को न मानना उचित नहीं था, जबकि सर्वेयर की रिपोर्ट विवादरहित है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा बहस के दौरान यह तर्क दिया गया कि आगजनी की घटना 17/18.10.2010 को हुई और पुलिस को सूचना दि. 21.10.10 को दी गई जिसमें क्षति को 10 लाख रूपये अंकित किया है। 17/18.10.2010 के आग के संबंध में जो समाचार पत्र में समाचार छपा है उसमें भी आग लगने को संदिग्ध माना गया है। अपीलार्थी द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि परिवादी ने अपने पते को बदलने के लिए कोई प्रार्थना पत्र बीमा कंपनी को नहीं दिया। बीमा कंपनी ने दि. 25.03.11 को परिवादी को एक पत्र भी लिखा था। बीमा कंपनी की ओर से परिवाद को बंद नहीं किया गया था, लेकिन इस बीच में परिवादी ने परिवाद दायर कर दिया। बहस के दौरान अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह भी कहा गया कि परिवादी इस तथ्य को सिद्ध करने में पूर्णतया असफल रहे हैं कि उनके सामान की पूर्ण क्षति हुई। अपीलार्थी द्वारा अपने कथनों के समर्थन में निम्न नजीरों पर विश्वास व्यक्त किया है।
1. United India Insurance Co. Ltd versus Roshan Lal Oil Mills Ltd and others reported in (2000) 10 SCC 19
2. Kanhaiya Lal Prakash Chand versus New India Assurance Co. Ltd. Reported in 1(2017) CPJ 72 (NC)
3. Orient Clothing Company Pvt Ltd versus Baja Allianz General Insurance Co. Ltd. Repoted in IV(2015) CPJ 364 (NC)
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि यह उत्तरदायित्व बीमा कंपनी का था कि वह पते को सही तरह से परीक्षण करते क्योंकि बीमा बैंक के माध्यम से लिया गया था। बीमा कंपनी 3 साल से लगातार प्रीमियम प्राप्त करती रही और कभी भी प्रत्यर्थी संख्या 1 की दुकान का निरीक्षण नहीं किया गया। आग के कारण दुकान के समस्त अभिलेख आदि जल गए थे। प्रत्यर्थी संख्या 1 की बाजार में अच्छी ख्याति है और उसके व्यापार का टर्न ओवर 15 लाख रूपये से कम नहीं है। जिला मंच ने सभी संगत तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करके अपना निर्णय दिया है जो सही है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी प्रत्यर्थी संख्या 1 की एक दुकान बालाजी ट्रेडर्स के नाम से है और वह अपीलार्थी बीमा कंपनी से घटना के पूर्व से ही बीमित थी। वैधता अवधि दि. 15.09.2009 से 14.09.2010 तक की अवधि में परिवादी ने जो बीमा लिया था उसमें
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अग्निकांड होने पर बीमित धनराशि 7 लाख रूपये अंकित की गई थी जो पालिसी 21.09.10 से 20.09.11 के मध्य की वैधता की ली गई थी, उसमें आग से क्षति के लिए 15 लाख रूपये की बीमित राशि थी। बीमा पालिसी के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि बीमित प्रतिष्ठान बालाजी ट्रेडर्स है और इसके आगे कोई पता बीमा कंपनी द्वारा नहीं लिखा गया है। बीमित प्रतिष्ठान के पते के संबंध में जो विवरण दिया गया है उसमें एकाउन्ट नम्बर अंकित है और पता शहजादपुर, अकबरपुर अम्बेडकर नगर दर्शाया गया है। इससे यह स्पष्ट है कि बीमा कंपनी ने दुकान के पते की जगह बैंक का पता एकाउन्ट नम्ब्र सहित अंकित कर दिया और यह पालिसी में बालाजी ट्रेडर्स किस जगह पर स्थित है इसका अंकन नहीं किया गया। पत्रावली पर कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि बालाजी ट्रेडर्स परिवादी की दुकान किसी अन्य स्थान पर हो जिसका बीमा बीमा कंपनी ने किया हो। बीमा कंपनी गत 2 वर्षों से बीमा कर रही थी और उसमें बीमित प्रतिष्ठान का नाम बालाजी ट्रेडर्स ही अंकित है। पीठ जिला मंच के इस निष्कर्ष से सहमत है कि परिवादी द्वारा बालाजी ट्रेडर्स दुकान का गलत पता नहीं दिया गया है। बीमा कंपनी का स्वयं दायित्व होता है कि जिस दुकान का बीमा करती है वह स्वयं उस दुकान की स्थिति का सत्यापन करते हैं। परिवादी द्वारा अपने व्यवसाय के संबंध में गलत पता दिए जाने का कोई औचित्य भी प्रतीत नहीं होता है। बीमा कंपनी ने कोई ऐसा साक्ष्य नहीं दिया है जिससे यह सिद्ध होता हो। बालाजी ट्रेडर्स कृष्णा नगर, गोसाईं का पुरा, जामूकला, जैतपुर, अम्बेडकर नगर में दि. 17/18.10.2010 को आग लगी, इस तथ्य की पुष्टि बीमा कंपनी द्वारा नामित सर्वेयर ने अपनी रिपोर्ट दि. 04.03.11 में अंकित किया है और इसी स्थल का सर्वेयर ने निरीक्षण किया है और सामान की क्षति को आकलित किया है, अत: बीमा कंपनी के इस कथन में कोई बल नहीं है कि घटना स्थल और बीमा पालिसी में अंकित पते में भिन्नता है।
इस प्रकरण में मुख्य विवाद का बिन्दु यह है कि परिवादी की दुकान में जो सामान/स्टाक की क्षति हुई वह कितनी थी। जिला मंच ने परिवादी की दुकान में रखे हुए स्टाक को 15 लाख रूपये को मानते हुए क्षति निर्धारित की है। जिला मंच ने इस क्षति को परिवादी के व्यापार टर्न ओवर वर्ष 2009 से 2010 तथा चार्टेड एकाउन्ट की रिपोर्ट व बैंक स्टेटमेन्ट रिपोर्ट वर्ष 2009-10 के आधार पर किया है, परन्तु किसी भी व्यापारिक प्रतिष्ठान में लगी आग में हुई हानि का आकलन करने के लिए यह आवश्यक है कि क्षति की गणना
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जिस दिन आग लगी उस दिन प्रतिष्ठान/दुकान में कितना स्टाक था, के आधार पर की जानी चाहिए। बैंक का स्टेटमेन्ट, व्यापार टर्न ओवर 2009-10 का है तथा चाटेर्ड एकाउन्टेन्ट की रिपोर्ट दि. 01.06.10 की है। इन दोनों ही रिपोर्टों से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आग की घटना के दिन प्रतिष्ठान में 15 लाख रूपये का सामान था। परिवादी ने जो सर्वेयर को दि. 20.10.10 को अपना पत्र दिया है उसमें यह अंकित किया है कि दुकान में 15 लाख रूपये का स्टाक था जिसमें से 10 लाख रूपये का सामान 17 तारीख को आया था। प्रथमत: इस पत्र के अवलोकन से यह प्रतीत होता है कि पहले धनराशि 25 लाख रूपये लिखी गई थी और बाद में इसे घटाकर 15 लाख रूपये किया गया है। यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि जिस तारीख को अर्थात 17.10.10 की रात्रि में आग लगी परिवादी के अनुसार 10 लाख रूपये का सामान 17 तारीख को आया। इस प्रकार 17 तारीख से पूर्व लगभग 5 लाख रूपये का सामान था। अत: यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी दुकान में सदैव 15 लाख रूपये का सामान रहता था। दि. 21.10.10 को संबंधित थानाध्यक्ष को जो सूचना दी गई है उसमें यह अंकित किया गया है कि उसकी दुकान में लगभग 10 लाख रूपये का सामान था, जो जलकर राख हो गया। इस प्रकार परिवादी के स्वयं के कथनों में विरोधाभास है। दुकान में कितनी धनराशि का सामान था, इस संबंध में परिवादी ने सही तथ्य प्रस्तुत नहीं किए हैं। यदि यह मान भी लिया जाए कि घटना की तिथि 17.10.10 को 10 लाख रूपये का सामान आया था तो इसके संबंध में ठोस अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने चाहिए थे। परिवादी के अनुसार स्टाक रजिस्टर आदि जल गए, परन्तु तब भी दि. 17.10.10 को आए सामान के संबंध में व्यापार कर विभाग एवं ट्रांसपोर्टर आदि से साक्ष्य लेकर प्रस्तुत किए जा सकते थे, लेकिन इस संबंध में परिवादी ने कोई प्रमाणित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। सर्वेयर ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में भौतिक सत्यापन के दौरान जो हानि आकलित की है और सामानों का विवरण दिया है उससे यह स्पष्ट होता है कि परिवादी ने जो अपने क्लेम के साथ सामान की लिस्ट दी थी उसमें जले हुए सामान लगभग रू. 104802/- का था और कई सामानों के विवरण ऐसे थे जिनके बारे में परिवादी ने अपने क्लेम में इन सामानों का विवरण नहीं दिया था और वे सामान क्षतिग्रस्त सामान के रूप में सर्वेयर ने पाये हैं, लेकिन इस तथ्य को देखते हुए कि यह जनरल मर्चेन्ट की दुकान थी एवं सर्वे के दौरान समस्त सामानों का सही निरीक्षण किया जाना संभव नहीं था और न ही उसके
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वजन का या पैकेट का सही आकलन किया जा सकता था। अत: पीठ के विचार में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर परिवादी की दुकान में 5 लाख रूपये के सामान की क्षति को माना जाना न्यायोचित होगा।
उपरोक्त विवेचना के दृष्टिगत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच का आदेश इस रूप में संशोधित किया जाता है कि अपीलार्थी बीमा कंपनी परिवादी को रू. 500000/- (पांच लाख रूपये) परिवाद दायर करने की तिथि से 8 प्रतिशत साधारण ब्याज सहित एक माह में अदा करें। रू. 25000/- की क्षतिपूर्ति का आदेश अपास्त किया जाता है। परिवाद व्यय के मद में रू. 2000/- का जिला मंच का आदेश यथावत् रहेगा।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5