राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित।
अपील संख्या-282/1999
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोरखपुर परिवाद संख्या-454/1993 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-12-1998 के विरूद्ध)
1- U.P.S.E.B., through its Executive Engineer, E.D.O. I, Mohaddipur, District-Gorakhpur.
2- U.P.S.E.B., through its Chief Engineer, Mohaddipur, District-Gorakhpur.
3- U.P.S.E.B., through its Chairman, Shakti Bhawan, Lucknow..
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
R/o Baan, P.O. : Baan, District-Gorakhpur.
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष :-
1- मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित - श्री इसार हुसैन।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - श्री बी0के0 उपाध्याय।
दिनांक : 09-12-2014
मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय
अपीलाथी ने प्रस्तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोरखपुर परिवाद संख्या-454/1993 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-12-1998 के विरूद्ध प्रस्तुत किया है जिसमें विद्धान जिला मंच ने निम्नलिखित आदेश पारित किया है-
वादी को विघुत आपूर्ति, तारों को सही प्रकार से जोड़कर सुनिश्चित करें तथा ट्रान्सफार्मर की क्षमता को बढ़ाकर सही विघुत आपूर्ति करें।
दिनांक 30-07-1993 अर्थात जिस दिन वादी ने दावा दाखिल किया से जब तक विघुत आपूर्ति तारों को जोड़कर न सुनिश्चित की जाए तबतक किसी प्रकार का बिल वादी को न दिया जाये तथा न ही भुगतान हेतु बाध्य किया जाये।
वादी को पहुँची मानसिक, आर्थिक, शारीरिक क्षति हेतु विपक्षीगण रू0 5000/- एवं बतौर वाद व्यय रू0 500/- भी अदा करें।
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निर्णय का अनुपालन 30 दिन में सुनिश्चित करें। यदि ऐसा न हो तो निर्णय की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक रू0 5,500/- पर 12 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देय होगा।
विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से उपरोक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर वर्तमान अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन एवं प्रत्यर्थी की ओर से श्री बी0के0 उपाध्याय उपस्थित।
पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क विस्तारपूर्वक सुने गये तथा प्रश्नगत निर्णय व उपलब्ध अभिलेखों का गंभीरता से परिशीलन किया गया।
संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि वादी दीनानाथ पाण्डेय निवासी ग्राम बान जिला गोरखपुर द्वारा घरेलू उपयोग हेतु विपक्षीगण से एक विघुत कनेक्शन दिनांक 23-04-1990 रू0 190/- जमा कर प्राप्त किया था जिसका कनेक्शन नं0-402269 है। वादी का कथन है कि उसके गॉंव में पूरे माह कभी भी बिजली की आपूर्ति नहीं की जाती है और मात्र 15 दिन ही बिजली आपूर्ति प्राप्त होती है। ट्रान्सफार्मर के निकटवर्ती घरों में तो बिजली का वोल्टेज सही रहता है और दूर के घरों में बोल्टर न के बराबर था और बल्ब का फिलामेंट ही लाल होकर रह जाता है। वादी का कथन है कि अधूरी विघुत आपूर्ति के उपरान्त पूरे माह का विघुत बिल लिया जाना गलत है और यह कहा गया कि ट्रांसफार्मर कम पावर का होना तथा विघुत तारों का अनुपयुक्त होना प्रमुख कारण है। परिवादी व ग्रामवासियों द्वारा उक्त समस्या से विपक्षी विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों को अवगत कराया गया और मुआयना करने के बाद कार्यवाही का आश्वासन दिया गया किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। दिनांक 31-03-1992 को अधिशासी अभियन्ता ने सेकेण्ड प्रोआइन्टर हेतु रू0 80,000/- के एस्टीमेट को स्वीकृति प्रदान की। किन्तु पैकेज स्वीकृत न होने के कारण कोई कार्यवाही नहीं हुई। दिनांक 19-04-1993 को जिलाधिकारी से की गयी शिकायत दिनांक 31-04-1993 को मुख्य अभियन्ता विघुत के कार्यालय को प्राप्त हुई। मुख्य अभियन्ता ने धनाभाव के कारण कार्यवाही करने में असमर्थता व्यक्त की। वादी तथा ग्रामवासियों ने इन परिस्थितियों में बकाया विघुत बिल वापिस लेने तथा विघुत कनेक्शन विच्छेदित करने की प्रार्थना की जो स्वीकार नहीं हुई। वादी के अनुसार दिनांक 06-10-1992 को पुराना ट्रान्सफार्मर जल गया तथा काफी दौड़ भाग के उपरान्त दिनांक 06-04-1993 को दूसरा ट्रान्सफार्मर लगा किन्तु वादी तथा अन्य विघुत कनेक्शनधारकों की समस्या यथावत बनी रही।
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वादी ने विपक्षीगण द्वारा की गयी सेवा में त्रुटि के कारण पहुँची आर्थिक,मानसिक क्षति हेतु रू0 20,000/- की मांग की है। वादी ने अनवरत विघुत आपूर्ति न होने के कारण दिनांक 02-02-1990 से आज तक के विघुत बिलों की वसूली रोकने की भी मांग की है। ट्रान्सफार्मर जल जाने के कारण दिनांक 06-12-1992 से दिनांक 05-04-1993 तक विघुत आपूर्ति बाधित रहने के काल का विघुत बिल भुगतान रोके जाने की भी वादी ने मांग की है। वादी ने बतौर वाद व्यय 1000/-रू0 दिलवाने तथा अनवरत् एवं सुचारू विघुत आपूर्ति दिलवाने की भी मांग की है।
विपक्षीगण ने प्रतिरोध करते हुए कहा कि वादी की शिकायत असत्य एवं निराधार है। विपक्षी ने शिकायत के ''सेवा'' की परिभाषा में आने से भी इंकार किया। उनके अनुसार विपक्षी विभाग परिषदीय नियमों के तहत ही कार्य करता है तथा अविवेकपूर्ण कार्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वादी ने तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया है। विपक्षी के अनुसार विघुत आपूर्ति में उत्पन्न त्रुटियों का निराकरण भी विभागीय नियमावली के तहत ही होता है। उपभोक्ता द्वारा विघुत कनेक्शन लेने के लिए अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर किया जाता है जो कि उसे विघुत परिषद के समस्त नियों को मानने हेतु बाध्य करता है। विपक्षी के अनुसार मंत्री आदि को भेजे गये पत्रों का कोई प्रतिकूल असर विपक्षी के विभाग पर नहीं होता। पैकेज हेतु धन उपलब्ध न होने की सूचना दिनांक 06-02-1993 को प्रतिपक्षी प्राप्त हुई। विभागीय औपचारिकताओं को पूर्ण करने के उपरान्त दिनांक 23-04-1993 को धन उपलब्ध होने पर अनुमोदित किया गया। परिषदीय आदेशानुसार सामग्री की दर दिनांक 01-07-1993 से बदल चुकी थी अत: सभी पैकेज संबंधित अधिशासी अभियनता को एस्टीमेट पुनरीक्षित करने हेतु भेज दिये गये। ग्राम-बान का पुनरीक्षित पैकेज दिनांक 15-09-1993 को प्राप्त हुआ। धन आवंटन हेतु उक्त पैकेज दिनांक 04-10-1993 को लखनऊ भेज दिया गया। विपक्षी ने वादी की शिकायत को खारिजी योग्य बताते हुए विशेष खर्च एवं वाद व्यय दिलवाने की मांग की है।
उभयपक्ष के तर्कों एवं अभिवचनों पर विचार करते हुए निर्णय पारित किया गया है जिससे क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थी पक्ष की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि बिजली की सप्लाई जो गॉंव में की जाती है वह बिजली की उपलब्धता के आधार पर की जाती है एवं बिजली का कोई मीटर गॉंव में नहीं लगाया गया है और न्यूनतम चार्ज बिजली विभाग द्वारा प्राप्त किया जाता है और इस प्रकार सीमित अवधि के लिए ही बिजली उपलब्ध करायी जाती है। जिला मंच
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द्वारा इस तथ्य पर विचार नहीं किया गया कि सीमित बिजली उपलब्ध होने के कारण ही गॉंव में निर्धारित समय में ही बिजली उपलब्ध करायी जाती है एवं रात के समय में लो वोल्टेज की समस्या भी गॉंव में रहती है और मीटर न होने के कारण बिजली का उपयोग अधिक कर लिया जाता है जिससे लो वोल्टेज की समस्या उत्पन्न हो जाती है ऐसी स्थिति में विघुत विभाग की सेवा की कमी होना स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है और इस संदर्भ में एडवोकेट कमिश्नर की आख्या का कोई न्यायिक महत्व नहीं है एवं वर्तमान प्रकरण में मुख्य रूप से लो वोल्टेज की समस्या परिवादी/प्रत्यर्थी पक्ष द्वारा उठायी गयी है। जिला मंच द्वारा इस दृष्टिकोण पर विचार किया गया कि सीमित विघुत उपलब्ध होने के कारण ही और मीटर न होने के कारण इस प्रकार की समस्या उत्पन्न हो जाती है एवं जिला मंच द्वारा इस संदर्भ में भी विचार नहीं किया गया कि बिजली का उत्पादन नहीं किया जा सका है जितना आवश्यक होता है और इन तथ्यों पर विचार करते हुए जिला मंच द्वारा पारित आदेश स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है एवं इस संदर्भ में अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा पीठ का ध्यान अपील संख्या-280/99 यू0पी0एस0ई0बी0 बनाम श्री कालिका प्रसाद पाण्डेय में मा0 राज्य आयोग द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 20-06-2000 की ओर ध्यान आकर्षित किया गया एवं मा0 राज्य आयोग द्वारा ऐसी ही प्रकरण में अपील स्वीकार की गयी अत: उपरोक्त वर्णित प्रतिपादित सिद्धान्त को देखते हुए अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
तद्नुसार अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, गोरखपुर परिवाद संख्या-454/1993 दीनानाथ पाण्डेय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य विघुत परिषद व अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10-12-1998 निरस्त किया जाता है।
उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
( जितेन्द्र नाथ सिन्हा ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-3
प्रदीप मिश्रा