(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1523/2004
ग्रेटर नोयडा इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी
बनाम
दिलीप चतुर्वेदी (मृतक) प्रतिस्थापित विधिक वारिसान श्रीमती जयती चतुर्वेदी पत्नी स्व0 श्री दिलीप चतुर्वेदी तथा अन्य
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 18.12.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0-143/2001, दिलीप चतुर्वेदी बनाम ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण तथा अन्य में विद्वान जिला आयोग, गौतम बुद्ध नगर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 5.1.2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री मनमोहन बोस अनुपस्थित हैं।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने वर्ष 1992 में अल्फा आवासीय योजना के अंतर्गत 100 वर्ग मीटर आवासीय भूखण्ड हेतु आवेदन किया था। दिनांक 16.12.1992 को भूखण्ड संख्या-4051
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क्षेत्रफल 100 वर्ग मीटर आवंटित किया गया तथा कुल कीमत अंकन 85,000/-रू0 निर्धारित की गयी। परिवादी द्वारा अंकन 17,000/-रू0 आवंटित शुल्क वर्ष 1993 में विपक्षी को भेज दिया गया, परन्तु मौके पर जाकर देखने पर पाया कि विकास कार्य प्रारम्भ नहीं हुआ है, परन्तु प्राधिकरण द्वारा किश्तों की राशि जमा करने के लिए कहा जाता रहा, जब परिवादी दिनांक 8.9.1995 को विपक्षी के कार्यालय में गया और समस्त धनराशि जमा करने के लिए कहा तब उसे बताया गया कि प्रश्नगत भूखण्ड का आवंटन निरस्त कर दिया गया है और जमा धनराशि जब्त कर ली गयी है। परिवादी द्वारा दिये गये आवेदन पर कोई सुनवाई नहीं की गई, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी द्वारा लिखित कथन में अंकन 17,000/-रू0 जमा करना एवं आवंटन पत्र जारी करने के तथ्य को स्वीकार किया गया। यह भी स्वीकार किया गया कि भूखण्ड निरस्त कर दिया गया है और दिनांक 27.10.1993 को परिवादी को सूचना दी जा चुकी है, परन्तु वादी समय पर धनराशि जमा नहीं की, इसलिए धनराशि को जब्त कर लिया गया। यद्यपि यह भी स्वीकार किया गया कि यदि परिवादी सम्पूर्ण धनराशि ब्याज सहित जमा कर देता है तब उसे भूखण्ड पर कब्जा दिया जा सकता है।
4. विद्वान जिला आयोग द्वारा निष्कर्ष दिया गया कि वर्ष 1992-93 में परिवादी के पक्ष में आवंटित भूखण्ड की जो किश्त जमा करनी थी, वे परिवादी द्वारा जमा नहीं की गयी, परन्तु चूंकि स्वंय
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विपक्षी ने धनराशि जमा करने पर भूखण्ड के प्रतिस्थापन का तथ्य स्वीकार किया है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया गया कि पुराने मूल्य पर ही ब्याज जोड़ते हुए प्रश्नगत भूखण्ड का कब्जा परिवादी के पक्ष में पुनर्स्थापित किया जाए और लीड डीड निष्पादित की जाए और यदि ऐसा नहीं किया जाता है तब परिवादी द्वारा जमा धनराशि 15 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस की जाए।
5. इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि विद्वान जिला आयोग ने तथ्य एवं साक्ष्य के विपरीत निर्णय/आदेश पारित किया है। परिवादी द्वारा अंकन 17,000/-रू0 आवेदन के साथ जमा किए गए थे। आवंटन के पश्चात अवशेष राशि जमा नहीं की गयी, इसलिए स्वंय परिवादी ने आवंटन की शर्तों का उल्लंघन किया है, जिसके लिए स्वंय परिवादी उत्तरदायी है। दिनांक 27.10.1993 को निरस्तीकरण की सूचना दी जा चुकी थी, इसके पश्चात परिवादी उपभोक्ता नहीं है। स्वंय परिवादी भूखण्ड के मूल्य, देय ब्याज एवं दण्ड ब्याज अदा करने के लिए सहमत नहीं है, इसलिए परिवादी के पक्ष में कोई उपभोक्ता विवाद उत्पन्न नहीं होता।
6. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रथम बहस यह की गयी है कि आवंटन निरस्त होने की सूचना दिनांक 27.10.1993 को दी जा चुकी है, इसलिए परिवाद समयावधि से बाधित है, परन्तु दिनांक 27.10.1993 को सूचना देने संबंधी डाक रसीद पत्रावली पर मौजूद नहीं है, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि आवंटन निरस्त
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करने की सूचना वास्तव में परिवादी को दिनांक 27.10.1993 के पत्र द्वारा हो चुकी हो, इसलिए परिवाद को समय के अंतर्गत माना जा सकता है।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का अग्रिम तर्क है कि स्वंय परिवादी अवशेष राशि जमा करे तब आवंटित भूखण्ड का कब्जा सुपुर्द किया जा सकता है। अत: लिखित कथन के इसी उल्लेख के आधार पर विद्वान जिला आयोग द्वारा अपना निर्णय/आदेश आधारित किया है, इस निष्कर्ष में किसी प्रकार की अवैधानिकता नहीं है, सिवाय इसके कि ब्याज अत्यधिक उच्च दर (15 प्रतिशत) से निर्धारित किया गया है। प्रस्तुत केस में समय पर आवंटी द्वारा भूखण्ड के मूल्य की राशि जमा नहीं की गयी, यह तथ्य स्थापित है। विद्वान जिला आयोग ने यह निष्कर्ष नहीं दिया है कि प्राधिकरण की ओर से विकास कार्यों में देरी कारित हुई है। विद्वान जिला आयोग ने अपना निर्णय विपक्षी के लिखित कथन के पैरा सं0-20 में वर्णित तथ्यों पर आधारित किया है। अत: इस स्थिति में परिवादी द्वारा जमा राशि पर 15 प्रतिशत की दर से ब्याज अदा करने का आदेश देने का कोई औचित्य नहीं है। अत: 15 प्रतिशत की दर से ब्याज अदा करने का आदेश समाप्त होने और प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 5.1.2004
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इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी द्वारा जमा राशि को वापस लौटाते समय प्राधिकरण द्वारा कोई ब्याज देय नहीं होगा। शेष निर्णय/आदेश यथावत् रहेगा।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-1