राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-1093/1998
मे0 मां निस्तारनी कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0, ग्राम व पोस्ट उतरांव, तहसील मोहम्मदाबाद, जिला गाजीपुर, द्वारा प्रोपराइटर/मैनेजर श्री गंगा विशुन प्रसाद।
अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम्
श्री जगदीश सिंह पुत्र स्व0 श्री जगरनाथ सिंह, निवासी ग्राम लबकरा, पोस्ट प्रधानपुर, तहसील रसड़ा, जिला बलिया।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 29.07.2015
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
आज यह पत्रावली प्रस्तुत हुई। पुकार करवाये जाने पर अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। यह अपील, लगभग 16 वर्ष से निस्तारण हेतु लम्बित है। अत: पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि इसका निस्तारण कर दिया जाय। अपीलार्थी की ओर से विगत कई तिथियों से कोई उपस्थित नहीं आ रहा है और न ही अपील की सुनवाई में कोई रूचि ही ली जा रही है।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि यह अपील, जिला फोरम, गाजीपुर द्वारा परिवाद संख्या-116/1997 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 15.12.1997 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-30 की उपधारा (2) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली 1987 के नियम 8 के उप नियम (6) में निम्नवत् प्राविधान है :-
‘’ नियम-8 (6) : सुनवाई के दिनांक को या किसी अन्य दिनांक को जब तक के लिये सुनवायी स्थगित की जाये, पक्षकारों या उनके प्राधिकृत अभिकर्त्ताओं को राज्य आयोग के समक्ष उपस्थित होना बाध्यकर होगा। यदि अपीलार्थी या उसका प्राधिकृत अभिकर्ता ऐसे दिनांक को उपस्थित होने में असफल रहता है तो राज्य आयोग, स्व विवेकानुसार या तो अपील को खारिज कर सकता है या मामले के गुणावगुण के आधार पर उसे विनिश्चित कर सकता है। यदि प्रत्यर्थी या उसका प्राधिकृत अभिकर्ता ऐसे दिनांक को उपस्थित होने में असफल रहता है तो राज्य आयोग एक
पक्षीय कार्यवाही करेगा और मामले के गुणावगुण के आधार पर अपील का एक पक्षीय विनिश्चय करेगा। ‘’
-2-
उपरोक्त विधिक प्राविधान के अनुसार अपीलार्थी का यह दायित्व था कि वह अपील दायर करने के उपरान्त प्रत्येक नियत तिथि पर स्वयं अथवा उसके द्वारा प्राधिकृत अभिकर्त्ता उपस्थित
होते, परन्तु उसके द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया गया। अत: अपीलार्थी की अनुपस्थिति में यह अपील निर्णीत किये जाने योग्य है। परिणामत: अभिलेखों का भलीभांति अनुशीलन किया गया।
अपीलार्थी द्वारा यह अपील योजित करने के बाद से अपील के निस्तारण में कोई कार्यवाही नहीं की गयी और न ही कोई उपस्थित हुआ और न ही प्रत्यर्थी पर सूचनार्थ पैरवी ही दाखिल की गयी। उपरोक्त विधिक प्राविधानों के आलोक में पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि अपीलार्थी को इस अपील में कोई रूचि नहीं है। अत: अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
(राम चरन चौधरी) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0
कोर्ट-5