राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-1575/2016
(जिला फोरम, गोरखपुर द्धारा परिवाद सं0-174/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.6.2016 के विरूद्ध)
H.D.F.C. Ergo General Insurance Company Ltd. through its Manager, 29A, Ratan Square, Vidhan Sabha Marg, Lucknow.
........... Appellant/Opp. Party
Versus
Dhiraj Kumar Jijodiya, S/o Sri Vishwananth Prasad Jijodiya, R/o C161/90, Tiwariganj, Post-Gorakhnath, Tehsil-Sadar, District-Gorakhpur.
……..…. Respondent/ Complainant
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री मनोज कुमार दुबे
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री आदित्य कुमार श्रीवास्तव
दिनांक :-09-4-2019
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-174/2014 धीरज कुमार जीजोडिया बनाम एच0डी0एफ0सी0 एरगो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड व तीन अन्य में जिला उपभोक्ता प्रतितोष फोरम, गोरखपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 27.6.2016 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
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“परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षीगण स्वीकार किया जाता है। परिवादी विपक्षीगण से 504000.00 (पॉच लाख चार हजार रू0) की क्षतिपूर्ति की धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी है। विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय व आदेश के दिनांक से एक माह की अवधि के अन्तर्गत समस्त धनराशि परिवादी को प्रदान करे अथवा बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से मंच में जमा करे, जो परिवादी को दिलाई जा सके। नियत अवधि में आदेश का परिपालन न किए जाने की स्थिति में परिवादी समस्त आज्ञप्ति की धनराधि पर 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने के दिनांक से अंतिम वसूली तक विपक्षीगण से प्राप्त करने की अधिकारी होगा एवं समस्त आज्ञप्ति की धनराशि विपक्षीगण से विधि अनुसार वसूल की जाएगी।”
जिला फोरम के निर्णय से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षी एच0डी0एफ0सी0 एरगो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गई है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री मनोज कुमार दुबे और प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आदित्य कुमार श्रीवास्तव उपस्थित आये।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन
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किया है। मैंने उभय पक्ष की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क का भी अवलोकन किया।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षी से क्रिटिकल इलनेस पालिसी संख्या-2822200106102000 प्राप्त की थी, जो दिनांक 03.8.2010 से प्रारम्भ हुई और इसका वार्षिक प्रीमियम 1966.00 रू0 था, जिसे प्रत्यर्थी/परिवादी विपक्षीगण को अदा करता रहा है। इस पालिसी की बीमित धनराशि 5,00,000.00 रू0 थी।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी की तबियत दिनांक 11.02.2014 को खराब होने पर उसे सोमिल आफरिन हार्ट सेन्टर में भर्ती किया गया और जॉच के बाद उसे उदय मेडिकल सेन्टर में डॉ0 नवनीत जयपुरियार के यहॉ रेफर कर दिया गया। वहॉ से उसे ए.आई.आई.एम.एस. हास्पिटल न्यू दिल्ली रेफर कर दिया गया। उसके बाद दिनांक 24.02.2014 को डॉ0 प्रवीण चन्द्रा के मेदांता हास्पिटल गुडगॉव में उसने दिखाया और अपने इलाज का बिल और रसीदें स्कैन कर विपक्षीगण को प्रेषित किया और कोरियर के माध्यम से दिनांक 20.3.2014 को प्रेषित किया। विपक्षीगण द्वारा प्रपत्रों की मॉग किए जाने पर समस्त प्रपत्र प्रत्यर्थी/परिवादी ने
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दिनांक 15.4.2014 को उन्हें उपलब्ध करा दिये, तब उक्त प्रपत्रों की जॉच विपक्षीगण ने अपने चिकित्सक से करायी। चिकित्सक ने जॉच रिपोर्ट दिनांक 18.4.2014 को प्रेषित की, परन्तु रिपोर्ट प्राप्त होने के पश्चात दिनांक 02.5.2014 को पुन: प्रपत्रों की मॉग प्रत्यर्थी/परिवादी से की गई और प्रत्यर्थी/परिवादी का क्लेम दिनांक 03.5.2014 को अस्वीकार कर दिया गया, जबकि क्लेम अस्वीकार करने का कोई उचित और पर्याप्त कारण नहीं था। परिवाद पत्र में प्रत्यर्थी/परिवादी ने कहा है कि दिनांक 03.8.2010 उसने पालिसी ली है और तब से बराबर पालिसी चल रही है। प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनांक 11.4.2014 से पूर्व किसी भी प्रकार की कोई शिकायत नहीं थी। विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी का क्लेम बिना किसी उचित आधार के सोची समझी रणनीत के तहत निरस्त किया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षीगण को अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजा, फिर भी कोई कार्यवाही विपक्षीगण ने नहीं की, तब विवश होकर प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया है और प्रश्नगत बीमा पालिसी के तहत बीमित धनराशि 5,00,000.00 रू0 एवं 1,00,000.00 रू0 मानसिक और आर्थिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति दिलाये जाने का निवेदन किया है, साथ ही 10,000.00 रू0 वाद व्यय भी मॉगा है।
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जिला फोरम के समक्ष विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है और कहा गया है कि परिवादी ने परिवाद गलत तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक 03.8.2013 की प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त की है, परन्तु बीमा पालिसी लेने के 4-5 वर्ष पूर्व से वह बीमारी से ग्रसित था और उसने अपनी बीमारी के तथ्य को छिपाकर यह पालिसी प्राप्त की है। लिखित कथन में विपक्षीगण की ओर से कहा गया है कि प्रश्नगत पालिसी की योजना में स्वास्थ्य परीक्षण किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। परिवादी द्वारा कथित तथ्यों को सही मानते हुए पालिसी जारी की गई है। लिखित कथन में यह भी कहा गया है कि विपक्षीगण ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त कर सेवा में कोई कमी नहीं किया है। अत: परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरांत यह माना है कि अपीलार्थी/बीमा कम्पनी यह साबित करने में असफल रहीं है कि प्रत्यर्थी/परिवादी वर्तमान पालिसी प्राप्त करने के पहले गम्भीर बीमारी से पीडित था। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा पूर्व बीमारी के आधार पर निरस्त किया जाना उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी ने प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा अस्वीकार कर गलती की है।
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अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का मेदांता अस्पताल में दिनांक 24.02.2014 को इलाज किया गया है, जहॉ पर यह पाया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी 4-5 साल पहले से Short Dyspnoea की बीमारी से पीडित रहा है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि मरीज द्वारा भर्ती किए जाने के समय की गई घोषणा के आधार पर डॉक्टर ने यह माना है। अत: यह मानने हेतु उचित आधार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त करने के 4-5 साल पहले से उपरोक्त बीमारी से पीडित था, परन्तु उसने प्रश्नगत बीमा पालिसी प्राप्त करते समय इस तथ्य को छिपाया है और गलत तथ्य दर्शित कर बीमा पालिसी प्राप्त की है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने डॉक्टर द्वारा अंकित 4-5 वर्ष को 4-5 महीने कहते हुए शपथपत्र मेदांता अस्पताल में प्रस्तुत किया है, जिसके आधार पर मेदांता अस्पताल ने प्रमाण पत्र दिया है कि उसकी पूर्व की बीमारी 4-5 साल पहले की नहीं वरन 4-5 महीने पहले की थी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि 4-5 महीने पहले की बीमारी होने के सम्बन्ध में जो प्रमाण पत्र दिया गया है, वह उस डॉक्टर
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का प्रमाण पत्र नहीं है, जिसने 4-5 साल पहले की बीमारी होना अंकित किया है और यह प्रमाण पत्र देने वाले डॉक्टर ने पहले इलाज भी नहीं किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि प्रश्नगत पालिसी प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपनी पूर्व बीमारी को छिपाकर धोखे से प्राप्त किया है। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी का बीमा दावा निरस्त करने हेतु उचित आधार है और अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने उसका दावा निरस्त कर सेवा में कोई त्रुटि नहीं की है। जिला फोरम का निर्णय दोष पूर्ण है। अत: जिला फोरम का निर्णय अपास्त कर परिवाद निरस्त किया जाना आवश्यक है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी को प्रश्नगत बीमा पालिस लेने के पूर्व कोई बीमारी नहीं रही है और उसने बीमा पालिसी लेते समय सही तथ्य बीमा प्रस्ताव में अंकित किया है। अपीलार्थी बीमा कम्पनी ने बीमा दावा निरस्त करने हेतु गलत आधार उल्लिखित किया है और उसका दावा गलत आधार पर निरस्त किया है। इस प्रकार बीमा कम्पनी की सेवा दोष पूर्ण है।
मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क पर विचार किया है।
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प्रत्यर्थी/परिवादी की बीमा कम्पनी द्वारा कथित पालिसी लेने के पूर्व बीमारी का आधार मेदांता अस्पताल द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी के इलाज के सम्बन्ध में तैयार किया गया पर्चा है, जिसकी प्रति अपील की पत्रावली का संलग्नक-3 है। इसमें प्रत्यर्थी/परिवादी की बीमारी Known Case of Short Dyspnoea Since 4-5 years अंकित है, परन्तु उसी मेदांता अस्पताल द्वारा दिनांक 14.4.2014 को एक प्रमाण पत्र जारी किया गया है, जिसमें अंकित है कि दिनांक 24.02.2014 के Consultation Paper में Short Dyspnoea Since 4-5 years जो अंकित है, वह वास्तव में 4-5 Months है। जैसा कि शपथपत्र में कहा गया है। मेदांता अस्पताल में दिनांक 14.4.2014 को प्रस्तुत शपथपत्र की प्रति अपील का संलग्नक-5 है और मेदांता अस्पताल का उक्त प्रमाण पत्र दिनांक 14.4.2014 की प्रति अपील का संलग्नक-6 है। प्रत्यर्थी/परिवादी की पूर्व बीमारी का मेदांता अस्पताल के उपरोक्त Consultation Paper दिनांक 24.02.2014 के अलावा और कोई साक्ष्य नहीं है और उपरोक्त Consultation Paper दिनांकित 24.02.2014 में 4-5 साल, 4-5 महीने के स्थान पर गलती से अंकित होना प्रमाण पत्र दिनांक 14.4.2014 में अंकित है, जो उसी अस्पताल द्वारा दिया गया है। अत: ऐसी स्थिति में मेदांता अस्पताल के Consultation Paper दिनांक 24.02.2014 में अंकित 4-5 वर्ष
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पहले की विश्वसनीयता संदिग्ध है और उसे परिवाद प्रस्तुत करने के पहले ही प्रत्यर्थी/परिवादी ने मेदांता अस्पताल में शपथपत्र प्रस्तुत कर चुनौती दिया है। ऐसी स्थिति में यह साबित करने का भार अपीलार्थी बीमा कम्पनी का है कि वास्तव में उपरोक्त बीमारी से प्रत्यर्थी/परिवादी प्रश्नगत बीमा पालिसी लेने के पहले से ग्रस्त रहा है और उसे इसकी जानकारी रही है, परन्तु उसने और कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है और मेदांता अस्पताल के उस डॉक्टर की राय भी इस संदर्भ में प्राप्त नहीं की है कि क्या उसकी बीमारी को देखते हुए उसकी बीमारी 4-5 वर्ष पहले की मानने हेतु उचित आधार है। अत: अपीलार्थी बीमा कम्पनी द्वारा कथित प्रत्यर्थी/परिवादी की पूर्व बीमारी के आधार पर उसका दावा निरस्त किया जाना उचित और युक्ति संगत नहीं दिखता है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह स्पष्ट है कि जिला फोरम ने जो यह निष्कर्ष अंकित किया है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी की कथित पूर्व बीमारी को साबित करने में असफल रहीं है, वह साक्ष्य की सही और विधिक विवेचना पर आधारित है, जिला फोरम के इस निर्णय में हस्तक्षेप हेतु उचित और युक्त संगत आधार नहीं दिखता है।
प्रश्नगत बीमा पालिसी की बीमित धनराशि 5,00,000.00 रू0 अदा करने हेतु जो जिला फोरम ने आदेशित किया है वह
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उचित है जिला फोरम ने 2,000.00 रू0 वाद व्यय दिलाया है वह भी उचित है, परन्तु जिला फोरम जो 2,000.00 रू0 मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति दिलायी है, वह अपास्त किए जाने योग्य है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा आदेशित क्षतिपूर्ति की धनराशि 2,000.00 रू0 अपास्त की जाती है तथा जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय संशोधित करते हुए अपीलार्थी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रश्गनत बीमा पालिसी की बीमित धनराशि 5,00,000.00 रू0 इस निर्णय की तिथि से एक मास के अन्दर अदा करें और यदि इस एक मास के अन्दर बीमित धनराशि 5,00,000.00 रू0 का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं किया जाता है तो अपीलार्थी बीमा कम्पनी इस बीमित धनराशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक प्रत्यर्थी/परिवादी को अदा करेगी जैसा कि जिला फोरम द्वारा आदेशित किया गया है।
उपरोक्त के अतिरिक्त अपीलार्थी बीमा कम्पनी प्रत्यर्थी/परिवादी को जिला फोरम द्वारा आदेशित 2,000.00 रू0 वाद व्यय भी अदा करेगी।
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अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनिमय के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को प्रेषित की जायेगी।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-1