राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या:-2674/2015
(जिला मंच, गोरखपुर द्धारा परिवाद सं0-165/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.11.2015 के विरूद्ध)
Tata Motor Finance Limited, Think Techno Campus Building A, IInd Floor, Off Pokhran Road-2, Thane, Maharashtra, through its Manager.
........... Appellant/Opp. Party
Versus
1- Dharmendra Kumar Yadav, S/o Shri Ramdas Yadav, R/o Omkarnagar Siktor, Post Maniram, District Gorakhpur.
…….. Respondent/ Complainant
2- Motor & General Sates Ltd., M.P. Building, District Parishad road, Gorakhpur.
…….. Respondent/ Proforma Party
समक्ष :-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य
मा0 गोवर्धन यादव, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री राजेश चडढा
प्रत्यर्थी सं0-1 के अधिवक्ता : श्री दीपांकर भट्ट
दिनांक :-12-10-2018
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील परिवाद संख्या-165/2015 में जिला मंच, गोरखपुर द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांकित 20.11.2015 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने जीविकोपार्जन के लिए एक वाहन सं0-यू0पी0 53 बीटी-3658 क्रय करने हेतु दिनांक 20.01.2011 को अपीलार्थी से 14.80 लाख रूपये की धनराशि की वित्तीय सहायता प्राप्त की थी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने वाहन का बीमा नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी से
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20,44,000.00 रूपयों के लिए कराया गया था। प्रत्यर्थी सं0-2 को 50,000.00 रू0 दिनांक 20.01.2011 को अदा किए तथा दिनांक 06.12.2010 को 3,00,000.00 रू0 एवं दिनांक 10.12.2010 को 48,000.00 रू0 एवं 1,000.00 रू0 जमा किया था। अपीलार्थी द्वारा लिए गये ऋण को 42 मासिक किश्तों में भुगतान करना था। पहली किश्त दिनांक 11.01.2011 को जमा होनी थी। अपीलार्थी ने उक्त ऋण के सम्बन्ध में 10 चेक बतौर अग्रिम प्राप्त किए थे। परिवादी दो वर्ष तक निरंतर समय से किश्त जमा करता रहा, उसके पश्चात मासिक किश्त समय से जमा नहीं कर सका, लेकिन कुछ समय बाद किश्त जमा की जाती रही। परिवादी के माता पिता वृद्ध थे, जिनकी तबियत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पडा, इसलिए किश्त जमा करने में देरी हुई। प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन की बाड़ी स्वयं बनवायी थी, इसलिए वाहन की कीमत 22,00,000.00 रू0 थी। वर्ष-2012 तक बराबर किश्ते अदा की जाती रही। वाहन की आखिरी किश्त परिवादी ने दिनांक 08.9.2014 को जमा की। दिनांक 08.10.2014 को वाहन जब गोरखपुर वापस आ रहा था, तब चंदौली के पास परिवादी के वाहन को अपीलार्थी के आदमियों ने जबर्दस्ती रोक कर वाहन को अपने कब्जे में ले लिया। विरोध करने पर चालक को पंचाट अधिकारी के आदेश की प्रति प्रदान की गई। पंचाट अधिकारी और पंचाट की सूचना दिनांक 08.10.2014 से पूर्व परिवादी को नहीं दी गई और न ही कोई नोटिस दिया गया। परिवादी ने अपने वाहन को मुक्त किए जाने की प्रार्थना तथा शेष किश्तें अविलम्ब जमा किए जाने का आश्वासन दिया। अपीलार्थी के लोगों ने कहा कि ऊपर से आदेश आने पर वाहन को छोडे जाने के लिए वाहन की गारंटी के रूप में 2,42,810.00 रू0 की मॉग की गई और 48 घण्टे के अन्दर धनराशि को जमा करने को कहा गया। परिवादी अपनी मॉ के इलाज के सम्बन्ध में घर से बाहर था और जब वह वापस आया तो अपीलार्थी के कार्यालय में जाकर ऋण के सम्बन्ध में जानकारी की और ऋण खाते का ब्योरा देखने पर पता चला
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कि 2,42,810.00 रू0 की किश्त उसको जमा करनी थी। ब्याज की देनदारी 1,77,927.00 रू0 की थी। परिवादी को सूचित किया गया कि परिवादी का वाहन 2,42,810.00 रू0 पुराने वाहन के रूप में विक्रय कर दिया गया है। जिससे परिवादी को अत्यधिक आघात पहुंचा,जब वाहन को अपीलार्थी ने अपने कब्जे में लिया था, उसम समय वाहन की आई.डी.वी. वैल्यू 14.52 लाख रू0 थी। परिवादी ने वाहन की बाड़ी बनवाने में 3,00,000.00 रू0 खर्च किए थे और वाहन की कीमत उस समय 18,00,000.00 रू0 थी। परिवादी का वाहन जबर्दस्ती कब्जे में ले लिए जाने के कारण परिवादी का भविष्य अंधकारमय हो गया और उसके जीविकोपार्जन का अन्य कोई साधन नहीं है। अपीलार्थी को परिवादी के वाहन को इस प्रकार से बेचने का कोई अधिकार नहीं था और पंचाट के आदेश का गलत प्रयोग करके वाहन को किसी व्यक्ति को बेच दिया गया है। अत: परिवादी ने जिला मंच के समक्ष प्रश्नगत वाहन वापस दिलाये जाने अथवा वाहन की बकाया धनराशि प्राप्त करके उसकी कीमत 18,00,000.00 रू0 में से बकाया धनराशि काटकर शेष धनराशि मय ब्याज दिलाये जाने हेतु तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु परिवाद जिला मंच में योजित किया गया।
अपीलार्थी द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी के कथनानुसार प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला मंच को प्राप्त नहीं था। परिवादी एवं अपीलार्थी के मध्य हायर परचेज अनुबंध पैरा 23 में उल्लिखित है कि अनुबन्ध के अन्तर्गत विवाद होने पर आर्बिट्रेटर नियुक्त किया जाएगा। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि परिवदी द्वारा प्राप्त ऋण की अदायगी से सम्बन्धित किश्त नियमित रूप से अदा नहीं की गई और उसका खाता एनपीए हो गया। अपीलार्थी द्वारा बार-बार खाता नियमित करने का अनुरोध किया गया। अत: आर्बिट्रेशन की कार्यवाही की गई। 4,76,420.00 रू0 की धनराशि पंचाट के आदेशानुसार दिनांक 07.3.2014 तक जमा करनी थी। परिवादी
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द्वारा किश्तों की अदायगी न किए जाने पर दिनांक 29.11.2;014 को वाहन को कब्जे में लिया गया तथा नोटिस दिनांक 02.12.2014 परिवादी को दिया गया। दिनांक 20.4.2015 को वाहन को नीलाम करके 8.10 लाख रूपये मो0 लुकमान खान पुत्र मो0 मोहसिन खान वाराणसी के नाम कर दिया गया।
प्रत्यर्थी सं0-2 द्वारा भी प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया तथा यह अभिकथित किया गया कि परिवादी ने उनके विरूद्ध कोई अनुतोष नहीं चाहा है। विवाद परिवादी और अपीलार्थी के मध्य है।
विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत वाहन का कब्जा अवैध रूप से प्राप्त करने तथा वाहन की बिक्री अवैध रूप से किया जाना मानते हुए परिवादी का परिवाद अपीलार्थी के विरूद्ध स्वीकार किया तथा आदेशित किया कि अपीलार्थी परिवादी को 13,62,857.00 रू0 दिनांक 08.10.2014 से अंतिम वसूली एवं सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर अदा करें।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर अपील योजित की गई है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चडढा तथा प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री दीपांकर भट्ट के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने प्रश्नगत वाहन को क्रय करने हेतु अपीलार्थी से 14,80,000.00 रू0 प्राप्त किए थे। ब्याज के रूप में 4,93,728.00 रू0 अदा किए जाने थे तथा बीमा के चार्जेज के रूप में 1,56,000.00 रू0 अदा किए जाने थे। इस प्रकार संविदा के अनुसार 21,29,728.00 रू0 परिवादी को 42 मासिक किश्तों में अदा करने थे। पहली किश्त 51,028.00 रू0 की थी तथा दूसरी 42 किश्तें 50,700.00 रू0 की थी और जो दिनांक 11.01.2011 से 11.6.2014 तक अदा की
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जानी थी। स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी यह स्वीकार करता है कि किश्तों की अदायगी उसके द्वारा समय से नहीं की गई। अपीलार्थी के कथनानुसार प्रत्यर्थी/परिवादी को बकाया ऋण की अदायगी हेतु नोटिस भेजी गई, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बकाया किश्तों की अदायगी का भुगतान नहीं किया गया। अपीलार्थी के कथनानुसार पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा की धारा-23 के अनुसार पक्षकारों के मध्य विवाद होने की स्थिति में विवाद का निस्तारण मध्यस्थ द्वारा किया जाना था। अत: विवाद मध्यस्थ श्री नितिन चौहान को संदर्भित किया गया। श्री नितिन चौहान, मध्यस्थ द्वारा विवाद निस्तारित किया गया तथा अवार्ड दिनांक 06.6.2014 को पारित किया गया। प्रस्तुत परिवाद मध्यस्थ द्वारा अवार्ड पारित किए जानेके उपरांत योजित किया गया है। मध्यस्थ द्वारा अवार्ड पारित किए जाने के उपरांत उपभोक्ता मंच में परिवाद पोषणीय नहीं था, किन्तु इस तथ्य पर ध्यान न देते हुए प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया। अपने तर्क के समर्थन में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा The Installment Supply Ltd. Vs. Kangra Ex-Serviceman Transport Co. & Another. 2006(3) CPR 339 (NC) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया। इस मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया कि परिवाद योजित किए जाने की स्थिति में मध्यस्थ द्वारा अवार्ड पारित किए जाने के उपरांत पक्षकारों के मध्य विवाद अवार्ड के अनुसार निर्णीत होगा। मध्यस्थ द्वारा दिया गया निर्णय पक्षकारों पर बाध्य होगा। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के अनुसार प्रश्नगत ऋण के अन्तर्गत देय किश्तों की अदायगी में चूक किए जाने की स्थिति अपीलार्थी को यह अधिकार होगा कि प्रश्नगत वाहन का कब्जा अपीलार्थी प्राप्त कर लें।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि हायर परचेज अनुबन्ध के अन्तर्गत किश्तों की अदायगी बकाया
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होने के बावजूद सम्बन्धित वाहन का कब्जा अनाधिकृत रूप से ऋणदाता द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस संदर्भ में प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा Citicorp. Maruti Finance Ltd. Vs. S.Vijaylaxmi 2012 AIR (SC) Page 509 के मामले में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया।
उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी के कथनानुसार प्रश्नगत विवाद के निस्तारण हेतु मध्यस्थ की नियुक्ति की गई तथा मध्यस्थ द्वारा अवार्ड दिनांक 06.6.2014 को पारित किया गया तथा परिवाद इस अवार्ड की तिथि के बाद योजित किया गया। परिवादी का यह कथन है कि विवाद को मध्यस्थ को संदर्भित किए जाने की कोई सूचना अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को नहीं दी गई और न ही मध्यस्थ द्वारा कथित मध्यस्थ की कार्यवाही के विषय में कोई सूचना परिवादी को दी गई। अपीलार्थी द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों के अवलोकन से यह विदित होता है कि अपीलार्थी का यह अभिकथन नहीं है कि प्रश्नगत विवाद मध्यस्त को संदर्भित किए जाने की कोई सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को प्राप्त करायी गई। मध्यस्थ द्वारा पारित अवार्ड की प्रति भी अपीलार्थी ने अपील मेमो के साथ दाखिल की है, जिसके अवलोकन से यह विदित होता है कि मध्यस्थ द्वारा कथित रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी को दो नोटिस भेजी गई, जो बिना तामील वापस प्राप्त नहीं हुई। अत: प्रत्यर्थी/परिवादी पर नोटिस की तामील पर्याप्त मानी गई, किन्तु दाखिल किए गये अवार्ड की प्रति के अवलोकन से यह विदित होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को भेजी गई कथित नोटिस पंजीकृत डाक से भेजा जाना उल्लिखित नहीं है। साधारण डाक से भेजी गई नोटिस बिना तामील वापस प्राप्त न होने की स्थिति में नोटिस की तामील विधिनुसार नहीं मानी जा सकती।
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यद्यपि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में बल है कि यदि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के विवाद का निस्तारण मध्यस्थ द्वारा किया जाना है तथा विवाद मध्यस्थ को संदर्भित किया जा चुका है तथा मध्यस्थ द्वारा अवार्ड पारित किए जाने के बाद परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित नहीं किया जा सकता, किन्तु हमारे विचार से प्रत्यर्थी/परिवादी को विवाद के मध्यस्थ को संदर्भित किए जाने की सूचना तथा मध्यस्थ की कार्यवाही में सम्मिलित होने हेतु परिवादी को सूचना प्रेषित किया जाना साबित होना आवश्यक है। यदि विवाद मध्यस्थ संदर्भित होने की सूचना की तामील तथा सम्मिलित होने हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित की गई सूचना की तामील प्रत्यर्थी/परिवादी पर होना साबित हो तथा नोटिस की तामीला के बावजूद प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मध्यस्थ की कार्यवाही में सम्मिलित होना नहीं पाया जाए, तो ऐसी परिस्थिति में मध्यस्थ द्वारा अवार्ड पारित किए जाने की स्थिति में निश्चित रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी उपभोक्ता मंच के समक्ष परिवाद योजित नहीं कर सकता है। ऐसा परिवाद उपभोक्ता मंच के समक्ष पोषणीय नहीं माना जा सकता, किन्तु यदि मध्यस्थ को विवाद संदर्भित होने की कोई सूचना तथा मध्यस्थ की कार्यवाही की कोई सूचना प्रत्यर्थी/परिवादी को दिया जाना साबित नहीं है, तब प्रत्यर्थी/परिवादी को सुनवाई का अवसर दिए बिना मध्यस्थ द्वारा पारित अवार्ड परिवादी के अधिकारों के सापेक्ष महत्वहीन होगा। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के अन्तर्गत परिवाद उपभोक्ता मंच में पोषणीय माना जायेगा।
जहॉ तक अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये संदर्भित निर्णय का प्रश्न है। इस निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि सम्भवत: उक्त प्रकरण में यह विवादित नहीं था कि मध्यस्थ द्वारा पारित अवार्ड के संदर्भ में उपभोक्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं किया गया। ऐसी परिस्थिति में तथ्यों
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की भिन्नता के कारण मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गये उपरोक्त निर्णय का लाभ प्रस्तुत प्रकरण के संदर्भ में अपीलार्थी को प्रदान नहीं किया जा सकता।
जहॉ तक अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क का प्रश्न है कि निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा किश्तों की अदायगी में चूक की गई। अत: पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के अन्तर्गत प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करते हुए प्रश्नगत वाहन का कब्जा अपीलार्थी द्वारा प्राप्त किया गया। कब्जा प्राप्त करने के उपरांत गारण्टर को बकाया ऋण की अदायगी हेतु नोटिस भी भेजी गई, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी अथवा गारण्टर द्वारा बकाया ऋण की अदायगी न किए जाने पर प्रश्नगत वाहन की बिक्री की गई।
उल्लेखनीय है कि अपील मेमो के साथ अपीलार्थी ने पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामें की फोटो प्रति दाखिल की है। इस इकरारनामें की शर्त सं0-18 (3) के अनुसार किश्तों की अदायगी में चूक किए जाने की स्थिति में यदि ऋणदाता सम्बन्धित सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करता है, तब वह ऋर्णी को कम से कम 14 दिन का नोटिस कब्जा प्राप्त करने से पूर्व अवश्य प्रेषित करेगा। अत: प्रश्नगत सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने से पूर्व 14 दिन का नोटिस ऋर्णी को दिया जाना इस शर्त के अनुसार आवश्यक था, किन्तु अपीलार्थी का प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों अथवा अपील के आधारों में ऐसा अभिकथन नहीं है कि प्रश्नगत सम्पत्ति/वाहन का कब्जा प्राप्त करने से पूर्व कोई नोटिस प्रत्यर्थी/परिवादी को अपीलार्थी द्वारा प्रेषित किया गया और न ही ऐसी कोई साक्ष्य जिला मंच के समक्ष अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत की गई। अपीलार्थी का यह भी कथन नहीं है कि प्रश्नगत सम्पत्ति की बिक्री किए जानेसे पूर्व प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई नोटिस भेजी गई। ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत वाहन का कब्जा प्राप्त किए जाने की कार्यवाही विधि सम्मत नहीं मानी जा सकती। मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा Citicorp. Maruti Finance Ltd. Vs. S.Vijaylaxmi
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के मामले में दिए गये निर्णय के आलोक में अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत वाहन पर कब्जा किए जाने के संदर्भ में की गई कार्यवाही हमारे विचार से सेवा में त्रुटि के अन्तर्गत मानी जायेगी।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता हैकि वाहन का कब्जा प्राप्त किए जाते समय अर्थात दिनांक 29.11.2014 को प्रश्नगत वाहन बीमित था और बीमा कम्पनी द्वारा वाहन का अनुमानित मूल्य 14,52,000.00 रू0 माना गया था। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रश्नगत वाहन की बाड़ी का निर्माण करया गया। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि कब्जा लिए जाते समय प्रश्नगत वाहन लगभग 2-3 वर्ष पुराना था। जिला मंच ने प्रश्नगत वाहन की बाड़ी में परिवादी द्वारा किए गये व्यय को 1,50,000.00 रू0 माना है तथा यह धनराशि वाहन के मूल्य में जोड़ी है, जब बीमा कम्पनी द्वारा वाहन का अनुमानित मूल्य 14,52,000.00 रू0 माना गया है, तब इस धनराशि पर वाहनकी बाड़ी में खर्च की गई धनराशि पुन: जोड़ेजाने का कोई औचित्य नहीं होगा। वाहन का मूल्य 14,50,000.00 रू0 माना जाना न्यायोचित होगा।
अपीलार्थी के कथनानुसार वाहन का कब्जा प्राप्त किए जाने की तिथि पर कुल 4,41,143.00 रू0 अपीलार्थी का परिवादी पर बकाया था। अत: यह धनराशि वाहन के मूल्य से घटाकर शेष धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी से प्राप्त करने का हमारे विचार से अधिकारी है। चूंकि प्रश्नगत वाहन परिवादी के जीविकोपार्जन का सहारा था और प्रश्नगत वाहन अनाधिकृत रूप से अपीलार्थी द्वारा कब्जे में लिए जाने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी को आर्थिक एवं मानसिक उत्पीड़न झेलना पडा होगा। ऐसी परिस्थिति में देय धनराशि पर कब्जे की तिथि 29.11.2014 से 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी दिलाया जाना न्याय संगत होगा क्योंकि बकाया धनराशि की अदायगी मय ब्याज करायी जा रही है, अत:
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अलग से क्षतिपूर्ति हेत भुगतान कराये जाने का कोई औचित्य नहीं होगा। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश दिनांकित 20.11.2015 को संशोधित करते हुए अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादी को 10,08,857.00 रू0 मय 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित अदा करें। ब्याज दिनांक 29.11.2014 से सम्पूर्ण धनराशि की अदायगी तक देय होगा। इसके अतिरिक्त अपीलार्थी प्रत्यर्थी/परिवादी को 10,000.00 रू0 वाद व्यय के रूप में भी अदा करेगें।
उभय पक्ष अपीलीय व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-2