राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-20/2009
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-138/2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-12-2008 के विरूद्ध)
Union Bank of India, a Nationalized Bank constituted under the Banking Companies (Acquisition and transfer of undertaking Act-1970), having its registered office at 239-Vidhan Bhawan Marg, Nariman Point, Mumbai-400021, and one of its branch known as Devband Branch, Railway Road, District-Saharanpur, through its constituted attorney and Principal Officer of the Branch Rajeev Kumar, Chief Manager Devband Branch, U.B.I. Saharanpur.
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
- Sri Dharamveer son of Sri Sunahra resident of village-Imaliya,Tehsil-Devband, Dist-Saharanpur,
- Sri Preetam Kumar]both son's of Sri Kabool Singh, residents of
3- Sri Charan Singh ]Village-Talheri Bujarg, Tehsil- Devband, Distt,
Saharanpur.
समक्ष :- अपीलार्थी/परिवादीगण
1- मा0 श्री चन्द्रभाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
1- अपीलार्थी की ओर से उपस्थित - श्री पंकज कुमार सिन्हा।
2- प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित - श्री ए0के0 मिश्रा।
दिनांक : 27-11-2014
श्रीमती बाल कुमारी, सदस्या द्वारा उदघोषित निर्णय :
अपीलार्थी ने प्रस्तुत अपील विद्धान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-138/2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-12-2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की है जिसमें परिवाद पत्र विपक्षी यूनियन बैंक आफ इण्डिया शाखा देवबन्द के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से स्वीकार किया गया। विपक्षी बैंक को आदेश दिया गया कि वह इस निर्णय की प्रति प्राप्ति से एक माह के अंदर परिवादीगण को क्षतिपूर्ति के मद में 3,30,885/-रू0 तथा इस धनराशि पर दिनांक 17-03-2007 से इस निर्णय की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज व 2000/-रू0 वाद व्यय के मद में अदा करें। उपरोक्त अवधि में अदायगी न करने पर विपक्षी बैंक द्वारा
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परिवादीगण को इस निर्णय की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक 3,30,885/-रू0 की राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी देय होगा। विपक्षी बैंक चाहे तो उपरोक्त देय धनराशि पर परिवादीगण को दिये गये ऋण की धनराशि में समायोजित कर सकता है, से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
संक्षेप में इस केस के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादीगण ने दिनांक 27-01-2006 को विपक्षी बैंक से 4,40,000/-रू0 ऋण लेकर अपनी कृषि भूमि के लिए एक ट्रैक्टर खरीद किया। जिसका रजिस्ट्रेशन नम्बर यू0पी0-11 क्यू0-4978 था। उक्त ट्रैक्टर विपक्षी का बीमा दिनांक 16-03-2006 से दिनांक 15-03-2007 तक दि न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, रेलवे रोड, देवबंद जिला सहारनपुर के यहॉं से विपक्षी द्वारा बीमित कराया गया जिसके प्रीमियम की धनराशि विपक्षी द्वारा उक्त बीमा कम्पनी के कार्यालय में जमा करायी गयी। परिवादीगण ट्रैक्टर के ऋण खाता संख्या-5073में समय-समय पर नियमानुसार निर्धारित किश्ते जमा करते आ रहे हैं। परिवादीगण दिनांक 13-03-2007 को विपक्षी के पास ट्रैक्टर की किश्त जमा करने एवं अगले वर्ष के लिए बीमे का नवीनीकरण कराने के लिए किश्त व प्रीमियम की धनराशि जमा करायी गयी। विपक्षी बैंक ने परिवादीगण को दिनांक 16-03-2007 को विपक्षी से ट्रैक्टर की नवीनीकृत बीमा पालिसी प्रपत्र ले जाने के लिए कहा। दिनांक 16-03-2007 को पता करने पर विपक्षी को भेज दी गयी है किन्तु अभी तक कागजात प्राप्त नहीं हुए हैं। दुर्भाग्यवश दिनांक 17-03-2007 को प्रात: करीब 5.00 बजे जब ट्रैक्टर मिल से ट्राली में गन्ने की मैली भरकर ला रहा था तो रास्ते में कुछ बदमाशों द्वारा उसे लूट लिया गया और ट्रैक्टर से जुड़ी ट्राली को वही छोड़कर ट्रैक्टर लेकर भाग गये। जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट थाना देवबंद पर सूचना अपराध संख्या-211/2007 अन्तर्गत धारा-379 आईपीसी दर्ज करायी गयी। परिवादीगण द्वारा उक्त ट्रैक्टर के लुट जाने की सूचना विपक्षी बैंक को दी गयी और उक्त ट्रैक्टर से संबंधित नवीनीकृत बीमा पालिसी के प्रपत्र मांगे तो विपक्षी बैंक ने परिवादीगण को कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया और न ही आज तक प्रपत्र उपलब्ध कराये। बीमा कम्पनी से जानकारी करने पर पता चला कि उक्त प्रीमियम राशि बैंक द्वारा बीमा कम्पनी को नहीं भेजी गयी। विपक्षी बैंक का यह कार्य घोर लापरवाही एवं सेवा में कमी की परिभाषा में आता है। जिसके लिए विपक्षी बैंक पूर्ण रूप से उत्तरदायी है। ट्रैक्टर लुट जाने से परिवादीगण को कारोबार में हानि हो रही है। परिवादीगण से इस संबंध में एक नोटिस भी अपनी अधिवक्ता द्वारा विपक्षी बैंक को दिया
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जिसका उत्तर बैंक द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर दिया गया। और बार-बार अनुरोध करने पर भी क्षतिपूर्ति की राशि अदा नहीं की गयी। अत: यह अनुतोष चाहा गया कि परिवादीगण को विपक्षीगण से 4,40,000/-रू0 मय ब्याज कारोबार में हुई क्षति के रूप में क्षतिपूर्ति दिलायी जाए।
विपक्षी बैंक पर नोटिस की पर्याप्त तामीला के बावजूद विपक्षी बैंक की ओर से न तो कोई उत्तर पत्र दाखिल किया गया और न ही कोई उपस्थित आया। इसलिए विपक्षी बैंक के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही करने का आदेश पारित किया गया। एकपक्षीय कार्यवाही में परिवादीगण की ओर से अपना शपथ पत्र एवं अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किया गया।
पीठ के समक्ष उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण उपस्थित आए।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य एवं विद्धान जिला मंच द्वारा पारित निर्णय का भली-भॉंति अवलोकन किया।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला मंच ने गलत तथ्यों के आधार पर विधि विरूद्ध एकपक्षीय निर्णय पारित किया है तथा उसे साक्ष्य तथा सुनवाई का अवसर प्राप्त नहीं हुआ है तथा परिवादी/प्रत्यर्थी ने उक्त लोकन से ट्रैक्टर खरीदने के बाद दिनांक 13-03-2006 को बैंक में आकर एक डेविट बाउचर हस्ताक्षर करके उक्त ट्रैक्टर का न्यू इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी में बीमा कराया जो दिनांक 16-03-2006 से दिनांक 15-03-2007 तक वैघ था।
उक्त ट्रैक्टर के ऋण लेने के बाद परिवादीगण/प्रत्यर्थीगणों द्वारा अपने ऋण खाते में दिनांक 08-07-2007 से दिनांक 13-03-2007 तक मात्र 50,000/-रू0 ही जमा किया गया जबकि उसे बकाया छमाही किश्तों के अनुसार दो किश्तों का मु0 51,666/-रू0 व ब्याज जमा करना चाहिए था जो कि प्रत्यर्थीगणों/प्रत्यर्थीगणों के लोन के स्टेटमेंट आफ एकाउन्ट से साबित है तथा हाइपोथीकेशन एग्रीमेंट की शर्तों के अनुसार प्रत्यर्थीगणों/परिवादीगणों ने ट्रैक्टर का अगले वर्ष का बीमा नहीं कराया और न ही बीमा कराने हेतु अपीलार्थी/बैंक से कोई आवेदन करके डेबिट बाउचर हस्ताक्षर करके दिया ताकि अपीलार्थी/बैंक उक्त ट्रैक्टर का वर्ष 200-08 का इश्योरेंस करा सके। इसलिए विद्धान जिला मंच द्वारा पारित आदेश निरस्त किया जाए।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला मंच ने सही निर्णय पारित किया है इसलिए हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। अपील निरस्त की जाए।
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पत्रावली के अवलोकन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि विद्धान जिला मंच द्वारा बिना अपीलार्थी को सुने निर्णय पारित किया है जिसे सुनवाई एवं साक्ष्य दाखिल करने का समुचित अवसर दिया जाना न्यायहित में आवश्यक प्रतीत होता है।
तद्नुसार अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। विद्धान जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, सहारनपुर द्वारा परिवाद संख्या-138/2007 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 02-12-2008 निरस्त किया जाता है और प्रकरण विद्धान जिला मंच को इस निर्देश के साथ प्रतिप्रेषित की जाता है कि वह उभयपक्ष को साक्ष्य एवं सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुए गुणदोष के आधार पर इस प्रकरण का निस्तारण अधिकतम तीन माह में किया जाना सुनिश्चित करें।
उभयपक्ष अपना-अपना अपीलीय व्ययभार स्वयं वहन करेंगे।
( चन्द्र भाल श्रीवास्तव ) ( बाल कुमारी )
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट नं0-2
प्रदीप मिश्रा