राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-386/2002
(जिला उपभोक्ता फोरम, फर्रूखाबाद द्वारा परिवाद संख्या-165/2000 में पारित आदेश दिनांक 30.08.2000 के विरूद्ध)
कासिम खां(आरा मशीन मालिक) पुत्र रफीक खां निवासी कस्बा समर्थन
परगना तालग्राम तहसील छिबरामऊ जनपद फर्रूखाबाद। .........अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम्
देवेन्द्र सिंह पुत्र श्री जगपाल सिंह निवासी रौरा परगना तालग्राम तहसील
छिबरामऊ जिला कन्नौज। ........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 गुप्ता, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 20.08.15
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फर्रूखाबाद के परिवाद संख्या 165/2000 में पारित निर्णय एवं आदेश दि. 30.08.2000 के विरूद्ध योजित की गई है। जिला मंच द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया:-
'' उपभोक्ता याचिका संख्या 165/2000 निर्णय के अंतिम प्रस्तर में दिये गये विनिश्चय अनुसार एकपक्षीय आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है कि विपक्षी को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी को लकड़ी की धनराशि रू. 12000/- का भुगतान निर्णय की प्रति प्राप्ति के एक माह अंतर्गत करना सुनिश्चित करें। इसी समयावधि अंतर्गत विपक्षी परिवादी को रू. 100/- परिवाद व्यय का भी भुगतान करना सुनिश्चित करें। यदि विपक्षी द्वारा उक्त आदेश का अनुपालन एक माह के अंतर्गत नहीं किया जाता है तो विपक्षी पर इस आदेश की तिथि से धनराशि भुगतान होने की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज अतिरिक्त देय होगा। परिवादी इस निर्णय की एक प्रति विपक्षी को पंजीकृत डाक से एक सप्ताह अंतर्गत भेजना सुनिश्चित करें।''
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने लगभग एक वर्ष पूर्व कुछ लकड़ी रू. 8000/- के हाथ विक्रय की थी, जिसमें से परिवादी को रू. 5000/- तथा शेष रू. 3000/- लकड़ी चिरवाकर बेंच कर देने का आश्वासन विपक्षी द्वारा दिया गया। परिवादी का कथन है
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कि वह एक माह बाद अपनी चिरी हुई लकड़ी एवं शेष रू. 3000/- विपक्षी से मांगा तो उसने कुछ दिनों के बाद देने का आश्वासन परिवादी को दिया लेकिन कुछ समय बाद परिवादी द्वारा चिरी हुई लकड़ी व पैसा मांगा, जिसे विपक्षी द्वारा आगे देने का बहाना कर दिया। परिवादी दि. 20.07.99 को विपक्षी की आरा मशीन पर गया और लकड़ी चिरी हुई नहीं मिली। पूंछने पर विपक्षी द्वारा कहा गया कि तुम्हारी लकड़ी चिरकर आगरा भेज दी गई है तुम्हें दूसरी लकड़ी दे देंगे या रू. 12000/- उसकी कीमत दे देंगे। इस पर परिवादी के मध्य गाली गलौज होने लगा तथा विपक्षी द्वारा स्पष्ट रूप से लकड़ी का पैसा व लकड़ी देने से इंकार कर दिया गया।
विपक्षी को जिला मंच के समक्ष नोटिस पंजीकृत डाक से भेजी गई, किंतु विपक्षी द्वारा नोटिस लेने से इंकार कर दिया गया, अत: एकपक्षीय सुनवाई की गई।
पीठ ने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपीलार्थी का कथन है कि प्रस्तुत प्रकरण उपभोक्ता विवाद नहीं है। परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा अपने कथन के समर्थन में कोई रसीद आदि प्रस्तुत नहीं की है।
परिवादी/प्रत्यर्थी ने स्वयं कहा है कि उसके द्वारा कुछ लकड़ी रू. 8000/- की अपीलार्थी के हाथ विक्रय की थी, जिसमें से उसे रू. 5000/- नगद प्राप्त हो गया था और शेष रू. 3000/- के लिए अपीलार्थी द्वारा आश्वासन दिया गया कि वह इसे चिरवाकर बेचकर अवशेष धनराशि उसे देंगे, जो कि उनके द्वारा नहीं दिया गया। स्पष्टत: इस प्रकरण में न तो परिवादी द्वारा कोई सामान प्रतिफल के स्वरूप प्राप्त किया और न ही किसी तरह की अपीलार्थी से सेवा ही प्राप्त की। यह एक स्वतंत्र संविदा का प्रकरण है, जिसमें कुछ धनराशि परिवादी को प्राप्त हुई और शेष धनराशि प्राप्त नहीं हुई। ऐसे प्रकरण के लिए परिवादी सक्षम न्यायालय में चाराजोई कर सकता था, यह कोई उपभोक्ता विवाद नहीं है, यह क्रेता और विक्रेता से संबंधित प्रकरण है, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत ग्राह्य नहीं था। जिला मंच का निर्णय एवं आदेश त्रुटिपूर्ण है, जिसे विधिक नहीं कहा जा सकता है और निरस्त किए जाने योग्य है। तदनुसार अपील स्वीकार किए जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच का निर्णय/आदेश दि. 30.08.2000 निरस्त किया जाता है।
पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्यय वहन करेंगे।
(राम चरन चौधरी) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5