राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-1618/2001
जनरल मैनेजर, केईएसए (नाउ कानपुर इलेक्ट्रिक सप्लाई कम्पनी) कानपुर।
.........अपीलार्थी@विपक्षी।
बनाम्
देवेन्द्र प्रकाश शुक्ला पुत्र राम नारायण शुक्ला, निवासी 248, कृष्णा विहार, नौबस्ता, कानपुर।
............प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. माननीय श्री चन्द्र भाल श्रीवास्तव, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री राम चरन चौधरी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री इसार हुसैन, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 21.11.2014
माननीय श्री राम चरन चौधरी, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम कानपुर देहात द्वारा परिवाद संख्या-208/1999 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 23.08.1999 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन की बहस सुनी गई। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
प्रकरण के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी से घरेलू उपभोग हेतु अपने आवास में विद्युत कनेक्शन संख्या-012945 लिया है, जिसके द्वारा परिवादी विद्युत सप्लाई उपभोग करता है। परिवादी ने अंतिम बिल दिनांक 26.09.1994, जो दिनांक 13.08.1994 तक की अवधि का है, भुगतान कर दिया है। दिनांक 13.08.1994 के बाद का कोई भी विद्युत बिल परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ है। परिवादी ने इस सम्बन्ध में विपक्षी से कई बार विद्युत बिल लेने हेतु सम्पर्क किया, परन्तु विपक्षी ने परिवादी को विद्युत बिल नहीं दिया और दिनांक 16.11.1995 को विपक्षी के कर्मचारियों द्वारा परिवादी के आवास से विद्युत मीटर एवं केबिल उठा ले गये तथा विद्युत आपूर्ति विच्छेदित कर दी गयी, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने जिला फोरम में परिवाद योजित किया, जिस पर आपत्ति करते हुए विपक्षी द्वारा कहा गया कि परिवादी ने विपक्षी के कार्यालय में विद्युत बिल लेने हेतु कभी सम्पर्क नहीं किया। यदि सम्पर्क किया होता तो उसे दूसरा बिल बनाकर दिया जाता। परिवादी ने जानबूझ कर विद्युत बिल जमा नहीं किया है। परिवादी के विद्युत बिल जमा न करने के कारण उसका विद्युत संयोजन विच्छेदित किया गया है, इसमें कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। जिला फोरम ने दोनों
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पक्षकारों को सुनने के पश्चात परिवादी के परिवाद को स्वीकार करते हुए विपक्षी को आदेश दिया कि वह परिवादी को संशोधित बिल दिनांक 13.08.1994 से दिनांक 16.11.1995 तक की अवधि का बनाकर प्रदान करें, जिसका भुगतान परिवादी बिल प्राप्त करने की तिथि से 07 दिन के अन्दर करेंगे और यह भी आदेश दिया कि वह परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 5,000/- तथा वाद व्यय के रूप में रू0 500/- अदा करें।
पत्रावली का अवलोकन किया गया। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क किया कि विद्युत विभाग द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। जिला फोरम ने विपक्षी/अपीलार्थी पर जो रू0 5,000/- की क्षतिपूर्ति और रू0 500/- का वाद व्यय की धनराशि अधिरोपित की है, उसे समाप्त किया जाए।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है। विद्वान फोरम ने अपने निर्णय/आदेश में रू0 5000/- क्षतिपूर्ति और रू0 500/- वाद व्यय परिवादी को दिलाये जाने की बात कही है, उसको निरस्त किया जाना उचित प्रतीत होता है एवं शेष आदेश यथावत रहेगा। तदनुसार यह अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23.08.1999 में आदेशित क्षतिपूर्ति रू0 रू0 5,000/- तथा वाद व्यय रू0 500/- अपास्त किया जाता हे। शेष आदेश यथावत रहेगा।
उभय पक्ष अपना अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(चन्द्र भाल श्रीवास्तव) (राम चरन चौधरी)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0-2
कोर्ट-2