राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-1274/1998
(जिला उपभोक्ता आयोग, बहराइच द्धारा परिवाद सं0-213/1997 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26.3.1998 के विरूद्ध)
M/S Gaurav Medicals, Kaiserganj, District Bahraich through its Proprietor Pradeep Kumar Gupta S/o Sri Ram Lakhan Gupta, R/o Kaiserganj, District Bahraich.
........... अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
M/S Dewa Fatehpur Barabanki Transport Co., Nadan Mahal Road, through its Proprietor (Lucknow)
............प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता :- श्री एम0एच0 खान
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता :- कोई नहीं।
दिनांक :-28.02.2022
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी/परिवादी मैसर्स गौरव मेडिकल्स द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बहराइच द्वारा परिवाद सं0-213/1997 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 26.3.1998 के विरूद्ध योजित की गई है, जिसके द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादी के परिवाद को परिवाद निरस्त कर दिया है।
प्रस्तुत अपील विगत लगभग 24 वर्षों से इस न्यायालय के सम्मुख लम्बित है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान उपस्थित है। प्रत्यर्थी के अधिवक्ता अनुपस्थित है। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलबध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
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अपीलार्थी/परिवादी जो कि मैसर्स गौरव मेडिकल्स, कैसरगंज का मालिक है द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी देवा फतेहपुर बाराबंकी ट्रांसपोर्ट कम्पनी, नादान महल रोड़ लखनऊ के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख यह कहते हुए प्रस्तुत किया कि उसने दिनांक 22.02.1997 को बिल्टी नं0-411 से तीन गत्ते ऐलोपैथिक दवा बुक करायी थी, जिसकी डिलीवरी उन्हें प्राप्त नहीं हुई, अत्एव अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से रू0 22,546.90 पैसे की मॉग की तथा उपरोक्त धनराशि पर 24 प्रतिशत ब्याज एवं क्षतिपूर्ति दिलाये जाने की भी मॉग की।
प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख कथन कियागया कि बिल्टी सं0-411 द्वारा अपीलार्थी/परिवादी को जो माल ट्रक से भेजा गया था उसके साथ-साथ विभिन्न स्थानों के अन्य लोगो का सामान भी भेजा गया था और उल्लिखित ट्रक से जिन-जिन लोगों के सामान जिन-जिन स्थानों को भेजे गये, उन प्रपत्रों की फोटोकापी भी प्रस्तुत की गई। यह भी कथन किया गया कि वास्तव में उक्त सामान अपीलार्थी/परिवादी को पल्लेदारों के माध्यम से उपलब्ध करा दिया गया था, परन्तु एक गत्ते में तीन शीशियॉ टूटी हुई थी, जिनको लेकर पल्लेदारों से अपीलार्थी/परिवादी का विवाद हुआ और उसी विवाद को लेकर अपीलार्थी/परिवादी ने बिल्टी सं0-411 जो उसे दस्तखत बनाने के लिए दी गई थी, उसने उस पर दस्तखत नहीं बनाया और उसे अपने पास रख लिया और इसी बात का अनुचित लाभ उठाकर अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत किया है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिवचन, तथ्यों एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विचार कर परिवाद को निरस्त कर दिया है, जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी ने प्रस्तुत अपील योजित की है।
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अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कथन है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा उसे तीन गत्ते ऐलोपैथिक दवा की डिलीवरी नहीं की गई है, जिसके सम्बन्ध में उसके द्वारा कोई साक्ष्य अथवा रसीद भी जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत नहीं की गई है। प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में घोर लापरवाही एवं कमी की गई है, अतएवं जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
अपीलार्थी/परिवादी के अनुसार उभय पक्ष के मध्य विवाद का विषय यह है कि जिस बिल्टी सं0-411 से अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी के ट्रक द्वारा जो माल भेजा था वह अपीलार्थी/परिवादी को प्राप्त कराया गया है अथवा नहीं ?
प्रत्यर्थी की ओर से कथन किया गया कि उसने पल्लेदारों के माध्यम से बिल्टी सं0-411 का माल अपीलार्थी/परिवादी को उपलब्ध करा दिया था, जिसमें से तीन शीशियॉ टूटी होने के कारण अपीलार्थी/परिवादी श्री प्रदीप कुमार गुप्ता ने माल लेने पर विवाद किया और जो बिल्टी उसे स्वीकारोक्ति के लिए हस्ताक्षर बनाने के लिए दी गई थी, उस पर हस्ताक्षर बनाने से इंकार कर दिया और वह उन्होंने वापस नहीं दी, जिस कारण प्रत्यर्थी उक्त माल की रसीद प्राप्त नहीं करा सका है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उपरोक्त पल्लेदारों के शपथपत्र का विश्वास करते हुए अपीलार्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत गवाहों के शपथपत्र को अनर्गल एवं झूठे मानते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवादी के परिवाद निरस्त कर दिया गया।
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उक्त निष्कर्ष से उचित प्रतीत होता है प्रत्यर्थी की ओर से प्रस्तुत किये गये पल्लेदार स्वतंत्र साक्षी हैं, जिन्होंने विवादित बिल्टी का माल अपीलार्थी/परिवादी को उपलब्ध कराये जाने का समर्थन किया है, इसके अतिरिक्त प्रत्यर्थी की ओर से परिवाद के चरण पर उक्त ट्रक पर विभिन्न स्थानों के अन्य लोगों का सामान डिलीवर किये जाने का साक्ष्य प्रस्तुत किया है एवं उन प्रपत्रों की फोटोप्रति भी प्रस्तुत की है, जिसमें उक्त स्थान पर माल डिलीवर किया तथा अपीलार्थी/परिवादी को माल डिलीवर न किये जाने की सम्भावना अत्यन्त क्षीर्ण है। दूसरी ओर परिवादी श्री प्रदीप कुमार गुप्ता ने स्वयं शपथपत्र में माल डिलीवर न किये जाने का समर्थन किया है, किन्तु उसकी ओर से प्रस्तुत स्वतंत्र साक्षीगण श्री अजय प्रताप सिंह, श्री वहीदुल्लाह, श्री श्रवण कुमार गुप्ता, श्री उम्मेद सिंह जैन एवं श्री परस राम यादव ने मात्र निम्नलिखित तथ्य का उल्लेख किया है:-
"उक्त ट्रांसपोर्ट द्वारा जो सामान शपथकर्ता की दुकान पर आता है उसे अपनी बिल्टी पर रिसीव करवा कर बिल्टी वापस लेने के बाद सामान देते है।"
जबकि अपीलार्थी/परिवादी श्री प्रदीप कुमार गुप्ता ने अपने शपथपत्र दिनांक 23.2.1997 अर्थात डिलवरी के दिन रविवार होना एवं दुकान बन्द होने का कथन किया है, जिसका उक्त स्वतंत्र साक्षियों ने कोई समर्थन नहीं किया है, न ही अपने शपथपत्र में यह कथन किया है कि प्रत्यर्थी ट्रांसपोर्टर की ओर से पल्लेदारों के माध्यम से कोई माल डिलीवर नहीं हुआ था तथा वे उस दिन अपनी दुकान पर थे, अत: समस्त प्रस्तुत किये गये साक्ष्यों के आधार पर उचित रूप से प्रत्यर्थी के केस को अधिक सफल मानते हुए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवादी का परिवाद निरस्त किया गया है, जिसमें कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता अपील के स्तर पर प्रतीत नहीं होती है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं बहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1