राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2034/2010
(जिला मंच ज्योतिबाफुले नगर द्वारा परिवाद सं0-६९/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १३/१०/२०१० के विरूद्ध)
सिंडीकेट बैंक ब्रांच आफिस गजरौला जिला जेपी नगर द्वारा मैनेजर लॉ श्री पी0के0 सिंह पोस्टेड रीजनल आफिस लखनऊ।
.............. अपीलार्थी।
बनाम्
श्री दीपक सिंह पुत्र श्री नानक सिंह निवासी ग्राम शहवाजपुर माफी थाना गजरौला जनपद जेपी नगर।
............... प्रत्यर्थी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री संजय कुमार, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री एम0एल0 वर्मा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री अरूण टण्डन विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक : 23/02/2018
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
आदेश
प्रस्तुत अपील, जिला मंच ज्योतिबाफुले नगर द्वारा परिवाद सं0-६९/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १३/१०/२०१० के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी का एक बचत खाता अपीलकर्ता बैंक की गजरौला शाखा में है। उक्त खाते में दिनांक ०७/०५/२००८ को रू0 २७३८६/- जमा थे और उसने दिनांक ०८/०५/२००८ को रू0 ८०००/- आहरित किए थे। इस प्रकार उसके खाते में दिनांक ०८/०५/२००८ को रू0 १९३८६/- धनराशि शेष थी। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक २१/०५/२००८ में उपरोक्त उल्लिखित खाते से रू0 १००००/- आहरित करने के लिए कहा तो उसे बैंक कर्मचारियों ने धमका कर भगा दिया और कहा कि खाते में रू0 ३८५/- शेष थे। रू0 १९०००/- दिनांक १४/०५/२००८ को निकाल लिए है, जबकि परिवादी का दिनांक १४/०५/२००८ को कोई धनराशि अपने खाते से नहीं निकाली थी। जब उसने बैंक से शिकायत की तो उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी से क्षुब्ध होकर एक प्रथम सूचना रिपोर्ट बैंक के कर्मचारियों के विरूद्ध दिनांक २२/०५/२००८ को थाना कोतवाली गजरौला में दर्ज कराई जिस पर अपराध सं0-८७६/२००८ अन्तर्गत धारा ४६७, ४६८, ४०६, ४२० आई0पी0सी0 देवेन्द्र कुमार सेटी प्रबन्धक व शमीम अहमद सीनियर क्लर्क शाखा सिंडीकेट बैंक गजरौला जिला जे0पी0 नगर के विरूद्ध पंजीकृत हुआ । इसके अतिरिक्त प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलकर्ता के विरूद्ध परिवाद सं0-६९/२००८ जिला मंच के समक्ष दायर किया।
उक्त परिवाद का अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद किया गया।
उभय पक्षों के द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का परिशीलन करने तथा उनको सुनने के बाद विद्वान जिला मंच ने निम्नलिखित आदेश पारित किया-
‘’ परिवाद आंशिक रूप से रू0 २०००/-(दो हजार मात्र) परिवाद व्यय सहित स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को रू0 १९०००/-(उन्नीस हजार मात्र) मय ०८ प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से परिवाद दाखिल करने से वास्तविक वसूली की तिथि तक अदा करें। आदेश का अनुपालन अंदर एक माह किया जाये। ‘’
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपील में अपीलकर्ता की ओर से मुख्य आधार यही लिया गया है कि प्रश्नगत आदेश विधिक एवं तथ्यात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण है। अपीलकर्ता के स्तर पर सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है । बैंक द्वारा भी अज्ञात लोगों के विरूद्ध एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी है जिसमें धोंखाधड़ी से रूपये निकालने की शिकायत की गयी है। अपील में अभिकथन किया गया है कि चूंकि एक आपराधिक मुकदमा न्यायालय लंबित है, इसलिए जिला मंच को सुनवाई का कोई क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। साक्ष्य की अनदेखी करके प्रश्नगत आदेश् पारित किया गया है जो निरस्त किए जाने योग्य है।
इस अपील में प्रत्यर्थीगण को नोटिस जारी किया गया और प्रत्यर्थीगण की ओर से शपथपत्र और आपत्ति दाखिल की गयी है।
अपील दायर करने में कुछ विलंब हुआ है जिस पर विलंब का दोष क्षमा करने के लिए शपथपत्र दिया गया है। विलंब को क्षमा किए जाने के लिए प्रार्थना पत्र में पर्याप्त कारण दर्शाए गए हैं। अत: एतदद्वारा विलंब का दोष क्षमा किया जाता है।
अपील सुनवाई हेतु पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एल0 वर्मा एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अरूण टण्डन उपस्थित हैं। उभय पक्षों की बहस सुनी गयी। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन करने से यह स्पष्ट है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी/परिवादी का एक बचत खाता अपीलकर्ता बैंक में था जिसमें दिनांक १४/०९/२००८ को रू0 १९३८६/- की धनराशि जमा थी जिसमें से रू0 १९०००/- की धनराशि धोंखाधड़ी करके आहरित कर ली गई। अपीलकर्ता द्वारा अपने साक्ष्यों के समर्थन में प्रत्यर्थी के हस्ताक्षर नमूना तथा निकासी धनराशि की प्रतियां दाखिल की गयी है जिनके परिशीलन से यह स्पष्ट दिखाई देता है कि प्रथम दृष्टया निकासी फार्म पर प्रत्यर्थी दिनेश सिंह के हस्ताक्षर फार्म पर किए गए हस्ताक्षर से भिन्न है। यदि बैंक को इस संबंध में कोई आपत्ति है तो उसे स्वयं विद्वान जिला मंच के समक्ष यह सिद्ध करना चाहिए था कि निकासी फार्म पर प्रत्यर्थी/परिवादी के हस्ताक्षर सही हैं किन्तु इस संबंध में बैंक द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गयी है और न ही अपना पक्ष जिला मंच के समक्ष सिद्ध किया गया। विद्वान जिला मंच ने अपने प्रश्नगत निर्णय में विस्तार से विवेचना की है । जहां तक आपराधिक प्रकरण जिला न्यायालय में लंबित होने का प्रश्न है उसका कोई प्रभाव जिला फोरम के समक्ष लंबित परिवाद पत्र पर नहीं पड़ता था और न ही आयोग के समक्ष विचाराधीन अपील पर इसकी कार्यवाही साथ-साथ चल सकती है। प्रथम दृष्टया यह सिद्ध होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से बैंक में रू0 १९०००/- आहरित किए गए हैं जोकि प्रत्यर्थी/परिवादी ने नहीं किया है बल्कि बैंक कर्मचारियों की मिली-भगत से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया प्रतीत होता है। बैंक द्वारा भी इस अनाधिकृत आहरण के संबंध में पुलिस में अज्ञात व्यक्तियों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई है जिससे सिद्ध होता है कि उक्त धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा आहरित नहीं की गई है। इस अनाधिकृत आहरण के लिए बैंक स्वयं उत्तरदायी है। एक आपराधिक प्रकरण में केवल अपीलकर्ता की गिरफ्तारी मा0 उच्च न्यायालय से स्थगित है जिसका इस परिवाद/अपील का कार्यवाही पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं है। प्रश्नगत पारित आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला मंच ज्योतिबाफुले नगर द्वारा परिवाद सं0-६९/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक १३/१०/२०१० की पुष्टि की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्ष को इस आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार निर्गत की जाए।
(संजय कुमार) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, कोर्ट-४