Uttar Pradesh

StateCommission

A/2006/1985

Ashok Leyland Finance Ltd - Complainant(s)

Versus

Deepak Kushwaha - Opp.Party(s)

Brijendra Chaudhary

26 Feb 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2006/1985
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Ashok Leyland Finance Ltd
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Deepak Kushwaha
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

सुरक्षित

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ

 

 

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्‍या 151 स्‍न्‍ 2004 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं  आदेश दिनांक 12.07.2006  के विरूद्ध)

 

अपील संख्‍या 1985 सन 2006

अशोक लीलैण्‍ड फाइनेंस                               ............अपीलार्थी

बनाम

       

दीपक कुशवाहा पुत्र श्री नंद लाल वर्मा                    . .............प्रत्‍यर्थी

 

समक्ष:-

मा0   श्री उदय शंकर अवस्‍थी,  पीठासीन  सदस्‍य।

मा0    श्री राज कमल गुप्‍ता सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता  -  श्री बृजेन्‍द्र चौधरी ।

प्रत्‍यर्थी   की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता  - श्री बी0के0 उपाध्‍याय ।

 

दिनांक:     04-05-2016 

माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य  द्वारा उदघोषित ।

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील, जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्‍या 151 स्‍न्‍ 2004 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं  आदेश दिनांक 12.7.2006  के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी है । जिला मंच ने निम्‍न  आदेश पारित किया है –

      '' परिवाद सव्‍यय स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को निर्देश दिया जाता है कि वह मियांद अन्‍दर 30 दिन वादी को 2,14,500.00 रू0 मय ब्‍याज दर 06  प्रतिशत वार्षिक दिनांक 10.6.2003 से अदायगी की तिथि तक एवं एक हजार रूपये बतौर वाद व्‍यय अदा करें। वाद गुजरने मियांद 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से दण्‍डनीय ब्‍याज देय होगा । ''

संक्षेप में, तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी दीपक कुशवाहा ने दिनांक 05.6.2003 को  एक टाटा इंडिका गाड़ी मु0 03,50,000.00 रू0 में खरीदी जिसके लिए विपक्षी/अपीलार्थी से रू0 1,50,000.00 का ऋण लिया। ऋण की अदायगी 14,500.00 रू0 की दस समान किस्‍तों में होनी थी तथा प्रथम किस्‍त 10.6.2003 को देय थी जो परिवादी ने भुगतान किया।  कुछ व्‍यवसायिक परेशानियों के कारण परिवादी दूसरी और तीसरी किस्‍त अदा नहीं कर सका जिसके कारण अपीलार्थी ने अपने एजेण्‍ट राजकुमार द्वारा दिनांक 16.9.2003 को उसकी गाड़ी जबरदस्‍ती कब्‍जा ली गयी। दिनांक 21.9.2003 को जब परिवादी गाड़ी की बकाया किस्‍तें अदा कर अपनी गाड़ी लेने गया तो पाया कि विपक्षीगण ने उसकी गाड़ी का अवैध प्रयोग करते हुए भीषण दुर्घटना कर दी है। परिवादी ने विवादित गाड़ी के एवज में उसी के समान दूसरी गाड़ी बकाया धनराशि प्राप्‍त कर देने को कहा जिसके लिए विपक्षीगण ने मना कर दिया।

जिला मंच के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा यह कहा गया है कि परिवादी का कथन असत्‍य है। परिवादी के ड्राइवर राजकुमार ने विवादित वाहन को तीब्र गति व असावधानी से चलाते हुए दुर्घटना कारित कर दी। दुर्घटना के बाद परिवादी और उसका ड्राइवर गाड़ी को मौके पर छोड़कर चले गए और सुरक्षा की दृष्टि से परिवादी द्वारा क्षतिग्रस्‍त वाहन को अपने कार्यालय लाया गया । उसके द्वारा विवादित गाड़ी को कभी  जबरदस्‍ती कब्‍जे में नहीं लिया गया है।

जिला मंच ने उभय पक्ष के अभिवचनों एवं साक्ष्‍यों के आधार पर उपरोक्‍तानुसार परिवाद को स्‍वीकार कर लिया, जिससे क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है ।

जिला मंच का आदेश दिनांक 12.7.2006 का है और अपील दिनांक 22.8.2006 को प्रस्‍तुत की गयी है। अपीलार्थी ने अपील को दाखिल करने में हुए विलम्‍ब को क्षमा करने के लिए प्रार्थना-पत्र दिया है जो शपथ-पत्र से समर्थित है। अपीलार्थी ने विलम्‍ब क्षमा किए जाने हेतु पर्याप्‍त कारण दर्शाया है, अत: विलम्‍ब क्षमा किया जाता है।

अपीलार्थी ने अपील आधार में कहा है कि वाहन के पंजीकृत मालिक ने कोई क्‍लेम प्रस्‍तुत नहीं किया है। परिवादी ने किस्‍तों का भुगतान न करके सेवा की शर्तो का उल्‍लंघन किया है। अपीलार्थी द्वारा बहस के दौरान यह कहा गया कि परिवादी ने तीन किस्‍तों का भुगतान नहीं किया, अत: परिवादी का खाता दिनांक 16.9.2003 को एन0पी0ए0 मे बदल दिया गया था और इस संबंध में पुलिस को सूचना दी गयी थी। अपीलार्थी को परिवादी के घर से पता लगा कि वाहन दुर्घटना के कारण क्षतिग्रस्‍त हो गया है। परिवादी ने कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में नहीं लिखाई थी। बार-बार कहने पर परिवादी ने दिनांक 25.9.2003 को पुलिस में सूचना दी। सभी आवश्‍यक कार्यवाही करने के पश्‍चात अपीलार्थी ने क्षतिग्रस्‍त वाहन अपने कब्‍जे में लिया। दिनांक 25.9.2003 को पुलिस को सूचना राजकुमार नामक व्‍यक्ति ने दी थी।

प्रत्‍यर्थी द्वारा अपनी बहस के दौरान कहा गया कि अपीलार्थी ने दो किस्‍तों की अदायगी करने हेतु बिना कोई नोटिस दिए ही दिनांक 09.9.2003 को पुलिस को पत्र लिखकर दिनांक 16.9.2003 को वाहन कब्‍जे में लेने हेतु अपने वसूली एजेण्‍ट को भेजा जिसने जबरन वाहन को अपने कब्‍जे में ले लिया। वाहन को कब्‍जे में लेने के बाद वाहन अपीलार्थी की ही कस्‍टडी में रहा और उसी की कस्‍टडी में वाहन दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ। अपीलार्थी ने अवैध तरीके से वाहन अपने कब्‍जे में लिया।

प्रत्‍यर्थी द्वारा अपने कथन के समर्थन में ICICI Bank Vs Prakash kaur & Ors, III (2007) SLT 1=138 (2007) DLT (sc)=I(2007) DLT पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है।

यह तथ्‍य निर्विवाद है कि अपीलार्थी ने परिवादी को टाटा इण्डिका वाहन क्रय करने के लिए 01,50,000.00 रू0 ऋण दिया था जिसकी ईएमआई 14,500.00 रू0 थी। परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने प्रथम किस्‍त का भुगतान किया। कुछ कारणोंवश द्वितीय व तृतीय किस्‍त का भुगतान नहीं किया।

अपीलार्थी का कथन है कि जब परिवादी ने तीन किस्‍तों का भुगतान समय पर नहीं किया तब उसका एकाउण्‍ट एन0पी0ए0 में बदलते हुए पुलिस को सूचना दी गयी और दिनांक 16.9.2003 को सुरक्षा की दृष्टि से  क्षतिग्रस्‍त वाहन अपने कब्‍जे में लिया। अपीलार्थी का कथन है दुर्घटना प्रत्‍यर्थी के ड्राइवर राजकुमार द्वारा की गयी और वह दुर्घटनाग्रस्‍त वाहन को केवल सुरक्षा की दृष्टि से अपने पास ले आया था ।

प्रथमत: पत्रावली पर इस तथ्‍य का कोई साक्ष्‍य नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि राजकुमार नामक व्‍यक्ति प्रत्‍यर्थी का ड्राइवर था जबकि प्रत्‍यर्थी द्वारा स्‍वयं कहा गया है कि उसके पास कोई ड्राइवर नहीं था और उसके द्वारा स्‍वयं वाहन को चलाया जाता था। यह आश्‍चर्य जनक है कि एक दुर्घटनाग्रस्‍त वाहन को अपीलार्थी बिना किसी औपचारिकता एवं पुलिस या वाहन मालिक की अनुमति के बिना अपनी अभिरक्षा में ले । अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष कोई ऐसा साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किया जिससे सिद्ध होता हो कि परिवादी से या उसके किसी व्‍यक्ति से वाहन दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ। परिस्थितिजन्‍य साक्ष्‍यों से यह स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी द्वारा दो किस्‍तें जमा न करने के कारण अपीलार्थी ने अपने एजेण्‍ट के माध्‍यम से वाहन को जबरदस्‍ती अपने कब्‍जे में ले लिया और अपीलार्थी के कब्‍जे में ही उसके आदमी से वाहन दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ। जिला मंच नें भी अपने निर्णय में अभिलिखित किया है कि यदि यह वाहन वादी द्वारा दुर्घटनाग्रस्‍त किया गया होता तो पुलिस इसे किसी भी हालत में विपक्षीगण को कब्‍जे में नहीं देती। हम जिला मंच के इस निष्‍कर्ष से सहमत हैं। अपीलार्थी ने विपक्षीगण को बिना कोई नोटिस दिए  जबरदस्‍ती अपने एजेण्‍ट के माध्‍यम से दिनांक 16.9.2003 को अनियमित तरीके से वाहन को अपने कब्‍जे में लिया। अपीलार्थी द्वारा ही वाहन कब्‍जे में लेने के बाद दुर्घटनाग्रस्‍त किया गया । इस प्रकार अपीलार्थी ने अवैधानिक तरीके से बिना नोटिस दिए वाहन को अपने कब्‍जे में लिया और उसी की अभिरक्षा में वाहन दुर्घटनाग्रस्‍त हुआ। इस प्रकार निश्चित रूप से अपीलार्थी/प्रत्‍यर्थी ने सेवा में कमी कारित की है तथा अनुचित व्‍यापार प्रथा अपनाई है ।

उपरोक्‍त विवेचना के दृष्टिगत हम पाते हैं कि जिला मंच का प्रश्‍नगत निर्णय साक्ष्‍यों पर आधारित है और विधि-संगत है, जिसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

      अत:, अपील निरस्‍त किए जाने के योग्‍य है।

आदेश

 

            प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

उभय पक्ष इस अपील  का अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

      इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करा दी जाए।

                                                                

 

(उदय शंकर अवस्‍थी)                               (राज कमल गुप्‍ता )

पीठासीन सदस्‍य                                                                            सदस्‍य

      कोर्ट-5

 (S.K.Srivastav,PA)

 

 
 
[HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

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