राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-375/2023
1- यूनियन आफ इण्डिया, संचार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर।
2- सिटी पोस्ट मुजफ्फरनगर द्वारा हैड पोस्ट मास्टर, निकट शिवमूर्ति मुजफ्फरनगर।
बनाम
दीपक अरोडा, एडवोकेट पुत्र स्व0 श्री कश्मीरी लाल, निवासी 63/3, दक्षिणी सिविल लाईन, महावीर चौक, मुजफ्फरनगर।
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थीगण के अधिवक्ता : श्री श्रीकृष्ण पाठक
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : सुश्री प्रियंका सिंह
दिनांक :- 14.12.2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद सं0-77/2019 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 21.12.2022 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी पेशे से अधिवक्ता है तथा उच्चतर न्यायिक सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहा है। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मध्य प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा परीक्षा-2018 के लिए आवेदन किया था, जिसकी प्रारम्भिक परीक्षा प्रथम प्रयास में ही प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उत्तीर्ण कर ली गई थी। मुख्य परीक्षा फार्म पहुँचने की अन्तिम तिथि दिनांक 25.8.2018 मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गयी थी। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा मुख्य परीक्षा फार्म भरकर दिनॉक 16.8.2018 को मुजफ्फरनगर सिटी डाकघर में जाकर स्पीड पोस्ट बजरिये रसीद संख्या- EU082074753IN कर
-2-
दिया गया। अपीलार्थी/विपक्षी डाकघर के कर्मचारी द्वारा बताया गया था कि उक्त स्पीड पोस्ट अधिक से अधिक 3-4 दिन में जबलपुर उच्च न्यायालय पहुँच जायेगी। इस प्रकार उक्त डाक पहुँचने का पर्याप्त समय 09 दिन का अंतराल था। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी निश्चित होकर मुख्य परीक्षा की तैयारी करने लगा। परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी को दिनॉक 27.8.2018 को जानकारी प्राप्त हुई कि डाकघर की लापरवाही के कारण जो डाक 3-4 दिन में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जवलपुर पहुँचनी थी वह 09 दिन पश्चात दिनॉक 27.8.2018 को पहुँचायी गयी, जिससे निर्धारित अवधि में न पहुंचने के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी के फार्म को निरस्त कर दिया गया। इस प्रकार अपीलार्थी/विपक्षी डाकघर द्वारा पूर्ण लापरवाही बरतते हुए सेवा में कमी की गयी है, जिससे प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक आघात पहुँचा है। प्रत्यर्थी/परिवादी मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुका था जिस कारण स्वस्थ मस्तिष्क से परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाया जिसका मुख्य कारण अपीलार्थी/विपक्षीगण की घोर लापरवाही रही तथा प्रत्यर्थी/परिवादी का भविष्य अंधकार मय हो गया। अपीलार्थी/विपक्षीगण की लापरवाही के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी मानसिक रूप से परेशान रहा तथा परीक्षा की अच्छे से तैयारी नहीं कर सका। अत: क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर दिनांक 16.8.2018 को गुजफ्फरनगर सिटी डाकघर से स्पीड पोस्ट संख्या- ई.यू. 082074753 आईएन को बुक किया जाना स्वीकार किया है। यह भी कथन किया गया कि परिवाद अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध गलत तथ्यों के आधार पर योजित किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी स्वच्छ हाथों से नहीं आया है तथा उसने धारा 80
-3-
सी.पी.सी. का नोटिस नहीं दिया है जबकि सरकार के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने से पूर्व धारा-80 सी.पी.सी का नोटिस दिया जाना अनिवार्य है। अपीलार्थी/विपक्षीगण इण्डियन पोस्ट ऑफिस एक्ट एवं उसके नियमों के अन्तर्गत कार्य करते हैं, जो भारत सरकार का एक विभाग है। प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी/विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है और न ही उक्त परिवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी के अन्तर्गत आता है। प्रत्यर्थी/परिवादी अकंन-15,00,000/- रूपये क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादी के स्वंय के अनुसार उसे माननीय उच्च न्यायालय का आदेश दिनॉक 20.9.2018 को प्राप्त हुआ तथा मुख्य परीक्षा दिनॉक 22.9.2018 व 23.09.2018 को होनी थी। परिणाम स्वरूप प्रत्यर्थी/परिवादी ने मुख्य परीक्षा दी। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी को कोई क्षति नहीं पहुँची है।
यह भी कथन है कि विभागीय सिटीजन चार्टर के अनुसार स्पीड पोस्ट वितरण की निर्धारित समय सीमा 4-5 दिन (बुंकिग दिनाँक व छुट्टियों को छोडकर) है। निर्धारित अवधि में यदि किसी स्पीड पोस्ट का वितरण नहीं हो पाता है तो प्रत्यर्थी/परिवादी स्पीड पोस्ट बुंकिग में भुगतान की गयी धनराशि बतौर क्षतिपूर्ति अदा किये जाने का प्रावधान निदेशालय नियमावली संख्या- 43-497/बी डी डी दिनॉकः 22.01.1999 में है।
उपरोक्त स्पीड पोस्ट के सम्बन्ध में जाँच कराने पर यह तथ्य सामने आया कि स्पीड पोस्ट पहुंचाने में विलम्ब, जेबी मण्डल कार्यालय जबलपुर स्तर से हुआ। विलम्ब का कारण पता लगने पर नियमानुसार क्षतिपूर्ति जेवी मण्डल जबलपुर के पत्राक संख्या के-3/वेब कम्पलेन्ट/ई.सर्च बिल/251002-00171/ विविध पत्राचार/जेबी/2018 दिनॉक: 21.11.2019 के माध्यम से अकंन 50/-रू0 भारतीय पोस्टल
-4-
आर्डर संख्या- 95जी 780388 के रूप में प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित कर दी गयी थी। विभागीय नियमों के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी को क्षतिपूर्ति अदा कर दी गयी है फिर भी प्रत्यर्थी/परिवादी ने गलत मंशा के साथ उक्त परिवाद योजित किया है। अतः उपरोक्त कारणों के आधार पर परिवाद खारिज होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
"परिवादी द्वारा प्रस्तुत उक्त परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी डाक विभाग को निर्देशित किया जाता है कि वह परिवादी को अकंन-50,000.00 रूपये (पचास हजार रूपये) मय 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज उक्त परिवाद योजित करने की तिथि से ताअदायगी अन्तिम भुगतान एवं अकंन-5,000/-रूपये (पाँच हजार रूपये) परिवाद व्यय इस निर्णय/आदेश की दिनांक से एक माह के अन्दर अदा करें, अन्यथा परिवादी उपरोक्त धनराशि विपक्षी डाक विभाग से नियमानुसार वसूल करने के लिए स्वतंत्र होगा।
पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।''
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के विरूद्ध है।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी द्वारा अपीलार्थी को धारा 80 सी.पी.सी. का नोटिस नहीं दिया है जो कि सरकार के विरुद्ध वाद
-5-
प्रस्तुत करने से पूर्व धारा-80 सी.पी.सी का नोटिस दिया जाना अनिवार्य है।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी अपीलार्थी का उपभोक्ता नहीं है और न ही उक्त परिवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी के अन्तर्गत आता है।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी को माननीय उच्च न्यायालय का आदेश दिनॉक 20.9.2018 को प्राप्त हुआ था एवं मुख्य परीक्षा दिनॉक 22.9.2018 व 23.09.2018 को होनी थी, जिसके परिणाम स्वरूप प्रत्यर्थी द्वारा मुख्य परीक्षा में भाग लिया गया है, इसलिए उसे किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुँची है।
यह भी कथन किया गया कि यदि निर्धारित अवधि में किसी स्पीड पोस्ट का वितरण नहीं हो पाता है तब स्पीड पोस्ट बुंकिग में भुगतान की गयी धनराशि को बतौर क्षतिपूर्ति अदा किये जाने का प्रावधान है।
अपीलार्थी की ओर से अपने तर्क के समर्थन में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा Yogesh Kumar Vs. Superintendent, Indian Postal.. on 9 March, 2023 तथा Chief Postmaster General & Anr. Vs. Babu Lal Saini 2018 CJ (NCDRC)229 में पारित निर्णयों पर बल दिया है।
यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा किसी प्रकार की सेवा में कमी नहीं की गई है।
यह भी कथन किया गया कि प्रत्यर्थी द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से गलत एवं असत्य कथनों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
-6-
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपील को स्वीकार कर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त किये जाने की प्रार्थना की गई।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्य और विधि के अनुकूल है।
मेरे द्वारा उभय पक्ष की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता द्व्य को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से प्रस्तुत नजीरों का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया और यह पाया गया कि प्रस्तुत उपरोक्त नजीरों के तथ्य एवं प्रस्तुत वाद के तथ्यों में भिन्नता हैं, इसलिए प्रस्तुत मामले में अपीलार्थी को मा0 राष्ट्रीय आयोग की विधि व्यवस्था का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है।
मेरे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के कथनों को सुना गया तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया कि अपीलार्थी/विपक्षीगण द्वारा की गई घोर अनियमित्ता के कारण उच्चतर न्यायिक सेवा परीक्षा में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा सम्मिलित किये जाने हेतु मा0 उच्चतम न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा, तदोपरांत परीक्षा से एक दिन पूर्व मा0 उच्चतम न्यायायल द्वारा दिये गये आदेश के अनुक्रम में प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उपरोक्त परीक्षा वास्ते उच्चतर न्यायिक सेवा दी गई। परन्तु उस स्थिति तक पहुंचने में निश्चित रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक, शारीरिक व आर्थिक कष्ट हुआ, जिस हेतु जिला उपभोक्ता
-7-
आयोग द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है वह पूर्णत: उचित एवं विधिक है जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है, तद्नुसार अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1