Final Order / Judgement | (मौखिक) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 1238/2016 (जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा द्वारा परिवाद सं0- 46/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31/05/2016 के विरूद्ध) Manoj Kumar Maheshwari aged about 36 years S/O Sri Ram Kumar Maheshwari R/O Mohalla Mankhan Mohal, Town-Lakhana, Pargana-Bharthasna, Distt Etawah. - Appellant/Complainant
- Dakshinanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd. Through Executive Engineer, Khand II Friends, Colony, Etawah.
- Dakshinanchal Vidyut Vitran Nigam Ltd. Through Sub Divisional Officer II, Sunderpur Road, Etawah.
समक्ष - मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 डा0 आभा गुप्ता, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री अवधेश कुमार सिंह, एडवोकेट प्रत्यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री इसार हुसैन, एडवोकेट दिनांक:-17.02.2022 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, इटावा के समक्ष प्रस्तुत किये गये परिवाद सं0- 46/2013, मनोज कुमार महेश्वरी बनाम दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लि0 व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31/05/2016 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- परिवादी की ओर से यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया गया है कि उसने विद्युत कनेक्शन प्राप्त किया था, जिसमें मसाला चक्की का काम करता था। उसके द्वारा निरन्तर विद्युत बिल जमा किये जा रहे थे। इसके बाद उसमें कनेक्शन स्थाई रूप से विच्छेदन करने हेतु आवेदन किया। विपक्षी सं0 2 ने प्रार्थना पत्र और शपथ पत्र ले लिये और विद्युत बकाया की धनराशि की आख्या के लिए विभाग के कर्मचारियों को दे दिया, जब दिनांक 09.12.2011 को यह विच्छेदन प्रार्थना पत्र विपक्षी सं0 2 दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड इटावा में जमा किया गया था। उस पर कोई विद्युत बिल बकाया नहीं था। परिवादी ने रूपये 1,000/- जमा करके पंजीकरण भी कराया था और उसे कोई विद्युत देय नहीं बताया गया था किन्तु परिवादी को गुमराह कर रहे हैं, कुछ समय बाद रूपये 1,10,000/- रूपये की आर0सी0 जारी कर दी गयी और रूपये जबरन वसूल कर लिये गये। परिवादी ने कई बार भुगतान की रसीद दिखाई और प्रार्थना पत्र दिया, किन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई थी। दुबारा आर0सी0 जारी करने की धमकी दी गयी। अत: यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
- परिवाद पत्र में वसूल की गयी धनराशि रूपये 1,10,000/- पंजीकरण शुल्क के नियम से समायोजित किये जाने और वसूली प्रमाण पत्र न जारी किये जाने के अनुतोष के साथ यह परिवाद प्रस्तुत किया गया। विपक्षी की ओर से उत्तर पत्र दाखिल किया गया, जिसमें कहा गया कि परिवादी के विरूद्ध विद्युत बकाया चला आ रहा है और बराबर बढ़ता चला आ रहा है। परिवादी का कोई स्थाई विच्छेदन नहीं हुआ है न ही उसके द्वारा स्थाई विच्छेदन कराया गया है। इसके अतिरिक्त उसके विरूद्ध आर0सी0 जारी हुई है, जिससे धनराशि वसूल हो चुकी है। अत: परिवाद झूठे तथ्यों पर लाया गया है।
- विद्धान जिला उपभोक्ता आयोग ने इस आधार पर परिवादी का परिवाद खारिज किया कि परिवादी ने कोई पी0डी0 स्थाई विच्छेदन शुल्क जमा नहीं किया है और न ही ऐसी कोई रसीद दाखिल की, जिससे साबित हो सके कि स्थाई विच्छेदन हेतु परिवादी ने शुल्क जमा कर दिया है, इसलिए परिवादी का कनेक्शन स्थाई रूप से विच्छेदित नहीं माना जा सकता और न्यूनतम दर पर बिल वसूलने का अधिकार अनुबंध की शर्तों के अनुसार प्राप्त है इस आधार पर परिवादी का परिवाद खारिज किया गया।
- अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने रूपये 1,10,000/- रिकवरी सर्टिफिकेट के विरूद्ध जमा किया है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने इस तथ्य को निष्कर्ष में नहीं लिया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने अपने विद्युत कनेक्शन का स्थाई विच्छेदन हेतु आवेदन किया था, जो दिनांक 09.12.2011 को सब डिवीजनल आफिसर तृतीय, इटावा के समक्ष प्रस्तुत किये गये, जिस पर उन्होंने यह इन्द्राज किया था ‘’ S.D.C/B.C कृपया वर्तमान बकाया की आख्या अंकित करें।‘’ इस इंद्राज के उपरान्त विद्युत विभाग का यह दायित्व था कि वह उक्त कनेक्शन सं0 1217/242479 की विद्युत बकाया की धनराशि प्रदर्शित करे। प्रार्थी द्वारा दिये गये आवेदन में स्पष्ट रूप से यह इच्छा व्यक्त की गयी थी कि उसका उपरोक्त कनेक्शन जिसका मीटर सं0 सीई 2812 है, को स्थाई रूप से विच्छेदित कर दिया जाये। दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम द्वारा उक्त कनेक्शन को स्थाई रूप से विच्छेदित न करके सेवा में कमी की गयी है। उक्त विद्युत कनेक्शन का विच्छेदन विपक्षी के कर्मचारियों की लापरवाही के कारण नहीं हो सका। परिवाद के दौरान अपीलार्थी/परिवादी का विद्युत कनेक्शन अस्थाई रूप से दिनांक 07.12.2015 को विच्छेदित किया गया। विच्छेदन का कारण बकाया धनराशि 4,12,974/- रूपये तथा विच्छेदन का प्रकार पोल से सर्विस केबिल काटी गयी अंकित किया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा आवेदन किये जाने के उपरान्त स्थाई रूप से विद्युत कनेक्शन काट दिया गया, किन्तु इसके बावजूद भी रूपये 64,615/- विद्युत बकाया की धनराशि अपीलार्थी को तंग व परेशान करने के लिए प्रेषित की गयी है। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि अपीलार्थी केवल बिल तथा पी0डी0 का शुल्क जमा कर सकता है, जो एसडीओ द्वारा बताया जाये, इस प्रकार प्रत्यर्थी की ओर से सेवा में घोर कमी की गयी है। इस आधार पर प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किये जाने और परिवादी का परिवाद स्वीकार किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
- केवल प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री इसार हुसैन की बहस को सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का परिशीलन किया। इस प्रकार पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
- प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने स्पष्ट निष्कर्ष दिया है कि विद्युत कनेक्शन का स्थाई विच्छेदन होने के लिए न तो कोई पी0डी0 फीस जमा की गयी और न ही ऐसी कोई रसीद दाखिल की गयी है, जिससे स्थाई विच्छेदन हेतु अपीलार्थी/परिवादी द्वारा शुल्क जमा किया जाना साबित होता हो, इसलिए यह कनेक्शन स्थाई रूप से विच्छेदित नहीं माना जा सकता और अनुबंध की शर्तों के अनुसार प्रत्यर्थी को यह अधिकार प्राप्त है कि वह केवल न्यूनतम दर पर विद्युत का बिल वसूल सके। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा दिये गये उपरोक्त निर्णय में लिये गये तर्क में बल प्रतीत होता है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा इस प्रकार की कोई रसीद अथवा प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया है कि उसके द्वारा स्थाई विच्छेदन का शुल्क जमा कर दिया गया है।
- जहां तक इस तर्क का प्रश्न है कि एसडीओ द्वारा बताये जाने पर ही वह शुल्क जमा कर सकता है। यह तर्क चलने योग्य नहीं है क्योंकि यदि मान भी लिया जाये कि प्रत्यर्थी उसे यह सूचना न देने पर आमादा है और परिवादी के प्रयत्न के बावजूद सूचना नहीं दे रहा है, तो भी आरटीआई अथवा अन्य माध्यमों से इसकी जानकारी ली जा सकती है कि विच्छेदन शुल्क कितना है एवं कार्यालय में इस शुल्क को सुगमतापूर्वक जमा किया जा सकता है। अत: इस तर्क में बल प्रतीत नहीं होता है।
- अपीलकर्ता द्वारा मेमो ऑफ अपील में यह भी तर्क लिया गया है कि उसने स्थाई विच्छेदन हेतु प्रार्थना पत्र दिनांकित निल जिस पर एसडीओ की आख्या दिनांकित 09.12.2011 अंकित है कि ‘’S.D.C/B.C कृपया वर्तमान बकाया की आख्या अंकित करें।‘’ इस आख्या से यह नहीं माना जा सकता कि अपीलार्थी/परिवादी ने अंतिम रूप से अपना विद्युत बकाया अदा कर दिया था तथा स्थाई विच्छेदन हेतु पी0डी0 शुल्क भी जमा कर दिया था। अत: पी0डी0 शुल्क जमा न होने के कारण अपीलार्थी/परिवादी का कनेक्शन स्थाई रूप से विच्छेदित नहीं माना जा सकता है।
- अपीलकर्ता की ओर से एक तर्क यह भी दिया गया है कि रसीद दिनांकित 07.12.2015 में अंकित है कि उसका विद्युत कनेक्शन पोल से विच्छेदित कर दिया गया है, किन्तु स्वयं अपीलार्थी के अनुसार ही यह विच्छेदन उस पर रूपये 4,12,974/- बकाया होने के आधार पर किया गया है, जो उपरोक्त रसीद में स्पष्ट रूप से अंकित है। अत: बकाया की धनराशि अदा न होने के कारण विद्युत विभाग द्वारा विद्युत के उपबंधों के अनुसार न्यूनतम धनराशि ली जा रही है, जो अनुचित नहीं कही जा सकती है एवं अपीलार्थी/परिवादी का उपरोक्त प्रश्न विद्युत कनेक्शन का स्थाई विच्छेदन नहीं माना जा सकता है और न ही इस आधारों पर अपीलार्थी/परिवादी को विद्युत बकाया की धनराशि अथवा उभय पक्ष के मध्य हुए अनुबंध के अनुसार धनराशि वसूल करने से रोका जा सकता है।
- अपीलकर्ता के विद्धान अधिवक्ता द्वारा एक तर्क यह भी दिया गया है कि अपीलार्थी एक गरीब व्यक्ति है एवं सरकार द्वारा समय-समय पर विद्युत बकाये मे छूट दी जाती है। अत: यह लाभ उसे दे दिया जाये, उसके अलावा विद्युत विभाग द्वारा सरचार्ज नहीं लिया जाये, किन्तु यह राज्य के नीति नियत नियम है, जिसके लिए विशिष्ट रूप से उपभोक्ता न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को कोई विशिष्ट निर्देश नहीं दिया जा सकता है। अत: विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क भी मानने योग्य नहीं है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने उचित प्रकार से उक्त तर्कों को दृष्टिगत रखते हुए परिवादी का परिवाद खारिज किया है, जिसमें कोई त्रुटि प्रतीत नहीं होती है। उपरोक्त निष्कर्ष के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का परिवाद खारिज होने योग्य एवं प्रश्नगत निर्णय व आदेश पुष्ट होने योग्य है तथा अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
अपील निरस्त की जाती है। अपील में उभय पक्ष अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (विकास सक्सेना) (डा0 आभा गुप्ता) सदस्य सदस्य संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3 | |