राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-64/2020
खालिद पुत्र अनीस निवासी ग्राम बुलाकीपूर्वा, पोस्ट मकरन्दनगर, परगना व तहसील सदर, जनपद कन्नौज।
बनाम
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड आगरा द्वारा प्रबन्ध निदेशक मौलाना रोड, आगरा आदि।
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री आर0के0 मिश्रा
प्रत्यर्थीगण के अधिवक्ता : श्री दीपक मेहरोत्रा
दिनांक :- 13.5.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कन्नौज द्वारा परिवाद सं0-39/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31.7.2017 के विरूद्ध योजित की गई है।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी का घरेलू उपभोग विद्युत कनैक्शन संख्या-047835/1215/953/ दिनांकित 06-8-2012 को दो किलोवॉट का स्वीकृत्त किया गया था। अपीलार्थी/परिवादी से 2,650.00 रू0 नकद प्राप्त करके रसीद दी जिस पर मीटर लगाने का निर्देश विधुत विभाग, कन्नौज ने दिया था, जिसका कनैक्शन देहात का था. जिसे प्रत्यर्थी/विपक्षी ने दिनांक 26-02-2014 को 17 माह का गलत विद्युत बिल रू0 966/- प्रतिमाह के हिसाब से 16,423/-रू0 का भेज दिया, जबकि
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एक ही विधुत्त पोल से सुधा देवी पत्नी कैलाशनाथ का विद्युत बिल 180/-रू0 प्रतिमाह के हिसाब से दिया गया, जो कि विद्युत बिल में मनमानी करके अपीलार्थी/परिवादी से गलत बिल वसूलना चाहते हैं।
अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विद्युत कनैक्शन ग्रामीण घरेलू उपभोग हेतु दो किलोवॉट का स्वीकृत कराया गया था, जिसे ग्रामीण के स्थान पर शहरी विद्युत बिल अधिक भेज दिया, जो विधुत अधिनियम का उल्लंघन है एवं उपभोक्ता से अधिक बिल वसूलना भी गैर कानूनी प्रतीत होता है। अपीलार्थी/परिवादी को प्रत्यर्थी/विपक्षी से ग्रामीण विधुत कनैक्शन के आधार सही व संशोधित बिल दिलाया जावे तथा अपीलार्थी/परिवादी द्वारा ओ०टी०एस० का 1,000/-रू0 नकद भुगतान करके रसीद दिनांक 13/2/14 को प्राप्त कर ली, जिसका लाभ छूट योजना वर्ष-2014 का 50 प्रतिशत भी दिलाया जावे व अन्य अनुतोष दिलाये जाने हेतु परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
प्रत्यर्थी/विपक्षी विद्युत विभाग की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इंकार किया गया तथा यह कथन किया गया है कि परिवाद में परिवाद के आवश्यक तत्वों का अभाव होने के कारण परिवाद विधिक रूप से पोषणीय नहीं है। प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अर्न्तगत नहीं आता है। परिवाद को श्रवण का क्षेत्राधिकार मंच को प्राप्त नहीं है। बिना भुगतान बिलों पर सरचार्ज देय है, उसे माफ नहीं किया जा सकता
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है। बकाया विद्युत बिल की वसूली के लिये विभाग विद्युत सप्लाई कोड 2005 के प्रावधानों के अधीन बकाया विद्युत देयों को वसूलने का अधिकार रखता है, जिसे स्थगित करने का कोई प्रावधान नहीं है।
अपीलार्थी/परिवादी का विद्युत संयोजन शहरी क्षेत्र का है, जैसा कि उसके द्वारा परिवाद-पत्र एंव शपथ-पत्र में स्वीकार किया गया है। अतएव अपीलार्थी/परिवादी विद्युत के उपभोग के बिलों की धनराशि को शहरी टैरिफ के अनुसार ही भुगतान करने का उत्तरदायी है। विद्युत आपूर्ति चाहें किसी भी फीडर से की जा रही हो। मकरन्दनगर शहरी क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। अपीलार्थी/परिवादी का यह कथन असत्य, निराधार एवं अनुचित है कि वह ग्रामीण क्षेत्र का उपभोक्ता है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा श्रीमती सुधा पत्नी कैनाशनाथ का पूर्ण पत्ता एंव विद्युत संयोजन संख्या परिवाद-पत्र में उलिखित नहीं की है। अपीलार्थी/परिवादी द्वारा विद्युत कनैक्शन प्राप्त करने से विद्युत उर्जा का उपभोग बिना विद्युत बिलों की धनराशि का भुगतान किये कर रही है डिफाल्टर है।
अपीलार्थी/परिवादी ग्रामीण क्षेत्र की टैरिफ के अनुसार बिल चाहता है, जब कि अपीलार्थी/परिवादी की संस्वीकृत्ति परिवाद एवं शपथ-पत्र के अनुसार उसका विद्युत्त संयोजन शहरी क्षेत्र की है, टैरिफ के प्रश्न का निस्तारण करना मंच के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। परिवाद विधिक-रूप से पोषणीय नहीं है। निर्गत किये गये समस्त बिल शुद्ध, शही व नियमानुसार के आधार पर हैं, उनमें कोई त्रुटि नहीं है। बिल को संशोधित, मोडीफाई, या निरस्प
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करने का अधिकार मंच को प्राप्त नहीं है। विद्युत देयों की डिमाण्ड या वसूली से किसी को कोई सामाजिक क्षति नहीं होती है। यदि अपीलार्थी/परिवादी के अपने अपकृत्य से कोई क्षति उसे होती है, तो उसके लिये विभाग उत्तरदायी नहीं है। परिवादी स्वयं की उपेक्षा एवं लापरवाही का दोषी है। विभाग के किसी कार्य, व्यवहार से अपीलार्थी/परिवादी को क्षति नहीं हुई। अपीलार्थी/परिवादी किसी भी क्षतिपूर्ति को विभाग से पाने का अधिकारी नहीं है तथा कथित् याचित क्षतिपूर्ति काल्पनिक, कृत्रिम एवं बिना किसी आधार के है। परिवाद को स्वीकार किये जाने का कोई उचित पर्याप्त एवं न्यायसंगत आधार नहीं है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को स्वीकार करते हुए प्रत्यर्थी/विपक्षीगण को आदेशित किया कि वह अपीलार्थी/परिवादी के विद्युत बिल को निर्णय में दिये गये निर्देशानुसार संशोधित कर अपीलार्थी/परिवादी को एक माह के अन्दर उपलब्ध करायें, ताकि अपीलार्थी/परिवादी बिल का भुगतान कर सके।
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/परिवादी की ओर से वर्तमान अपील, अपील में याचित अनुतोष को यथावत दिलाते हुए एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश को संशोधित किये जाने की प्रार्थना के साथ लगभग ढाई वर्ष के अति विलम्ब से योजित की गई है।
प्रस्तुत अपील विगत लगभग 07 वर्षों से लम्बित है एवं पूर्व में अनेकों तिथियों पर अधिवक्तागण की अनुपस्थिति एवं त्रुटि
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निवारित न किये जाने के कारण स्थगित की जाती रही है। आज मेरे द्वारा उभय पक्ष की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता द्व्य के कथनों को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
मेरे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के कथनों को सुनने के पश्चात तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर विचार करने के उपरांत जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है वह पूर्णत: विधि सम्मत है एवं विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो अनुतोष अपने प्रश्नगत निर्णय/आदेश में अपीलार्थी/परिवादी को प्रदान किया गया है, वह उचित है, उसमे उसमें किसी प्रकार की कोई बढोत्तरी अथवा संशोधन किये जाने का कोई पर्याप्त एवं उचित आधार नहीं पाया जाता है, तद्नुसार प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश सिंह
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,
कोर्ट नं0-1