Rajasthan

Jhunjhunun

EA/7/2015

Mangalaram Jat - Complainant(s)

Versus

Dakapal - Opp.Party(s)

Mangalaram

09 Oct 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Execution Application No. EA/7/2015
In
Complaint Case No. CC/55/2013
 
1. Mangalaram Jat
Basant Vihar,Jhunjhunu
Jhunjhunu
Rajasthan
...........Appellant(s)
Versus
1. Dakapal
Jhunjhunu
Jhunjhunu
Rajasthan
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Sh sukhpalBundel PRESIDENT
 HON'BLE MS. Ms. Sabana Farooqui MEMBER
 HON'BLE MR. Mr. Ajay Kumar Mishra MEMBER
 
For the Appellant:Mangalaram, Advocate
For the Respondent: Indarbhusan Sarma, Advocate
ORDER

प्रार्थना 1 पत्र संख्या 07/15
जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राजस्थान)
प्रार्थना पत्र संख्या -07/15
समक्ष:- 1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
3. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।
मंगलाराम जाट, ए-166 बसंत बिहार झुंझुनू (राज0) -प्रार्थी/परिवादी
बनाम
डाक अधीक्षक, मुख्य डाकघर परिसर, झुंझुनू - विपक्षी
प्रार्थना पत्र अंतर्गत धारा 25 व 27 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986
उपस्थित:-
1. प्रार्थी/परिवादी स्वंय उपस्थित।
2. श्री इन्दुभूषण शर्मा, अधिवक्ता-विपक्षीगण की ओर से।
- आदेष - दिनांकः 09.10.2015
परिवादी ने यह प्रार्थना पत्र/परिवाद पत्र इस मंच के समक्ष पेष किया जिसे दिनांक 03.02.2015 को संस्थित किया गया।
प्रार्थी/परिवादी स्वंय ने प्रार्थना पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए लिखित व मौखिक बहस के दौरान यह कथन किया है कि प्रार्थी कि पक्ष में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने रिविजन पिटीषन संख्या 1461/2014, 1462/2014, 1463/2014 व 1464/2014 (सभी डाक अधीक्षक, झुंझुनू बनाम मंगलाराम जाट) में एकल व उभयनिष्ठ निर्णय दिनांक 03.07.2014 को पारित किया था । इस निर्णय में विपक्षी की रिवजिन पिटीषन खारिज की गई थी तथा परिवादी को चारों रिविजन पिटीषन बाबत कुल 40,000/-रूपये प्रत्येक में 10-10 हजार रूपये की कोस्ट मंजूर की थी । निर्णय के अनुसार इस कोस्ट का भुगतान विपक्षी द्वारा परिवादी को एक माह के भीतर करना था लेकिन विपक्षी ने उक्त कोस्ट का भुगतान माननीय राष्ट्रीय आयोग के निर्णय दिनांक 03.07.2014 की अनुपालना में नहीं किया है। विपक्षी ने उपभोक्ता कानून के दायरे का उल्लंघन करते हुये माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एस.एल.पी. संख्या (20431-20434)/2014 (डाक अधीक्षक
प्रार्थना 2 पत्र संख्या 07/15
झुंझुनू बनाम मंगलाराम जाट) दायर की । इस एस.एल.पी. के दिनांक 12.12.2014 को निरस्त हो जाने के बाद भी विपक्षी ने प्रार्थी को तुरंत भुगतान नहीं किया।
स्वयं प्रार्थी/परिवादी ने लिखित बहस के दौरान यह भी कथन किया है कि विपक्षी ने दिनांक 04.02.2015 को राष्ट्रीय आयोग के निर्णय दिनांक 03.07.2014 की पालना में कुल 40,000/-रूपये का भुगतान बिना विलम्ब ब्याज के कर दिया गया है। अब विपक्षी धारा 25 के दायरे से बाहर हो चुका है। जिला मंच धारा 25 की कार्यवाही को बंद करने पर विचार करे। परिवाद में धारा 25 के दायरे से दिनांक 04.02.2015 को बाहर हो जाने के बावजूद भी विपक्षी धारा 27 के दायरे से बाहर नहीं हो सकता। विपक्षी ने भुगतान को टालने के लिये उपभोक्ता कानून के दायरे का उल्लंघन किया है।
अन्त में परिवादी ने प्रार्थी का प्रार्थना पत्र स्वीकार किया जाकर विपक्षी पर धारा 27 के तहत जुर्माना लगाया जाने के आदेष जारी करते हुये इस प्रकरण को बंद करने का निवेदन किया है।
विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने उक्त तर्को का विरोध करते हुए अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान यह कथन किया है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विपक्षी द्वारा प्रस्तुत एस.एल.पी. नम्बर 20431-20434/2014 का निर्णय दिनांक 12.12.2014 को हुआ है जिसकी नकल प्राप्ति में समय लगा है। तत्पश्चात अविलम्ब विपक्षी के उच्च अधिकारियों से वितिय स्वीकृति प्राप्त कर दिनांक 04.02.2015 को विपक्षी द्वारा परिवादी को भुगतान किया जा चुका है तथा परिवादी ने अपने द्वारा प्रस्तुत परिवाद संख्या 52/13 से 55/13 की पालना में विपक्षी से दिनांक 04.02.2015 को 40,000/- रूपये की राषि प्राप्त करली है इसलिये अब परिवादी धारा 27 के अधीन माननीय न्यायालय से अन्य कोई राषि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
अन्त में विद्धान अधिवक्ता विपक्षी ने प्रार्थी/परिवादी का प्रार्थना पत्र मय खर्चा खारिज किए जाने का निवेदन किया।
उभयपक्ष के तर्को पर विचार किया गया। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
प्रार्थी/परिवादी ने लिखित बहस में अंकित तथ्यों को उजागर करते हुये बहस के दौरान इस तथ्य को स्वीकार किया हैं कि विपक्षी ने दिनांक 04.02.2015 को राष्ट्रीय आयोग के निर्णय दिनांक 03.07.2014 की पालना में 40,000 रूपये का भुगतान बिना विलम्ब ब्याज के परिवादी को कर दिया है। इसलिये विपक्षी धारा 25 के दायरे से बाहर हो जाने से जिला मंच धारा 25 की कार्यवाही विपक्षी के विरूद्ध बन्द किए जाने हेेतु विचार करे। मूल परिवाद में इस मंच के निर्णय दिनांक 09.09.2013 के विरूद्ध विपक्षी ने अपनी प्रथम अपील माननीय राज्य आयोग,जयपुर व
प्रार्थना 3 पत्र संख्या 07/15
रिविजन माननीय राष्ट्रीय आयोग, दिल्ली व एस.एल.पी. माननीय उच्चतम न्यायालय दिल्ली में दायर की थी। विपक्षी की उक्त अपील/रिविजन व एस.एल.पी. निरस्त हो जाने पर इस मंच के आदेष को बहाल रखते हुये माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेष दिनांक 12.12.2014 की पालना में परिवादी द्वारा चाहे गये अनुतोष को ब्याज सहित विपक्षी द्वारा भुगतान कर दिया गया है।
प्रार्थी/परिवादी का बहस के दौरान यह कथन होना कि धारा 25 के दायरे से विपक्षी बाहर होने के बाद भी विपक्षी धारा 27 के दायरे से बाहर करने के काबिल नहीं है। विपक्षी के विरूद्ध धारा 27 के तहत कार्यवाही करें।
परिवादी के उक्त तर्क से हम सहमत नहीं है क्योंकि इस प्रकरण में माननीय राष्ट्रीय आयोग व माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेष की पालना हो चुकी है। पृथक से माननीय शीर्ष न्यायालय द्वारा धारा 27 के संबंध में कोई निर्देष नहीं दिये गये हैं। ऐसी स्थिति में धारा 25 की सम्पूर्ण पालना हो जाने पर इस मंच द्वारा धारा 27 के संबंध में अलग से कोई आदेष पारित किया जाना उचित प्रतीत नहीं होता। इस प्रकरण से संबंधित मामले में पूर्व में भी इस मंच द्वारा निर्णय किया जा चुका है। इस प्रकार इस प्रकरण में विपक्षी द्वारा माननीय राष्ट्रीय आयोग व माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेष की पालना किये जाने पर कोई कार्यवाही शेष नहीं रह जाती है।
अतः प्रार्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत प्रार्थना पत्र निरस्त किये जाने योग्य होने से खारिज किया जाता है।
पक्षकारान खर्चा मुकदमा अपना-अपना वहन करेगें।
आदेश आज दिनांक 09.10.2015 को लिखाया जाकर मंच द्वारा सुनाया गया।

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Sh sukhpalBundel]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MS. Ms. Sabana Farooqui]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. Mr. Ajay Kumar Mishra]
MEMBER

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