राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(मौखिक)
अपील संख्या:-347/2018
डेमलर फाइनेन्सियल सर्विसेज इण्डिया प्रा0लि0, रजिस्टर्ड आफिस-यूनिट-202, दि्वतीय तल, कैंपस 3बी, आरएमजैड मिलेनिया बिजनेस पार्क नं0-143, डा0 एम0आर0जी0 रोड, पेरूंगुडी, चेन्नई 600096
........... अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम
1- ओम कंस्ट्रक्शन कम्पनी द्वारा प्रोपराइटर राजीव कुमार वैश्य, निवासी सेक्टर-8, गीता मंदिर के पास, ओबरा, सोनभद्र।
…….. प्रत्यर्थी/परिवादी
2- राजेन्द्र ट्रकिंग प्राइवेट लि0 बगधानाला, वाराणसी शक्तिनगर रोड चोपन, सोनभद्र।
…….. प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2
अपील संख्या:-478/2019
ओम कंस्ट्रक्शन कम्पनी द्वारा प्रोपराइटर राजीव कुमार वैश्य, निवासी सेक्टर-8, गीता मंदिर के पास, ओबरा, जिला-सोनभद्र।
........... अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
1- डेमलर फाइनेन्सियल सर्विसेज इण्डिया प्रा0लि0 द्वारा ब्रांच मैनेजर आफिस-आर.एम.जैड. मिलेनिया बिजनेस पार्क, कैंपस 3बी, 43 डा0 एम0आर0जी0 रोड, पेरूंगुडी, चेन्नई 600096
…….. प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-1
2- राजेन्द्र ट्रकिंग प्राइवेट लि0 (भारत बीज अधिकृत डीलर) आफिस बगधानाला, वाराणसी शक्तिनगर रोड, चोपन, सोनभद्र यू0पी0।
…….. प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-2
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य
अपीलार्थी/डेमलर फाइनेन्सियल
सर्विसेज इण्डिया प्रा0लि0 के अधिवक्ता : श्री अंग्रेज नाथ शुक्ला
प्रत्यर्थी/परिवादी के अधिवक्ता : श्री अनिल कुमार मिश्रा
दिनांक :- 05-7-2023
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मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत दोनों अपीलें, अपील सं0- 347/2018 एवं अपील सं0-478/2019 जिला उपभोक्ता आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-201/2016 ओम कन्स्ट्रक्शन कम्पनी बनाम डेमलर फाइनेन्सियल सर्विसेज इण्डिया प्रा0लि0 व एक अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 12.5.2017 के विरूद्ध योजित की गई हैं।
चूंकि उपरोक्त दोनों अपीलें, जिला उपभोक्ता आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0-201/2016 में पारित एक ही प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 12.5.2017 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई हैं, अत: इन दोनों अपीलों को एक साथ निर्णीत जा रहा है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है उसने प्रत्यर्थी सं0-1 के पास जाकर तीन वाणिज्यिक वाहन (Bharat Benz Truck) लेने के लिए ऋण प्राप्त किया था, जिसकी शर्तों को पढ़कर प्रत्यर्थी को सुनाया व समझाया गया था। प्रत्येक वाहन के लिए 24,31,063.00 रू0 का ऋण अपीलार्थी से लिया गया अर्थात कुल 72,93,189.00 रू0 का ऋण प्राप्त किया गया। इस ऋण को 12.50 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस करना था और उसे 35 समान मासिक किस्तों में अदा किया जाना था। सुश्री अनीता इस मामले में गारंटर थी। प्रत्यर्थी/परिवादी तथा सुश्री अनीता ऋण अदा करने में चूंक करती रही। इसके पश्चात प्रत्यर्थी/परिवादी ने इन वाहनों को दिनांक 11.9.2015 को कम्पनी को सरेंडर कर दिया। इन वाहनों को बेचने के पश्चात भी अपीलार्थी 17,58,127.45 पैसे की हानि उठानी पडी, जिसके लिए अपीलार्थी ने डिमाण्ड पत्र जारी किया। प्रत्यर्थी/परिवादी ने विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, सोनभद्र के समक्ष एक परिवाद योजित किया, जिसमें निम्न आदेश पारित किया गया:-
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‘’परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी सं0-1 को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी को प्रश्नगत तीनों वाहनों के अदेयता प्रमाण-पत्र प्राप्त कराये। विपक्षी सं0-1 की ओर से भेजे गये लोन एग्रीमेंट दिनांक 21.4.2014 एनेक्सर सं0-20106780, 20106881 एवं 20106882 दिनांक 27.7.2016 व इससे सम्बन्धित सभी नोटिस निरस्त किये जाते है। मानसिक व शारीरिक क्षति के रूप में मु0 2,000.00 रू0 तथा वाद व्यय के रूप में मु0 2,000.00 रू0 का भुगतान विपक्षी सं0-1 परिवादी को करें। उपरोक्त आदेश का पालन एक माह में किया जावे। उपरोक्त आदेश के पालन के लिए विपक्षीगण संयुक्त रूप से तथा पृथक-पृथक रूप से जिम्मेदार होंगे।‘’
अपीलार्थी के अनुसार यह आदेश त्रुटि युक्त एवं मनमाना है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने शेष बची हुई धनराशि को वसूल करने के तथ्य पर ध्यान नहीं दिया है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने यह गलत कहा है कि वाहन लेते समय कोई शर्त नहीं रखी गई थी, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादी ने वाहन को ऋण अनुबंध की शर्तों के अन्तर्गत ही सरेंडर किया था। बकाया धनराशि की वसूलने के लिए कोई आदेश नहीं किया गया। एग्रीमेंट की शर्त में यह भी उल्लेख था कि विवाद होने पर आर्बिट्रेशन में मामला जायेगा, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादी आर्बिट्रेशन में नहीं गया अत: मा0 न्यायालय से अनुरोध है कि प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 12.5.2017 को अपास्त करते हुए वर्तमान अपील स्वीकार की जाए।
अपील सं0-478/2019 में अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग तथ्यों और साक्ष्यों को देखने के उपरांत यह पाया कि प्रत्यर्थी/विपक्षी ने सेवा में कमी की है, किन्तु उन्होंने
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आंशिक रूप से परिवाद स्वीकार किया है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने यह पाया है कि इसमें अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया है और उसे जारी करने का आदेश दिया है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने साक्ष्यों का भली-भॉति परिशीलन नहीं किया। कम्पनी ने दूषित वाहन प्रदान किये, जिनकी समय से सर्विस नहीं की गयी है। अत: यह अनुचित व्यापार प्रक्रिया का अंग है, जिस पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने ध्यान नहीं दिया। वाहन में निर्माण सम्बन्धी दोष था, जिसको दूर नहीं किया गया है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अभिलेखों का भलीभॉति परिशीलन नहीं किया, इसलिए मा0 न्यायालय से अनुरोध है कि प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 12.5.2017 को तद्नुसार संशोधित किया जाए।
उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि प्रश्नगत निर्णय के पृष्ठ सं0-16 पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने यह उल्लेख किया है कि परिवादी ने विपक्षी सं0-1 से प्रश्नगत ट्रकों के लिए ऋण प्राप्त किया और जब उसके ट्रक नहीं चल सके, तो उक्त ट्रकों को परिवादी ने विपक्षी सं0-1 की सहमति से विपक्षी सं0-1 को वापस कर दिया। उक्त वापसी में विपक्षी सं0-1 द्वारा इस प्रकार की कोई शर्त नहीं लगायी गयी थी कि परिवादी पर कोई धनराशि बकाया है। इससे स्पष्ट होता है कि परिवादी ने विपक्षी सं0-1 की सहमति से विपक्षी-1 को ट्रक वापस किया। अगर विपक्षी ने अपनी सहमति से ट्रक वापस किये तब विपक्षी को इन ट्रकों के सम्बन्ध में भविष्य में किसी प्रकार की वसूली का अधिकार नहीं रहता। अगर विपक्षी ने इन ट्रकों का किसी मूल्यांकनकर्ता से मूल्यांकन
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कराया होता कि ट्रकों की कीमत उसे देते समय कितनी है और कितनी किस्तें अदा की जा चुकी है तब यह प्रश्न विचारणीय था कि ऋण पूर्णत: अदा हो पाया अथवा नहीं। किन्तु जब सहमति से ट्रक दिये गये तब किसी अन्य प्रकार से वसूली करने का अधिकार नहीं रहता।
निर्माण सम्बन्धी दोष के बारे में किसी विशेषज्ञ की आख्या नहीं है अत: वह बिन्दु विचारणीय नहीं है।
उपरोक्त विवेचना के आधार पर उक्त दोनों अपीलें निरस्त होने योग्य हैं।
आदेश
वर्तमान दोनों अपीलें, अपील सं0-347/2018 एवं अपील सं0-478/2019 निरस्त की जाती हैं। जिला उपभोक्ता आयोग, सोनभद्र दि्वतीय द्वारा परिवाद सं0-201/2016 में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 12.5.2007 की पुष्टि की जाती है।
दोनों अपीलों में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील सं0-347/2018 में रखी जाए तथा एक प्रमाणित प्रति अपील सं0-478/2019 में रखी जाए।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को नियमानुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की बेवसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
अध्यक्ष सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1