राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-218/2005
(जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्धारा परिवाद सं0-295/2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 25-09-2004 के विरूद्ध)
मै0 एम0के0 वुड फर्नीचर हाउस
बनाम
ब्रान्च मैनेजर, जिला कोपरेटिव बैंक लि0 व एक अन्य
समक्ष :-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक :- 21-06-2024.
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्धारा परिवाद सं0-295/2001 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 25-09-2004 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर बल देने के लिए पक्षकारों की ओर से कोई उपस्थित नहीं है, अत: पीठ द्वारा स्वयं अपील पत्रावली तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया गया।
परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए विपक्षी सं0-1 से ऋण प्राप्त करने के आवेदन दिया था, जो स्वीकृती के लिए विपक्षी सं0-2 को भेजा गया, जिसके द्वारा परिवादी को अंकन 1,50,000/- रू0 का ऋण स्वीकृत किया गया, परन्तु विपक्षी सं0-1 द्वारा केवल अंकन 1,00,000/- रू0 की सी0सी0 लिमिट स्वीकृत की गई, फिर भी यह सुविधा परिवादी को प्रदान नहीं कराई गई।
विपक्षीगण की ओर से विद्वान जिला आयोग के समक्ष कोई वादोत्तर प्रस्तुत नहीं किया गया। एकतरफा सुनवाई करते हुए विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया
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गया कि विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गई है। इसलिए एक माह के अन्दर अंकन 15,000/- रू0 क्षतिपूर्ति व 200/- रू0 वाद व्यय के रूप में विपक्षीगण द्वारा परिवादी को अदा करने हेतु आदेश दिया गया।
इस निर्णय एवं आदेश को स्वयं परिवादी द्वारा ही इस आधार पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला आयोग ने वांछित अनुतोष प्रदान नहीं किया है।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से ज्ञात होता है कि विद्वान जिला आयोग ने इस बिन्दु पर कोई विचार नहीं किया है कि क्या ऋण स्वीकृत कराना परिवादी का अधिकार है और विपक्षी द्वारा इसकी अदायगी में हस्तक्षेप करते हुए सेवा में कमी की गई है ? इस बिन्दु पर निष्कर्ष दिए बिना, वस्तुत: उस स्थिति में जब सी0सी0लिमिट स्वीकार कर इसकी सुविधा प्रदान करने का कोई आदेश पारित न किया गया हो, क्षतिपूर्ति दिया जाना पीठ के अभिमत में उचित नहीं है।
अत: बिना किसी गुणदोष पर विचार किए हुए प्रकरण सम्बन्धित जिला आयोग को प्रतिप्रेषित किए जाने योग्य है और तदनुसार अपील स्वीकार करते हुए प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश अपास्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्धारा परिवाद सं0-295/2001 में पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक 25-09-2004 अपास्त किया जाता है तथा प्रकरण प्रतिप्रेषित करते हुए विद्वान जिला आयोग को निर्देशित किया जाता है कि प्रश्नगत परिवाद को उपभोक्ता परिवाद मानते हुए उक्त परिवाद को अपने मूल नम्बर पर पुनर्स्थापित करते हुए परिवाद के दोनों पक्षकारों को साक्ष्य एवं सुनवाई का विधि अनुसार समुचित अवसर प्रदान करते हुए यथा सम्भव 03 माह की अवधि में परिवाद सं0-295/2001 को गुणदोष के आधार पर निस्तारित किया जावे।
विद्वान जिला आयोग इस बिन्दु पर निष्कर्ष दे कि परिवादी सी0सी0 लिमिट प्राप्त करने के लिए विधिक रूप से अधिकृत है और यदि सी0सी0 लिमिट स्वीकृत न की गई हो तो बैंक द्वारा सेवा में कमी कारित की गई है।
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परिवाद की कार्यवाही प्रारम्भ करने से पूर्व विद्वान जिला आयोग द्वारा दोनों पक्षकारों को सूचना प्रेषित की जाए, क्योंकि पक्षकार इस राज्य आयोग की पीठ के समक्ष आज उपस्थित नहीं हैं।
इसके उपरान्त किसी भी पक्षकार को बिना किसी उपयुक्त कारण के स्थगन की अनुमति न प्रदान की जावे।
अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
दिनांक 21-06-2024.
प्रमोद कुमार,
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-1.
कोर्ट नं0-2.