Rajasthan

Nagaur

CC/8/2015

Smt Sugni - Complainant(s)

Versus

CM&HO - Opp.Party(s)

Sh Hanumanram Dadich

04 Jul 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/8/2015
 
1. Smt Sugni
Vill- Gagwana Tech - Nagaur
Nagaur
Rajasthan
...........Complainant(s)
Versus
1. CM&HO
Air Strep,Nagaur
Nagaur
Rajasthan
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh Hanumanram Dadich, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद 08/2015

 

सुगनी पत्नी श्री धन्नाराम, जाति-मेघवाल, निवासी-गगवाना, तहसील व जिला-नागौर (राज.)।

                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      -परिवादी

बनाम

 

1.            मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, हवाई पट्टी, नागौर।

2.            अधीक्षक, नागौर हाॅस्पीटल एवं अनुसंधान केन्द्र, अजमेरी गेट के बाहर, ताउसर रोड, नागौर।

3.            आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जरिये प्रबन्धक भगवती भवन, द्वितीय फ्लोर, पीएल मोटर्स एमआई रोड, जयपुर, राजस्थान-302001

               

                                                          -अप्रार्थीगण     

 

समक्षः

1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।

2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।

3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री हनुमानराम, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री हनुमानराम पोटलिया, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 1 एवं श्री कुन्दनसिंह आचीणा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 3।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                             आ  दे  ष                       दिनांक 04.07.2016

 

 

1.            यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादिया के पहले से ही छह संतान है तथा परिवादिया ने अप्रार्थी संख्या 1 से प्रेरित एवं उसके प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर अप्रार्थी संख्या 2 के अस्पताल में दिनांक 18.04.2011 को नसबंदी आॅपरेषन करवाया। उक्त नसबंदी आॅपरेषन के उपरान्त अप्रार्थी संख्या 2 के अस्पताल द्वारा आॅपरेषन सफल का प्रमाण-पत्र केस कार्ड सं. 10, दिनांक 19.05.2011 को जारी किया गया। इस नसबंदी आॅपरेषन के बाद परिवादिया अनचाही संतान के बारे में निष्चित हो गई तथा वो आष्वस्त हो गई कि अब उसे गर्भ निरोधक दवाओं का उपयोग करने की कोई आवष्यकता नहीं है, लेकिन नसबंदी आॅपरेषन के बावजूद परिवादिया गर्भवती हो गई तथा दिनांक 09.09.2013 को उसने राजकीय चिकित्सालय, नागौर में एक संतान पुत्री को जन्म दिया। परिवादिया को छह संतान के उपरांत सातवीं अनचाही संतान होने पर भारी आज्ञात पहुंचा, तब उसे यह भी सलाह मिली कि इसके लिए वो अलग से कार्यवाही कर सकती है। इस पर परिवादिया व उसके परिवार जनों ने अप्रार्थी संख्या 1 को इसकी षिकायत की तो उन्होंने बताया कि नसबंदी आॅपरेषन असफल हुआ है तो वे इसके लिए अप्रार्थी संख्या 3 से संविदा के तहत क्षतिपूर्ति चाह सकती है, तब परिवादिया ने क्लेम फार्म भरकर जमा करवा दिया लेकिन उसके बावजूद परिवादिया को कोई क्षतिपूर्ति राषि नहीं दी गई। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनुचित व्यापार प्रथा की परिधि में आता है। अतः परिवादिया सुगनी के नसबंदी आॅपरेषन फेल होने से परिवादिया को हुई क्षति बाबत् पाॅलिसी के तहत देय मुआवजा राषि 30,000/- रूपये मय ब्याज के अप्रार्थीगण से दिलाये जावे। साथ ही परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश भी दिलाया जावे।

 

2.            अप्रार्थी संख्या 1 ने जवाब प्रस्तुत करते हुए बताया कि परिवादिया की लापरवाही के कारण ही उसके संतान पैदा हुई है। नसबंदी आॅपरेषन से पूर्व सहमति पत्र भरवाकर हस्ताक्षर करवाये जाते हैं। परिवादिया से भी सहमति पत्र भरवाकर उससे हस्ताक्षर करवाये गये तथा उसे सहमति पत्र पढकर सुनाया गया। परिवादिया यदि सहमति पत्र की षर्तों का पालन करती तो संतान पैदा होने से बचा जा सकता था, इसके तहत उसे माहवारी नहीं आने की दषा में दो सप्ताह के भीतर-भीतर सम्बन्धित चिकित्सक को सूचना देनी थी तब समय रहते उसकी एम.टी.पी. की जा सकती थी मगर परिवादिया ने ऐसा नहीं किया। परिवादिया एक बच्चा और चाहती थी, अगर नहीं चाहती तो वह सहमति-पत्र की षर्तों का पालन करती। यह भी बताया गया है कि परिवादिया द्वारा नसबंदी असफल होने की सूचना निर्धारित क्लेम फार्म में भरकर उसे दिनांक 03.04.2013 को भिजवाया गया, जिसे अप्रार्थी संख्या 1 के कार्यालय के पत्रांक प.क./सां/2013/74, दिनांक 26.08.2013 द्वारा आईसीआईसीआई लोम्बार्ड कम्पनी को भेज दिया गया। नसबंदी आॅपरेषन के उपरांत उत्पन होने वाली किसी भी प्रकार की परेषानी की भरपाई के लिए अप्रार्थी संख्या 3 के यहां निष्चित राषि का बीमा सरकार द्वारा करवाया हुआ है तथा इस सम्बन्ध में समस्त भरपाई का उतरदायित्व अप्रार्थी संख्या 3 बीमा कम्पनी का है। लेकिन बीमा कम्पनी ने अपने पत्रांक 46034 दिनांक 09.09.2013 के द्वारा क्लेम समयावधि में प्राप्त नहीं होने के कारण निरस्त कर दिया गया। इस तरह परिवादिया क्षतिपूर्ति की हकदार नहीं रही। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे।

 

3.            अप्रार्थी संख्या 2 बावजूद सूचना/तामिल उपस्थित नहीं आया है तथा न ही कोई जवाब पेष हुआ है।

 

4.            अप्रार्थी संख्या 3 की तरफ से परिवाद में अंकित अधिकांष अभिकथनों को जानकारी के अभाव में अस्वीकार करते हुए यह बताया है कि राज्य सरकार एवं बीमा कम्पनी के मध्य हुए एमओयू के अनुसार बीमा पाॅलिसी की अवधि दिनांक 31.03.2013 को समाप्त हो चुकी है तथा बीमा कम्पनी केवल मात्र उन्ही क्लेम के लिए जिम्मेदार है जो नसबंदी आॅपरेषन दिनांक 31.03.2013 तक विफल हुए हैं एवं उसके बाद विफल होने वाले नसबंदी आॅपरेषन के लिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी का कोई उतरदायित्व नहीं है। यह भी बताया गया है कि परिवादिया के गर्भवती हो जाने एवं नसबंदी आॅपरेषन फैल हो जाने के सम्बन्ध में सी.एम.एच.ओ. कार्यालय से आज तक कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है, इस कारण बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति हेतु उतरदायी नहीं है। अतः बीमा कम्पनी के विरूद्ध परिवाद खारिज किया जावे।

 

5.            बहस अधिवक्ता उभय पक्षकारान सुनी गई तथा प्रस्तुत दस्तावेजात का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली से यह स्पष्ट है कि परिवादिया सुगनी ने राजस्थान सरकार के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा परिवार कल्याण योजना कार्यक्रम के अंतर्गत दिनांक 18.04.2011 को नसबंदी आॅपरेशन करवाया था। परिवादिया ने अपने परिवाद में बताया है कि नसबंदी आॅपरेषन फेल हो जाने के कारण वह गर्भवती हुई और परिवादिया के अनचाही संतान हुई।

परिवादिया ने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही नसबंदी प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 1, राजकीय चिकित्सालय का डिस्चार्ज टिकिट प्रदर्ष 2 एवं सोनोग्राफी रिपोर्ट प्रदर्ष 3 भी पेष किये हैं। अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य से भी स्पश्ट है कि परिवादिया सुगनी की नसबंदी करवाये जाने के बाद भी वह गर्भवती हो गई तथा एक लडकी को जन्म दिया। यह भी स्पश्ट है कि गर्भवती होने के बाद परिवादिया ने सम्बन्धित चिकित्सा अधिकारी को सूचना भी दी तथा नियमानुसार क्लेम हेतु आवेदन भी प्रस्तुत किया, लेकिन इसके बावजूद उसे आज तक क्लेम राषि प्राप्त नहीं हुई है।

अप्रार्थी संख्या 1 ने परोक्ष रूप से परिवादिया की नसबंदी फेल होना स्वीकार करते हुए यही बताया है कि राज्य सरकार द्वारा नसबंदी केसेज का बीमा किया जाता है एवं परिवादिया का क्लेम फार्म बीमा कम्पनी को भिजवा दिया गया था। अप्रार्थी संख्या 3 के विद्वान अधिवक्ता की मुख्य आपति यह रही है कि बीमा पाॅलिसी की अवधि दिनांक 31.03.2013 को समाप्त हो चुकी थी जबकि परिवादिया के कथनानुसार नसबंदी आॅपरेषन फैल होने से दिनांक 09.09.2013 को उसके एक संतान का जन्म हुआ। उनका तर्क रहा है कि बीमा पाॅलिसी की षर्तों अनुसार बीमा कम्पनी आॅपरेषन फैल हो जाने की दिनांक से रिस्क कवर करती है न कि आॅपरेषन करने की दिनांक से, ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी का कोई दायित्व नहीं रहता है।

 

6.            अप्रार्थी पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिये गये उपर्युक्त तर्क पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन किया गया। अप्रार्थी संख्या 1 ने अपने जवाब की मद संख्या 5 में स्वीकार किया है कि स्वयं परिवादिया द्वारा नसबंदी असफल होने की सूचना निर्धारित क्लेम फार्म में भरते हुए दिनांक 03.04.2013 को क्लेम फार्म भेजा, जिसे दिनांक 26.08.2013 को आईसीआईसीआई लोम्बार्ड कम्पनी को भेज दिया गया था तथा कम्पनी द्वारा दिनांक 09.09.2013 के पत्र अनुसार समयावधि में प्राप्त नहीं होने के कारण निरस्त कर दिया। अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यह पत्र दिनांक 09.09.2013 प्रदर्ष ए 1 पत्रावली पर उपलब्ध है, जिसके अनुसार कम्पनी ने मात्र देरी से क्लेम प्राप्त होना बताया है। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादिया ने दिनांक 18.04.2011 को नसबंदी आॅपरेषन करवाया था लेकिन इसके बावजूद वह गर्भवती हो गई तथा एक पुत्री को जन्म दिया। यह भी स्वीकृत स्थिति है कि इस सम्बन्ध में मुआवजा राषि तयषुद्दा है तथा राज्य सरकार द्वारा अप्रार्थी संख्या 3 बीमा कम्पनी के वहां इस सम्बन्ध में बीमा करवा रखा था। अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा यही बताया गया है कि बीमा पाॅलिसी की अवधि दिनांक 31.03.2013 को समाप्त हो चुकी थी, इसके साथ ही बीमा कम्पनी ने यह स्वीकार किया है कि आॅपरेषन फैल हो जाने की दिनांक से बीमा कम्पनी रिस्क स्वीकार करती है। परिवादिया द्वारा प्रस्तुत सोनोग्राफी रिपोर्ट प्रदर्ष 3 अनुसार दिनांक 22.03.2013 को यह ज्ञात हो चुका था कि परिवादिया गर्भवती है, ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि बीमा पाॅलिसी की अवधि के दौरान ही परिवादिया का नसबंदी आॅपरेषन फैल हुआ था एवं परिवादिया ने इस बाबत् निर्धारित क्लेम फार्म भरकर दिनांक 03.04.2013 को ही अप्रार्थी संख्या 1 के कार्यालय में प्रस्तुत कर दिया था। ऐसी स्थिति में परिवादिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते हुए उन्हें बीमा पाॅलिसी के तहत देय मुआवजा राषि 30,000/- मय ब्याज दिलाया जाना न्यायोचित होगा।

 

7.            उपर्युक्त विवेचन से यह भी स्पश्ट है कि परिवादिया की ओर से लम्बे समय तक मुआवजा राषि प्राप्त करने हेतु प्रयास किये गये, लेकिन उसके बावजूद अप्रार्थीगण ने कोई क्लेम राषि प्रदान नहीं की बल्कि मानसिक परेषानी का सामना करती रही। ऐसी स्थिति में परिवादिया को मानसिक संताप हेतु 5,000/-रूपये एवं परिवाद व्यय हेतु भी 5,000/- रूपये दिलाया जाना न्यायोचित होगा।

               

 

आदेश

 

8.            परिणामतः परिवादिया सुगनी द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का विरूद्ध अप्रार्थीगण स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण बीमा पाॅलिसी अनुसार परिवादिया को देय मुआवजा राषि 30,000/- रूपये प्रदान करे। यह भी आदेष दिया जाता है कि इस राषि पर आवेदन प्रस्तुत करने की दिनांक 26.12.2014 से परिवादिया 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याज भी प्राप्त करने की अधिकारी होगी। यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण इस मामले में परिवादिया को मानसिक संतापस्वरूप 5,000/- रूपये अदा करने के साथ ही परिवाद व्यय के भी 5,000/- रूपये अदा करेंगे। आदेष की पालना एक माह में की जावे।

 

9.            आदेष आज दिनांक 04.07.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

 

नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने अथवा दोनों से दण्डनीय अपराध है।

 

 

 

 

।बलवीर खुडखुडिया।            ।ईष्वर जयपाल।  ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।                   सदस्य                         अध्यक्ष                  सदस्या   

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.