Sunil Saini filed a consumer case on 09 Feb 2015 against CITI Financial Bank. in the Jaipur-IV Consumer Court. The case no is CC/718/2012 and the judgment uploaded on 16 Mar 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर चतुर्थ, जयपुर
पीठासीन अधिकारी
डाॅ. चन्द्रिका प्रसाद शर्मा, अध्यक्ष
डाॅ. अलका शर्मा, सदस्या
श्री अनिल रूंगटा, सदस्य
परिवाद संख्या:-718/2012 (पुराना परिवाद संख्या 1392/2009)
श्री सुनील सैनी पुत्र श्री माणक लाल शास्त्री आयु 29 वर्ष, निवासी- 7, अर्जुन नगर, लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार के पास, अर्जुन नगर फाटक, महेश नगर, जयपुर ।
परिवादी
बनाम
01. सिटी फाईनेन्शियल बैंक, अरिहन्त प्लाजा, ग्राउण्ड फ्लोर, पेट्रोल पम्प के पास, मालवीय नगर, जयपुर जरिये मैनेजर/प्रबन्धक ।
02. सिटी फाईनेन्शियल बैंक, कमरा नम्बर 111-113, प्रथम तल, संगम टावर, गवर्नमेन्ट हाॅस्टल के पास, एम.आई.रोड, जयपुर जरिये मुख्य प्रबन्धक ।
विपक्षीगण
उपस्थित
परिवादी की ओर से श्री सुनील गुप्ता/श्री सुनील कुमार शर्मा, एडवोकेट
विपक्षीगण की ओर से श्री प्रशान्त कुमार शर्मा, एडवोकेट
निर्णय
दिनांकः- 09.02.2015
यह परिवाद, परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध दिनंाक 07.10.2009 को निम्न तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया गया हैः-
परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 से दिनंाक 11.05.2007 को 23,000/-रूपये का ऋण लिया था । जिसके पास हो जाने के बाद विपक्षीगण ने परिवादी को 20,338/-रूपये का चैक ही जारी किया । इस ऋण की अदायगी 1428/-रूपये की मासिक किष्तों के माध्यम से की जानी थी । इसके बाद दिनांक 20.02.2008 को परिवादी को विपक्षीगण ने 14,391/-रूपये का ज्वच नच सवंद स्वीकृत किया । पूर्व के ऋण व इस ऋण पर विपक्षीगण ने 12 वार्षिक दर से ब्याज वसूल करना बताया था । परन्तु विपक्षीगण ने परिवादी से प्रथम ऋण पर 34.5 प्रतिषत तथा दूसरे ऋण पर 25.33 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज वसूल किया । जो विपक्षीगण का सेवादोष हैं और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी ने विपक्षीगण को दिनंाक 25.09.2009 को कानूनी नोटिस दिया । और इस सेवादोष के आधार पर परिवादी अब विपक्षीगण से परिवाद के मद संख्या 14 में अंकित सभी अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी हैं ।
विपक्षीगण की ओर से अंग्रेजी भाषा में जवाब दिया गया है जिसका सार संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने विपक्षीगण से क्रमशः 23,000/-रूपये एवं 36,800/-रूपये का ज्वच नच सवंद लिया था, यह तथ्य स्वीकार है । 23,000/-रूपये के ऋण पर परिवादी एवं विपक्षीगण के मध्य 34.5 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज देना तय था । इसके बाद परिवादी ने विपक्षीगण से 36,800/-रूपये के ज्वच नच सवंद की मांग की तो परिवादी को उक्त ऋण 25.5 प्रतिषत वार्षिक ब्याज दर से वितरित किया गया । लेकिन उक्त ऋण राषि में से परिवादी पर बकाया ऋ़ण राषि 19,356/-रूपये काटते हुए परिवादी को 14,391/-रूपये का ऋण वितरित किया गया क्योंकि इसमें प्रोसेसिंग फीस के 1813/-रूपये, ैजंजनजवतल ब्ींतहमे के 490/-रूपये एवं बीमा प्रीमियम के 750/-रूपये अतिरिक्त रूप से काट लिये गये थे । जहां तक ब्याज दर का सवाल हैं रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया ने विपक्षीगण को व्यक्तिगत ऋण पर ब्याज अपने अनुसार निर्धारित करने के निर्देश दे रखे हैं । इसलिए विपक्षीगण ने परिवादी से निर्धारित ब्याज दर से अधिक ब्याज दर वसूल करके कोई सेवादोष कारित नहीं किया हैं । अतः परिवाद, परिवादी निरस्त किया जावें ।
परिवाद के तथ्यों की पुष्टि में परिवादी श्री सुनील सैनी ने स्वयं का शपथ पत्र एवं प्रदर्श-1 से प्रदर्श-13 दस्तावेज कुल 20 पृष्ठों में प्रस्तुत किये । जबकि जवाब के तथ्यों की पुष्टि में विपक्षीगण की ओर से श्री बी.शेखर एवं श्री मोहित शर्मा के अंग्रेजी भाषा में शपथ पत्र एवं ।ददमगनतम.। से ।ददमगनतम.म् दस्तावेज कुल 12 पृष्ठों में प्रस्तुत किये गये ।
बहस अंतिम सुनी गई एवं पत्रावली का आद्योपान्त अध्ययन किया गया ।
प्रस्तुत प्रकरण में परिवादी ने परिवाद के मद संख्या 14 में विपक्षीगण द्वारा ऋण पर वसूल की जा रही ब्याज दर को लेकर कोई अनुतोष अंकित नहीं किया हैं । जो इस बात को सिद्ध करता है कि अधिक ब्याज को लेकर परिवादी ने विपक्षीगण के विरूद्ध कोई अनुतोष प्राप्त नहीं करना चाहा हैं । वैसे भी विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत ।ददमगनतम.ठए जो रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया की अधिसूचना दिनंाकित 24.05.2007 एवं दूसरी अधिसूचना दिनंाकित 06.01.2010 हैं, प्रस्तुत की गई हैं । जिसके अनुसार गैर-बैकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा प्रदत्त ऋण एवं अग्रिम पर कोई अधिकतम व्याज दर निर्धारित नहीं की गई हैं । इस प्रकार विपक्षीगण ने परिवादी को दिये गये ऋण पर जो तथाकथित 34.5 एवं 25.5 प्रतिषत वार्षिक दर से ब्याज वसूल करने की शर्त रखी हैं, वह उपरोक्त अधिसूचनाओं के प्रकाष में अनुचित और अवैधानिक नहीं कही जा सकती हैं । वैसे भी ज्ीम ठंदापदह त्महनसंजपवद ।बजए 1949 की धारा 21। के अनुसार भी बैकिंग कम्पनीज द्वारा निर्धारित ब्याज दर को मंच और न्यायालय की व्याख्या की परिधि से बाहर निकाला गया हैं । धारा 21। निम्नानुसार हैंः-
21। ण् त्नसमे व िपदजमतमेज बींतहमक इल इंदापदह बवउचंदपमे दवज जव इम ेनइरमबज जव ेबतनजपदल इल बवनतजेरू.
छवजूपजीेजंदकपदह ंदलजीपदह बवदजंपदमक पद जीम न्ेनतपवने स्वंदे ।बजए 1918 ;10 व ि1918द्ध वत ंदल वजीमत संू तमसंजपदह जव पदकमइजमकदमेे पद वितबम पद ंदल ैजंजमए ं जतंदेंबजपवद इमजूममद ं इंदापदह बवउचंदल ंदक पजे कमइजवत ेींसस दवज इम तम.वचमदमक इल ंदल बवनतज वद जीम हतवनदक जींज जीम तंजम व िपदजमतमेज बींतहमक इल जीम इंदापदह बवउचंदल पद तमेचमबज व िेनबी जतंदेंबजपवद पे मगबमेेपअमण्
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर हमारे विनम्र मत में विपक्षीगण ने परिवादी को ऋण और ज्वच नच सवंद वितरित करके उन पर जो राशि ब्याज के रूप में वसूल की हैं और इसे परिवादी से वसूल करने में विपक्षीगण ने कोई सेवादोष कारित किया हो, यह प्रमाणित नहीं हैं । इसलिए परिवाद, परिवादी निरस्त किया जाता हैं ।
आदेश
अतः उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर परिवाद, परिवादी विपक्षीगण के विरूद्ध निरस्त किया जाता हैं ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय आज दिनांक 09.02.2015 को पृथक से लिखाया जाकर खुले मंच में हस्ताक्षरित कर सुनाया गया ।
अनिल रूंगटा डाॅं0 अलका शर्मा डाॅ0 चन्द्रिका प्रसाद शर्मा
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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