Rajasthan

Nagaur

21/2014

Motiram - Complainant(s)

Versus

Chola Mandalam MS Gen.Ins. - Opp.Party(s)

Sh.Shivchand Pareek

18 May 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 21/2014
 
1. Motiram
Nagaur
...........Complainant(s)
Versus
1. Chola Mandalam MS Gen.Ins.
Jaipur
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh.Shivchand Pareek, Advocate
For the Opp. Party: Sh. M.K. Sharma, Advocate
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 21/2014

 

मोतीराम पुत्र श्री पेमाराम, जाति-बणजारा, निवासी-रोडवेज डिपो के पीछे, नागौर, तहसील व जिला- नागौर (राज.)।                                                                                                       -परिवादी     

 

बनाम

 

1.            चोला मण्डलम एमएस जनरल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जरिये प्राधिकृत अधिकारी, चितरंजन मार्ग सी-स्कीम, जयपुर (राज.)।

2.            इण्डसइंड बैंक लिमिटेड जरिये प्राधिकृत अधिकारी षाखा कार्यालय, नकाष गेट, नागौर (राज.)। 

               

                                      -अप्रार्थीगण

 

समक्षः

1.            श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।

2.            श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।

3.            श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री षिवचन्द पारीक, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री धनपतमल सिंघवी व दषरथमल सिंघवी अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 1 तथा श्री महेन्द्र कुमार षर्मा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 2।

 

  

 अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                               

                               निर्णय                दिनांक 18.05.2016

 

 

1.            यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 के अभिकर्ता अप्रार्थी संख्या 2 से अपने वाहन बोलेरो एसएलएक्स पंजीयन संख्या त्श्र 21/ज्। 1050 का बीमा दिनांक 10.08.2013 से दिनांक 09.08.2014 तक की अवधि के लिए करवाया। बीमा पाॅलिसी की वैधता अवधि में दिनांक 12.09.2013 को परिवादी का वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। परिवादी ने इस दुर्घटना की सूचना तुरन्त ही अप्रार्थीगण को उपलब्ध करवा दी तथा उनके सर्वेयर के निर्देषानुसार ही वाहन को अधिकृत सर्विस सेंटर में ठीक करवाया। जिसे ठीक करवाने में 1,92,000/- रूपये व्यय हुए।

परिवादी द्वारा प्रतिपक्षी को समस्त दस्तावेजात उपलब्ध करवा दिये गये परन्तु प्रतिपक्षी ने उसके बीमित वाहन की रिपेयरिंग पर व्यय संपूर्ण राषि का भुगतान आज दिन तक नहीं किया। परिवादी ने जब दावा निस्तारण के लिए अप्रार्थीगण से सम्पर्क किया तो उसे बताया गया कि उसके दावे का निस्तारण करते हुए क्षतिपूर्ति के रूप में 89,000/- रूपये की राषि स्वीकृत की है। जबकि परिवादी ने कभी भी इतनी कम राषि के लिए न तो अपनी सहमति दी और न ही उसने आज दिन तक उक्त राषि प्राप्त की। यदि अप्रार्थीगण ने दावा प्रस्तुत करने के दौरान परिवादी से फुल एण्ड फाइनल के सेटलमेंट की रसीद प्राप्त कर उसके आधार पर नेट बैंकिग के जरिये कोई राषि परिवादी के खाते में जमा कर दी तो उससे परिवादी बाध्य नहीं है। परिवादी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 26.11.2013 को अप्रार्थी संख्या 1 को एक नोटिस भी भेजा, जिसमें उसने अपने बीमित वाहन की रिपेयरिंग में व्यय हुई सम्पूर्ण राषि के भुगतान का निवेदन किया था। यह नोटिस अप्रार्थी संख्या 1 को प्राप्त भी हो गया लेकिन अप्रार्थी संख्या 1 ने न तो नोटिस का जवाब दिया और न ही बीमित वाहन की रिपेयरिंग पर व्यय हुई सम्पूर्ण राषि का भुगतान उसे किया। प्रतिपक्षी का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है। अतः परिवाद में अंकितानुसार अनुतोश दिलाया जावे।

 

2.            अप्रार्थी संख्या 1 की तरफ से परिवादी के वाहन का बीमा कर दिनांक 10.08.2013 से 09.08.2014 की अवधि बाबत् बीमा पाॅलिसी जारी करना के तथ्य को स्वीकार करते हुए कि नागौर में अप्रार्थी की कोई षाखा नहीं है, ऐसी स्थिति में परिवाद क्षेत्राधिकार में नहीं है, साथ ही परिवादी ने घटना की सूचना पुलिस को न देकर बीमा पाॅलिसी की षर्तों का उल्लंघन किया है। यह भी बताया गया है कि दुर्घटना की सूचना मिलने पर अप्रार्थी ने सर्वेयर नियुक्त किया तथा सर्वे रिपोर्ट एवं पाॅलिसी षर्तों के आधार पर 89,735/- रूपये क्लेम राषि तय की, जिसे परिवादी ने फुल एण्ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में स्वीकार किया, तब अप्रार्थी द्वारा यह राषि अप्रार्थी संख्या 2 के यहां परिवादी के खाते में जमा करा दी गई, जिसे परिवादी ने स्वीकार किया है। अप्रार्थी द्वारा बताया गया है कि परिवादी ने अब गलत रूप से परिवाद पेष किया है, जो मय खर्चा खारिज किया जावे।

 

3.            अप्रार्थी संख्या 2 की तरफ से जवाब पेष कर बताया गया है कि वह अप्रार्थी संख्या 1 का अभिकर्ता नहीं है, बल्कि उसे गलत रूप से पक्षकार बनाया गया है। यह भी बताया गया है कि परिवादी ने हायरपर्चेज एग्रीमेंट पर अप्रार्थी संख्या 2 से वाहन पर ऋण सुविधा प्राप्त की है तथा अप्रार्थी संख्या 2 बीमा का व्यवसाय नहीं करता है। ऐसी स्थिति में परिवाद इस मंच के क्षेत्राधिकार का नहीं होने के कारण खारिज किया जावे।

 

4.            बहस सुनी गई। परिवादी ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही वाहन का पंजीयन प्रमाण-पत्र प्रदर्ष 1, बीमा पाॅलिसी प्रदर्ष 2, वाहन रिपेयर करवाये जाने के सम्बन्ध श्रीराम मोटर पार्टस के वहां से जारी बिल क्रमषः प्रदर्ष 3 से प्रदर्ष 6, वाहन रिपेयरिंग बाबत् भी महादेव जीप बाॅडी रिपेयरिंग सेंटर से जारी बिल प्रदर्ष 7 व 8 पेष करने के साथ ही अप्रार्थी संख्या 1 को दिये गये नोटिस की प्रति प्रदर्ष 9 की फोटो प्रतियां प्रस्तुत की है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि बीमित वाहन की दुर्घटना बस स्टेषन, पांचैडी, जिला नागौर में होने से वाद कारण इसी जिला मंच के क्षेत्राधिकार का रहा है एवं परिवादी की ओर से सर्वे रिपोर्ट के आधार पर फुल एण्ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में कोई निष्चित राषि स्वीकार नहीं की गई थी। ऐसी स्थिति में दुर्घटनाग्रस्त वाहन को ठीक करवाने में जो राषि व्यय हुई है उस बाबत् अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने क्लेम नहीं दिया है जो दिलाया जावे। उन्होंने अपने तर्कों के समर्थन में निम्नलिखित न्याय निर्णय भी पेष किये हैं:-

(1.) 2001 एनसीजे (एनसी) 691 न्यू इंडिया इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम पटेल कांतीभाई व       आत्माराम

(2.) 2003 एनसीजे 488 (एनसी) नेषनल इंष्योरंेस कम्पनी लिमिटेड बनाम विबग्योर स्ट्रक्चरल कंस्टेªक्षन्स

(3.) 2014 एनसीजे 402 (एनसी) नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड बनाम मिस्टर अब्राहम एमपी

 

5.            अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थी संख्या 2 का कार्यालय जयपुर में होने तथा नागौर जिला में उसकी कोई षाखा न होने के कारण परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद क्षेत्राधिकार से बाहर है। यह भी तर्क दिया गया है कि सर्वे रिपोर्ट एवं बीमा पाॅलिसी की षर्तों अनुसार तय क्लेम की राषि 89,735/- रूपये परिवादी ने फुल एण्ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में स्वीकार कर लिये थे। ऐसी स्थिति में परिवाद खारिज किया जावे। उन्होंने अपने तर्क के सम्बन्ध में 2010 एनसीजे 82 (एससी) सोनिक सर्जिकल बनाम नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड का न्याय निर्णय भी पेष किया है।

 

6.            पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री का अवलोकन करने के साथ ही उनके द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त वर्णित न्याय निर्णयों में माननीय न्यायालयों द्वारा अभिनिर्धारित मत का सम्मानपूर्वक अवलोकन किया गया। अभिलेख पर उपलब्ध सामग्री को देखते हुए यह स्वीकृत स्थिति है कि बीमित वाहन दिनांक 12.09.2013 को इसी जिला मंच के क्षेत्राधिकार में स्थित गांव पांचैडी में दुर्घटनाग्रस्त हुआ है, ऐसी स्थिति में वाद कारण को देखते हुए स्पश्ट है कि परिवाद इसी न्यायालय के क्षेत्राधिकार का रहा है। जहां तक अप्रार्थी पक्ष के इस तर्क का प्रष्न है कि परिवादी ने सर्वे रिपोर्ट एवं बीमा पाॅलिसी की षर्तों के आधार पर तय क्लेम राषि 89,735/- रूपये फुल एण्ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में स्वीकार कर ली थी तो इस सम्बन्ध में अप्रार्थी पक्ष द्वारा किसी प्रकार की कोई साक्ष्य पेष नहीं की गई है। अप्रार्थी की ओर से इस सम्बन्ध मंे परिवादी द्वारा की गई लिखित स्वीकृति का कोई प्रलेख पेष नहीं किया है तथा न ही इस सम्बन्ध में कोई स्पश्ट मौखिक साक्ष्य ही पेष किये जबकि परिवादी का यह कथन है कि उसके द्वारा फुल एण्ड फाइनल सेटलमेंट के रूप में कोई राषि स्वीकार नहीं की गई है। जहां तक सर्वे रिपोर्ट का प्रष्न है तो अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से जवाब प्रस्तुत करने के समय या उसके बाद बहस सुने जाने से पूर्व किसी प्रकार की सर्वे रिपोर्ट पेष नहीं की गई बल्कि बहस सुने जाने के बाद सर्वे रिपोर्ट की फोटो प्रति पेष की गई है लेकिन इस सर्वे रिपोर्ट के समर्थन में न तो कोई षपथ-पत्र प्रस्तुत किया गया है एवं न ही सर्वे रिपोर्ट की पुश्टि बाबत् अन्य कोई स्पश्ट साक्ष्य ही पेष की गई है। ऐसी स्थिति में बहस के बाद प्रस्तुत की गई सर्वे रिपोर्ट की मात्र फोटो प्रति के आधार पर यह तथ्य साबित नहीं माना जा सकता कि परिवादी का वाहन दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उसे पूर्ण रूप से ठीक करवाने में मात्र 89,735/- रूपये ही खर्च हुए हों। उक्त के विपरित परिवादी पक्ष द्वारा परिवाद के समर्थन में षपथ-पत्र प्रस्तुत करते हुए वाहन रिपेयर करवाने में खर्च हुई राषि बाबत् समस्त बिलों की फोटो प्रतियां प्रस्तुत की है, जिन पर अविष्वास करने का कोई कारण पत्रावली पर नहीं है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत बिल क्रमष प्रदर्ष 3 लगायत  प्रदर्ष 8 की कुल राषि 1,66,573/- रूपये है, जो कि परिवादी द्वारा दुर्घटनाग्रस्त वाहन को रिपेयर करवाने में खर्च होना बताया गया है। परिवादी द्वारा अपने परिवाद में किये गये अभिकथनों के साथ-साथ मौखिक बहस के समय भी यह स्वीकार किया गया है कि अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा क्षतिपूर्ति के रूप में 89,000/- रूपये परिवादी को अदा कर दिये गये हैं, ऐसी स्थिति में परिवादी वाहन रिपेयर करवाने में खर्च हुई षेश राषि प्राप्त करने का अधिकारी है। अप्रार्थी संख्या 1 ने बिना किसी युक्तियुक्त आधार के बीमा पाॅलिसी की षर्तों को अनदेखा कर परिवादी के पक्ष में मात्र 89,000/- रूपये की राषि का क्लेम स्वीकार कर सेवा दोश किया है जबकि पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री को देखते हुए स्पश्ट है कि परिवादी अपने दुर्घटनाग्रस्त वाहन को रिपेयर करवाने में खर्च हुई समस्त राषि 1,66,573/- प्राप्त करने का अधिकारी रहा है। ऐसी स्थिति में अब परिवादी को 1,66,573/- रूपये में से परिवादी को पूर्व में प्राप्त राषि 89,000/- रूपये कम करते हुए षेश राषि 77,573/- दिलाया जाना न्यायोचित होगा। यह भी उल्लेखनीय है कि अप्रार्थीगण द्वारा किये गये सेवा दोश के कारण परिवादी को अनावष्यक रूप से परेषान होना पडा, ऐसी स्थिति में उसे हुई मानसिक एवं आर्थिक परेषानी की क्षतिपूर्ति करने के साथ ही परिवाद व्यय भी दिलाया जाना न्यायोचित होगा।

 

 

 

 

आदेश

 

7.            परिणामतः परिवादी मोतीराम द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार कर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थी संख्या 1 परिवादी को 77,573/- रूपये षेश क्लेम राषि के अदा करे, अप्रार्थी संख्या 1 यह राषि अप्रार्थी संख्या 2 बैंक में जमा करवाये जो कि परिवादी को प्रदान की जावे। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी उपर्युक्त राषि 77,573/- रूपये पर परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक 27.01.2014 से वसूली होने तक 9 प्रतिषत साधारण ब्याज की दर से ब्याज भी प्राप्त करेगा। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी को हुई मानसिक व आर्थिक परेषानी की एवज में 2,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के भी 2,000/- रूपये अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा अदा किये जावें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।

 

8.            आदेष आज दिनांक 18.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।

 

 

 

।बलवीर खुडखुडिया।      ।ईष्वर जयपाल।       ।राजलक्ष्मी आचार्य।  

 सदस्य                  अध्यक्ष                      सदस्या

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

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