Uttar Pradesh

StateCommission

A/2003/1790

Central Bank Of India - Complainant(s)

Versus

Chhedi Prasad - Opp.Party(s)

B L Jaiswal

23 Nov 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2003/1790
( Date of Filing : 11 Jul 2003 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Central Bank Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Chhedi Prasad
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Nov 2022
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

 (मौखिक) 

अपील सं0- 1790/2003

Central Bank of India, Branch Sohnag, Deoria, through Branch Manager, Central Bank of India, Branch Sohnag, District Deoria.

                                               …………Appellant

V/s

Chhedi Prasad S/o. Gena R/o. Village Tilauli, Post Sohnag, P.S. Salempur, District Deoria.

                                               …….Respondent  

समक्ष:-

   माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

   माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित  : श्री राजीव जायसवाल,

                             विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित    : श्री बी0के0 उपाध्‍याय,

                             विद्वान अधिवक्‍ता।                                                       

दिनांक:- 23.11.2022

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उद्घोषित

 

निर्णय

1.        परिवाद सं0- 157/2002 छेदी प्रसाद बनाम सेंट्रल बैंक आफ इंडिया में जिला उपभोक्‍ता आयोग, देवरिया द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 05.06.2003 के विरुद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है।

2.        विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने प्रत्‍यर्थी/परिवादी द्वारा जमा किए गए अंकन 10,000/-रू0 के चेक को अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा समय पर भुगतान के लिए न भेजने पर अंकन 10,000/-रू0 राशि की क्षति की पूर्ति का आदेश दिया, साथ ही अंकन 2,000/-रू0 मानसिक कष्‍ट के मद में अदा करने तथा एक माह के अन्‍दर भुगतान न होने पर 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज अदा करने हेतु आदेशित किया गया है।

3.        हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजीव जायसवाल तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री बी0के0 उपाध्‍याय को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों का सम्‍यक परिशीलन किया।   

4.        अपीलार्थी/विपक्षी बैंक का यह कथन है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को जो चेक मिला था वह पूर्व के वित्‍तीय वर्ष का था। इसलिए इस चेक का भुगतान नये वित्‍तीय वर्ष में नहीं हो सकता। अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क इस आधार पर ग्राह्य नहीं है कि चेक दि0 21.03.2002 को जारी किया गया है जिसकी वैधता अवधि एक माह लि‍खी है। यदि वैधता अवधि एक माह नहीं भी लिखी होती तब वह चेक निगोशिएबल इन्‍सूस्‍टूमेंट अधिनियम के तहत छ: माह की अवधि तक बैंक में प्रस्‍तुत किया जा सकता था। इसलिए बैंक यह अभिवाक नहीं ले सकता कि यह चेक पूर्व के वित्‍तीय वर्ष का था, इसलिए भुगतान नहीं हो सका। यथार्थ में बैंक द्वारा यह चेक में वर्णित अवधि के पश्‍चात दि0 29.04.2002 को शाखा को प्रेषित किया गया, इसलिए समयावधि से बाधित मान लिया गया और भुगतान प्राप्‍त नहीं हो सका। अत: इस सम्‍बन्‍ध में बैंक के स्‍तर से लापरवाही की गई है, परन्‍तु यह भी सत्‍य है कि चेक में वर्णित राशि बैंक को कभी भी प्राप्‍त नहीं हुई। चेक में वर्णित राशि अभी भी चेक जारी करने वाले संस्‍था को मौजूद है। अत: न्‍याय निर्णय के लिए सर्वप्रथम बैंक इस आशय का एक प्रमाण पत्र जारी करे की प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में चेक में वर्णित राशि प्राप्‍त नहीं करायी गई है। इस प्रमाण पत्र को प्राप्‍त करने के पश्‍चात प्रत्‍यर्थी/परिवादी हरिजन समाज कल्‍याण विभाग के समक्ष उपस्थित हो और इस पीठ के निर्णय की एक प्रतिलिपि के साथ इस आशय का अनुरोध करे कि नई तिथि वर्णित करते हुए एक नया चेक उस राशि के सम्‍बन्‍ध में जारी किया जाए, जिस राशि के सम्‍बन्‍ध में पूर्व में चेक जारी किया गया था। यदि नियमों के अंतर्गत हरिजन समाज कल्‍याण विभाग द्वारा नया चेक जारी कर दिया जाता है तब प्रत्‍यर्थी/परिवादी इस चेक को बैंक के समक्ष प्रस्‍तुत करे और बैंक तदनुसार इस राशि का भुगतान प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में करना सुनिश्चित करे और यदि नियम बाध्‍यता के तहत नया चेक जारी करना सम्‍भव नहीं है तब सभी प्रकार के दायित्‍व वहन करने की बाध्‍यता अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की होगी तथा विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश पूर्णत: प्रभावी होगा।

5.        अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा ब्‍याज 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से अधिरोपित किया गया है जो अत्‍यधिक है। यह पीठ भी अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता के इस तर्क से सहमत है, अत: ब्‍याज दर 12 प्रतिशत के स्‍थान पर ब्‍याज 07 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।               

                           आदेश

6.        अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि अपीलार्थी/विपक्षी बैंक इस आशय का एक प्रमाण पत्र जारी करे की प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में चेक में वर्णित राशि प्राप्‍त नहीं करायी गई है। इस प्रमाण पत्र को प्राप्‍त करने के पश्‍चात प्रत्‍यर्थी/परिवादी हरिजन समाज कल्‍याण विभाग के समक्ष उपस्थित हो और इस पीठ के निर्णय की एक प्रतिलिपि के साथ इस आशय का अनुरोध करे कि नई तिथि वर्णित करते हुए एक नया चेक उस राशि के सम्‍बन्‍ध में जारी किया जाए, जिस राशि के सम्‍बन्‍ध में पूर्व में चेक जारी किया गया था। यदि हरिजन समाज कल्‍याण विभाग द्वारा चेक जारी कर दिया जाता है तब अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा चेक में वर्णित राशि और इस पर वाद योजन की तिथि से अंतिम अदायगी की तिथि तक 07 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्‍याज तथा शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना के मद में अधिरोपित धनराशि की ही अदायगी की जायेगी और यदि हरिजन समाज कल्‍याण विभाग द्वारा चेक जारी नहीं किया जाता है तब विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित सभी मदों में वर्णित राशि बैंक द्वारा देय होगी। 

          अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।   

          आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।        

 

   (विकास सक्‍सेना)                         (सुशील कुमार)

             सदस्‍य                                  सदस्‍य  

                                

शेर सिंह, आशु0,

कोर्ट नं0- 3

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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