राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-750/1996
(ओरल)
(जिला उपभोक्ता फोरम, बहराइच द्वारा परिवाद संख्या-62/1995 में पारित आदेश दिनांक 11-04-1996 के विरूद्ध)
शाखा प्रबन्धक, इलाहाबाद बैंक, शाखा जरवल कस्बा, बहराइच।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
छत्रपाल सिंह पुत्र बचऊ सिंह, ग्राम झाऊ पुरवा, पो0-जरवल कस्बा, परगना-हिसामपुर, तहसील-कैसरगंज, जिला बहराइच।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान अध्यक्ष।
2. माननीय श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री अनुराग पाठक।
दिनांक : 11-11-2016
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-62/1995 छत्रपाल सिंह बनाम् शाखा प्रबन्धक, इलाहाबाद बैंक में जिला उपभोक्ता फोरम, बहराइच द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 11-04-1996 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपरोक्त परिवाद के विपक्षी शाखा प्रबन्धक, इलाहाबाद बैंक की ओर से आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी बैंक को आदेशित किया है कि उन्होंने जो रू0 9000/- की धनराशि परिवादी के खाते से आहरित कर ली है उसको आदेश की सूचना होने के 30 दिन के अंदर परिवादी के खाते में जमा कर दें तथा उस धनराशि को
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यदि परिवादी निकालना चाहे तो उसमें कोई बाधा न डाली जाय। इसके साथ ही जिला फोरम ने यह भी आदेशित किया है कि दिनांक 17-09-1991 से भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी विपक्षी अदा करें तथा 500/-रू0 क्षतिपूर्ति भी विपक्षी बैंक परिवादी को अदा करें।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अनुराग पाठक उपस्थित।
हमने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादी की पासबुक में 13,000/-रू0 की गलत प्रविष्टि परिवादी के कर्मचारियों ने त्रुटिवश कर दी थी जब कि उक्त धनराशि परिवादी ने जमा नहीं की थी। परिवादी ने उक्त धनराशि निकाल ली। अत: परिवादी के पिता के खाते से परिवादी के खाते में 9000/-रू0 का अन्तरण बैंक द्वारा किया गया और उक्त धनराशि बैंक द्वारा आहरित की गयी।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि विरूद्ध है।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क कि प्रत्यर्थी के पिता द्वारा अपने खाते से अन्तरित 9,000/-रू0 की धनराशि को प्रत्यर्थी के खाते में बैंक द्वारा दर्ज नहीं किया गया है और उसकी कोई प्रविष्टि प्रत्यर्थी के खाते में नहीं की गयी है जिसके भुगतान का आदेश जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा दिया है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि अनुकूल है और इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
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हमने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने स्पष्ट रूप से परिवाद पत्र की धारा-7 में कहा है कि उसके पिता ने अपने खाते से 9,000/-रू0 दिनांक 18-09-1991 उसके खाते में दर्शित नहीं किया गया है। इसके साथ ही प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में यह भी कहा है कि 21 जून, 1982 से उसका खाता प्रारम्भ होने के बाद विभिन्न तिथियों में अपीलार्थी बैंक से वह लेन-देन करता रहा है और दिनांक 23 अगस्त, 08 सितम्बर व 23 सितम्बर, 1982 को क्रमश: 10,000/-रू0, 10,000/-रू0 और 13,000/-रू0 नगद जमा किया है।
अपीलार्थी ने अपने लिखित कथन में 9,000/-रू0 दिनांक 18-09-1991 को प्रत्यर्थी/परिवादी के पिता द्वारा अपने खाते से प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में अन्तरित किया जाना स्वीकार किया है परन्तु अपीलार्थी बैंक का कथन है कि यह रूपया बैंक को प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा देय धनराशि के बदले बैंक में अन्तरित कर दिया गया है।
बहस के दौरान प्रत्यर्थी/परिवादी की पासबुक प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने दिखाई है जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी के पिता द्वारा दिनांक 18 सितम्बर, 1991 को प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में अन्तरित 9,000/-रू0 की प्रविष्टि नहीं है और न ही पासबुक में 9,000/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते से बैंक में अन्तरित किये जाने की प्रविष्टि है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि जिला फोरम ने आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा यह धनराशि जो प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में जमा करने का आदेश अपीलार्थी/विपक्षी
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को दिया है और उस पर जो ब्याज दिया है उसे अनुचित, अवैधानिक एवं आधाररहित नहीं कहा जा सकता है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने प्रत्यर्थी/परिवादी की पासबुक बहस के समय दिखायी है जिसमें अपीलार्थी बैंक द्वारा जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश का अनुपालन करते हुए दिनांक 24 अगस्त, 1996 को उपरोक्त 9,000/-रू0 की धनराशि ब्याज सहित 14,826/-रू0 प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में अन्तरित कर दी गयी है और उक्त धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जा चुका है।
अत: यह स्पष्ट है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश का अनुपालन अपीलार्थी/विपक्षी ने दिनांक 24 अगस्त, 1996 को ही कर दिया है और डिक्रीशुदा धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को किया जा चुका है।
सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए हम इस मत के है कि अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (बाल कुमारी)
अध्यक्ष सदस्य