Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 1938/2005 (जिला उपभोक्ता आयोग, जालौन स्थान उरई द्वारा परिवाद सं0-102/2003 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 05/09/2005 के विरूद्ध) National Insurance Company Ltd. Through Divisional Manager Divisional Office, Civil Lines Jhansi. - Appellant
Versus - Charan Singh S/O Sri Prabhu Dayal
- Maya Singh S/O Sri Bal Kishun.
- Aspantali S/O Sri Bhundi Lal.
- Brij Mohan S/O Sri Anokhe Lal.
- Govind Singh S/O Sri Bal Kishun
All R/O Vill: Tirahi, Post-Lamsar, Pargana-Kalpi, Distt. Jalone. - S.B.I. Branch Babina, Kalpi, Jalone, Through Branch Manager.
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री सैय्यद हसीन प्रत्यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री एस.पी. पाण्डेय दिनांक:-18.11.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह अपील जिला उपभोक्ता आयोग, जालौन स्थान उरई द्वारा परिवाद सं0-102/2003 चरन सिंह व अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 05/09/2005 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अंकन 2,38,600/-रू0 मे से 30 प्रतिशत कटौती के पश्चात अवशेष राशि अदा करने का आदेश 06 प्रतिशत ब्याज के साथ पारित किया है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादीगण द्वारा विपक्षी सं0 2 से अंकन 2,50,000/-रू0 का ऋण प्राप्त कर एक टेंट हाउस व्यापार प्रारंभ किया, जिसका बीमा दिनांक 07.06.2000 से दिनांक 06.06.2001 की अवधि के लिए कराया गया था। दिनांक 22.03.2001 को इस टेंट हाउस में चोरी हो गयी, जिसकी रिपोर्ट अपराध सं0 75 सन 2001 धारा 380 आईपीसी दर्ज करायी गयी तथा बीमा कम्पनी एवं बैंक को सूचना दी गयी। कुल 2,38,600/-रू0 का सामान चोरी हुआ। समस्त दस्तावेज उपलब्ध कराने के बावजूद बीमा कम्पनी द्वारा बीमा क्लेम का निस्तारण नहीं किया गया और बाद में दिनांक 07.06.2004 को बीमा क्लेम निरस्त कर दिया गया, इसलिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- बीमा कम्पनी का कथन है कि बुकिंग पंजिका की प्रति उपलब्ध नहीं करायी गयी। विलम्ब से निस्तारण के लिए स्वयं परिवादी जिम्मेदार है।
- विपक्षी सं0 2 एसबीआई द्वारा यह कथन किया गया है कि बीमा कम्पनी द्वारा जो भी राशि मिले वह बैंक को प्राप्त करायी जाए क्योंकि परिवादी द्वारा बैंक से ऋण प्राप्त किया गया है।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी द्वारा चोरी की जो राशि बतायी गयी है, उसमें 30 प्रतिशत कटौती के पश्चात अवशेष राशि बतौर क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
- इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि-विरूद्ध है। परिवाद के लम्बित रहते हुए परिवादी द्वारा कागजात उपलब्ध कराये गये, इसलिए दिनांक 07.06.2004 के आदेश द्वारा बीमा क्लेम का निस्तारण किया जा चुका है। बीमा क्लेम नकारने का सही आधार बीमा कम्पनी द्वारा उठाये गये हैं। परिवादी द्वारा चोरी में जिन सामानों को दर्शाया है, वह दिनांक 26.04.1999 को क्रय किये गये हैं। 02 साल तक काम करने के पश्चात कुछ आइटम खोने चाहिए और कुछ प्रयोग करने के दौरान नष्ट होना चाहिए, परंतु जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा इन बिन्दुओं पर कोई विचार नहीं किया गया। सर्वेयर द्वारा कुल 40,185/-रू0 की क्षति का आंकलन किया गया है। अंकन 2,38,600/-रू0 की क्षति का आंकलन करने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। यह राशि काल्पनिक रूप से निर्धारित की गयी है।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता को सुना। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया।
- बीमा कम्पनी को यह तथ्य स्वीकार है कि परिवादी के पक्ष में बीमा पॉलिसी जारी की गयी थी। यह तथ्य भी स्वीकार है कि बीमा क्लेम प्राप्त हुआ और बीमा कम्पनी द्वारा सर्वेयर की नियुक्ति की गयी, जिसके द्वारा अंकन 40,185/-रू0 की क्षति का आंकलन किया गया। अत: इन सभी बिन्दुओं पर विस्तृत विवेचना की आवश्यकता नहीं है। अब केवल इस बिन्दु पर विचार करना है कि क्षति की राशि किस दर से निर्धारित की जानी चाहिए क्योंकि सर्वेयर द्वारा कुल 40,185/-रू0 की क्षति का आंकलन किया है, जबकि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अंकन 2,38,600/-रू0 की क्षति का आंकलन किया गया है।
- जिला उपभोक्ता आयोग के निर्णय से जाहिर होता है कि दिनांक 26.04.1999 को अंकन 2,65,432/-रू0 में क्रय किये गये सामानों के बिल को क्षतिपूर्ति का आधार बनाया है तथा यह भी आधार लिया है कि पुलिस द्वारा अंकन 2,38,600/-रू0 के सामान चोरी होना आंका गया है, इसी राशि को कटौती करने के पश्चात अदा करने का आदेश पारित किया गया है, यद्यपि जिला उपभोक्ता आयोग ने चोरी गये सामान की कीमत में 30 प्रतिशत की कटौती का भी आदेश पारित किया है, परंतु इस बिन्दु पर विचार नहीं किया कि यह सामान दिनांक 26.04.1999 को क्रय किया गया है, जबकि चोरी की घटना दिनांक 22.03.2001 को बतायी गयी है। टेंट के व्यापार में जो सामान प्रयोग होता है, उसका एक प्रयोग भी सामान के मूल्य को घटा देता है, जबकि 02 वर्ष की अवधि के दौरान टेंट के सामान का एक बार नहीं अपितु अनेक बार प्रयोग हुआ है, इसलिए कटौती की राशि 50 प्रतिशत की जानी चाहिए। 30 प्रतिशत की कटौती के पश्चात अवशेष राशि की क्षतिपूर्ति का आदेश विधि-सम्मत नहीं कहा जा सकता। अत: बीमा कम्पनी द्वारा प्रस्तुत की गयी अपील इस सीमा तक स्वीकार होने योग्य है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने क्षति का जो आंकलन अंकन 2,38,600/-रू0 किया गया है, उसमें से 50 प्रतिशत कटौती के पश्चात अवशेष राशि बीमा कम्पनी द्वारा देय होगी, जिस पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी अदा किया जायेगा।
आदेश अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि अपीलार्थी अंकन 2,38,600/-रू0 में से 50 प्रतिशत की कटौती के पश्चात अवशेष राशि अंकन 1,19,300/-रू0 परिवादी को अदा करे। अवशेष राशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज भी अदा करे। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए। उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2 | |