(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2353/2007
(जिला आयोग, रायबरेली द्वारा परिवाद संख्या-69/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15.9.2007 के विरूद्ध)
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लि0, जेल गार्डेन रोड, रायबरेली, द्वारा ब्रांच मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
चन्द्र प्रकाश हासानी पुत्र श्री देवन दास, निवासी 198, सत्य नगर, शहर रायबरेली, ओनर रॉयल कोल कंपनी, कृष्ण नगर, सुलतानपुर रोड, निकट आईटीआई, शहर रायबरेली, यू.पी.।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री प्रशान्त कुमार के सहायक श्री
देवेश कुमार।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री टी.एच. नकवी।
दिनांक: 18.11.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-69/2007, चन्द्र प्रकाश हासानी बनाम नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 में विद्वान जिला आयोग, रायबरेली द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15.9.2007 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए बीमित परिसर में आग लगने के कारण स्टॉक की हानि की प्रतिपूर्ति के लिए अंकन 2,80,792/-रू0 की राशि 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने अपने व्यापार के संचालन के लिए दो गोदाम स्थापित किए हैं, जिनमें कोयला रखा जाता है, जिसकी सुरक्षा के लिए फायर बीमा पालिसी अंकन 10 रूपये मूल्य की प्राप्त की गई है, जिसकी अवधि दिनांक 23.1.2006 से दिनांक 22.1.2007 तक है। दिनांक 5.4.2006 की सुबह तेज आंधी से आग की चिंगारी कोयले के ढेर पर गिर गयी, जिससे 120 टन कोयला जल गया। चौकीदार से सूचना मिलने पर फायर ब्रिगेड से सहायता मांगी गयी तथा पास में स्थित धर्मकांटा की बोरिंग से पानी का प्रयोग कर घंटो के बाद आग पर काबू पाया जा सका, परन्तु इस समय तक 120 टन कोयले का ढेर जलकर नष्ट हो चुका था, जिसकी कीमत अंकन 4,80,000/-रू0 थी। फायर ब्रिगेड द्वारा इस घटना की रिपोर्ट दी गई। बीमा कंपनी को सूचना दी गई। बीमा कंपनी के सर्वेयर द्वारा मौके का निरीक्षण किया गया, जिनके द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और यह निष्कर्ष दिया गया कि कोयला आग से जलकर नष्ट नहीं हुआ है, अपितु सुलग कर स्वत: जला है।
4. विपक्षी का कथन है कि स्वत: आग लगने के कारण हानि का बीमा नहीं कराया गया था। बीमा क्लेम प्राप्त होते ही विशेषज्ञ सर्वेयर को नियुक्त किया गया था, जिनके द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि स्वत: आग लगने के कारण बीमा पालिसी के अंतर्गत सुरक्षा उपलब्ध नहीं है, इसी आधार पर बीमा क्लेम निरस्त किया गया है।
5. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने निष्कर्ष दिया कि विपक्षी को आग लगना स्वीकार है, परन्तु जो पदार्थ स्वत: ज्वलनशील हैं, उसका भी पालिसी में रिस्क कवर है और आग बुझाने के बाद भी कोयला कई दिन तक सुलगता रहा, इसलिए क्षतिपूर्ति की राशि देय है।
6. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि बीमा पालिसी के अंतर्गत स्वत: आग लगने के कारण सुरक्षा कवर मौजूद नहीं है। सर्वेयर द्वारा मौके पर पाया गया कि बाहरी कारणों से अग्नि काण्ड घटित नहीं हुआ है, इसलिए बीमा पालिसी के अंतर्गत बीमा क्लेम देय नहीं है। विद्वान जिला आयोग द्वारा अवैध निर्णय/आदेश पारित किया गया है।
7. प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि बीमा पालिसी के अंतर्गत प्रत्येक प्रकार की आग लगने के कारण कारित क्षति शामिल है, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधिसम्मत है।
8. पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत अभिवचनों, विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश का अवलोकन करने तथा मौखिक तर्कों को सुनने के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए एक मात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या बीमा पालिसी के अंतर्गत स्वत: आग लगना भी शामिल है ?
9. बीमा पालिसी की प्रति पत्रावली पर मौजूद है, जिसके अवलोकन से ज्ञात होता है कि मानक अग्नि एवं विशेष जोखिम पालिसी परिवादी के पक्ष में जारी की गई है। कोयले के भण्डार में स्वत: आग लगना भी विशेष जोखिम पालिसी के वाक्यांश के तहत आता है, इसलिए पालिसी में इस शब्द का स्पष्ट उल्लेख न होने के बावजूद कि स्वत: स्फूर्त अग्निकाण्ड के कारण भी बीमा पालिसी के अंतर्गत क्षतिपूर्ति देय होगी। बीमा पालिसी का शीर्षक ही इस स्थिति में रिस्क कवर करता है। चूंकि सर्वेयर द्वारा इस तथ्य को अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि मौके पर अग्निकाण्ड हुआ है। यद्यपि निष्कर्ष में स्वत: आग लगने का कारण बताया गया है। कोयले जैसे पदार्थ में गर्मी के दिनों में स्वत: अग्नि का कारित होना प्राकृतिक अवस्था है और पालिसी के अंतर्गत इस स्थिति में भी क्षतिपूर्ति की राशि देय है। अत: क्षतिपूर्ति के संबंध में विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश साक्ष्यों की सही व्याख्या पर आधारित है, परन्तु ब्याज अत्यधिक उच्च दर से अधिरोपित किया गया है। अत: ब्याज दर 9 प्रतिशत के स्थान पर 6 प्रतिशत सुनिश्चित किया जाना न्यायोचित है। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
10. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश के अंतर्गत आदेशित ब्याज दर 09 प्रतिशत के स्थान पर 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज देय होगा। शेष निर्णय/आदेश यथावत् रहेगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2