(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1637/2011
नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लि0
Versus
चन्द्रपाल सिंह पुत्र श्री गजोधर सिंह
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री नीरज पॉलीवाल, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित:- श्री एस0के0 शुक्ला, विद्धान अधिवक्ता
दिनांक :20.11.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- परिवाद संख्या-197/2005, चन्द्रपाल सिंह बनाम नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड में विद्वान जिला आयोग, लखीमपुर खीरी द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 21.07.2011 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने बीमित वाहन सं0 यू0पी0 31 एफ 0209 के बीमित अवधि के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण मरम्मत में खर्च राशि की प्रतिपूर्ति के लिए अंकन 86,320/-रू0 अदा करने का आदेश पारित किया है। मानसिक प्रताड़ना के मद में अंकन 5,000/-रू0 तथा वाद व्यय के रूप में अंकन 5,000/-रू0 के लिए भी आदेशित किया है।
- बीमा कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि बीमा क्लेम प्राप्त होने पर सर्वेयर की नियुक्ति की गयी थी और सर्वेयर द्वारा कुल 39,033/-रू0 की क्षति का आंकलन किया है, इसलिए इसी आंकलन के अनुसार क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना चाहिए।
- परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि यथार्थ में जो धनराशि खर्च हुई है उसकी रसीदें जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी और इन्हीं रसीदों को विचार मे लेते हुए क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया है, जो विधिसम्मत है।
- जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत रसीदों को विचार में लिया गया है, जिनका मूल्य अंकन 86,320/-रू0 होता है। सर्वेयर रिपोर्ट हमेशा क्षतिपूर्ति की राशि का सही निर्धारण नहीं करती। उसमें चूक संभव है। यदि परिवादी द्वारा वास्तविक खर्च धनराशि की रसीदें प्रस्तुत की गयी हैं तब इन रसीदों के आधार पर ही क्षतिपूर्ति का आदेश देना विधिसम्मत है ,परंतु इस राशि पर ब्याज देने के पश्चात मानसिक प्रताड़ना के मद में अंकन 5,000/-रू0 अधिरोपित करने का कोई औचित्य नहीं है। इसी प्रकार ब्याज दर 07 प्रतिशत के स्थान पर 06 प्रतिशत किया जाना उचित प्रतीत होता है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को देय धनराशि पर ब्याज की गणना 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से की जायेगी तथा मानसिक प्रताड़ना के मद में अंकन 5,000/-रू0 के संबंध में पारित आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2