सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या- 164/2018
(जिला उपभोक्ता फोरम, मथुरा द्वारा परिवाद संख्या- 23/2010 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 04-01-2018 के विरूद्ध)
सुमित उपाध्याय आत्मज डा0 ब्रजेश चन्द्र उपाध्याय, द्वारा संरक्षण सुरेश चन्द्र उपाध्याय, निवासी- बी 115 मोतीकुन्ज मथुरा।
अपीलार्थी/परिवादी
बनाम
चन्दन बन पब्लिक स्कूल, मथुरा द्वारा डायरेक्टर श्रीमती सुनीता सिंह।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : व्यक्तिगत रूप से उपस्थित।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई उपस्थित नहीं।
दिनांक- 04-04-2019
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या– 23 सन् 2010 सुमित उपाध्याय बनाम चन्दन बन पब्लिक स्कूल, मथुरा द्वारा डायरेक्टर श्रीमती सुनीता सिंह में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मथुरा द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 04-01-2018 के विरूद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर दिया है जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी, सुमित उपाध्याय ने यह अपील प्रस्तुत की है।
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अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादी सुमित उपाध्याय व्यक्तिगत रूप से उपस्थित आए हैं। प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से नोटिस तामीला के बाद भी कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
मैंने अपीलार्थी/परिवादी के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि उसने अपने पाल्य पुत्र सुमित उपाध्याय आत्मज डा० ब्रजेश चन्द्र उपाध्याय का प्रत्यर्थी/विपक्षी सुनीता सिंह के विद्यालय में कक्षा 11 में प्रवेश दिलाया जिसके लिए विपक्षी ने प्रवेश शुल्क में 2500/-रू० की छूट प्रदान करते हुए दिनांक 12-06-2009 को शुल्क के रूप में 7000/-रू० के स्थान पर 4500/-रू० जमा कराया। परन्तु जब अपीलार्थी/परिवादी शिक्षण शुल्क जमा करने दिनांक 22-06-2009 को प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्यालय में गया तो प्रत्यर्थी/विपक्षी सुनीता सिंह शुल्क में छूट देने के अपने वादे के मुकर गयीं और दबाव डालते हुए 12,800/-रू० अपीलार्थी/परिवादी से जमा कराया।
परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्यर्थी/विपक्षी ने प्रवेश फार्म में सिमबियोसिस कोचिंग सेन्टर से ट्यूशन पढ़ने हेतु 15,000/-रू० जमा करने का विकल्प भी दिया था जिसे अपीलार्थी/परिवादी द्वारा अस्वीकार किया गया। अत: अपीलार्थी/परिवादी द्वारा ट्यूशन की फीस की धनराशि अदा नहीं की गयी।
परिवाद पत्र के अनुसार दिनांक 22-06-2009 से जुलाई तक कक्षा-11 की क्लास को विज्ञान पढ़ाने हेतु विद्यालय में कोई प्रवक्ता नहीं था। उन्हीं छात्रों जिनके द्वारा 15000/-रू० ट्यूशन फीस जमा की गयी थी, को
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सिमवियोसिस के प्राइवेट टयूटर क्लास में विज्ञान पढ़ा रहे थे। इस प्रकार प्रत्यर्थी/विपक्षी के स्कूल में विज्ञान का प्रवक्ता न होने के कारण विज्ञान की क्लास नहीं पढ़ाई जाती थी। अत: दिनांक 25-07-2009 को अपीलार्थी/परिवादी के पाल्य पुत्र ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से शिकायत की तो उससे प्रत्यर्थी/विपक्षी ने 15,000/-रू० दो दिन के अन्दर जमा करने और प्राइवेट ट्यूटर से कक्षा में पढ़ने की अनिवार्यता जाहिर की और इसके साथ ही उसे ट्यूशन फीस अदा न करने पर टी०सी० ले जाने को कहा और प्रवेश शुल्क के रूप में जमा फीस वापस करने की धमकी दिया। तब अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी से दिनांक 28-07-2009 को बातचीत की परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा कोई सन्तोषजनक जवाब न देने के कारण अपीलार्थी/परिवादी ने अपने पाल्य पुत्र की टी०सी० हेतु आवेदन किया जिस पर टी०सी० लेने का कारण प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा बाध्य किया जाना लिखा गया। तब अपीलार्थी/परिवादी के पुत्र को प्रत्यर्थी/विपक्षी द्वारा टी०सी० नहीं दी गयी और टी०सी० प्राप्त करने हेतु कोई और कारण लिखने को कहा गया। तब मजबूरन अपीलार्थी/परिवादी ने दूसरा कारण टी०सी० प्राप्त करने हेतु लिखा। परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि उसका पुत्र प्रत्यर्थी/विपक्षी के स्कूल में ट्यूशन फीस न जमा करने के कारण एक दिन भी नहीं पढ़ा है जिसका उल्लेख टी०सी० में है।
परिवाद पत्र के अनुसार अपीलार्थी/परिवादी का कथन है कि प्रत्यर्थी/विपक्षी के स्कूल में शिक्षा अधिनियमों का उल्लंघन करते हुए प्राइवेट ट्यूशन को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसका विरोध करने पर प्रत्यर्थी/विपक्षी ने उसके पाल्य पुत्र
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का भारी शेाषण किया गया है। अत: अपीलार्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत कर निम्न अनुतोष चाहा है :-
"प्रार्थना है कि परिवादी के पुत्र के प्रवेश तथा शिक्षण शुल्क के रूप में अवैध रूप से एवं गैर कानूनी रूप से शिक्षा अधिनियमों की अवहेलना करते हुए ली गयी फीस मु0 17,125/- रू० लिये गये दिनांक से मय 09 प्रतिशत ब्याज की दर से एवं वाद व्यय एवं हर्जाने के रूप में रूपया 50,000/- और परिवादी को विपक्षी से दिलाने की कृपा करें।"
जिला फोरम के समक्ष प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया है जिसमें कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी ने अपने पुत्र का प्रवेश कक्षा-11 में उसके विद्यालय में कराया था। प्रवेश शुल्क में 2500/-रू० की छूट प्रदान करते हुए 4500/-रू० जमा कराए गये थे। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी के पुत्र कक्षा में पढ़ायी हेतु नहीं आते थे। इस सम्बन्ध में उनके संरक्षक को भी सूचना दी गयी थी किन्तु कोई ध्यान नहीं दिया गया। लिखित कथन में प्रत्यर्थी/विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया है कि अपीलार्थी/परिवादी के पुत्र सुमित उपाध्याय द्वारा कक्षा में मार-पीट करने एवं विद्यार्थियों का सामान चुरा लेने की आम शिकायत थी जिसकी सूचना संरक्षक को दिये जाने पर विद्यालय में दबाव बनाने के लिए गलत कथन के साथ परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के उपरान्त यह माना है कि पत्रावली पर उपलब्ध समस्त साक्ष्यों व अभिलेखों से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा- 2 (जी ओ) में वर्णित प्राविधानो के अन्तर्गत किस प्रकार सेवा में विपक्षी द्वारा कमी की गयी
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है, स्पष्ट नहीं होता है। यदि परिवादी के साथ विद्यालय द्वारा अन्य किसी प्रकार से कोई धोखा, दबाव अथवा छल किया गया है तो परिवादी उसके सन्दर्भ में सक्षम न्यायालय में विधिक कार्यवाही करने हेतु स्वतंत्र है। अत: जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपीलार्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आदेश उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान के विरूद्ध है। अपीलार्थी/परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/विपक्षी का उपभोक्ता है और प्रत्यर्थी/विपक्षी ने शिक्षण संस्था से संबंधित अधिनियमों की अवहेलना करते हुए उससे 17,725/-रू० फीस लिया है जिसे अपीलार्थी/परिवादी को वापस दिलाया जाना आवश्यक है।
मैंने अपीलार्थी/परिवादी के तर्क पर विचार किया है।
उपरोक्त वर्णित तथ्यों से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी ने प्रत्यर्थी/विपक्षी के विद्यालय के विरूद्ध वर्तमान परिवाद प्रस्तुत किया है और विद्यालय की सेवा में कमी के आधार पर जमा फीस वापस करने हेतु अनुतोष चाहा है। इस सन्दर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बिहार स्कूल इक्जामिनेशन बोर्ड बनाम सुरेश प्रसाद सिन्हा (2009) 8 SCC 483 में प्रतिपादित सिद्धान्त से स्पष्ट है कि शिक्षण संस्थान द्वारा शिक्षा प्रदान किया जाना धारा- 2 (ओ) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत सेवा नहीं है। अत: शिक्षण संस्थान के शैक्षिक कार्य के सम्बन्ध में परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।
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उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह स्पष्ट है कि अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रत्यर्थी/विपक्षी के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत ग्राह्य नहीं है। अत: जिला फोरम ने परिवाद निरस्त कर कोई गलती नहीं की है। जिला फोरम के निर्णय से स्पष्ट है कि जिला फोरम ने अपीलार्थी/परिवादी को सक्षम न्यायालय में विधि के अनुसार कार्यवाही करने की स्वतंत्रता प्रदान की है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील बल रहित है। अत: निरस्त की जाती है।
अपील में उभय-पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
कृष्णा, आशु0
कोर्ट नं01