जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 182/2012
संत कवि मदनसिंह सोलंकी पुत्रश्री रामकिषन, जाति-सैनिक क्षत्रिय (माली), निवासी- डेह रोड, श्री पंचमुखी हनुमान मंदिर के पीछे चैनार रोड, नागौर षहर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. चाण्डक आॅफसेट जरिए मालिक श्री दिलीप चाण्डक, बाहेतियों की गली, नागौर षहर, तहसील व जिला-नागौर, (राज.)।
-अप्रार्थी
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री हेमसिंह चैधरी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री दिनेष हेडा, अधिवक्ता वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 17.11.2015
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि अप्रार्थी षहर नागौर में चाण्डक आॅफसेट के नाम से अपना प्रिटिंग प्रेस का व्यवसाय करता है। परिवादी ने अपने भजनों के संग्रह की पुस्तक संत कवि श्री मदनसिंह सोलंकी भजन प्रकाष की एक हजार प्रतियां छपवाने के लिए अप्रार्थी से सम्पर्क किया। दोनों पक्षों के बीच दिनांक 20.07.2011 को एक सौदा हुआ। अप्रार्थी ने परिवादी को अपना एक कोटेषन बनाकर दिया और बताया कि एक हजार किताबें मुद्रित करवाने के लिए आपको कुल राषि 21,850/- रूपये देनी होगी, जिसमें से 50 प्रतिषत राषि अग्रिम जमा करानी होगी। दिनांक 28.07.2011 को परिवादी ने 50 प्रतिषत राषि 10,011/- रूपये का चैक अप्रार्थी को जारी कर दिया। भजनों के संग्रह की पत्रावली भी उसी दिन परिवादी ने अप्रार्थी को उपलब्ध करा दी। साथ ही एक अन्य भजनों की किताब का सैम्पल, जिसके अनुसार ही किताब प्रिंट करवानी थी कि एक प्रति भी अप्रार्थी को उपलब्ध करवा दी।
यह तय हुआ था कि 50 प्रतिषत राषि का अग्रिम भुगतान हो जाने के पष्चात् पन्द्रह दिन की अवधि में किताब टंकित कर उसका प्रुफ परिवादी को उपलब्ध करवा दिया जावेगा व प्रुफ चैक होने के सात दिवस की समयावधि में एक हजार किताबें मुद्रित कर परिवादी को उपलब्ध करवा दी जावेगी। सब कुछ तय होने के पष्चात भी परिवादी को तीन माह से अधिक की समयावधि बित जाने के पष्चात् भी न तो किताब को प्रिंट कर उसका प्रुफ चैक करवाया, ना ही किताबें मुद्रित कर उपलब्ध करवाई। बार-बार कहने पर अप्रार्थी ने दिनांक 01.11.2011 को अपनी गलती स्वीकार करते हुए पुनः परिवादी के साथ यह तय किया कि पुस्तक के षेश पृश्ठ की प्रुफ सात दिन में उपलब्ध करवा देगा व सात दिवस में ही किताबें उपलब्ध करा देगा, परन्तु अप्रार्थी ने आज तक भी अपने वचन को नहीं निभाया है। अप्रार्थी को कई बार स्पीड पोस्ट से कार्य पूर्ण करने का निवेदन किया। कार्य पूर्ण नहीं होने की सूरत में अग्रिम राषि मय ब्याज बाबत् भी सूचित किया परन्तु आज तक किसी भी बात की पालना नहीं की। इस प्रकार से यह उनका पूर्णतः सेवा दोष है।
अतः परिवादी को अप्रार्थी से 10,011/- रूपये मय 12 प्रतिषत वार्शिक ब्याज दिलाया जाये। परिवादी ने अप्रार्थी को जो भजनों के संगह की पत्रावली, एक अन्य भजनों की किताब जो परिवादी ने अप्रार्थी को उपलब्ध करवाई थी, वह भी दिलायी जावे। षारीरिक, मानसिक व आर्थिक संताप के मद में 3,50000/- रूपये एवं 5,000/- रूपये परिवाद व्यय भी दिलाये जायें।
2. अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से यह कहना है कि किताब मुद्रित करवाने की बात हुई थी, परन्तु भजनों के संग्रह की पत्रावली एवं अन्य भजनों की किताब का सैम्पल नहीं दिया था। परिवादी ने एक साथ भजनों की प्रतियां उपलब्ध नहीं करवाई। थोडे-थोडे भजन अप्रार्थी को उपलब्ध करवाये। इस प्रकार से स्वयं परिवादी ही उतरदायी है। भजनों की प्रतियां पढने योग्य नहीं थी। बडी मुष्किल से उन्हें पढवाकर किताब को मेटर तैयार करवाया गया। इसमें अप्रार्थी का कोई दोश नहीं है। किताब का प्रुफ तैयार करके भी परिवादी को दिया जा चुका है। परन्तु परिवादी ने इसे चैक करके अप्रार्थी को उपलब्ध नहीं करवाया, जिससे कि किताब मुद्रित होती।
अप्रार्थी का मुख्य रूप से यह भी कहना है कि परिवादी ने उक्त कार्य वाणिज्यिक प्रयोजनार्थ किया है। इस प्रकार से मंच में यह वाद चलने योग्य नहीं है।
3. बहस उभयपक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। पत्रावली से यह प्रकट होता है कि परिवादी ने अप्रार्थी से भजन, दोहे व आरती के प्रकाषन के लिए एक हजार प्रतियां छपवाने का सौदा हुआ था। इसके पेटे 50 प्रतिषत राषि 10,011/- रूपये का चैक भी परिवादी ने अप्रार्थी को जारी किया था।
यह भी स्पश्ट है कि अप्रार्थी ने अनुबंध के मुताबिक आज तक परिवादी को भजन, दोहे व आरती की किताबें मुद्रित करके नहीं दी है। यद्यपि अप्रार्थी का यह कहना है कि प्रार्थी ने अप्रार्थी द्वारा उपलब्ध कराई गई प्रुफ जांच कर अप्रार्थी को उपलब्ध नहीं करवाई, जिसके कारण उपरोक्त किताब मुद्रित नहीं की जा सकी।
परन्तु इस तथ्य से प्रार्थी ने इनकार किया कि अप्रार्थी की ओर से कोई प्रुफ रीडिंग प्रार्थी को उपलब्ध नहीं करवाई। प्रार्थी के इस कथन की पुश्टि प्रदर्ष 3 से होती है, जिसमें अप्रार्थी ने प्रार्थी को सात दिन में प्रुफ रीडिंग उपलब्ध करवाने का आष्वासन दिया था।
विद्वान अधिवक्ता अप्रार्थी का यह तर्क है कि परिवादी भजन, आरती व दोहे की किताबें छपवाकर आमजन को बेचता रहता है और इस सौदे की किताबें भी छपवाकर लोगों को बेचकर व्यवसाय करता इसलिए प्रार्थी का वाणिज्यिक मामला होने के कारण इस मंच को श्रवण क्षेत्राधिकार नहीं है।
विद्वान अधिवक्ता प्रार्थी का तर्क है कि प्रार्थी धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति है। जो कि भक्त लोगों को भजन, आरती व दोहे की किताबें निःषुल्क उपलब्ध कराता है।
हमारी राय में वर्तमान प्रकरण वाणिज्यिक प्रकृति का नहीं है क्योंकि ऐसी कोई साक्ष्य अप्रार्थी प्रस्तुत नहीं कर सका है कि पूर्व में भी कभी परिवादी ने उपरोक्त प्रकार की किताबें छपवाकर आमजन को बेची हों।
ऐसा भी कोई सबूत अप्रार्थी की ओर से प्रस्तुत नहीं हुआ है कि परिवादी की उपरोक्त किताबें छपने के पष्चात् किसी दुकानदार या व्यक्ति विषेश ने परिवादी से उपरोक्त किताबें खरीदने का सौदा किया हो।
विद्वान अधिवक्ता अप्रार्थी का यह भी तर्क है कि अप्रार्थी किताब का प्रुफ तैयार कर परिवादी को देकर उसे संषोधित कर अप्रार्थी को सुपुर्द कर दे तो तुरन्त किताबें मुद्रित कर दी जाएंगी परन्तु अप्रार्थी के इस तर्क का कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि परिवादी की ओर से आरती प्रकाष की मुद्रित प्रति प्रस्तुत की है एवं भजन व दोहे के तैयार प्रुफ की फोटो काॅपी भी पेष की है, जिसके सम्बन्ध में यह कहना है कि अतिषीघ्र ही मुद्रक बृजरास प्रोडक्ट, नागौर के यहां से उपरोक्त किताबें मुद्रित होकर परिवादी को प्राप्त हो जावेंगी।
इस प्रकार से अप्रार्थी ने सौदे के मुताबिक काम नहीं किया। जो पूर्णतः सेवा दोश की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी, अप्रार्थी के विरूद्ध परिवाद साबित करने में सफल रहा है। परिवादी का परिवाद-पत्र अप्रार्थी के विरूद्ध निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है तथा आदेष दिया जाता है किः-
आदेश
4. अप्रार्थी, प्रार्थी को विवादित सौदे के पेटे दी गई राषि रूपये 10,011/- एवं इस रकम पर दिनांक 28.07.2011 से तारकम वसूली 12 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से ब्याज रकम भी अदा करेगा। साथ ही अप्रार्थी, प्रार्थी को मानसिक संताप के 10,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के 5,000/- रूपये भी अदा करें। उपरोक्त समस्त रकम अप्रार्थी, प्रार्थी को एक माह में अदा करेगा।
आदेश आज दिनांक 17.11.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या