राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-164/2022
(सुरक्षित)
(जिला उपभोक्ता आयोग, हाथरस द्वारा परिवाद संख्या 74/2018 में पारित आदेश दिनांक 03.11.2021 के विरूद्ध)
1. अधिशाषी अभियन्ता, विद्युत वितरण खण्ड-चतुर्थ, सादाबाद, तहसील, सादाबाद, जिला, हाथरस।
2. अवर अभियन्ता, विद्युत वितरण खण्ड, सहपुर, जिला, हाथरस।
........................अपीलार्थी/विपक्षीगण
बनाम
चैतन्यदेव, ब्रजदेव एवं संजयदेव, पुत्रगण स्व0 केशवदेव, निवासी-मढाका पट्टी, बहराम, तहसील, सादाबाद, जिला, हाथरस।
...................प्रत्यर्थी/परिवादीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 30.06.2022
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी/विपक्षीगण अधिशाषी अभियन्ता, विद्युत वितरण खण्ड-चतुर्थ व अन्य द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, हाथरस द्वारा परिवाद संख्या-74/2018 चैतन्यदेव व अन्य बनाम अधिशाषी अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड, चतुर्थ व अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 03.11.2021 के विरूद्ध योजित की गयी।
प्रश्नगत निर्णय और आदेश के द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया:-
''परिवाद विरूद्ध विपक्षी सव्यय स्वीकार किया जाता है। विपक्षी विद्युत विभाग को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादीगण को उसके द्वारा नये संयोजन में व्यय की गयी
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धनराशि मुबलिग 73280रू (मुबलिग तिहत्तर हजार दो सौ अस्सी रूपया मात्र) इस परिवाद के प्रस्तुत करने के दिनांक से 7 प्रतिशत साधारण ब्याज की दर से अदा करेगा तथा मुबलिग 75000रू (मुबलिग पिचहत्तर हजार रूपया मात्र) परिवादीगण को हुई फसल की हानि, मानसिक संताप व वाद-व्यय के रूप में इस निर्णय के दिनांक से दो माह के अंदर अदा करेगा।
निश्चित समयावधि में आदेश का पालन न किये जाने पर परिवादीगण विपक्षी से सम्पूर्ण धनराशियों पर उसकी अदायगी के दिनांक तक 7 प्रतिशत साधारण ब्याज भी प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
आदेश की एक प्रति विपक्षी विद्युत निगम के प्रबन्ध निदेशक, जवाहर भवन लखनऊ को आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित की जाय।''
अपीलार्थी/विपक्षीगण विद्युत विभाग की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा उपस्थित आये हैं। प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है।
हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण का नलकूप संयोजन सं0 2801/012842 चार भाइयों (जयदेव, चैतन्यदेव, संजयदेव व ब्रजदेव) के नाम था, जिसके बिलों का भुगतान चारों भाइयों द्वारा दिनांक 17.12.2015 तक अपीलार्थी विद्युत विभाग में किया जाता रहा तथा प्रत्यर्थी/परिवादीगण जब दिनांक 17.12.2015 को बकाया बिल का भुगतान करने विपक्षी संख्या-2 (अवर अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड, सहपऊ, हाथरस) के कार्यालय में गये तो उन्हें पता चला कि उनके भाई जयदेव सिंह द्वारा विद्युत कनेक्शन विच्छेदित करने हेतु दिये गये आवेदन पत्र
पर विद्युत विभाग द्वारा उक्त कनेक्शन काट दिया गया है, जबकि प्रत्यर्थी/परिवादीगण के अनुसार उक्त कनेक्शन चारों भाइयों
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के नाम था, इसलिए एक भाई द्वारा आवेदन पत्र देने के आधार पर बिना शेष तीनों भाइयों को सूचित किये विद्युत विभाग द्वारा उक्त विद्युत कनेक्शन विच्छेदित किया जाना न्यायोचित नहीं है क्योंकि विद्युत बिल का भुगतान उक्त चारों भाइयों द्वारा समय से किया जाता रहा है।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि विद्युत विभाग द्वारा उक्त विद्युत कनेक्शन काटे जाने से उनके खेत की सिंचाई नहीं हो सकी तथा उनकी वर्ष 2016 की फसल पूरी नष्ट हो गयी।
प्रत्यर्थी/परिवादीगण का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण उक्त कनेक्शन व नलकूप चालू रखने के लिए पूर्णत: सक्षम हैं तथा उनके द्वारा उक्त कनेक्शन चालू रखने के लिए कई बार विद्युत विभाग के अधिकारियों व हाथरस के जिलाधिकारी के सम्मुख प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया, परन्तु उक्त विद्युत कनेक्शन जोड़ा नहीं गया, जिससे क्षुब्ध होकर प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख परिवाद योजित करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से आपत्ति प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया कि प्रश्नगत नलकूप संयोजन उपभोक्ता जयदेव सिंह पुत्र स्व0 केशवसिंह के नाम स्वीकृत था तथा उनके द्वारा ही विद्युत बिल का भुगतान किया जाता रहा है तथा उपभोक्ता जयदेव के आवेदन पर दिनांक 10.07.2015 को विच्छेदन शुल्क जमा कराकर उक्त कनेक्शन को दिनांक 25.12.2015 को पीडीसी कर दिया गया तथा पीडीसी फाइनल बिल मुबलिग 3368/-रू0 उपभोक्ता द्वारा दिनांक 01.02.2017 को जमा किया गया।
अपीलार्थी/विपक्षीगण का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण का यह कथन गलत है कि उक्त विद्युत कनेक्शन चारों भाइयों के नाम था। विद्युत विभाग के अभिलेख के अनुसार उक्त कनेक्शन केवल जयदेव सिंह के नाम स्वीकृत है, अन्य भाइयों के नाम लेजर
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में नहीं हैं।
अपीलार्थी/विपक्षीगण का कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण उनके उपभोक्ता नहीं हैं तथा प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा नलकूप संयोजन स्वीकृत कराने हेतु कोई आवेदन विद्युत विभाग के कार्यालय में प्रस्तुत नहीं किया गया है न ही किसी प्रकार का विभागीय एग्रीमेन्ट प्रत्यर्थी/परिवादीगण व विपक्षी विद्युत विभाग के मध्य हुआ है।
अपीलार्थी/विपक्षीगण का कथन है कि कोई संयोजन पीडीसी हो जाने के बाद उसे पुन: रिस्टोर नहीं किया जा सकता है नया संयोजन ही लिया जा सकता है तथा यह कि प्रत्यर्थी/परिवादीगण द्वारा मांगी गयी अस्थाई कनेक्शन चलाने की अनुमति भी इसलिए नहीं दी जा सकती है क्योंकि ऐसा अस्थाई संयोजन केवल नवनिर्माण मकान/भवन हेतु ही प्रदत्त किया जाता है। प्रत्यर्थी/परिवादीगण यदि चाहें तो सभी विभागीय औपचारिकतायें पूर्ण कर नवीन स्थाई विद्युत संयोजन स्वीकृत करा सकते हैं।
जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त अपने निर्णय में उल्लेख किया कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य कागज सं0 56 से स्पष्ट है कि विद्युत वितरण खण्ड प्रथम में दिनांक 30.08.2001 को संयोजन लेने के सम्बन्ध में जयदेव सिंह, चेतनदेव सिंह, संजयदेव सिंह तथा ब्रजदेव सिंह पुत्र केशव सिंह द्वारा वांछित धनराशि जमा की गयी तथा कागज सं0 57 जो उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन को दिनांक 30.08.2001 की मूल रसीद है, से दर्शित होता है कि इन चारों भाइयों द्वारा 7830/-रू0 जमा किये गये हैं। इसी प्रकार कागज सं0 58 उ0प्र0 पावर कार्पोरेशन की रसीद से यह दर्शित होता है कि सिक्योरिटी के रूप में परिवादीगण तथा एक अन्य भाई जयदेव द्वारा दिनांक 30.08.2001 को 1500/-रू0 जमा किये गये हैं।
उक्त आधार पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह माना गया कि उक्त चारों भाई उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं तथा
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एक भाई जयदेव सिंह के आवेदन पर विद्युत संयोजन को स्थाई रूप से विच्छेदित किये जाने के कथन के आधार पर ही प्रत्यर्थी/परिवादीगण उपभोक्ता होने के अधिकार से वंचित नहीं होते हैं। अत: प्रत्यर्थी/परिवादीगण व अपीलार्थी/विपक्षीगण के मध्य उपभोक्ता व सेवाप्रदाता का सम्बन्ध है तथा जिला उपभोक्ता आयोग को प्रश्नगत परिवाद के श्रवण का अधिकार है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने निर्णय में निम्न तथ्य अंकित किये गये हैं:-
''जिला आयोग द्वारा परिवादीगण की परिस्थितियों को दृष्टिगत रख दि. 15.11.18 को विपक्षी विद्युत विभाग को आदेशित किया था कि वह परिवादी संजयदेव के आवेदन पर उसके नाम नवीन विद्युत संयोजन की समस्त विभागीय औपचारिकताएं पूर्ण कर नियमानुसार आदेश पारित होने के 15 दिन के अंदर नवीन विद्युत संयोजन स्वीकृत करे, ताकि संजयदेव की धान की फसल बर्बाद न हो।
आयोग के इस आदेश के अनुपालन में तत्कालीन अधिशाषी अभियंता (श्री जगदीश प्रसाद) का एक पत्र कागज सं. 34 पत्रावली पर उपलब्ध है। इस पत्र में परिवादी संजयदेव से निजी नलकूप संयोजन हेतु आवेदन तैयार कर समस्त औपचारिकताएं पूर्ण कराते हुए पत्र प्राप्ति के 15 दिवस के अंदर खंड कार्यालय में जमा कराने के निर्देश दिये गये हैं। इस निर्देश के बाद परिवादी संजयदेव द्वारा दि. 07.09.2018 को कार्यवाही किये जाने का कथन कहा गया है।
अपनी बहस के दौरान परिवादी के अधिवक्ता द्वारा इस नये संयोजन को परिस्थितिवश मजबूरी में लिए जाने का कथन करते हुए पुन: पूर्व के सभी भाइयों के शामिलाती संयोजन को जुड़वाने के स्थान पर नये संयोजन में हुए व्यय एवं फसल के नुकसान को दिलाये जाने की मांग की गयी है। जबकि विपक्षी विद्युत विभाग के अधिवक्ता द्वारा दि. 07.10.21 को आपत्ति करते हुए कागज सं. 67 द्वारा यह अवगत कराया है कि प्रश्नगत नलकूप संयोजन ‘उपभोक्ता केशव सिंह परिवादी के पिता ने स्वेच्छा से पीडीसी
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कराया है।‘ इस आपत्तिपत्र के साथ अधिशाषी अभियन्ता श्री मनोज कुमार जैन का एक पत्र सं. 10904 दिनांकित 19.08.21 (कागज सं. 69 व 70) प्रस्तुत किया है जो इस बात को पुष्ट करता है कि विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता महोदय ने अपने प्रार्थनापत्र में यह कथन इसी पत्र में उल्लिखित तथ्यों के आधार पर लिखा है। विपक्षीगण की ओर से यह भी कहा गया है कि परिवादी संजयदेव के आवेदन पर नया विद्युत संयोजन जारी किया गया है। यह भी तर्क दिया गया है कि पीडीसी होने के बाद पुन: उसी संयोजन को संयोजित नहीं किया जा सकता है।
इस परिवाद में विपक्षी विद्युत विभाग के अधिशाषी अभियन्ता श्री मनोज कुमार जैन द्वारा दि. 11.09.18 को प्रस्तुत शपथपत्र में इस संयोजन को उपभोक्ता जयदेव सिंह के आवेदन पर पीडीसी किया जाना बताता है, जबकि दिनांक 19.08.21 का पत्र इस संयोजन को परिवादी के पिता केशवदेव द्वारा पीडीसी कराया जाना बताता है। अधिशाषी अभियन्ता द्वारा इस संयोजन के पीडीसी होने के विषय में कहे गये अंतर्विरोधी कथनों से न सिर्फ विद्युत विभाग की स्पष्ट लापरवाही सिद्ध होती है वरन् उनके द्वारा वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी एक सक्षम प्राधिकरण के समक्ष साशय मिथ्या कथन का किया जाना भी परिलक्षित होता है।
विपक्षी विद्युत विभाग एक लोकोपयोगी कार्य करने वाला निगम है। उससे किसानों के हित संरक्षण की अपेक्षा की जाती है। लेकिन इस विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा विभाग द्वारा किये गये गलत कार्य को उचित ठहराये जाने के लिए समय-समय
पर गलत तथ्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किये गये हैं तथा आयोग को गुमराह करने का प्रयास किया गया है।
जिला आयोग अधिशाषी अभियन्ता श्री मनोज कुमार जैन के इन अंतर्विरोधी कथनों को गंभीरता से लेते हुए उनके वरिष्ठ अधिकारी से उनके इस आचरण की सम्यक् जांच व उचित कार्यवाही की अपेक्षा करता है, जिससे भविष्य में किसी गरीब संयोजन धारक किसान के हित के विरूद्ध इस प्रकार के आचरण की
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पुनरावृत्ति न हो सके।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षी विद्युत विभाग द्वारा अपने उपभोक्तागणों में से मात्र जयदेव सिंह के आवेदन पर ही संयुक्त रूप से लिये गये इस नलकूप संयोजन का विच्छेदन कर अपनी सेवा में स्पष्टत: कमी कारित की गयी है।''
तद्नुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा प्रश्नगत आदेश दिनांक 03.11.2021 पारित किया गया।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए तथा पत्रावली पर उपलब्ध प्रपत्रों एवं जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त हम इस मत के हैं कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया, जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। अतएव, प्रस्तुत अपील अंगीकरण के स्तर पर निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी द्वारा इस अपील में जमा धनराशि 25,000/-रू0 अर्जित ब्याज सहित जिला उपभोक्ता आयोग को 01 माह में विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1