Rajasthan

Kota

CC/186/2009

Ramswarup Meena - Complainant(s)

Versus

Chairman, Jaipur Vidhut Vitran Nigam Ltd. - Opp.Party(s)

Sulochana sharma

09 Oct 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, झालावाड,केम्प कोटा (राज)।
पीठासीन अधिकारी:-श्री नन्दलाल षर्मा,अध्यक्ष व श्री महावीर तंवर सदस्य।

प्रकरण संख्या-186/2009
    
1    रामस्वरूप पुत्र श्री प्रहलाद मीणा।
2    किषन गोपाल पुत्र श्री प्रहलाद मीणा।
3    गौरी षंकर पुत्र श्री प्रहलाद मीणा।
4    रामनिवास पुत्र श्री प्रहलाद मीणा।
5    बद्री लाल पुत्र श्री प्रहलाद मीणा।
6    गोपाली वाई बेवा प्रहलाद मीणा,निवासीगण-बांगरोद तहसील पीपल्दा जिला कोटा।
                                                           -परिवादीगण।
                         बनाम

1    जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड जर्ये चेयरमेन/अध्यक्ष,जयपुर।
2    सहायक अभियन्ता(परि./संधा.) जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (जयपुर डिस्काॅम) इटावा जिला कोटा।
                                                          -विपक्षीगण।

     परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपस्थिति-

1    श्री रामकल्याण षर्मा,अधिवक्ता ओर से परिवादीगण।
2    श्री ष्याम बिहारी भार्गव,अधिवक्ता ओर से विपक्षीगण।
                                                           
                   निर्णय             दिनांक 09.10.2015  

यह पत्रावली जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, कोटा में पेष की गई तथा निस्तारण हेतु जिला मंच झालावाड केम्प कोटा को प्राप्त हुई है।
     प्रस्तुत परिवाद ब्च् ।बज 1986 की धारा 12 के तहत परिवादी ने                 दिनांक 10.06.2009 को इन अभिवचनों के साथ प्रस्तुत किया है कि परिवादी काष्तकार है    और उसने अपनी खसरा नंबर 44 व 104 की भूमियों में दो ट्यूबवैल खुदवा रखे हैं।      परिवादीगण द्वारा  विद्युत कनेक्षन के लिए परिवादी-1 द्वारा प्रार्थना पत्र पेष किया और      वरीयता अनुसार परिवादी-1 का प्रार्थना पत्र स्वीकृत करते हुए विपक्षी-2 द्वारा         28-02-2008    को    दो मांग पत्र क्रमषः 2124 व 2125 तादादी रकम 15,850/-रूपये व 15,850/-रूपये जमा कराने का डिमाण्ड नोटिस जारी किया तथा परिवहन चार्ज के          रूप में     1500-1500/-रूपये चार्ज  किये। डिमाण्ड  नोटिस की राषि  दिनंाक  24-10-2008 

                                     2

को जमा करा दी गई और विपक्षी-2 ने जिसकी जमा रसीद दी। लेकिन डिमाण्ड नोटिस की राषि समय पर जमा कराने के बाद भी विपक्षीगण ने आज दिन तक बिजली का कनेक्षन नहीं लगाया है जिसके अभाव में भूमियों में सिंचाई नहीं हो सकी और परिवादीगण को करीब 5,00,000/-रूपये का नुकसान हुआ है। विपक्षी-2 ने दिनंाक 12-01-2009 को जरिये पत्र सात दिवस में सामान प्राप्त करने हेतु सूचित किया और जब सामान लेने गये तो मौके पर सामान पहुंचाने से इन्कार कर दिया और कहा कि परिवहन की व्यवस्था करो जबकि परिवहन षुल्क 3,000/-रूपये परिवादीगण जमा करा चुके थे। इस प्रकार समय पर विद्युत कनेक्षन नहीं देकर विपक्षीगण ने सेवामें कमी है और विद्युत के अभाव में परिवादीगण को कृशि का 5,00,000/-रूपये की हानि हुई है जिसे दिलवाने हेतु अनुतोश चाहा गया है। 

     विपक्षीगण ने परिवाद का जवाब यह दिया है कि राजस्थान सरकार की नियमावली के तहत वरीयता सूची के आधार पर विद्युत कनेक्षन जारी किये जाते हैं। परिवादीगण उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं। विपक्षीगण ने कोई सेवामें कमी नहीं की है। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है।

    परिवाद के समर्थन में परिवादीगण की ओर से रामस्वरूप का षपथ पत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में म्ग.1 लगायत म्ग.19 दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं तथा विपक्षीगण ने जवाब के समर्थन में किसी का षपथ पत्र प्रस्तुत नहीं किया है।

    उपरोक्त अभिवचनों के आधार पर बिन्दुवार निर्णय निम्न प्रकार है:-
1    क्या परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ता है ?

    परिवादी का परिवाद,षपथ-पत्र तथा प्रस्तुत दस्तावेजात के आधार पर परिवादी विपक्षीगण का उपभोक्ता प्रमाणित पाया जाता है। 
2    क्या विपक्षीगण ने सेवामें कमी की है ?

उभयपक्षों को सुना गया, पत्रावली का अवलोकन किया तो स्पश्ट हुआ कि यह तथ्य उभय पक्षकारों द्वारा स्वीकृत है कि परिवादी ने दो विद्युत कनेक्षन के लिए विपक्षी-2 के कार्यालय में आवेदन पत्र पेष किया। विपक्षी-2 ने परिवादी के दोनों प्रार्थना पत्रों को स्वीकार दिनंाक
                              3
 28-02-2008 को दो मांग पत्र क्रमषः 2124 व 2125 तादादी रकम 15,850-15,850/-रूपये के जारी किये। इन मांगपत्रों में 1500-1500/-रूपये के परिवहन चार्जेज भी जोडे हुए थे। परिवादी ने डिमाण्ड नोटिस की राषि दिनांक 24-10-2008 को जमा करा दी जिसकी रसीद संख्या 13 व 14 विपक्षी ने जारी की। इन तथ्यों की पुश्टि पत्रावली में संलग्न मांगपत्र में म्ग.3एम्ग.4  रसीद  म्ग.5 व में म्ग.6 से होती है।
    इसके बाद पक्षकारान में मतभेद है। विपक्षी-2 ने में म्ग.8 व म्ग.9 के अनुसार दो पत्र दिनंाक 12-01-2009 को जारी किये और उसमें ये निर्देष दिये गये कि सात दिन में यह सामान प्राप्त करें वरना आपका वरीयता क्रम खत्म कर दिया जायेगा। इसके विपरीत परिवादी का कहना है कि परिवहन का चार्ज जब विपक्षी ने ले लिया तो सामान परिवादी को देने का और आॅफिस से प्राप्त करने का क्या औचित्य है। इसी रंजिष की बजह से संभवतः परिवादी के पक्ष में कनेक्षन जारी नहीं किया गया। जहां तक विपक्षी का यह तर्क है कि कनेक्षन वरीयता क्रम के आधार पर जारी किया जाता है लेकिन विपक्षी ने अपने जवाब के अतिरिक्त कथन के पैरा नंबर 2 में वरीयता सूची का क्रमांक अंकित कर रखा है लेकिन क्रमांक नहीं डाल रखा है और जबाव को पूरा पढने से यह स्पश्ट नहीं होता है कि आखिर विपक्षी-2 ने परिवादी को कनेक्षन कब जारी किया। इससे स्पश्ट है कि विपक्षीगण इस मंच को भी भ्रमित करना चाहते हैं। यदि वरीयता क्रम के आधार पर परिवादी को कनेक्षन देना था तो ऐसा वरीयता क्रम मंच के समक्ष पेष करते जिससे यह स्पश्ट हो जाता कि आखिर परिवादी का वरीयता क्रम कौन सा था लेकिन विपक्षीगण ने मंच में भी ऐसी कोई वरीयता क्रम की साक्ष्य पेष नहीं की है और परिवादी का क्रमांक कौन सा था यह भी पेष नहीं किया है। जब विपक्षीगण इस मंच को भी स्पश्टरूप से यह नहीं बता रहे हैं कि आखिर परिवादी का क्रमांक क्या था और उसको कनेक्षनल कब जारी किया गया तो फिर परिवादी को सही क्रमांक बताने का,कनेक्षन रिलीज करने का सही तौर तरीका प्रतीत नहीं होता है। परिणामस्वरूप उपरोक्त विवेचन व विष्लेशण से विपक्षीगण का सेवादोश यथाविधि प्रमाणित पाया जाता है। जहां तक परिवादी का यह तर्क है कि बिजली का कनेक्षन सही समय पर नहीं दिये जाने से उसे 5,00,000/-रूपये का नुकसान हो गया,यह दूरस्थ थौट है इसलिए इसका आंकलन नहीं किया जा सकता है।
अनुतोश ?
परिवादी का परिवाद आंषिक रूप से स्वीकार कियेे जाने योग्य पाया जाता है। 


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                               आदेष  
       परिणामतः परिवादी का परिवाद खिलाफ विपक्षीगण संयुक्तः व पृथकतः आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है:-

1    विपक्षीगण अन्य परिवादीगण के तरफ से परिवादी-1 को 30,000/-रूपये आर्थिक,मानसिक व षारीरिक क्षति के तौर पर तथा 5,000/-रूपये परिवाद व्यय के अदा करें।
2    विपक्षीगण उक्तांकित राषि को अदा करने के लिए निर्णय दिनंाक से दो माह के अन्दर अन्दर अदा करना सुनिष्चित करें अन्यथा निर्णय की दिनंाक से 9ः  वार्शिक ब्याज दर से ताअदाएगी सम्पूर्ण भुगतान पर ब्याज अदा करने के दायित्वाधीन होगें।
3    अप्रार्थीगण आदेष की पालना निर्णय दिनांक से दो माह में करें।

     (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)  
           सदस्य                                        अध्यक्ष

 

       निर्णय आज दिनंाक 09.10.2015  को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 

    (महावीर तंवर)                               (नन्द लाल षर्मा)
       सदस्य                                        अध्यक्ष

 

 

 

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