Chhattisgarh

Durg

CC/240/2014

Manish Kumar Verma - Complainant(s)

Versus

Chairman, FIIT JEE - Opp.Party(s)

R.Sharma

13 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/240/2014
 
1. Manish Kumar Verma
Raipur
Raipur
C.G.
...........Complainant(s)
Versus
1. Chairman, FIIT JEE
Durg
Durg
C.G.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:R.Sharma, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                   प्रकरण क्र.सी.सी./14/240

                                                                                                   प्रस्तुती दिनाँक 19.08.2014

1.  मानस कुमार वर्मा आ. मुकेश कुमार, उम्र 17 वर्ष (नाबा.),

2.  डाॅ.मुकेश कुमार वर्मा आ. स्व. श्री ईश्वर प्रसाद, उम्र 52 वर्ष,

निवासी-क्वा.नं.ई./41, एन.आई.टी. रायपुर कैम्पस, रायपुर (छ.ग.)                                                       - - - -        परिवादी

विरूद्ध

1.             चेयरमेन, एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई लिमि., एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई  हाऊस, 29-ए, कालू सराई, सर्वप्रिय विहार, (हौज़खस बस टर्मिनल के पास) नई दिल्ली 110016

2.             सेंटर-इंचार्ज, एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई. भिलाई सेंटर, 142, न्यू सिविक सेंटर, भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.)      

- - - -      अनावेदकगण

 

आदेश

(आज दिनाँक 13 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादी द्वारा अनावेदक से ट्यूशन फीस हेतु ली गई एडवांस की कुल राशि 75,842रू. मय ब्याज, मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

                                (2) प्रकरण मंे स्वीकृत तथ्य है कि परिवादी केे द्वारा अनावेदक क्र.2 संस्था में प्रवेश लिया गया था, जिसके लिए दो वर्ष का अग्रिम शुल्क अदा किया गया था।

परिवाद-

                                (3) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने अनावेदकगण संस्था में दो साल का पिनेकल प्रोग्राम हेतु फीस जमा की थी, जिसमें परिवादी ने केवल पहले ही साल पढ़ाई की और दूसरे साल में प्रवेश लेना उचित नहीं समझा, फलस्वरूप दूसरे साल की पढ़ाई नहीं की, जिस हेतु परिवादी ने अनावेदकगण को दूसरे साल की फीस रिफण्ड हेतु लिखित में एवं अधिवक्ता मार्फत नोटिस भी दी, परंतु अनावेदकगण ने कोई ध्यान नहीं दिया ना ही उक्त रकम वापस की, जिससे परिवादी और उसके पिता को मानसिक प्रताड़ना हुई। इस प्रकार अनावेदकगण ने सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण किया है, फलस्वरूप परिवादी को अनावेदकगण से कुल 75,842रू. मय ब्याज, मानसिक क्षतिपूर्ति, वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (4) अनावेदकगण का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि वे ख्याति प्राप्त शैक्षणिक संस्था है, जहां उच्च स्तरीय स्क्रीनिंग प्रवेश परीक्षा के पश्चात् ही छात्रों को कोचिंग हेतु भर्ती किया जाता है। भर्ती के समय छात्र और अभिभावक को संस्था के नियम और शर्तें समझा दिया जाता है और तत्संबंध में घोषणा पत्र निष्पादित किया जाता है कि यदि वे बीच में कोर्स छोड़ेंगे तो फीस वापस नहीं होगी, क्योंकि उक्त सत्र के लिए अनावेदक संस्था पहले से ही सब प्रबंध करती है।  अतः बीच में कोर्स छोड़ना संविदा के विरूद्ध है, जब छात्र और उसके अभिभावक ने दो साल की फीस जमा करने का विकल्प लिया गया है तब उक्त फीस वापसी योग्य नहीं होती है।  इस प्रकार अनावेदकगण का कृत्य सेवा में निम्नता और व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में नहीं आता है, अतः परिवाद खारिज किया जावे। 

                                (5) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदक से कुल राशि 75,842रू. मय ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है?   हाँ

2.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत

निष्कर्ष के आधार

                                (6) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (7) परिवादी का तर्क है कि मानस वर्मा ने जिसे अब परिवादी के नाम से सम्बोधित किया जायेगा ने अनावेदक फिट्जी की भिलाई शाखा में दो साल के कोर्स की फीस एडवांस में जमा की थी।  परिवादी दूसरे साल उक्त संस्था में नहीं पढ़ने का निर्णय लिया और फलस्वरूप उसने दूसरे साल की फीस वापसी हेतु अनावेदक सस्ंथा को तीन बार पत्राचार किया, पहली बार दि.31.03.2014 को दूसरी बार दि.10.06.2014 को और तीसरी बार अधिवक्ता के माध्यम से दि.12.07.14 को, परंतु अनावेदकगण ने कोई ध्यान नहीं दिया, फीस वापस नहीं की और इस प्रकार सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक कदाचरण किया है।

                                (8) अनावेदकगण ने आपत्ति ली है कि परिवादी के पास वाद कारण नहीं है, क्योंकि एनराॅलमेंट फार्म की शर्त के अनुसार जमा की गई फिस वापसी योग्य नहीं थी। नियम एवं शर्तों को परिवादी और उसके पिता द्वारा पढ़कर ही हस्ताक्षर किया गया था।  एडमीशन टेस्ट के आधार पर जो छात्र क्वालीफाईड होते थे उन्ही का एडमीशन होता था और इस प्रकार एक मुश्त पूरी फीस दो साल के लिए देय होती थी और परिवादी द्वारा दोनों साल की फीस अदा करने का विकल्प लिया गया था, इस प्रकार अनावेदकगण ने किसी प्रकार का व्यवसायिक कदाचरण या सेवा में निम्नता नहीं की गई है।

                                (9) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज एनेक्चर ओ.पी.2 से ही यह सिद्ध हो जाता है कि परिवादी ने जिस प्रोग्राम में एडमिशन लिया था वह पीनेकल दो साल का इंट्रीगेटेड प्रोग्राम था। निर्विवादित रूप से परिवादी दूसरे साल में उक्त संस्था में पढ़ाई नहीं किया है, जबकि पहले साल की फीस अलग निर्धारित थी, जिसके अनुसार परिवादी ने पहले साल की फीस क्रमशः 1,46,855रू. तथा 21,100रू. चेक द्वारा अदा की है।  यह फीस पहले साल की थी, परिवादी ने पहले साल पढ़ाई की और परिवादी पहले साल की फीस भी नहीं मांग रहा है वह तो दूसरे साल के कोर्स की फीस जो उसने एडवांस में जमा की थी वह मांग रहा है और एडवांस में फीस जमा करने को और फिर दूसरे साल में संस्था से पढ़ाई नहीं करने के निर्णय को इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता कि परिवादी ने मिडस्ट्रीम में पढ़ाई छोड़ दी।

 

(10) निर्विवादित रूप से परिवादी ने दूसरे वर्ष की पढ़ाई हेतु अभिकथित चेक द्वारा क्रमशः राशि 61,742रू. एवं 14,100रू. अदा किये हैं ओर एनेक्चर ए.3, ए.4 एवं ए.5 अनुसार उसने दूसरे साल की फीस वापसी हेतु पत्र एवं नोटिस भेजी।

(11) अनावेदकगण कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि परिवादी ने दूसरे साल का कोर्स मिडस्ट्रीम में छोड़ा या परिवादी द्वारा दूसरे साल का कोर्स छोड़ने के कारण उसकी सीट खाली रही।  अनावेदकगण ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि उन्होंने परिवादी द्वारा जो दूसरे साल की फीस एडवांस के रूप में जमा कर दी गई थी उसको एफ.डी. किया, अनावेदक ने यह भी सिद्ध नहीं किया है, उन्होंने परिवादी या उसके पालक से कोई बाॅण्ड भरावाया था, जिसके तहत फीस लोटाना संभव नहीं था।

(12)  मात्र घोषणा पत्र में हस्ताक्षर करवा देने से उपरोक्त परिस्थिति में फीस नाॅट रिफण्डेबल हो जायेगा, ऐसा किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।  इस प्रकार घोषणा करना सर्वथा कदाचरण की श्रेणी में आयेगा, यदि हम अनावेदक द्वारा जारी किये गये फार्म का अवलोकन करें तो उसमें अनावेदकगण द्वारा वाद कारण कहां संस्थित होगा उसे भी स्टेचुटरी प्रावधानों और अधिनियम को अनदेखा कर निश्चित कर दिया गया है, जिनका लाभ अनावेदकगण को नहीं दिया जा सकता है, जो राशि अनावेदक ने बिना सेवा दिये अपने कब्जे में रखी है उसे ऐसी राशि की श्रेणी रखा जाना अनुचित नहीं है।

(13) हम यह उल्लेख करना आवश्यक पाते हैं कि हर माता -पिता, अभिभावक बच्चों को अच्छी से अच्दी शिक्षा देने में अपनी सारी जिंदगी की मेहनत की गाढ़ी कमाई ऐसी संस्था में लगा देते हैं और ऐसी संस्थाएं माता-पिता और अभिभावक के अतिउत्साह एवं महत्वकांक्षा की स्थिति का लाभ उठाते हुए इतनी मोटी रकम मात्र कोचिंग देने को अधिरोपित कर देते हैं और माता-पिता भी बच्चों के भविष्य बनाने की मजबूरी में इतनी बड़ी-बड़ी रकम ऐसी संस्था में लगा देते हैं और जब यह संस्था ख्याति प्राप्त कर लेती हैं तो वे अनेकोनेक प्रकार की घोषणाएं माता-पिता की मजबूरी का फायदा उठा कर रकम प्राप्ती हेतु कर लेते हैं, परंतु यह एक समाजिक चेतना का विषय है कि क्या ऐसी संस्था को इतना बढ़ावा देना आवश्यक है कि वे ऐसी रकम भी वसूल लें जिनके बारे में छात्र ने उस सत्र में शिक्षा या कोचिंग भी प्राप्त नहीं की है।

(14) इस प्रकरण में यह स्थिति है कि परिवादी ने सेकंड ईयर में प्रवेश ही नहीं किया है, तब उसे मिडस्ट्रीम में पढ़ाई छोड़ना कहा ही नहीं जा सकता है और ऐसी स्थिति में यह भी संभव नहीं है कि अनावेदकगण की दूसरे साल की वह सीट परिवादी द्वारा संस्था छोड़ देने के कारण खाली पड़ी रहेगी।  अनावेदकगण ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि परिवादी ने जब सेकंड ईयर में प्रवेश नहीं लिया तो उसके मद की सीट खाली पड़ी रही।  इस प्रकार यह निष्कर्षित किया जाता है कि अनावेदकगण का दो साल का कोर्स था, जिसमें यह विकल्प था कि अभिभावक पहले साल की फीस जमा करे या दोनों साल की फीस एक साथ जमा कर दे, यदि विकल्प में दोनों साल की फीस जमा कर दी गयी तो इसका यह मतलब नहीं है कि दूसरे साल नहीं पढ़ने पर दूसरे साल की फीस रिफण्ड नहीं होगी, क्योंकि यदि यह कल्पना की जाये कि यदि परिवादी एक साल की फीस देता और फिर दूसरे साल की फीस दूसरे साल देता परंतु यदि दूसरे साल बिना फीस दिये कोर्स छोड़ देता तब क्या स्थिति रहती जैसा कि अनावेदकगण ने अपने जवाबदावा के कंडिकावार उत्तर के चरण क्र.4 में उल्लेख किया है कि छात्र का स्वयं विकल्प रहता है कि वह फीस की अदायगी कैसे करे, तब उस स्थिति में यदि छात्र ने दोनों साल की फीस देने का विकल्प लिया है, इस विकल्प के आधार पर अनावेदकगण परिवादी की मजबूरी का फायदा नहीं उठा सकता है कि दूसरे साल पढ़ाई नहीं करने पर भी एडवांस में दी गयी फीस को वापस नहीं किया जाये, जब छात्र दूसरे साल प्रवेश ही नहीं लिया है तो उसमें मिडस्ट्रीम की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता है और इन परिस्थतियों में हम अनावेदकगण को इस तर्क का लाभ नहीं दे सकते है कि चाही गयी फीस पार्टपेमेंट है बल्कि यह निष्कर्षित करते हैं कि वह फीस तो उसी सत्र की एडवान्स पेमेन्ट है, जिसमें परिवादी ने पढ़ाई ही नहीं की और न ही प्रवेश लिया और इन परिस्थितियों में अनावेदकगण ऐसे फीस को अपने कब्जे में रखता है तो निश्चित रूप से वह घोर सेवा में निम्नता और व्यवसायिक कदाचरण की श्रेणी में आता है जो अभिकथित राशि अनावेदक ने अपने पास रखी है उसके संबंध में यही माना जायेगा कि उसने परिवादी की उक्त राशि को बिना किसी कारण अनुचित रूप से बिना सेवा देते हुए कदाचरण के फलस्वरूप रखा। उस राशि की तुलना फीस की राशि से न की जाकर उस श्रेणी की राशि से किया जाना ही उचित होगा, जिसे कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से प्राप्त तो कर लेता है, परंतु उक्त प्रयोजन हेतु सेवाएं नहीं देता है। इस स्थिति में हम अनावेदकगण को न्यायदृष्टांत:-

(1) एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई लिमि. विरूद्ध एस.बालावीगणेश रिविजन पिटीशन नं.2684 आफ 2014 (एन.सी.)

(2) एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई लिमि. विरूद्ध दया चंद प्रसाद रिविजन पिटीशन नं.4634 आफ 2012 (एन.सी.)

(3) मयंक तिवारी विरूद्ध एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई लिमि. रिविजन पिटीशन नं.4335 आफ 2014 (एन.सी.)

(4) एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई लिमि. विरूद्ध सज्जन कुमार गुप्ता  रिविजन पिटीशन नं.4476 आफ 2023 (एन.सी.)

का लाभ दिया जाना उचित नहीं पाते हैं।

(15) उपरोक्त स्थिति में हम परिवादी के तर्कों से सहमत हैं और यह पाते हैं कि परिवादी उस कोर्स की फीस वापस पाने का अधिकारी है, जिस दौरान के लिए ना ही उसने प्रवेश लिया ना ही अनावेदकगण संस्था से शिक्षा प्राप्त की और पहले साल में ही दूसरे साल की फीस देने का विकल्प दिया, परंतु हम उक्त विकल्प को परिवादी के विरूद्ध घातक कारित होना उचित नहीं पाते हैं, फलस्वरूप परिवादी को उसके द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत:-

(1)           एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई लिमि. विरूद्ध शुभम शर्मा प्रथम अपील नं.165 आफ 2012

(2)           मनमीत विरूद्ध एफ.आई.आई.टी. जे.ई.ई लिमि. प्रथम अपील नं.379 आफ 2010

का लाभ दिया जाना उचित पाते हैं।

                                (16) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करेंगे:-

(अ)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को 75,842रू. (पचहत्त हजार आठ सौ बयालीस     रूपये) प्रदान करेंगे।

(ब)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से,  परिवादी को उक्त राशि पर परिवाद प्रस्तुती दिनांक    19.08.2014 से भुगतान दिनांक तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी प्रदान करें।

(स)    अनावेदक क्र.1 एवं 2 संयुक्त एवं अलग-अलग रूप से, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 10,000रू. (दस हजार रूपये) भी अदा करेंगे।

 

 

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. शुभा सिंह]
MEMBER

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