// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम,बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक cc/197/2011
प्रस्तुति दिनांक 18/11/2011
गुरूनाम लुथरा,
उम्र 24 साल,पिता श्री जे.एस.लुथरा
निवासी तोरवा चौक, थाना तोरवा
तहसील व जिला बिलासपुर छ.ग. ......आवेदक/परिवादी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक
नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
शाखा बिलासपुर
जिला बिलासपुर छ.ग. .........अनावेदक/विरोधीपक्षका
आदेश
(आज दिनांक 16/03/2015 को पारित)
१. आवेदक गुरूनाम लुथरा ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध बीमा दावे का निराकरण न कर सेवा में कमी के लिए पेश किया है और अनावेदक बीमा कंपनी से वाहन की कीमत 20,000/रू क्षतिपूर्ति के साथ दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदक दिनांक 18.04.07 को अपने द्वारा क्रय किए गए हीरो होण्डा मोटर साईकिल क्रमांक सी.जी.10 ई.सी. 2891 का बीमा अनावेदक कंपनी से दिनांक 18.04.2007 से दिनांक 17.04.2008 तक की अवधि के लिए कराया था । दिनांक 25.01.2008 को उक्त मोटर साईकिल बस स्टेण्ड स्थित राजीव प्लाजा के गेट के सामने से चोरी हो गई, जिसका खोज बीन में पता नहीं चलने पर दिनांक 02.02.2008 को थाना तारबाहर में रिपोर्ट दर्ज करायी गई । साथ ही दिनांक 04.02.2008 को अनावेदक बीमा कंपनी को भी सूचित किया गया । साथ ही दिनांक 09.07.2008 को प्रथम सूचना रिपोर्ट, एवं पुलिस खात्मा रिपोर्ट की प्रमाणित प्रतिलिपि के साथ दावा आवेदन अनावेदक बीमा कंपनी के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसे अनावेदक बीमा कंपनी लेने से इंकार कर दिया और न्यायालय की खात्मा रिपोर्ट की मांग किया, फलस्वरूप अनावेदक बीमा कंपनी की इस सेवा में कमी के लिए आवेदक इस फोरम के समक्ष दिनांक 15.07.2009 को परिवाद प्रस्तुत किया, जिसमें दिनांक 20.08.2009 को यह आदेश पारित किया गया कि आवेदक द्वारा अंतिम सूचना प्रतिवेदन की कॉपी अनावेदक को दिए जाने पर बीमा कंपनी डेढ माह के भीतर आवेदक के दावे का निराकरण करेगा, जिसके पालन में आवेदक द्वारा दिनांक 02.09.2010 को पुलिस अधीक्षक के कार्यालय से प्राप्त अंतिम जॉंच प्रतिवेदन, वाहन की दोनों चाबी सहित न्यायालय के आदेश की प्रतिलिपि के साथ अनावेदक बीमा कंपनी के कार्यालय में पेश किया और शीघ्र दावे निपटारे की मांग की, किंतु उसके बाद भी अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा उसका दावा निराकृत नहीं किया गया और न्यायालय से प्राप्त खात्मा रिपोर्ट की कापी जमा करने के लिए कहा गया । फलस्वरूप उसने पुन: यह परिवाद पेश करते हुए अनावेदक बीमा कंपनी से वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
3. अनावेदक बीमा कंपनी की ओर से जवाब पेश कर परिवाद का विरोध इस आधार पर किया गया है कि आवेदक इस न्यायालय द्वारा दिनांक 20.08.2010 को दिए गए आदेश का पालन नहीं किया और भ्रामक कथन करते हुए पुन: परिवाद प्रस्तुत किया है, जो स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है । आगे यह भी कहा गया है कि आवेदक अपने परिवाद में पुलिस को विलंब से सूचना दिए जाने का कोई कारण नहीं बताया है । साथ ही उसने वाहन के मूल्य को बढा चढा कर पेश किया है, उक्त आधार पर बीमा कंपनी ने आवेदक के परिवाद को निरस्त किए जाने का निवेदन किया है ।
4. उभय पक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है । प्रकरण का अवलोकन किया गया ।
5. देखना यह है कि क्या आवेदक, अनावेदक बीमा कंपनी से वांछित अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी है
सकारण निष्कर्ष
6. प्रश्नगत मामले में दिनांक 25/01/2008 को आवेदक की मोटर सायकिल की बसस्टेण्ड स्थित राजीव प्लाजा के गेट से चोरी होने तथा उक्त दिवस उक्त वाहन के अनावेदक के यहां बीमित होने का तथ्य स्वीकृत स्थिति है । अनावेदक बीमा कंपनी की ओर से भी इस संबंध में कोई विवाद नहीं किया गया है । फलस्वरूप अब देखना यह है कि क्या आवेदक उक्त वाहन चोरी के संबंध में अनावेदक बीमा कंपनी से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है ।
7. आवेदक के अनुसार, अनावेदक बीमा कंपनी उसके दावा आवेदन का निराकरण इस आधार पर नहीं किया कि उसके द्वारा न्यायालय का खात्मा रिपोर्ट पेश नहीं किया गया । मामले में इस तथ्य को अनावेदक बीमा कंपनी ने भी इंकार नहीं किया है, किंतु यह स्पष्ट नहीं किया है कि बीमा दावे के निराकरण के लिए न्यायालय का ही खात्मा रिपोर्ट क्यों आवश्यक है, जबकि आवेदक के दावा आवेदन से दर्शित होता है कि उसके द्वारा पुलिस अधीक्षक से प्राप्त खात्मा रिपोर्ट की कॉपी संलग्न किया गया था, फलस्वरूप यह तथ्य स्पष्ट होता है कि अनावेदक बीमा कंपनी आवेदक के बीमा दावे में खामी निकाल कर किसी न किसी आधार पर अपनी क्षतिपूर्ति के दायित्व से बचना चाहता है ।
8. जबकि यह सुनिश्चित स्थिति है कि दावे के निराकरण के संबंध में बीमा अधिकारियों का कर्तव्य सहायता के रूप में होना चाहिये न कि दावे को इंकार करने के लिये दोषों को देखने के रूप में । प्रश्नगत मामले में अनावेदक बीमा कंपनी का ऐसा भी कथन नहीं है कि जिस स्थान से आवेदक की मोटर सायकिल चोरी हुई, वहां पर वाहन को सुरक्षित रखने के लिये कोई स्टेण्ड मौजूद था । किसी भी व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अपनी वाहन को सुरक्षित रखने के लिए हर स्थिति में अपने पास रखे।
9. प्रश्नगत मामले में अनावेदक बीमा कंपनी द्वारा आवेदक की मोटर सायकिल चोरी होने के तथ्य को स्वीकार करने के बाद भी उससे वाहन चोरी की पुष्टि में न्यायालय का खात्मा रिपोर्ट की अपेक्षा करना, नि:संदेह दावे से इंकार के समान है, जो अनावेदक बीमा कंपनी की सेवा में कमी है ।
10. फलस्वरूप हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इस मामले में अनावेदक बीमा कंपनी ने आवेदक के दावे के निराकरण में मस्तिष्क का पूर्ण एवं ध्यानपूर्वक उपयोग नहीं किया है। अत: हम आवेदक के पक्ष में अनावेदक बीमा कंपनी के विरूद्ध निम्न आदेश पारित करते हैं :-
अ. अनावेदक बीमा कंपनी आवेदक को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर वाहन का आंकलित मूल्य 20,000/- रू.(बीस हजार रू.) अदा करेगा तथा उस पर आवेदन दिनांक 18/11/2011 से ताअदायगी 9 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी अदा करेगा ।
ब. अनावेदक बीमा कंपनी आवेदक को क्षतिपूर्ति के रूप में 10,000/- रू.(दस हजार रू.) की राशि भी अदा करेगा।
स. अनावेदक बीमा कंपनी आवेदक को वादव्यय के रूप में 3,000/- रू.(तीन हजार रू.) की राशि भी अदा करेगा।
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य