Rajasthan

Kota

CC/98/2012

Laxmi Narayan Gautam - Complainant(s)

Versus

Central Rail Manager, kota & Indian Railway(W.C.R.) - Opp.Party(s)

17 Jul 2015

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, कोटा (राजस्थान)।
परिवाद संख्या:-98/2012
लक्ष्मीनारायण गौतम पुत्र रघुनाथ प्रसाद गौतम निवासी मकान नं. 1327-बसंत बिहार, कोटा।                           -परिवादी

                    बनाम
मण्डल रेल प्रबंधंक, कोटा एवं भारतीय रेलवे (डबल्यू0 सी0आर0) एवं महा प्रबंधक जबलपुर।                                -विपक्षी
समक्ष:-
भगवान दास     ः    अध्यक्ष    
महावीर तंवर     ः    सदस्य
हेमलता भार्गव    ः    सदस्य
    परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
उपस्थित:-

01.    परिवादी की ओर से कोई उपस्थित नहीं ।
02.    श्री मनीष कुमार गुप्ता, अधिवक्ता, विपक्षी की ओर से। 

            निर्णय             दिनांक 17.07.2015
         

    परिवादी ने विपक्षी के विरूद्ध उपभोक्त संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत लिखित परिवाद प्रस्तुत कर संक्षेप में प्रकट किया है कि उसने ट्रेन नं. 19019 में दिनांक 20.11.2011 को कोटा से हऱिद्वार तक की यात्रा के दो टिकिट तत्काल कोटा की कुल राशि 676/- रूपये अदा करके, कोच एस-2 की बर्थ 10 व 11 बुक कराई। उसी समय आई0 डी0 हेतु निर्वाचन आयोग के कार्ड की प्रति स्वयं के हस्ताक्षर करके दी, लेकिन नीचे पेन कार्ड की प्रति भी थी। बुकिंग-क्लर्क ने गलती से पेन कार्ड की आई0 डी0 के नम्बर डाल दिये। यात्रा के दौरान मुजफ्फर-पुर के पास टिकिट निरीक्षक अरविन्द कुमार अग्रवाल के द्वारा आई0 डी0 प्रमाण मांगने पर मूल निर्वाचन आयोग की आई0 डी0 दिखाई तो उसने बताया कि आई0 डी0 टिकिट में दर्ज आई0 डी0 से मेच नही कर रही इस पर उसे स्पष्ट किया कि बुकिंग-क्लर्क ने गलती से पेनकार्ड का नम्बर डाल दिया, लेकिन टिकिट निरीक्षक ने नही माना और नियम विरूद्ध पैनल्टी 980/- रूपये लगा दीे और अभद्र व्यवहार व चरित्र हनन भी किया। जिससे यात्रा में बाधा के साथ मानसिक संताप हुआ है। 
    विपक्षी के जवाब का सार है कि सी0पी0सी0 की धारा 80 के अन्तर्गत नोटिस नहीं देने, भारत संघ के जरिये महा-प्रबंधंक रेलवे को पक्षकार नहीं बनाने एवं वाद कारण इस मंच के क्षैत्राधिकार में पैदा नही होने से, प्रकरण चलने योग्य नही  है। जवाब में यह भी कहा गया है कि परिवादी की कहानी पूरी तरह मिथ्या है उसने तत्काल टिकिट-बुक कराते समय जो आई0 डी0 दी, उसी अनुसार टिकिट पर आई0 डी0 नम्बर अंकित किये गये।  यात्रा के दौरान मूल आई0 डी0 उसके पास नही होने से टिकिट निरक्षक ने नियमानुसार पैनल्टी लगाई। टिकिट निरीक्षक ने परिवादी के साथ कोई दुव्र्यवहार नहीं किया, चरित्र हनन नहीं किया , कहानी झूंठी है। 
    परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा पेन कार्ड, तत्काल बुक कराये गये टिकिट, पेैनल्टी रसीद आदि दस्तावेजात की प्रति पेश की है। 
    विपक्षी ने साक्ष्य में यशवन्त चैधरी, वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक, पश्चिम मध्य-रेलवे, कोटा का शपथ-पत्र पेश किया है। कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये।
    बहस के समय परिवादी अथवा उसका वकील उपस्थित नहीं हुआ। वकील विपक्षी को सुना गया। पत्रावली एवं उपलब्ध रेकार्ड का अवलोकन किया गया। 
    निर्णय हेतु निम्न बिन्दु है:-
01.    क्या विपक्षी के जवाब के अनुसार परिवाद चलने योग्य नहीं है?
02.    क्या विपक्षी के कर्मचारी टिकिट निरीक्षक, अरिवन्द कुमार     अग्रवाल ने परिवादी के साथ यात्रा के दौरान दुव्र्यवहार व चरित्र     हनन किया एवं नियम विरूद्ध पैनल्टी वसूल की ?
    उक्त बिन्दुओं पर साक्ष्य का विवेचन व हमारा निर्णय निम्न प्रकार हैः-
बिन्दु संख्या 1ः-
    विपक्षी की यह आपत्ति है कि सी0पी0सी0 की धारा 80 के अन्तर्गत नाटिस नहीं दिये जाने एवं महा-प्रबंधक को पक्षकार नहीं बनाने से प्रकरण चलने योग्य नहीं है, कानूनन सारहीन है। विपक्षी-रेलवे ने उपस्थित होकर प्रतिरक्षा की है, इसलिये वह प्रतिरक्षा से वंचित नही रहा है। सी0पी0सी0 की धारा 80  इस मंच के समक्ष कार्यवाही में लागू नहीं होती है। इस मंच के क्षैत्राधिकार के अन्तर्गत परिवादी ने टिकिट बुक करवाकर यात्रा प्रारंभ की, इसलिये इस मंच को प्रकरण सुनने का अधिकार है। 
बिन्दु सख्या 2ः-
    परिवाद में ही स्वीकार किया गया है कि तत्काल टिकिट बुक कराते समय बुकिंग-क्लर्क के द्वारा पेन कार्ड का नम्बर डाला गया था, ऐसी स्थिति में यात्रा के दौरान उसी का मूल प्रमाण होना आवश्यक था, यदि बुंकिग-क्लर्क द्वारा आई0 डी0 नम्बर गलती से डाले गये थे, तब उसे उसी समय परिवादी द्वारा सही कराना था। बुकिंग-क्लर्क वही आई0 डी0 अंकित करता है जो दस्तावेज उसे दिया जाता है। इसलिये यह कहानी सही नही मानी जा सकती कि बुंिकंग-क्लर्क ने गलती से आई0 डी0 का नम्बर डाला, निश्चित रूप से परिवादी के पास यात्रा के दौरान टिकिट में जो आई0 डी0 नम्बर अंकित थे, उसका मूल दस्तावेज नही था, इसलिये नियमानुसार ही टिकिट निरीक्षक ने उस पर पैनल्टी लगाई, जिसे नियम विरूद्ध नहीं माना जा सकता। टिकिट निरीक्षक द्वारा दुव्र्यवहार अथवा चरित्र हनन करने की कहानी भी प्रथम दृष्ट्या में ही सही प्रतीत नही होती है क्योकि अपने शपथ-पत्र के अलावा अन्य कोई साक्ष्य परिवादी ने नहीं दी है। दुव्र्यवहार व चरित्र हनन के विशिष्ट विवरण ही नही है, इसलिये हम पाते है कि परिवादी इस बिन्दु को सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा है। 
    उपरोक्त बिन्दुओं पर निष्कर्ष के फलस्वरूप परिवाद खारिज होने योग्य है।
                   आदेश 
    अतः परिवादी लक्ष्मीनारायण गौतम का परिवाद, विपक्षी के विरूद्ध खारिज किया जाता है। परिवाद खर्च पक्षकारान अपना-अपना स्वयं वहन करेगे।       


(महावीर तंवर)                 (हेमलता भार्गव)                (भगवान दास)  
  सदस्य                        सदस्य                       अध्यक्ष
 

     निर्णय आज दिनंाक 17.07.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 
                                     
  सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष
           

 

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