जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-141/2005
रज्जन लाल गुप्ता पुत्र स्वर्गीय श्री राम चन्द्र गुप्ता, 174 राजन इन्जीनियरिंग (नरेन्द्रालय गली) रिकाबगंज, परगना हवेली अवध, तहसील व जिला फैजाबाद। .............. परिवादी
बनाम
1. सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, षाखा सिविल लाइन, फैजाबाद द्वारा मुख्य षाखा प्रबन्धक।
2. षाखा प्रबन्धक सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया सिविल लाइन फैजाबाद।
3. रीजनल मैनेजर फैजाबाद, रीजन फैजाबाद स्थित कार्यालय सेन्ट्रल बैंक सिविल लाइन फैजाबाद।
1 ता 3 परगना हवेली अवध तहसील, षहर व जिला फैजाबाद। .......... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 19.05.2015
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
निर्णय
परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी 10 वर्शों से जनरेटर सेट लगा कर बैंक की सेवा करता चला आ रहा है। प्रारम्भ में 5 किलो वाट उसके बाद 10 किलो वाट का जनरेटर लगा परन्तु बैंक का स्टाफ बढ़ जाने से और विद्युत न रहने तथा लोड बढ़ जाने के कारण बैंक के षाखा प्रबन्धक के कहने पर परिवादी ने 15 किलो वाट का नया जनरेटर दिनांक 01.08.2002 को लगवाया और बैंक की सेवा षुरु कर दी। परिवादी ने विपक्षी बैंक से रुपये 1,30,000/- का ऋण प्राप्त किया जिसमें परिवादी ने रुपये 30,000/- मार्जिन मनी के रुप में जमा किया था। विपक्षी बैंक ने रुपये 6,000/- (5,700/- $ 300/-) प्रतिमाह की दर से जनरेटर का किराया देना तय किया था और हर महीने रुपये 2,500/- परिवादी के जनरेटर के ऋण खाते में जमा होता था और रुपये 3,500/- परिवादी के बचत खाते संख्या 21576 में जमा होता रहा। परिवादी को जनरेटर के संचालन एवं रख रखाव के लिये एक व्यक्ति (आपरेटर) प्रातः 9 बजे से षाम 6 बजे तक बिजली जाने पर जनरेटर चलाने हेतु रखना पड़ता था जो आवष्यकतानुसार उसमंे डीजल भी डालता था। डीजल का दाम समय समय पर बढ़ने से परिवादी ने बैंक को लिख कर डीजल के बढ़े हुए दाम की मांग फरवरी 2003, अगस्त 2004 व मार्च 2005 करता रहा और किराया बढ़ाने की मांग प्रार्थना पत्र दे कर की, साथ ही विद्युत कटौती भी छः से सात घंटे प्रति दिन होने लगी, परन्तु षाखा प्रबन्धक की ओर से आष्वासन मिलता रहा कि क्षेत्रीय कार्यालय को लिखा गया है जैसे ही वहां से पत्र इस सम्बन्ध में आयेगा परिवादी का सम्पूर्ण बकाया मिल जायेगा। अंत में परिवादी ने रुपये 16,000/- प्रतिमाह तेल सहित किराये की मांग लिखित में की जिस पर विपक्षी बैंक ने रुपये 12,000/- प्रतिमाह किराया देना स्वीकार किया। परन्तु उस समय खर्च रुपये 13,259/- प्रतिमाह आ रहा था, जिसे परिवादी ने स्वीकार नहीं किया और पूरा विवरण परिवादी ने विपक्षी बैंक के समक्ष डीजल के खर्च के सम्बन्ध में रखा। परिवादी बैंक के आष्वासन पर जनरेटर चलाता रहा। जून 2005 में विपक्षी बैंक ने परिवादी को लिखित में सूचित किया कि अपना जनरेटर 30.06.2005 तक उठा ले। परिवादी ने बैंक का पत्र पा कर विपक्षी बैंक को दिनांक 27.06.2005 को एक नोटिस दिया और अपने बकाये का उल्लेख करते हुए रुपये 2,25,060/- की मांग की जिसका कोई उत्तर विपक्षी बैंक ने नहीं दिया और विपक्षी बैंक ने दूसरे से रुपये 22,000/- प्रतिमाह की दर से पुराना जनरेटर लगवा लिया तब मजबूर हो कर परिवादी को अपना जनरेटर उठाना पड़ा। परिवादी ने 30 के0वी0 का नया जनरेटर लगाने के लिये कोटेषन दाखिल किया था परन्तु विपक्षी बैंक ने पुराना जनरेटर लगवा कर सेवा लेना षुरु कर दिया। परिवादी का विपक्षीगण पर दिनांक 20.09.2002 से 07.02.2003, का चार माह का 4,500/- प्रति माह के हिसाब से रुपये 18,000/-, दिनांक 08.02.2003 से 10.06.2004 तक का रुपये 5,564/- प्रतिमाह के हिसाब से रुपये 83,460/- तथा दिनांक 11.06.2004 से 30.06.2005 तक का रुपये 10,300/- प्रतिमाह के हिसाब से रुपये 1,23,600/- कुल रुपये 2,25,060/- बकाया है, जिसका विपक्षीगण ने भुगतान नहीं किया। इसलिये परिवादी को अपना परिवाद दाखिल करना पड़ा। विपक्षीगण ने परिवादी के किसी पत्र का उत्तर नहीं दिया और न ही संतोशजनक बात की। विपक्षी बैंक ने परिवादी को ऋण इस आधार पर दिया था कि जब तक ऋण की अदायगी नहीं हो जाती तब तक जनरेटर बैंक की सेवा करता रहेगा। ऋण चुकता होने के पूर्व परिवादी जनरेटर कहीं और नहीं लगवा सकेगा। विपक्षी बैंक अपने मौखिक रुप से किये गये वायदे से मुकर गये और ऋण चुकता हुए बिना ही परिवादी का जनरेटर हटवा दिया। रुपये 40,000/- के आस पास परिवादी का ऋण अभी बाकी है। विपक्षीगण ने अपना अनुबन्ध जानबूझ कर तोड़ा है। इसलिये विपक्षीगण क्षतिपूर्ति व ब्याज देने के लिये उत्तरदायी हैं। विपक्षीगण द्वारा परिवादी का जनरेटर हटवा देने से खड़ा हुआ है और उससे एक पैसा भी आमदनी नहीं हो पा रही है। विपक्षीगण ने परिवादी का रुपये 2,25,060/- नाजायज रुप से हड़प रखा है। परिवादी के मौजूदा ऋण रुपये 42,500/- को ब्याज मुक्त कराया जाय, परिवादी को विपक्षीगण से परिवाद व्यय रुपये 5,000/- दिलाया जाय तथा अन्य कोई उपषम जो न्यायालय उचित प्रतीत करे परिवादी को विपक्षीगण से दिलावें।
विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के परिवाद के कथनों से इन्कार किया है तथा अपने विषेश कथन में कहा है कि विपक्षी संख्या 1 व 2 बैंक की मुख्य षाखा है तथा विपक्षी संख्या 3, विपक्षी संख्या 1 व 2 को नियंत्रित करने वाला कार्यालय है। विपक्षीगण परिवादी के ग्राहक हैं, परिवादी विपक्षीगण का ग्राहक नहीं है, परिवादी सेवा प्रदाता है जब कि बैंक परिवादी से सेवा ले रही है, इसलिये परिवादी उपभोक्ता नहीं है। इस आधार पर परिवादी का परिवाद खारिज होने योग्य है। परिवादी ने एक ही वाद में दो अलग अलग मामलों को मिला कर परिवाद दाखिल किया है। एक तो जनरेटर की सेवा देने के सम्बन्ध में है दूसरा जनरेटर के लिये ऋण लेने के सम्बन्ध में है। ऋण लेने में परिवादी ने बैंक की सेवा में कमी का उल्लेख नहीं किया है। ऋण के सम्बन्ध में मात्र इतना कहा है कि ऋण की धनराषि को ब्याज मुक्त कर दिया जाय तथा परिवाद व्यय दिया जाय। वर्श 2002 में उत्तरदाता ने विभिन्न लोगों से कुुटेषन मांगा जिसमें रज्जन लाल गुप्ता का कुटेषन रकम कम होने के आधार पर स्वीकार किया गया, तथा रुपये 5,700/- प्रतिमाह किराये पर परिवादी सहमत हो गया। परिवादी ने दिनांक 07.02.2003 के अपने पत्र में किराये की बढ़ोत्तरी की मांग की जिसे विपक्षीगण ने स्वीकार नहीं किया। परिवादी ने अपने पत्र में यह भी कहा है कि किराया नहीं बढ़ाया गया तो परिवादी जनरेटर की सेवा देना बन्द कर देगा, लेकिन परिवादी का प्रार्थन पत्र अस्वीकृत हो जाने के बाद भी परिवादी ने जनरेटर की सेवा बन्द नहीं की तथा पूर्व में तय मासिक दरों पर ही सेवा प्रदान करता रहा। दिनांक 13-08-2004 को उत्तरदातागण ने जनरेटर की सेवा को बढ़ाने का पत्र परिवादी को दिया लेकिन परिवादी ने उक्त षर्तों को स्वीकार नहीं किया और पूर्व निर्धारित किराये पर ही सेवा प्रदान करता रहा। मई 2005 में उत्तरदातागण को ए0टी0एम0 लगवाने तथा अन्य कार्य के लिये अधिक लोड की आवष्यकता हुई जिसके लिये विपक्षी बैंक ने 30 के.वी. के जनरेटर के लिये कुटेषन आमंत्रित किये जिसमें परिवादी ने भी कुटेषन डाला, जिसमें परिवादी के कुटेषन की रकम अधिक थी जो स्वीकार नहीं किया गया तथा संतोश इलेक्ट्रानिक एण्ड इलेक्ट्रानिक फर्म के कोटेषन की रकम कम होने के आधार पर स्वीकार किया गया, तथा उत्तरदाता ने परिवादी को दिनांक 17.06.2005 को नोटिस दे कर दिनांक 30.06.2005 तक जनरेटर हटाने के लिये कहा। दिनांक 30.06.2005 से परिवादी ने जनरेटर की सेवा देना बन्द कर दिया तथा दिनांक 01.07.2005 से संतोश इलेक्ट्रि व इलेक्ट्रानिक फर्म ने जनरेटर की सेवा देना षुरु कर दिया। उत्तरदाता ने परिवादी को दिनांक 30.06.2005 तक का किराया अदा कर दिया है तथा परिवादी की कोई रकम बाकी नहीं है। जहां तक ऋण का सम्बन्ध है तो उत्तरदाता ने परिवादी को 15 के0वी0ए0 का जनरेटर खरीदने के लिये रुपये 1,00,000/- का ऋण दिनांक 27.07.2002 को दिया था। परिवादी ने अलग से सादे कागज पर रुपये 5,700/- प्रति माह किराये पर जनरेटर की सेवा देने के लिये तैयार हुआ था। उसी पत्र में परिवादी ने लिखा था कि जनरेटर खरीदने के लिये परिवादी ने ऋण प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर दिया है। परिवादी को 12 प्रतिषत प्रतिवर्श मासिक अन्तराल की ब्याज दर पर ऋण स्वीकृत कर दिया गया। परिवादी को ऋण खाते में रुपये 2,500/- प्रति माह जमा करना था जिसे परिवादी जनरेटर के मासिक किराये से अदा करता रहा तथा बाद में किष्तों की अदायगी बन्द कर दी जिसके परिणाम स्वरुप ऋण खाते में रुपये 50,143/- बकाया हो गया जिसमें दिनांक 30.11.2006 तक का ब्याज षामिल है। उसके बाद का भी ब्याज परिवादी पर बकाया है। परिवादी ने ऋण के बकाये पर ब्याज माफ करने की मांग की है। जिसका आधार परिवादी ने यह लिया है कि दूसरे व्यक्ति से सेवा लेने के कारण परिवादी का जनरेटर व्यर्थ खड़ा है, जो कि गलत व निराधार है। परिवादी से इस प्रकार की कोई षर्त तय नहीं हुई थी कि जब तक ऋण अदा नहीं होता तब तक परिवादी से जनरेटर की सेवायें ली जाती रहेंगी। परिवादी ने अपना परिवाद मनगढ़ंत ढ़ंग से बनाया है तथा उत्तरदातागण को हैरान व परेषान करने की नीयत से अपना परिवाद दाखिल किया है। परिवादी कोई उपषम पाने का अधिकारी नहीं है। परिवादी का परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवादी एवं विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्तागण की बहस को सुना एवं पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, विपक्षीगण द्वारा परिवादी को दी गयी नोटिस दिनांक 17-06-2005 की छाया प्रति, परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक को नोटिस के उत्तर दिनांक 27-06-2005 की छाया प्रति तथा विपक्षी बैंक को दिये गये पत्र दिनांक 27.06.2005 / 08-07-2005 की छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण बैंक ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन, उमेष कुमार सिंह चीफ मैनेजर का षपथ पत्र, परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक को दिये गये पत्र दिनांक 08.07.2002 की छाया प्रति, विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को दिये गये पत्र दिनांक 13.08.2004 की छाया प्रति, परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक को दिये गये कोटेषन दिनांक 31.05.2005 की छाया प्रति, विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को दिये गये पत्र दिनांक 17.06.2005 की छाया प्रति, परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक को दिये गये अदिनांकित पत्र की छाया प्रति तथा परिवादी के ऋण आवेदन पत्र की छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षी बैंक द्वारा दाखिल प्रपत्रों से प्रमाणित है कि परिवादी का जनरेटर विपक्षी बैंक में लगा था और बैंक से परिवादी ने उक्त जनरेटर के लिये ही ऋण ले रखा था। जिसकी कटौती उसके किराये से ही होती थी, इस बात को विपक्षी बैंक ने भी स्वीकार किया है। परिवादी ने विपक्षी बैंक से कई बार अपने किराये को बढ़ाने के लिये कहा था यह भी प्रमाणित है। विपक्षी बैंक ने परिवादी के ऋण के चुकता होने तक जनरेटर को लगाने के लिये निष्चित रुप से कहा होगा क्यों कि इस बात को लिखित में देने का अधिकार बैंक को नहीं है। विपक्षी बैंक ने कोटेषन ले कर दूसरे व्यक्ति को ठेका दे दिया यह बैंक का अधिकार है और जिसका कोटेषन कम दाम का होगा उसी को ठेका दिया जाना चाहिए था। विपक्षी बैंक का ऋण के रुप में परिवादी पर कितना बकाया है विपक्षी बैंक ने परिवादी का बैंक स्टेटमेंट दाखिल नहीं किया है। विपक्षी बैंक ने कहा है कि उसने परिवादी का समस्त किराया अदा कर दिया है मगर विपक्षी ने किराया अदा करने का कोई प्रमाण दाखिल नहीं किया है। जब कि परिवादी ने स्वयं कहा है कि परिवादी का रुपये 42,500/- ऋण में बकाया है उसे ब्याज मुक्त किया जाय। विपक्षी बैंक ने अपने लिखित कथन में कई लोगों से कुटेषन लेने की बात कही है मगर विपक्षी बैंक ने परिवादी के अलावा किसी भी आवेदक के कुटेषन की प्रति दाखिल नहीं की है, जिससे प्रमाणित होता है कि बैंक ने परिवादी से दुराग्रह के आधार पर परिवादी का जनरेटर हटवाया है। परिवादी ऋण के मद्देनजर विपक्षी बैंक का उपभोक्ता है। इसलिये परिवादी का ऋण ब्याज मुक्त किये जाने योग्य है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध आंषिक रुप से स्वीकार एवं आंषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाशिक रुप से स्वीकार एवं अंाशिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी से ऋण की बकाया धनराषि रुपये 42,500/- का भुगतान आदेश की दिनांक से 30 दिन के अन्दर प्राप्त करंेगे और उक्त धनराषि पर परिवादी से कोई ब्याज नहीं लेंगे। परिवादी यदि निर्धारित अवधि 30 दिन में विपक्षी बैंक को भुगतान नहीं करता है तो विपक्षीगण परिवादी से उक्त धनराषि पर ब्याज भी तारोज वसूली की दिनांक तक वसूल करने के अधिकारी होंगे। पक्षकार परिवाद व्यय अपना अपना वहन करेंगे।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 19.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष