जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़उपस्थितिः-(1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-167/15
श्रीमती निर्मला सिंह पत्नी श्री हरीश दत्त सिंह निवासिनी नैय्यर कालोनी सिविल लाइन जनपद फैजाबाद .................. परिवादिनी
बनाम
प्रबन्धक महोदय, सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया शाखा अयोध्या स्थित जनपद फैजाबाद। .................... विपक्षी
निर्णय दि0 29.02.2016
निर्णय
उद्घोषित द्वारा-श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी के विरूद्ध नीलामी सूचना निरस्त करने एवं क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु योजित किया है।
संक्षेप में परिवादिनी का परिवाद इस प्रकार है कि परिवादिनी ने वर्ष 15.03.2004 को भवन निर्माण हेतु मु0 5,00,000=00 का ऋण विपक्षी बैंक से लिया था जो लगभग आठ वर्षो के लिए विपक्षी द्वारा दिया गया। परिवादिनी को प्रतिमाह मु0
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5,220=00 की किश्तों के आधार पर करनी थी। परिवादिनी ऋण लेने के पश्चात् ऋण की अदायगी किश्तों के अनुसार करने लगी किन्तु दुर्भाग्यवश इसी दौरान परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गयी तथा परिवादिनी के समक्ष अचानक पारिवारिक समस्यायें व आर्थिक संकट पैदा हो गया जिससे परिवादिनी विपक्षी बैंक के ऋण की किश्तों की अदायगी समय पर न कर सकी और परिवादिनी का ऋण खाता अनियमित हो गया। जैसे ही परिवादिनी की पारिवारिक स्थिति कुछ सामान्य हुई परिवादिनी जितनी रकम जुटा सकती थी उतनी धनराशि विपक्षी बैंक में स्थित ऋण खाते में जमा करने लगी।
विपक्षी ने अपने जवाब में कहा कि विपक्षी सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया शाखा अयोध्या फैजाबाद से परिवादिनी निर्मला सिंह ने अपने व्यापार के लिए मु0 5,00,000=00 के ऋण हेतु बैंक से निवेदन किया जिसे बैंक ने स्वीकृत कर दिया और परिवादिनी ने बैंक के पक्ष में सिक्योरिटी के सम्बन्ध में बैंक के ऋण दस्तावेज पर अपना हस्ताक्षर बनाकर दि0 15.03.2004 को निष्पादित किया था तथा उपरोक्त ऋण की सिक्योरिटी में अपनी सम्पत्ति का मूल दस्तावेज तथा उससे सम्बन्धित अभिलेख का इक्विटेबिल मार्गेज बैंक के पक्ष में किया और समस्त औपचारिकताएं पूर्ण होने के उपरान्त् विपक्षी बैंक ने मु0 5,00,000=00 की लिमिट ऋण सुविधा स्वीकृत कर दिया। उपरोक्त ऋण का उपयोग परिवादिनी ने अपने व्यापार हेतु किया है। कुछ समय पश्चात् परिवादिनी ने ऋण के संचालन में व्यतिक्रम करने लगी और वित्तीय अनुशासन का पालन नहीं किया और न ही ऋण की रकम तथा उसके ब्याज की अदायगी किया जिसके सम्बन्ध में विपक्षी बैंक ने परिवादिनी को ऋण खाता नियमित करने हेतु नोटिस भेजा परन्तु उन्होंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और ऋण खाता अनियमित होकर दि0 15.08.2007 को एन0पी0ए0 हो गया तथा दि0 22.10.2013 तक का ब्याज लगाये जाने के कारण ऋण खाते का डेबिट बैलेन्स बढ़कर मु0 9,57,395=00 हो गया तथा उपरोक्त रकम पर दि0 23.10.2013 से अदायगी के दिन तक का ब्याज भी विपक्षी बैंक पाने का अधिकारी है।
मैं विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथापत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया। परिवादिनी ने विपक्षी से भवन निर्माण हेतु मु0 5,00,000=00
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लिया था। परिवादिनी ने कुछ पारिवारिक कठिनाई के कारण विपक्षी बैंक का पैसा जमा नहीं कर पायी जिससे परिवादिनी के ऊपर विपक्षी का काफी धनराशि शेष देने हेतु बची थी। विपक्षी ने परिवादिनी के ऊपर कुर्की करके पैसा वसूली हेतु कार्यवाही किया और सम्पत्ति नीलामी के दौरान परिवादिनी ने विपक्षी के यहाॅं मु0 6,10,383=00 जमा कर दिया। इस प्रकार परिवादिनी ने विपक्षी का सम्पूर्ण धनराशि जमा कर दिया और परिवादिनी के परिवाद में बल नहीं पाता हूॅं। परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 29.02.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष