Uttar Pradesh

Faizabad

CC/12/2004

LALLAN YADAV - Complainant(s)

Versus

CENTRAL BANK - Opp.Party(s)

09 Jun 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/12/2004
 
1. LALLAN YADAV
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. CENTRAL BANK
CIVIL LINE FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
    

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य


परिवाद सं0-12/2004


लल्लन यादव पुत्र श्री राम फेर निवासी हरीपुर जलालाबाद पोस्ट कोट सराय जिला फैजाबाद                                                   .................परिवादी          
                    बनाम


1-    शाखा प्रबन्धक सेण्ट््रल बैंक शाखा रिकाबगंज फैजाबाद।
2-    यस.आर. चैबे प्रबन्धक लोन सेण्ट््रल बैंक आफ इण्डिया सिविल लाईन फैजाबाद।                                          ................ विपक्षीगण

निर्णय दिनाॅंक 09.06.2015    


                    
                        निर्णय 

    उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष

परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध विपक्षीगण से लिये गये मोटर साईकिल लोन के विषय में हिसाब के सम्बन्ध में योजित किया है।

संक्षेप में परिवादी का परिवाद इस प्रकार है कि परिवादी का खाता संख्या सी.बी. वाई.-43 सेण्ट््रल बैंक आफ रिकाबगंज शाखा का उपभोक्ता है। परिवादी ने एक किता हीरो पुक मोटर साईकिल मु0 29,000=00 के ऋण पर विपक्षी बैंक से वर्ष 2000 में फाइनेन्स कराया और फाइनेन्स कराते समय मु0 5,000=00 नकद विपक्षी सं0-1 के बैंक में जमा किया। फाइनेन्स कराने के बाद ही विपक्षीगण परिवादी से अवैधानिक धन 


         (  2  )

की माॅंग किया, जिसे परिवादी ने देने से इन्कार कर दिया जिससे वे प्रारम्भ से ही परिवादी से नाराज थे और परिवादी से बदला लेने की नियत से उसके द्वारा ऋण की किश्त जमा करने में आना कानी करते थे और इस प्रकार से प्रत्येक माह की किश्त को जमा करने के लिए परिवादी को 4-5 दिन तक दौड़ाया जाता था और तब जाकर बड़ी मुश्किल से परिवादी की किश्त जमा हो पाती है। किश्त जमा करने के बाद परिवादी के पासबुक पर उसी समय इन्ट््री नहीं की जाती और कभी-कभी पास बुक महीनों रोक लिया जाता था। साथ ही साथ परिवादी द्वारा जमा किया गया मु0 5,000=00 का समायोजन भी परिवादी के खाते में आज तक नहीं किया गया। परिवादी द्वारा विपक्षी से अपने द्वारा जमा की गयी समस्त धनराशि का समायोजन करके अवशेष ऋण की राशि का हिसाब किताब इसलिए माॅंगा कि परिवादी समस्त अवशेष धनराशि को एकमुश्त जमा कर दे, जिसे देेने में आना कानी करने पर परिवादी ने दि0 13.02.2004 को पंजीकृत डाक के माध्यम से अपने खाते में जमा की गयी ऋण की राशि का तथा अवशेष जमा की जाने वाली ऋण की राशि का सम्पूर्ण विवरण माॅंगा, तो विपक्षी ने आज तक न ही कोई हिसाब किताब का विवरण प्रस्तुत किया। विपक्षी ने मार्च माह में काम की अधिकता का बहाना करके अगले माह पासबुक मय इन्ट््री के वापस करने को कहा।

विपक्षी ने अपने आपत्ति में परिवादी के केस को इन्कार किया और कहा कि परिवादी विपक्षी सं0-1 द्वारा हीरो पुक शक्ति-34 क्रय करने हेतु मु0 16,000=00 16.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज मासिक अन्तराल पर हम विपक्षी द्वारा विपक्षी बैंक के नियमों एवं शर्तो के अनुसार ऋण दि0 06.12.2000 को स्वीकृत किया गया तथा प्रदान किया गया। उक्त ऋण से सम्बन्धित प्रपत्र, समझने का पत्र, टर्म लोन एग्रीमेण्ट फार हाईपोथिकेशन आफ व्हीकिल श्री लल्लन यादव परिवादी द्वारा दि0 06.12.2000 को पढ़ने व समझने के पश्चात् निष्पादित किया गया। इसी प्रकार उक्त ऋण से सम्बन्धित परिवादी के गारन्टर श्री अशोक साहू व अकबर खान द्वारा भी समझने का पत्र तथा फार्म आफ गारण्टी फार एडवान्सेज एण्ड क्रेडिट्स जनरल दि0 06.12.2000 को पढ़ने व समझने के बाद निष्पादित किया गया। परिवादी द्वारा मु0 445=00 मासिक किश्तों में ब्याज सहित विपक्षी के यहाॅं अपने ऋण खाते में पाॅंच वर्षो में अदा किया जाना था, जो परिवादी द्वारा नहीं किया गया। परिवादी को कई बार मौखिक रूप से सूचित किया गया तथा लिखित रूप से दि0 27.12.2005, 14.01.2006, 03.03.2006 तथा 04.12.2006 को रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा उक्त ऋण एवं ब्याज आदि के अदायगी के लिए सूचित किया 

 

                    (  3  )

गया तथा परिवादी को अविलम्ब ऋण खाते में जमा करने हेतु कहा गया। विपक्षी बैंक के नियमों के अनुसार ऋणियों को ऋण खाते से सम्बन्धित कोई पासबुक नहीं दिया जाता है बल्कि जब कोई ऋणी अपने ऋणखाते के नकल की माॅंग करता है तो उसके ऋण खाते की नकल दे दी जाती है। 

मैं विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथा परिवादी के लिखित बहस का अवलोकन किया तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया। परिवादी ने विपक्षी के यहाॅं से मु0 16,000=00 का ऋण हीरो पुक मोटर साईकिल क्रय करने हेतु 16.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज मासिक अन्तराल पर लिया था। विपक्षी ने अपने लिखित बहस के साथ दि0 19.5.2004 को परिवादी द्वारा मु0 500=00, दि0 23.6.2004 को मु0 500=00, दि0 27.7.2004 को मु0 500=00, दि0 07.8.2004 को मु0 500=00 एवं दि0 07.7.2006 को मु0 675.62 पैसे का चेक द्वारा ऋण का भुगतान किया गया। विपक्षी ने परिवादी के ऋण से सम्बन्धित क्रेडिट डेविट की बैलेन्स सीट दि0 08.3.2007 प्रेषित किया, जिसमें परिवादी के ऊपर मु0 15,291,62 पैसे शेष है। इसी प्रकार दूसरी बैलेन्स सीट दि0 09.3.2007 की क्रेडिट डेविट बैलेन्स सीट प्रेषित किया जिसके अनुसार मु0 15,626=00 शेष है। इसी प्रकार दि0 11.5.2015 की बैलेन्स सीट प्रेषित किया जिसके अनुसार परिवादी के ऊपर मु0 12,523.38 पैसे शेष हैं। जब कोई ऋणी बैंक से ऋण लेता है तो उसकी पासबुक नहीं बनायी जाती है, बल्कि उसके हिसाब के लिए बैलेन्स सीट तैयार की जाती है। यदि ऋणी माॅंगता है तो उसको बैलेन्स सीट की कापी दी जाती है। जो बैलेन्स सीट विपक्षी ने दाखिल किया है, उस पर परिवादी की ओर से कोई आपत्ति नहीं की गयी है। इससे स्पष्ट होता है, कि परिवादी द्वारा किये गये भुगतान का ऋण में समायोजन किया जा चुका है। परिवादी का कोई पैसा समायोाजन न किये जाने में शेष नहीं है। इस प्रकार परिवादी अपना परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध सिद्ध करने में असफल रहा है। मैं परिवादी के परिवाद में बल नहीं पाता हूॅं। परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।

                        आदेश

परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
    
         (विष्णु उपाध्याय)           (माया देवी शाक्य)            ( चन्द्र पाल )            
               सदस्य                   सदस्या                    अध्यक्ष    

                        (  4  )

                    
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 09.06.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

           (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)              ( चन्द्र पाल )
               सदस्य                 सदस्या                      अध्यक्ष

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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