( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :1439/2019
विमल वल्लभ गोस्वामी पुत्र श्री एच0 के0 गोस्वामी निवासी-325/2, बाग महा नरायन चौक, लखनऊ, यू0पी0।
अपीलार्थी/परिवादी
सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, शाखा चौक निकट चौक कोतवाली, चौक, लखनऊ द्वारा सीनियर मैनेजर।
प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री शरद कुमार शुक्ला।
दिनांक : 24-01-2023
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-192/2015 विमल बल्लभ गोस्वामी बनाम वरिष्ठ प्रबन्धक, सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया में जिला उपभोक्ता आयोग, द्धितीय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 17-05-2019 के विरूद्ध प्रस्तुत अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय एवं आदेश के द्वारा विद्धान जिला आयोग ने परिवाद निरस्त कर दिया है।
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विद्धान जिला आयोग के आक्षेपित निर्णय व आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के परिवादी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी व उसके पति के नाम से सेन्ट्रल बैंक, शाखा चौक में ज्वाइंट सेविंग एकाउन्ट है जिसका नम्बर-1379578245 है। इसी एकाउन्ट के माध्यम से परिवादी ने अपने पिता व अपने नाम से 555 दिनों की एक संयुक्त 48000/-रू0 की एफ0डी0 दिनांक 25-02-2012 को बनवायी, जिस पर बैंक को 10.05 प्रतिशत के हिसाब से तिमाही ब्याज देना था। परिवादी द्वारा दिनांक 21-03-2012 को अपनी एफ0डी0 पर 43,000/-रू0 का ऋण लिया गया। परिवादी को बैंक द्वारा यह बताया गया कि ऋण लेने के कारण अब उसकी एफ0डी0 का ब्याज उसके ऋण खाते में जमा होगा। परिवादी द्वारा अपना ऋण चुका दिया गया लेकिन बाद में परिवादी का एक्सीडेन्ट हो गया जिसमें उसके घुटने की हड्डी टूट गयी जिसका आपरेशन विवेकानंद हास्पिटल में हुआ जिसके इलाज के लिए अपनी एफ0डी0 पर फिर से परिवादी ने 43,000/-रू0 ऋण लिया जिसे भी परिवादी ने चुका दिया। बैंक द्वारा ऋण चुकता हो जाने के बाद परिवादी की मूल एफ0डी0 उसे वापस कर दी गयी। दिनांक 02-09-2013 को 555 दिन पूरे होने पर परिवादी द्वारा एफ0डी0 पुन: 555 दिनों के निवेश हेतु बैंक में प्रस्तुत की गयी, एफ0डी0 की पिछली तरफ यह स्पष्ट लिखा गया कि इस एफ0डी0 को पुन: 555 दिनों हेतु निवेश कर दिया जाय व उसका
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तिमाही ब्याज उसके सेविंग खाते में जमा कर दिया जाय इस निर्देश के नीचे परिवादी व उसके पिता दोनों ने हस्ताक्षर किया व दिनांक 02-09-2013 दर्ज किया। बैंक द्वारा एफ0डी0 की मूल प्रति रख लेने के बाद परिवादी को तीन चार दिन बाद आने को कहा गया, जब परिवादी बैंक के निर्देशानुसार अपनी एफ0डी0 लेने के लिए बैंक गया तो काम की अधिकता बतायी गयी और दिनांक 09-09-2013 को आने को कहा। दिनांक 09-09-2013 को परिवादी से बैंक द्वारा यह कहा गया कि उनके सिस्टम में गड़बड़ी है। अत: वह उसे रू0 48,349/-रू0 की एक चेक दे दें। परिवादी द्वारा बैंक के आश्वासन पर रू0 48,349/-रू0 का चेक दे दिया गया लेकिन बार-बार दौड़ने/बुलाने के बाद भी परिवादी को उसकी नयी बनी एफ0डी0 उसे नहीं दी गयी और बैंक द्वारा उसका स्व-शक्ति खाता संख्या-326178906 भी अपने कम्प्यूटर से गायब कर दिया और इस प्रकार विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी की एफ0डी0 की धनराशि 48,000/-रू0 हडप ली गयी है और 555 दिनों का ब्याज भी नहीं दिया गया और न ही उसकी एफ0डी0 का नवीनीकरण ही किया गया। जो कि विपक्षी बैंक के स्तर से सेवा में कमी है अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत करते हुए कथन किया गया परिवादी द्वारा जो आरोप लगाये गये है वह गलत है वास्तव में बैंक द्वारा एफ0डी0 का भुगतान परिवादी के बचत खाते में कर दिया गया है और उनकी ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।
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विद्धान जिला आयोग द्वारा उभयपक्ष को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का परिशीलन करने के उपरान्त विपक्षी बैंक के स्तर पर सेवा में किसी प्रकार की कमी न पाते हुए परिवादी का परिवाद निरस्त कर दिया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता अनुपस्थित। प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री शरद कुमार शुक्ला उपस्थित आए।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के अनुसार है। विपक्षी बैंक की ओर से किसी प्रकार की सेवा में त्रुटि नहीं की गयी है। अत: अपील निरस्त की जावे।
मेरे द्वारा प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का भली-भॉंति परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
पत्रावली के परिशीलनोंपरान्त मेरे विचार से विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा , आशु0 कोर्ट नं0-1