राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-542/2017
श्रीमती शशी लता सिंह पत्नी श्री गुरू बसंत सिंह निवासी
हाऊस नं0 2/1/6 ए राम भवन, सिविल लाइन्स, फैजाबाद।
.......परिवादिनी
बनाम्
1.सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, सिविल लाइन्स ब्रांच, फैजाबाद,
यू0पी0 द्वारा ब्रांच मैनेजर।
2. चीफ मैनेजर, सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया, रीजनल आफिस 73,
हजरतगंज, लखनऊ। ......विपक्षीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
परिवादिनी की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित :कोई नहीं
दिनांक 03.03.2020
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद विक्रय पत्र की वापसी तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिनी के कथनानुसार परिवादिनी ने 6600 वर्ग फिट का नजूल प्लाट नं0 3992 तथा 3993 स्थिति सिविल लाइन्स फैजाबाद राजकीय नीलाम में क्रय किया तथा फैजाबाद के जिलाधिकारी द्वारा उक्त विक्रय के संदर्भ में विक्रय पत्र दिनांकित 01.01.97 निष्पादित किया गया। परिवादिनी का नाम राजस्व अभिलेखों में उक्त भूमि के स्वामी के रूप में दर्ज किया गया। दि. 02.11.2002 को उक्त भूमि फ्री होल्ड घोषित की गई। इस प्रकार उक्त भूमि का परिवादिनी स्वामी है, तदोपरांत परिवादिनी ने इस भूमि पर एक व्यावसायिक काम्पलेक्स का निर्माण किया है। वर्ष 2008 में परिवादिनी को रू. 4500000/- की
-2-
आवश्यकता हुई। परिवादिनी ने विपक्षी संख्या 1 सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया सिविल लाइन्स शाखा फैजाबाद से 45 लाख रूपये ऋण प्राप्त करने हेतु संपर्क किया। विपक्षी बैंक द्वारा उक्त संपत्ति की मूल्यांकन आख्या प्राप्त करने के उपरांत 45 लाख रूपये का ऋण परिवादिनी की उपरोक्त संपत्ति बंधक रखकर दि. 26.08.2008 को स्वीकार कया तथा बैंक ने परिवादिनी का उपरोक्त भूमि से संबंधित विक्रय पत्र दिनांकित 01.01.97 की मूल प्रति बंधक के रूप में प्राप्त कर ली। परिवादिनी ने बैंक से लिए गए उपरोक्त ऋण का पूर्ण भुगतान कर दिया तथा परिवादिनी का इस ऋण से संबंधित खाता संख्या 3026154202 ब्याज सहित संपूर्ण ऋण की अदायगी हो जाने के कारण बंद कर दिया गया। विपक्षी बैंक द्वारा अदेयता प्रमाण पत्र भी जारी किया गया। यद्धपि परिवादिनी द्वारा लिए गए ऋण की संपूर्ण अदायगी के उपरांत विपक्षी बैंक द्वारा अदेयता प्रमाणपत्र जारी किया गया, किंतु विपक्षी बैंक ने परिवादिनी द्वारा उपरोक्त ऋण के संबंध में जमा किया गया मूल विक्रय पत्र वापस नहीं किया। विपक्षी बैंक ने अपने पत्र दिनांकित 15.03.16 द्वारा उक्त मूल विक्रय पत्र का उपलब्ध न होना स्वीकार किया तथा उक्त अभिलेख के खोने के संदर्भ में समाचार पत्र में समाचार भी बैंक द्वारा प्रकाशित कराया गया। विपक्षी बैंक ने अपने पत्र दिनांकित 10.03.16 एवं पत्र दिनांकित 22.04.16 द्वारा परिवादिनी को मूल विक्रय पत्र के स्थान पर उक्त विक्रय पत्र की द्वितीय प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराना प्रस्तावित किया तथा रू. 42300/- क्षतिपूर्ति के रूप में देना भी प्रस्तावित किया। इस तथ्य की जानकारी होने पर कि परिवादिनी द्वारा विपक्षी बैंक को उक्त ऋण के संबंध में जमा किया गया मूल विक्रय पत्र उपलब्ध नहीं है, परिवादिनी
-3-
को गहरा सदमा लगा, क्योंकि मूल विक्रय पत्र के अभाव में परिवादिनी की भूमि के स्वामित्व का अभिलेख सदैव के लिए त्रुटिपूर्ण हो जाएगा तथा कोई बैंक अथवा वित्तीय संस्थान परिवादिनी की उपरोक्त भूमि पर भविष्य में विक्रय पत्र की द्वितीय प्रति के आधार पर ऋण प्रदान करने के लिए तैयार नहीं होगा। विपक्षी बैंक द्वारा मूल दस्तावेज गायब हो जाने के संदर्भ में कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट भी दर्ज नहीं कराई गई, अत: यह परिवाद योजित किया गया।
विपक्षी बैंक द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। विपक्षी बैंक ने परिवादिनी को 45 लाख रूपये ऋण प्रदान किया जाना स्वीकार किया तथा यह भी स्वीकार किया कि इस ऋण की अदायगी परिवादिनी द्वारा की जा चुकी है एवं परिवादिनी के पक्ष में अदेयता प्रमाणपत्र जारी किया जा चुका है। विपक्षी द्वारा यह भी स्वीकार किया गया कि उक्त ऋण की सुरक्षा हेतु परिवाद में उल्लिखित परिवादिनी की संपत्ति को बंधक रखे जाने हेतु उक्त संपत्ति का मूल विक्रय पत्र बंधक रखा गया। विपक्षी बैंक द्वारा यह भी स्वीकार किया गया कि परिवादिनी द्वारा बैंक को उक्त ऋण की सुरक्षा हेतु प्राप्त कराया गया मूल विक्रय पत्र मिल नहीं रहा है, अत: परिवादिनी को उक्त विक्रय पत्र की प्रमाणित प्रति प्राप्त करके परिवादिनी को प्राप्त कराई गई तथा रू. 42300/- क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान का भी प्रस्ताव किया गया। विपक्षी बैंक का यह भी कथन है कि विपक्षी बैंक द्वारा मूल विक्रय पत्र न मिलने के संबंध में समाचार पत्र में समाचार प्रकाशित किया जा चुका है, अत: प्रथम सूचना रिपोर्ट की कोई आवश्यकता नहीं है।
-4-
अपने कथन के समर्थन में परिवादिनी द्वारा अपना शपथपत्र प्रस्तुत किया गया, जिसके द्वारा परिवादिनी ने परिवाद के अभिकथनों की पुष्टि की तथा 11 संलग्नक संलग्न किए गए। संलग्नक 1 परिवादिनी द्वारा विपक्षी बैंक से लिए गए ऋण से संबंधित खाता संख्या 3026154202 के खाते के विवरण की प्रति है, जिसमें से ऋण खाते में कोई धनराशि जमा किया जाना शेष नहीं है। संलग्नक 3 इस ऋण के संबंध में विपक्षी बैंक द्वारा जारी किया गया अदेयता प्रमाणपत्र की फोटोप्रति है। संलग्नक 4 परिवादिनी ने विपक्षी बैंक द्वारा उक्त ऋण की सुरक्षा हेतु परिवादिनी से उसके उपरोक्त भूमि का मूल विक्रय पत्र वापस न किए जाने पर परिवादिनी द्वारा उक्त अभिलेख वापस किए जाने के लिए परिवादिनी द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित 19.01.16 की फोटोप्रति है। संलग्नक 5 विपक्षी बैंक द्वारा परिवादिनी को प्रेषित पत्र दिनांकित 15.03.16 की फोटोप्रति है। इस पत्र में विपक्षी बैंक द्वारा यह स्वीकार किया गया कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादिनी के ऋण खाते के संदर्भ में बंधक संपत्ति का मूल विक्रय पत्र मिल नहीं रहा है। इसके अतिरिक्त इस पत्र के साथ विपक्षी बैंक द्वारा उक्त अभिलेख न मिलने के संदर्भ में समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार की फोटोप्रति भी संलग्न की गई है। संलग्नक 6 विपक्षी द्वारा परिवादिनी को प्रेषित पत्र दिनांकित 10.03.16 एवं 22.04.16 की फोटोप्रति है, जिसके द्वारा विपक्षी बैंक ने मूल विक्रय पत्र की प्रमाणित सत्य प्रतिलिपि तथा रू. 42300/- प्राप्त करने के लिए परिवादिनी को प्रस्ताव प्रेषित किया। संलग्नक 7 परिवादिनी द्वारा विपक्षी बैंक से सूचना के आधार पर अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मांगी गई सूचना के संदर्भ में दिए गए उत्तर दिनांकित 30.05.16 की फोटोप्रति है। संलग्नक 8 विपक्षी बैंक द्वारा परिवादिनी को प्रेषित सूचना की फोटोप्रति है,
-5-
जिससे यह ज्ञात होता है कि विपक्षी बैंक द्वारा प्रेषित मूल विक्रय पत्र गायब हो जाने के संदर्भ में कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई। संलग्नक 10 आन्ध्रा बैंक द्वारा जारी किए गए पत्र की फोटोप्रति है, जिसके
द्वारा परिवादिनी को सूचित किया गया कि विक्रय पत्र के अभाव में बैंक परिवादिनी को ऋण सुविधा उपलब्ध नहीं करा सकता। संलग्नक 11 परिवादिनी द्वारा विपक्षी बैंक को मूल विक्रय पत्र उपलब्ध कराने हेतु प्रेषित विभिन्न पत्रों की फोटोप्रतियां हैं।
विपक्षी बैंक द्वारा प्रतिवाद पत्र के अतिरिक्त अन्य कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किए गए हैं।
हमने परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल के तर्क सुने। विपक्षी की ओर से तर्क प्रस्तुत करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।
प्रस्तुत प्रकरण में पक्षकारों के अभिकथनों तथा परिवादिनी द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादिनी ने विपक्षी बैंक से वर्ष 2008 में 45 लाख रूपये ऋण प्राप्त किया। इस ऋण की सुरक्षा हेतु विपक्षी बैंक ने परिवादिनी के स्वामित्व की भूमि 6600 वर्ग फिट नजूल प्लाट नं0 3992 एवं 3993 स्थित सिविल लाइन्स, फैजाबाद से संबंधित मूल विक्रय पत्र दिनांकित 01.01.97 बंधक रखते हुए अपनी अभिरक्षा में प्राप्त किया। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि विपक्षी बैंक द्वारा दिए गए इस ऋण की मय ब्याज पूर्ण अदायगी परिवादिनी द्वारा बैंक को कर दी गई। पूर्ण अदायगी के उपरांत विपक्षी बैंक द्वारा अदेयता प्रमाणपत्र भी जारी किया गया, किंतु संपूर्ण ऋण की अदायगी तथा अदेयता प्रमाणपत्र जारी किए जाने के बावजूद विपक्षी बैंक द्वारा परिवादिनी का बंधक रखा गया उपरोक्त मूल विक्रय पत्र दिनांकित
-6-
01.01.97 वापस नहीं किया। विपक्षी बैंक द्वारा यह स्वीकार किया गया कि यह मूल विक्रय पत्र विपक्षी बैंक में उपलब्ध नहीं है, अत: विपक्षी बैंक द्वारा मूल विक्रय पत्र खो जाने के संदर्भ में समाचार पत्र में समाचार भी प्रकाशित किया गया तथा परिवादिनी को मूल विक्रय पत्र की प्रमाणित सत्य प्रतिलिपि प्राप्त करने तथा रू. 42300/- क्षतिपूर्ति के रूप में प्राप्त करने का प्रस्ताव किया गया।
परिवादिनी का यह कथन है कि विपक्षी बैंक द्वारा मूल विक्रय पत्र वापस न करने के कारण विपक्षी बैंक को बंधक रखी गई संपत्ति का स्वामित्व मूल विक्रय पत्र के अभाव में त्रुटिपूर्ण हो गया है। प्रमाणित सत्यप्रति के आधार पर कोई अन्य वित्तीय संस्थान अथवा बैंक परिवादिनी को ऋण उपलब्ध कराने के लिए तैयार नहीं है।
विपक्षी द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रतिवाद पत्र में विपक्षी द्वारा यह अभिकथित किया गया है कि परिवादिनी के मूल विक्रय पत्र का ढूंढने का भरसक प्रयास किया गया, किंतु मूल विक्रय पत्र नहीं मिल पाया, अत: विपक्षी बैंक ने मूल विक्रय पत्र की प्रमाणित सत्य प्रति परिवादिनी को प्रेषित की तथा रू. 42300/- भी हर्जे के रूप में दिया जाना प्रस्तावित किया, अत: विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में कोई त्रुटि नहीं की गई।
उल्लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों की धारा 22, 23, व 24 में परिवादिनी द्वारा यह स्पष्ट रूप से अभिकथन किया गया है कि मूल विक्रय पत्र के अभाव में परिवादिनी की उपरोक्त भूमि पर कोई अन्य वित्तीय संस्थान ऋण सुविधा उपलब्ध कराने के लिए तैयार नहीं है। इस संदर्भ में परिवादिनी ने आन्ध्रा बैंक द्वारा जारी किया गया प्रमाणपत्र भी प्रस्तुत किया है, जिसमें आन्ध्रा बैंक द्वारा मूल विक्रय पत्र के अभाव में परिवादिनी
-7-
को ऋण देने से इंकार किया गया है। उल्लेखनीय है कि परिवादिनी के परिवाद के इन अभिकथनों के विरूद्ध विपक्षी बैंक ने अपने प्रतिवाद पत्र में कुछ नहीं कहा है। इस प्रकार स्वयं विपक्षी बैंक इस तथ्य को अस्वीकार नहीं
कर रहा है कि मूल विक्रय पत्र के अभाव में परिवादिनी की विपक्षी बैंक को बंधक रखी गई संपत्ति को बंधक रखकर कोई बैंक ऋण सुविधा उपलब्ध नहीं करा सकता। विपक्षी बैंक द्वारा यह अभिकथित नहीं किया गया कि विपक्षी बैंक बिना मूल विक्रय पत्र बंधक रखे परिवादिनी की उपरोक्त कृषि भूमि पर कोई ऋण सुविधा परिवादिनी को प्रदान कर सकता है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मूल विक्रय पत्र विपक्षी बैंक द्वारा खो देने के कारण परिवादिनी की बंधक रखी गई संपत्ति का स्वामित्व त्रुटिपूर्ण हो गया है। विपक्षी बैंक द्वारा परिवादिनी का मूल विक्रय पत्र वापस न करके निश्चित रूप से सेवा में त्रुटि की गई है। विपक्षी बैंक का यह कथन कि विपक्षी बैंक द्वारा यथासंभव प्रयास करने के बावजूद मूल विक्रय पत्र न मिल पाना तथा परिवादिनी को मूल विक्रय पत्र की प्रमाणित सत्यप्रति उपलब्ध कराना तथा क्षतिपूर्ति के रूप में रू. 42300/- दिया जाना प्रस्तावित करके सेवा में त्रुटि नहीं की गई है। विपक्षी का यह अभिकथन वस्तुत: उपभोक्ता परिवादिनी प्रति विपक्षी बैंक की संवेदनहीनता का द्योतक है, स्पष्टत: परिवादिनी का मूल विक्रय पत्र खोकर अपीलकर्ता द्वारा सेवा में त्रुटि की गई है। अत: विपक्षी बैंक द्वारा की गई सेवा में त्रुटि के कारण मामले की परिस्थितियों के आलोक में परिवादिनी की उपयुक्त क्षतिपूर्ति कराना न्यायसंगत होगा।
परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस संदर्भ में राजेश गुप्ता बनाम मेसर्स एक्सिस बैंक परिवाद संख्या 46/14 में मा0 राष्ट्रीय आयोग
-8-
द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 27.08.2018 की फोटोप्रति के अतिरिक्त दाखिल की गई। मामले की तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में उपयुक्त क्षतिपूर्ति परिवादिनी के मूल विक्रय पत्र के दुरूपयोग से परिवादिनी का हित सुरक्षित करने हेतु विपक्षी बैंक द्वारा ऐसी किसी परिस्थिति में परिवादिनी की पूर्ण क्षतिपूर्ति किए जाने हेतु परिवादिनी के पक्ष में इनडेमिनिटी बाण्ड निष्पादित कराया जाना न्यायोचित होगा। परिवाद तदनुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी बैंक को निर्देशित किया जाता है कि परिवादिनी की नजूल प्लाट नं0 3992 मिल तथा 3993 मिल स्थित सिविल लाइन्स फैजाबाद क्षेत्रफल 6600 वर्ग फिट का मूल विक्रय पत्र परिवादिनी को 30 दिन में प्राप्त कराए। मूल विक्रय पत्र उपलब्ध न करा पाने की स्थिति में विपक्षी बैंक को निर्देशित किया जाता है कि परिवादिनी के पक्ष में निर्णय की प्रमाणित प्रति प्राप्त किए जाने की तिथि से 30 दिन के अंदर इनडेमिनिटी बाण्ड निष्पादित करे। विपक्षी बैंक को यह भी निर्देशित किया जाता है कि उपरोक्त अवधि के मध्य परिवादिनी को 20 लाख रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में भुगतान करे। निर्धारित अवधि में धनराशि का भुगतान न किए जाने की स्थिति में उक्त धनराशि पर परिवाद योजित किए जाने की तिथि से संपूर्ण धनराशि की अदायगी तक विपक्षी बैंक परिवादिनी को 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज का भी भुगतान करेगा। विपक्षी बैंक को यह भी निर्देशित किया जाता है कि उक्त निर्धारित अवधि में परिवादिनी को रू. 10000/- वाद व्यय के रूप में भुगतान करे।
-9-
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-1