जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 81/2013
1. रामनिवास पुत्र स्व. श्री हरीराम
2. रामसुख पुत्र स्व. श्री हरीराम
3. श्रीमती गुलाबी देवी बेवा स्व. हरीराम
सभी जाति-जाट, निवासीगण- लाम्बा जाटान, तहसील- मेडता, जिला-नागौर (राज.)।
परिवादीगण संख्या 2 व 3 जरिये अधिकृत प्रतिनिधि परिवादी संख्या 1 -परिवादीगण
बनाम
1. सेन्ट्रल बैंक आॅफ इण्डिया, जरिये मुख्य प्रबंधक, केन्द्रीय कार्यालय, चन्द्रमुखी नरीमन पाॅइन्ट, मुम्बई-21
2. सेन्ट्रल बैंक आॅफ इण्डिया, जरिये षाखा प्रबन्धक, षाखा कार्यालय, मेडतासिटी, जिला-नागौर।
3. ग्रामीण विकास विभाग क्षेत्रीय कार्यालय, जालोरी गेट, जोधपुर (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री भीकमचन्द षर्मा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 17.03..2016
परिवाद सं. 81/2013
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादीगण के पिता व श्रीमती गुलाबी देवी के पति स्व. हरीराम ने अप्रार्थीगण की संयुक्त योजना केपिटल इन्वेस्टमेंट सब्सिडी स्कीम फोर कन्स्ट्रेक्षन आॅफ रूरल गोडाउन के तहत खाता संख्या 2015005952 के मार्फत आवेदन किया। जिसमें गोदाम का निर्माण किया गया। जिस योजना से परिवादी गण लाभान्वित होने वाले व्यक्ति है।
2. अप्रार्थीगण द्वारा बताई गई योजना के अनुसार परिवादी गण के पिता व पति ने 2,80,000/- रूपये का ऋण प्राप्त कर ग्रामीण भण्डारण योजना के तहत गोदाम का निर्माण किया। जिसमें अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा 1,40,000/- रूपये की सब्सिडी अप्रार्थीगण संख्या 1 व 2 के मार्फत देय थी। सब्सिडी के लिए अप्रार्थी संख्या 2 ने एक फार्म 01.07.2006 को अप्रार्थी संख्या 3 को प्रेशित किया और सब्सिडी की 50 प्रतिषत राषि जारी करने हेतु लिखा। यह राषि अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा अप्रार्थी संख्या 2 के मार्फत परिवादीगण के पिता व पति के उक्त खाते में जमा की जानी थी। इसका मुख्य उद्देष्य ग्रामीण क्षेत्र में काष्तकारों को स्वावलम्बी बनाना और उन्हें विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत प्रदान किये गये ऋण में सब्सिडी के मार्फत राहत प्रदान करना था। अप्रार्थीगण द्वारा यथा समय सब्सिडी की राषि 1,40,000/- रूपये तथाकथित खाते में जमा करवा दी जाती तो परिवादी के पिता व पति को ऋण पर देय ब्याज के अतिरिक्त भार से मुक्ति मिलती। लेकिन अप्रार्थीगण ने अपनी सेवाओं में कोताही बरतते हुए सब्सिडी राषि परिवादीगण के पिता व पति के खाते में जमा नहीं करवाई।
3. परिवादीगण के पिता व पति की दिनांक 09.04.2010 को मृत्यु हो चुकी है तत्पष्चात् परिवादीगण के उक्त खाते से लाभान्वित होने वाले व्यक्ति हैं और समय समय पर अप्रार्थीगण के समक्ष तथाकथित खाते में राषि जमा करवाते रहे हैं और सब्सिडी राषि से लाभान्वित होने वाले व्यक्ति हैं। परिवादीगण ने सब्सिडी प्राप्त करने के सम्बन्ध में सभी औपचारिकताएं पूरी कर दी है। परिवादीगण की ओर से उनके पिता ने यथासमय सम्पूर्ण कार्रवाई करके इस सम्बन्ध में अप्रार्थीगण को सूचित कर दिया जिसके लिए आवष्यक षपथ पत्र, निर्माण कार्य पूरा होने का प्रमाण पत्र, निर्माण लागत का प्रमाण पत्र, गोदाम के अन्दर के नाप का प्रमाण पत्र व अन्य सम्पूर्ण वांछित औपचारिकताएं एवं दस्तावेजात अप्रार्थीगण को उपलब्ध करवा दिये गये। लेकिन आज दिन तक उक्त सब्सिडी तथाकथित खाते में जमा नहीं की गई। ऐसी स्थिति में उक्त राषि पर जिस दर से बैंक ब्याज प्राप्त करता है उसी दर से ब्याज सहित उक्त राषि परिवादीगण के खाते में जमा करवाया जाना उचित एवं न्यायसंगत है।
4. अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से परिवादीगण के पिता/पति हरीराम द्वारा गोदाम निर्माण के लिए 2,80,000/- रूपये का ऋण प्राप्त करना तथा इस पर राश्ट्रीय कृशि एवं ग्रामीण विकास बैंक के निर्देषानुसार सब्सिडी देने के प्रावधान के तथ्य को स्वीकार करते हुए यह बताया है कि ऋण स्वीकृति के बाद निर्माण कार्य पूर्ण होने से पूर्व आधी राषि पहले दिलवाने के लिए फाॅर्मेट नाबार्ड आॅफिस को भेजा, इसके पष्चात् दिनांक 23.05.2007 को संयुक्त निरीक्षण कमेटी द्वारा हरीराम की उपस्थिति में निर्माण कार्य का मौका देखा तो गोदाम का निर्माण तकनीकी मानदण्ड व षर्तों के अनुसार नहीं किया जा रहा था, इसी कारण उसे अनुदान राषि प्राप्त करने योग्य नहीं माना। यह रिपोर्ट पत्र के साथ नाबार्ड द्वारा अप्रार्थी संख्या 2 को भिजवाई गई एवं इसलिए नाबार्ड द्वारा आज तक कोई अनुदान राषि नहीं भेजी गई। ऐसी स्थिति में परिवादीगण कोई
परिवाद सं. 81/2013
अनुतोश प्राप्त करने के अधिकारी नहीं है। यह भी बताया गया है कि हरीराम को इस तथ्य का ज्ञान था, इसलिए हरीराम ने अपने जीवनकाल में 2010 तक कोई अनुदान राषि की मांग नहीं की। यह भी बताया गया है कि परिवादीगण अपने पिता/पति हरीराम की मृत्यु के पष्चात् बकाया ऋण राषि जमा कराने हेतु जिम्मेदार है तथा वसूली हेतु दबाव बनाये जाने पर उन्होंने यह झूंठा परिवाद पेष किया है जो खारिज किया जावे।
5. अप्रार्थी संख्या 3 का जवाब संक्षेप में निम्न प्रकार हैः- नाबार्ड बैंक देष के कृशि क्षेत्र एवं छोटे छोटे ग्रामीण उद्योगों के विकास के लिए स्थापित किया गया। किसान समुदाय को खेतों में फसल संग्रहण के लिए वैज्ञानिक आधार पर गोदाम बनाने के लिए स्कीम चालू की। इस स्कीम के तहत 50 प्रतिषत राषि सब्सिडी के रूप में दी जानी थी। गोदाम षर्तों के मुताबिक एवं तय समय सीमा में बनाये जाने थे उन्हीं को सब्सिडी दी जानी थी। परन्तु परिवादीगण के पिता ने षर्तों के मुताबिक गोदाम का निर्माण नहीं करवाया। इसके अलावा यह भी आपति है कि परिवादीगण अप्रार्थीगण के उपभोक्ता नहीं है। क्योंकि नाबार्ड ने परिवादी को कोई सुविधा नहीं दी है, ना ही कोई षुल्क लिया है। अतः परिवाद खारिज किया जावे।
6. पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण की बहस अंतिम सुनी जाकर पत्रावली का अवलोकन करने के साथ ही पक्षकारान द्वारा प्रस्तुत समस्त दस्तावेजात का भी अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादीगण के पिता/पति हरीराम ने गोदाम निर्माण हेतु अप्रार्थी संख्या 1 व 2 से दिनांक 22.09.2005 को 2,80,000/- रूपये का ऋण स्वीकृत करवाया तथा ग्रामीण गोदाम निर्माण योजना के अन्तर्गत गोदाम का निर्माण किये जाने पर राश्ट्रीय कृशि एवं ग्रामीण विकास बैंक के निर्देषानुसार निर्माण होने पर सब्सिडी देने का प्रावधान था। अप्रार्थीगण की मुख्य आपति यही रही है कि परिवादीगण का नाबार्ड से कोई समझौता नहीं था तथा ना ही नाबार्ड द्वारा कोई ऋण स्वीकृत किया गया था। बल्कि नाबार्ड का कार्य केवल भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली अनुदान राषि को एजेंसी के माध्यम से दिया जाना था। जिसे अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा परिवादीगण को वितरित करना था। लेकिन इस सम्बन्ध में हरीराम की उपस्थिति में उसके द्वारा निर्माण किये जाने वाले गोदाम का मौका संयुक्त निरीक्षण कमेटी द्वारा दिनांक 23.05.2007 को देखे जाने पर निर्माण कार्य तकनीकी मानदण्ड व षर्तों के अनुरूप नहीं पाया गया। ऐसी स्थिति में कोई अनुदान नहीं जारी हुआ। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2 (1) के अनुसार इस मामले में परिवादीगण उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आते हैं क्योंकि नाबार्ड द्वारा उन्हें किसी प्रकार की सेवा प्रदान नहीं की जा रही थी। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग, नई दिल्ली द्वारा दिनांक 08.02.2013 को चैधरी अषोक यादव बनाम रेवाडी सेन्ट्रल को-आॅपरेटिव बैंक व अन्य में पारित आदेष की ओर न्यायालय/मंच का ध्यान आकर्शित किया है। अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त न्यायिक निर्णय वाले मामले में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी परिवादी पक्ष का नाबार्ड से कोई समझौता नहीं था तथा न ही नाबार्ड द्वारा कोई ऋण ही स्वीकृत किया गया था। बल्कि परिवादी पक्ष द्वारा अप्रार्थी संख्या 1 व 2 से गोदाम निर्माण हेतु ऋण स्वीकृत कराया था। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2 (1) की परिभाशा अनुसार परिवादीगण इस मामले में उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आते क्योंकि इस मामले में नाबार्ड द्वारा परिवादीगण को ऋण प्रदान करने में
परिवाद सं. 81/2013
किसी प्रकार की कोई सेवा प्रदान नहीं की है। हिमाचल वीवर्श प्राइवेट लिमिटेड बनाम हिमाचल प्रदेष फाईनेंसियल काॅरपोरेषन व अन्य 1993 (3) सी.पी.जे. 267 (एन.सी.) वाले मामले में परिवादी पक्ष द्वारा औद्योगिक यूनिट बाबत् अप्रार्थी हिमाचल प्रदेष फाईनेंसियल काॅरपोरेषन से ऋण हेतु आवेदन किया तथा विभिन्न औपचारिकताएं पूरी होने पर ऋण स्वीकृत हुआ। इस ऋण राषि पर केन्द्र सरकार द्वारा सब्सिडी दी जानी थी लेकिन केन्द्र सरकार से अनुदान राषि प्राप्त नहीं होने पर हिमाचल प्रदेष सरकार द्वारा परिवादी पक्ष को सब्सिडी नहीं दी गई, यह मामला माननीय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग, नई दिल्ली में जाने पर यही अभिनिर्धारित किया गया कि इस मामले में परिवादी उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आता है। माननीय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोश आयोग द्वारा उपर्युक्त न्यायिक निर्णयों में अभिनिर्धारित मत को देखते हुए स्पश्ट है कि हस्तगत मामले में भी परिवादीगण को नाबार्ड द्वारा किसी प्रकार की कोई सेवा प्रदान नहीं की गई है। ऐसी स्थिति में परिवादीगण को इस मामले में उपभोक्ता नहीं माना जा सकता तथा न ही परिवादीगण इस न्यायालय/मंच से किसी प्रकार का अनुतोश प्राप्त करने के अधिकारी है तथापि परिवादीगण सक्षम सिविल न्यायालय से वांछित अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र है। इस प्रकार परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
7. परिवादीगण द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थीगण खारिज किया जाता है। यह स्पश्ट किया जाता है कि परिवादीगण सक्षम सिविल न्यायालय से वांछित अनुतोश प्राप्त करने हेतु स्वतंत्र है। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करें।
8. आदेष आज दिनांक 17.03.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या