Uttar Pradesh

Kanpur Nagar

CC/575/2015

Prabhakar Singh - Complainant(s)

Versus

Central bank of India - Opp.Party(s)

27 Mar 2017

ORDER

 
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश फोरम, कानपुर नगर।
 
   अध्यासीनः   डा0 आर0एन0 सिंह........................................अध्यक्ष
पुरूशोत्तम सिंह...............................................सदस्य
 
 
 
उपभोक्ता वाद संख्या-575/2015
प्रभाकर सिंह उम्र 70 वर्श पुत्र श्री षिव नन्दन सिंह प्रोपराइटर मेसर्स एवरेस्ट इंजीनियरिंग वर्क्स 122/313, षास्त्री नगर, कानपुर-208005
                                  ................परिवादी
बनाम
सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया, मुख्यालय स्थित चन्द्रमुखी नरीमन प्वाइन्ट मुम्बई, षाखा कार्यालय स्थित 118/3, कौषलपुरी कानपुर नगर-208012 (जो कि षाखा गुमटी नं0-5 के नाम से भी जानी जाती है) द्वारा मुख्य प्रबन्धक।
                             ...........विपक्षी
परिवाद दाखिला तिथिः 02.11.2015
निर्णय की तिथिः 03.06.2017
डा0 आर0एन0 सिंह अध्यक्ष द्वारा उद्घोशितः-
ःःःनिर्णयःःः
1.   परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद इस आषय से योजित किया गया है कि विपक्षी को आदेषित किया जाये कि विपक्षी, परिवादी के खाते में रू0 19,33,550.00 जमा करके, अपने कार्यालय के अभिलेख तदानुसार दुरूस्त करे और अपने खाते से उक्त धनराषि घटाकर चार्ज किया गया चक्रवृद्धि ब्याज घटाये, सेवा में की गयी कमी के लिए क्षतिपूर्ति करे तथा परिवाद व्यय अदा करे।
2. परिवाद पत्र के अनुसार संक्षेप में परिवादी का कथन यह है कि परिवादी द्वारा अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए मेसर्स एवरेस्ट इंजीनियरिंग वर्क्स नाम की कंपनी चलायी जा रही है। परिवादी द्वारा विपक्षी से वर्श 2003 में रू0 15,00,000.00 ब्ब्;भ्द्ध ब्ें ब्तमकपज ;भ्लचवजीपबंजपवदद्ध के विरूद्ध ऋण लिया गया। उक्त ऋण की लिमिट समय समय पर बढ़ाई गयी और वर्तमान में परिवादी की कंपनी की ब्ब्;भ्द्ध के रूप में रू0 95,00,000.00 की सुविधा विपक्षी से ली जा रही है। ऋण इकरारनामे के अनुसार माइक्रो स्माल इन्टरप्राइजेज की ब्याज दर 9.50 प्रतिषत प्रतिवर्श थी। जबकि विपक्षी बैंक द्वारा 13.50 प्रतिषत वार्शिक ब्याज 
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की दर से मासिक ठहराव के साथ ब्याज दर लिया जाता रहा। परिवादी द्वारा उच्चाधिकारियों से संपर्क करने पर विपक्षी बैंक द्वारा मात्र रू0 2,58,940.00 दिनांक 30.12.03 को परिवादी के खातें में जमा किया गया। किन्तु उसी दिन रू0 58,940.00 परिवादी के खाते से डेबिट कर दिया गया और इस प्रकार विपक्षी द्वारा मात्र रू0 2,00,000.00 ही समस्त डेबिट बैलेन्स से परिवादी के खाते में क्रेडिट किया गया। इस प्रकार विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में कमी कारित की गयी है और इससे यह भी सिद्ध होता है कि विपक्षी द्वारा अनाधिकृत उच्च ब्याज दर परिवादी से चार्ज किया गया है। विपक्षी बैंक का यह कृत्य साधारण ब्याज देने वाले साहूकर जैसे है। जबकि विपक्षी बैंक एक राश्ट्रीयकृत बैंक है। उक्त ब्याज दर लगाने के साथ-साथ विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी पर पैनल चार्जेज, निरीक्षण चार्जेज और पुनः उक्त धनराषि पर ब्याज लगाया गया। जबकि डेबिट किया गया बैलेन्स बहुत कम था। विपक्षी द्वारा अधिक चार्ज किया गया ब्याज और गलत उत्पाद पर गलत ढंग से लगाये गये ब्याज को कभी कम नहीं किया गया, जो कि विपक्षी बैंक की सेवा की कमी को दर्षाता है। विपक्षी द्वारा कुल रू0 19,33,550.00 का गलत ब्याज जो कि वर्शवार संलग्न सूची में दिया गया है, गलत आंकलित करके, परिवादी से चार्ज किया गया है। विपक्षी उपरोक्त गलत चार्ज किया गया ब्याज रू0 19,33,550.00 जो कि वर्श 2006 से दिनांक 30.06.15 तक लिया गया ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी है। एक तरफ विपक्षी बैंक द्वारा गलत ढंग से परिवादी से रू0 19,33,550.00 चार्ज किया गया है और अब वह परिवादी का खाता अवैधानिक रूप से एन.पी.ए. ;छवद च्मतवितउंदबम ।ेमजद्ध करके, परिवादी से वसूल करना चाहता है। यह पुनः विपक्षी बैंक के द्वारा कारित की जानी वाली सेवा में कमी है। विपक्षी बैंक का यह उत्तरदायित्व है कि परिवादी/ऋण प्राप्तकर्ता को उसका खाता एन.पी.ए. करने से पूर्व सुना जाये और परिवादी को सुनने के उपरांत आर0बी0आई0 के द्वारा दी गयी गाइड लाइन के अनुसार ऋण प्राप्तकर्ता का खाता एन.पी.ए. घोशित किया जाये।  विपक्षी बैंक द्वारा  उपरोक्तानुसार परिवादी  के साथ सेवा में कमी 
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कारित की गयी है। फलस्वरूप परिवादी को प्रस्तुत परिवाद योजित करना पड़ा।
3. विपक्षी बैंक की ओर से जवाब दावा प्रस्तुत करके, परिवादी की ओर से प्रस्तुत परिवाद पत्र में उल्लिखित तथ्यों का खण्डन किया गया है और यह कहा गया है कि परिवादी को दिनांक 21.01.03 को रू0 15,00,000.00 की कैष क्रेडिट सुविधा विपक्षी बैंक द्वारा प्रदान की गयी और उक्त कैष क्रेडिट सुविधा दिनांक 20.02.04 को रू0 2,00,000.00 की गयी, फिर दिनांक 30.12.08 को रू0 70,00,000.00 की गयी और दिनांक 01.06.09 को रू0 95,00,000.00 की गयी। किन्तु परिवादी, बैंक की षर्तों के अनुसार और उभयपक्षों के मध्य की गयी संविदा के अनुसार अपना खाता समुचित रूप से आपरेट करने में असफल रहा है। इसके बावजूद परिवादी को सहयोग करने की मंषा से विपक्षी बैंक द्वारा दिनांक 06.11.12 को प्रष्नगत लोन पुनः परिवर्तित किया गया और परिवादी द्वारा ओवर ड्रा की हुई धनराषि रू0 12,00,000.00 ॅब्ज्स् ;ॅवतापदह ब्ंचपजंस ज्मतउ स्वंदद्ध में परिवर्तित किया गया और परिवादी की लिमिट रू0 95,00,000.00 रखी गयी। परिवादी द्वारा वर्श 2013 में ब्याज दर के सम्बन्ध में षिकायत की गयी। विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी की षिकायत को दूर किया गया और परिवादी का खाता चेक किया गया। परिवादी के खाते को चेक करने पर यह पाया गया कि परिवादी को क्रेडिट सुविधा ठच्स्त् ;ठेंपब च्तपउंतल स्मदकपदह त्ंजमद्ध 2ण्50 प्रतिषत अर्थात 12.50 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से क्रेडिट सुविधा स्वीकृत की गयी थी। किन्तु खाते में दिनांक 01.11.11 से ब्याज दर 13.75 प्रतिषत लिया गया और इसलिए ब्याज दर को कैष क्रेडिट लिमिट को खाते में सही किया गया और ॅब्ज्स् एकाउन्ट दिनांक 01.11.11 से 30.11.13 तक सही किया गया और रू0 2,58,940.00 परिवादी के कैष क्रेडिट एकाउन्ट में जमा किया गया और रू0 16,861.00 ॅब्ज्स् एकाउन्ट में वापस जमा किया गया और तद्नुसार परिवादी को अवगत कराया गया। परिवादी द्वारा 
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अपने पत्र दिनांकित 30.12.13 के द्वारा उपरोक्त कार्यवाही से सहमति व्यक्ति की गयी। परिवादी द्वारा अपने उक्त पत्र में सभी बातों का समाधान हो जाना स्वीकार किया गया। इसलिए उन्हीं तथ्यों पर प्रस्तुत किया गया प्रस्तुत परिवाद संधार्य न होने के कारण निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादी का यह कथन असत्य है कि विपक्षी बैंक के द्वारा गलत ब्याज दर चार्ज किया गया है और गलत ढंग से अन्य चार्जेज घटाये गये हैं। परिवादी का यह कथन असत्य है कि रू0 19,33,550.00 गलत ढंग से चार्ज किये गये हैं। स्वयं परिवादी के द्वारा अपने पत्र दिनांकित 30.12.13 के द्वारा समस्त आपत्तियों का समाधान स्वीकार किया गया है। परिवादी खुद ही बैंकिंग फाइनेन्षियल टर्म के अनुसार खाता आपरेट करने में असफल रहा है और इस प्रकार परिवादी द्वारा संविदा की षर्तों का उल्लंघ किया गया है। फलस्वरूप प्रष्नगत एकाउन्ट दिनांक 28.07.15 को एन.पी.ए. किया गया। प्रष्नगत एकाउन्ट दिनांक 28.07.15 को एन.पी.ए. होने के पष्चात परिवादी द्वारा ै।त्थ्।म्ैप् कार्यवाही के विरूद्ध परिवाद एस.ए. केष नं0- 366/2015 डी0आर0टी0 इलाहाबाद के समक्ष प्रस्तुत किया गया। उक्त परिवाद कतिपय तकनीकी आधारों पर परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया गया। क्योंकि मोरग्रेजर/गारन्टर उमा देवी की मृत्यु हो गयी थी। यह तथ्य किसी भी पक्ष के द्वारा डी0आर0टी0 के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया। किसी भी खाते के एन.पी.ए. घोशित होने से सम्बन्धित मामला रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया अथवा बैंकिंग लोकपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। उपभोक्ता फोरम को प्रष्नगत तथ्यों पर आधारित परिवाद निर्णीत करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। विपक्षी बैंक की ओर से सेवा में कोई कमी कारित नहीं की गयी है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद विपक्षी बैंक द्वारा जारी की गयी वसूली प्रक्रिया से बचने की मंषा से प्रस्तुत किया गया है। परिवादी विपक्षी बैंक का बकाया अदा करने में असफल रहा है। इसलिए विपक्षी बैंक द्वारा रू0 1,14,40,297.63 का जिसमें रू0 1,08,59,415.56 ब्ें ब्तमकपज भ्लचवजीमबंजपवद ।बबवनदज और रू0 5,80,882.60 ॅब्ज्स् एकाउन्ट से सम्बन्धित है।दौरान मुकद्मा तायूम वसूली 
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10.70 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से मासिक विराम के हिसाब से दिनांक 01.05.16 से ओ0ए0 नं0-248/16 डी0आर0टी0 इलाहाबाद के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, जिसमें परिवादी जानबूझकर उपस्थित नहीं आ रहा है। परिवादी को यदि कोई आपत्ति है, तो वह प्रस्तुत मामले से सम्बन्धित उपरोक्त डी0आर0टी0 इलाहाबाद के समक्ष विपक्षी की ओर से प्रस्तुत मामले में अपना पक्ष रखकर कर सकता है। उपरोक्त कारणों से परिवाद खारिज किया जाये।
परिवादी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
4. परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र दिनांकित 30.10.15, 05.08.16, 21.09.16, 05.10.16 एवं 03.03.17 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के रूप में सूची कागज सं0-5/1 के साथ संलग्न कागज सं0-5/2 व 5/88 तथा कागज सं0-8/3 लगायत् 8/11 तथा लिखित बहस दाखिल किया है।
विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये अभिलेखीय साक्ष्यः-
5. विपक्षी ने अपने कथन के समर्थन में राजेष बी0 वेद, ए0जी0एम0 का षपथपत्र दिनांकित 28.09.16 एवं 21.02.17 तथा अभिलेखीय साक्ष्य के कागज सं0-14/1 व 14/37 तथा डी0आर0टी0 इलाहाबाद में चल रहे वाद सं0-248/16 की प्रतियां 1 लगायत 85 दाखिल किया है।
निष्कर्श
6. फोरम द्वारा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गयी तथा पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्यों एवं परिवादी द्वारा प्रस्तुत लिखित बहस का सम्यक परिषीलन किया गया।
7. उभयपक्षों की ओर से उपरोक्त प्रस्तर-4 व 5 में वर्णित षपथपत्रीय व अन्य अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं। पक्षकारों की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त साक्ष्यों में से मामले को निर्णीत करने में सम्बन्धित साक्ष्यों का ही आगे उल्लेख किया जायेगा।
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उभयपक्षों को सुनने तथा पत्रावली के सम्यक परिषीलन से विदित होता है कि प्रस्तुत मामले में निम्नलिखित विचारणीय वाद बिन्दु बनते हैंः-
1. क्या विपक्षी द्वारा ऋण इकरारनामे के अनुसार माइक्रो स्माल इण्टरप्राईजेज की ब्याज दर 9.50 प्रतिषत नियत होने के बावजूद विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी से 13.50 प्रतिषत मासिक ठहराव के साथ ब्याज दर लेकर सेवा में कमी कारित की गयी है, यदि हां तो प्रभाव?
2. क्या परिवादी द्वारा बैंक की षर्तों के अनुसार व संविदा के अनुसार अपना खाता समुचित रूप से आपरेट नहीं किया गया और अपने पत्र दिनांकित 30.12.13 के द्वारा समस्त आपत्तियों का समाधान स्वीकार किया गया है, यदि हां तो प्रभाव?
विचारणीय वाद बिन्दु संख्या-01
8. उपरोक्त विचारणीय वाद बिन्दु सिद्ध करने का भार परिवादी पर है। प्रस्तुत वाद बिन्दु के सम्बन्ध में परिवादी की ओर से यह कथन किया गया है कि ऋण इकरारनामे के आनुसार माइक्रो स्माल इण्टरप्राईजेज की ब्याज दर 9.50 प्रतिषत प्रतिवर्श थी, जबकि विपक्षी बैंक द्वारा 13.50 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर मासिक ठहराव के साथ ब्याज दर लिया जाता रहा है। इस प्रकार विपक्षी द्वारा रू0 19,33,550.00 का गलत ब्याज जो वर्शवार संलग्न सूची के साथ दिया गया है, गलत तरीके से परिवादी से चार्ज किया गया है। विपक्षी द्वारा उक्त गलत चार्ज किया गया ब्याज रू0 19,33,550.00 वर्श 2006 से 2015 तक लिया गया है। एक तरफ विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी से रू0 19,33,550.00 चार्ज किया गया है और दूसरी ओर परिवादी का खाता एन0पी0ए0 ;छवद च्मतवितउंदबम ।ेमजद्ध करके परिवादी से वसूली करना चाहता है, जो कि विपक्षी के द्वारा की गयी सेवा में कमी की कोटि में आता है। विपक्षी बैंक का यह उत्तरदायित्व है कि ऋण प्राप्तकर्ता को उसका खाता एन0पी0ए0 करने से पूर्व सुना जाये और तदोपरान्त आर0बी0आई0 के द्वारा दी गयी गाइड लाइन के अनुसार ऋण प्राप्तकर्ता का खाता एन0पी0ए0 घोशित किया जाये। विपक्षी 
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बैंक के द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी को दिनांक 21.01.13 को रू0 15,00,000.00 की कैष क्रेडिट सुविधा विपक्षी बैंक द्वारा प्रदान की गयी और उक्त कैष क्रेडिट सुविधा बढ़ाकर दिनांक 01.06.09 को रू0 95,00,000.00 की गयी। विपक्षी की ओर से एक कथन यह किया गया है कि परिवादी बैंक की षर्तों के अनुसार और उभयपक्षों के मध्य हुई संविदा के अनुसार अपना खाता आपरेट करने में असफल रहा है। किन्तु विपक्षी बैंक के द्वारा यह स्पश्ट नहीं किया गया है कि संविदा के अनुसार खाता किस प्रकार से परिवादी द्वारा ठीक प्रकार से आपरेट नहीं किया गया। विपक्षी बैंक द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि परिवादी द्वारा वर्श 2013 में ब्याज दर के सम्बन्ध में की गयी षिकायत के उपरांत परिवादी का खाता चेक किया गया और पाया गया कि परिवादी को कैष क्रेडिट सुविधा  ठच्स्त् ;ठेंपब च्तपउंतल स्मदकपदह त्ंजमद्ध 2ण्50 प्रतिषत अर्थात 12.50 प्रतिषत वार्शिक ब्याज की दर से क्रेडिट सुविधा स्वीकृत की गयी थी। किन्तु खाते में दिनांक 01.11.11 से ब्याज दर 13.75 प्रतिषत लिया गया और इसलिए ब्याज दर को कैष क्रेडिट लिमिट को खाते में सही किया गया। विपक्षी बैंक द्वारा की गयी स्वीकृति से परिवादी का उपरोक्त कथन स्वयमेव सिद्ध होता है और यह सिद्ध होता है कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी से संविदा षर्तों के विरूद्ध जाकर ब्याज दर लगाकर सेवा में कमी कारित की गयी है 
अतः उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार पर उपरोक्त विचारणीय वाद बिन्दु विपक्षी के विरूद्ध तथा परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
विचारणीय वाद बिन्दु संख्या-02
9. यह विचारणीय वाद बिन्दु सिद्ध करने का भार विपक्षी बैंक पर है। विपक्षी द्वारा अपने जवाब दावा में तथा मौखिक तर्कों में यह कथन किया गया है कि परिवादी द्वारा अपने पत्र दिनांकित 30.12.13 के द्वारा समस्त आपत्तियों का समाधान स्वीकार किया गया है। परिवादी खुद ही बैंकिंग फाइनेन्षियल टर्म के अनुसार खाता आपरेट करने में  असफल रहा 
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है। प्रष्नगत एकाउन्ट दिनांक 28.07.15 को एन0पी0ए0 होने के कारण सरफेसी ;ै।त्थ्।म्ैप्द्ध कार्यवाही के विरूद्ध परिवाद एस0ए0 केष नं0-366/2015 डी0आर0टी0 इलाहाबाद के समक्ष प्रस्तुत किया गया। उक्त परिवाद कतिपय तकनीकी आधारों पर परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया गया। इस प्रकार विपक्षी द्वारा समान तथ्यों पर डी0आर0टी0 इलाहाबाद के समक्ष उपरोक्त केष में डी0आर0टी0 द्वारा परिवाद सं0- 366/2015 परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया जाना स्वीकार किया गया है। विपक्षी बैंक के द्वारा यह भी कहा गया है कि किसी भी पक्ष के द्वारा खाता एन0पी0ए0 घोशित होने से सम्बन्धित मामला रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है। उपभोक्ता फोरम में परिवाद निर्णीत किये जाने का अधिकार नहीं है। परिवादी द्वारा उपरोक्त कथन का विरोध करते हुए यह कहा गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अन्य किसी मंच पर प्रष्नगत मामले को लेकर जाने की सुविधा प्राप्त होने के बावजूद परिवादी को उपभेक्ता फोरम में परिवाद योजित करने को अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्राप्त है। जिसके आधार पर परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद योजित किया गया है। फोरम परिवादी के कथन से सहमत है। यद्यपि विपक्षी की ओर से यह तर्क किया गया है कि परिवादी द्वारा पत्र दिनांकित 30.12.13 के माध्यम से समस्त आपत्तियों का समाधान स्वीकार किया जा चुका है। किन्तु पत्रावली के परिषीलन से ऐसा कोई अभिलेख नहीं पाया गया। इसके अतिरिक्त यह भी अवधारणा बनती है कि यदि परिवादी द्वारा अथिकथित कोई हस्तलेख विपक्षी बैंक को दिया गया है, तो वह स्वतंत्र सहमति ;थ्तमम ब्वदेमदजद्ध से नहीं दिया गया है। क्योंकि कर्जदार सदैव ऋणदाता के दबाव में रहता है। यदि परिवादी द्वारा स्वतंत्र सहमति से कोई अभिकथित-हस्तलेख किया गया होता तो उसे फोरम के समक्ष न आना पड़ता। इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा ब्याज दर में की गयी गणना से सम्बन्धित कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। जबकि परिवादी द्वारा, गणना सीट प्रस्तुत करके, विपक्षी  द्वारा रू0 19,33,550.00  ब्याज विपक्षी  द्वारा अधिक  लिया जाना 
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प्रमाणित किया गया है। उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों से सिद्ध होता है कि परिवादी द्वारा अपना खाता ठीक ढंग से आपरेट नहीं किया गया-अपना यह कथन विपक्षी साबित करने में असफल रहा है।
स्वयं विपक्षी की ओर से दाखिल पत्र द्वारा महा प्रबन्धक, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया वहक गुमटी नं0-5 क्षेत्रीय कार्यालय क्रेडिट विभाग कानपुर कागज सं0-14/1 से यह सिद्ध होता है कि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी के खाते में ब्याज की गणना करने में त्रुटियां कारित की गयी हैं। उक्त पत्र पर बैंक के किसी षीर्श अधिकारी द्वारा खाते को सही करने का निर्देष भी टिप्पणी के रूप में अंकित किया गया है। जिससे विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में कमी कारित किया जाना स्वयमेंव सिद्ध होता है। स्वयं विपक्षी की ओर से प्रस्तुत किये गये उपरोक्त प्रलेखीय साक्ष्य कागज सं0-14/1 की उपस्थिति में विपक्षी की ओर से प्रस्तुत की गयी आगणन सीट पर विष्वासन किया जाना न्यायसंगत व तर्कसंगत नहीं है।
अतः उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के अनुसार तथा उपरोक्तानुसार दिये गये निश्कर्श के आधार प्रस्तुत विचारणीय बिन्दु विपक्षी के विरूद्ध तथा परिवादी के पक्ष में निर्णीत किया जाता है।
10. उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों के आलोक में तथा उपरोक्तानुसार उपरोक्त दोनों विचारणीय वाद बिन्दुओं में दिये गये निश्कर्श के आधार पर फोरम इस मत का है कि परिवादी का प्रस्तुत परिवाद आंषिक रूप        से प्रष्नगत धनराषि रू0 19,33,550.00 (रूपये उन्नीस लाख तैंतीस हजार पांच सौ पचास) तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय के लिए स्वीकार किये जाने योग्य है। जहां तक परिवादी की ओर से याचित अन्य उपषम का सम्बन्ध है-उक्त याचित उपषम के लिए परिवादी द्वारा कोई सारवान तथ्य अथवा सारवान साक्ष्य प्रस्तुत न किये जाने के कारण परिवादी द्वारा याचित अन्य उपषम के लिए परिवाद स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। 
ःःःआदेषःःः
11. परिवादी का प्रस्तुत परिवाद विपक्षी के विरूद्ध आंषिक रूप          से इस आषय से स्वीकार किया जाता है कि  प्रस्तुत निर्णय  पारित करने 
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के 30 दिन के अंदर विपक्षी परिवादी को रू0 19,33,550.00 (रूपये उन्नीस लाख तैंतीस हजार पांच सौ पचास) तथा रू0 5000.00 परिवाद व्यय अदा करे।
 
     ( पुरूशोत्तम सिंह )                   (डा0 आर0एन0 सिंह)
         वरि0सदस्य                             अध्यक्ष
  जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश               जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश       
       फोरम कानपुर नगर                         फोरम कानपुर नगर।
 
आज यह निर्णय फोरम के खुले न्याय कक्ष में हस्ताक्षरित व दिनांकित होने के उपरान्त उद्घोशित किया गया।
 
     ( पुरूशोत्तम सिंह )                   (डा0 आर0एन0 सिंह)
         वरि0सदस्य                             अध्यक्ष
  जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश               जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश       
       फोरम कानपुर नगर                         फोरम कानपुर नगर।
 

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