Uttar Pradesh

Lucknow-II

CC/71/2014

NEELAM SINGH - Complainant(s)

Versus

CENTRAL BANK OF INDIA - Opp.Party(s)

10 Apr 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/71/2014
 
1. NEELAM SINGH
ALAMBAGH,LUCKNOW
...........Complainant(s)
Versus
1. CENTRAL BANK OF INDIA
LUCKNOW
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Sanjeev Shiromani PRESIDENT
 HON'BLE MR. Govardhan Yadav MEMBER
 HON'BLE MRS. Geeta Yadav MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

 

न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, द्वितीय लखनऊ

परिवाद संख्या-71/2014

नीलम सिंह                               -परिवादिनी
बनाम
सेन्ट्रल बैंक आॅफ इण्डिया                   -विपक्षी  
समक्ष
श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष
श्री गोवर्द्धन यादव,   सदस्य
श्रीमती गीता यादव,  सदस्य

द्वारा श्री संजीव शिरोमणि, अध्यक्ष

  निर्णय

परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986

परिवाद पत्र के अनुसार, परिवादिनी का कथन, संक्षेप में, यह है कि उसने अपने भूखण्ड सं0 5/17 गीतापल्ली आलमबाग,लखनऊ पर भवन निर्माण हेतु भूखण्ड का मूल विक्रय विलेख एवं बैंक द्वारा माॅगी गयी समस्त औपचारिकताओं की पूर्ति करके अभिलेख मूलरुप में विपक्षी के पास बंधक रखकर विपक्षी से रू0 एक लाख का हाउसिंग ऋण लिया था, जिसका ऋण खाता सं0 1366781296 है। विपक्षी से लिये गये ऋण की ब्याज सहित संपूर्ण अदायेगी निर्धारित समय -सीमा से 03 वर्ष पूर्व दि0 15.5.12 को परिवादिनी द्वारा कर दिया गया। इसके बाद परिवादिनी ने दि0 17.5.12 एवं दि0 24.5.12 को बैंक जाकर मौखिक रुप से विपक्षी से अनापत्ति प्रमाण पत्र के साथ भवन संबंधी संपूर्ण प्रपत्र मूलरुप में वापस  किये  जाने  का  अनुरोध

 

 

किया  लेकिन विपक्षी द्वारा उसे न तो नो ड्यूज दिया गया और न ही मूल विक्रय विलेख ही वापस किया गया। इस संदर्भ में परिवादिनी ने विपक्षी को दि0 19.7.12 को एक पत्र दिया , तब विपक्षी द्वारा परिवादिनी को नो ड्यूज दिया गया तथा मूल विक्रय विलेख 2-4 दिन में दिये जाने का आश्वासन दिया । मूल विक्रय विलेख विपक्षी द्वारा परिवादिनी को वापस न दिये जाने पर परिवादिनी ने दि0 4.10.12 को पुनः एक पत्र विपक्षी को दिया और व्यक्तिगत रुप से मिलकर मूल विक्रय विलेख वापस किये जाने का अनुरोध किया, तब विपक्षी द्वारा        दि0 26.11.12 को मूल विक्रय विलेख के स्थान पर विक्रय विलेख की प्रमाणित प्रतिलिपि देते हुये बताया कि उसकी मूल विक्रय विलेख की प्रति बैंक में मिल नहीं पा रही है, ढूढा जा रहा है , मिलते ही शीघ्र दे दी जायेगी, परंतु नहीं दी गयी। परिवादिनी ने कई बार विपक्षी से संपर्क किया , किन्तु विपक्षी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। मूल विक्रय विलेख के अभाव में परिवादिनी को अन्य बैंक से ऋण भी नहीं मिल पा रहा है। ऐसा करके विपक्षी ने सेवा में कमी करते हुये व्यापार विरोधी प्रक्रिया को अपनाया है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी को वर्तमान परिवाद इस जिला मंच में संस्थित करने की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से उसने विपक्षी से मूल सेल डीड वापस करने के साथ-साथ बतौर क्षतिपूर्ति रू0 एक लाख एवं रू011,000/-वाद व्यय स्वरुप दिलाये  जाने  की  प्रार्थना  किया  है।
विपक्षी को नोटिस जारी की गयी। नोटिसोंपरान्त भी विपक्षी न तो उपस्थित हुये और न ही उन्होंने प्रतिवाद पत्र दाखिल किया है ।

 

 

परिवादिनी ने परिवाद पत्र के समर्थन में अपना शपथपत्र दाखिल किया है एवं परिवाद पत्र के साथ अभिलेखीय साक्ष्यों की छायाप्रतियाॅ दाखिल किया है।
मंच ने परिवादी के विद्वान अधिवक्ता को श्रवण किया एवं पत्रावली का सम्यक् अवलोकन किया।
परिवादिनी का तर्क यह है कि उसने अपने भूखण्ड सं0 5/17 गीतापल्ली आलमबाग,लखनऊ पर भवन निर्माण हेतु भूखण्ड का मूल विक्रय विलेख एवं बैंक द्वारा माॅगी गयी समस्त औपचारिकताओं की पूर्ति करके अभिलेख मूलरुप में विपक्षी के पास बंधक रखकर विपक्षी से रू0 एक लाख का हाउसिंग ऋण लिया था, जिसे उसने समय से पूर्व ही अदा कर दिया था लेकिन फिर भी विपक्षी द्वारा उसे मूल विक्रय विलेख वापस नहीं किया गया, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी को वर्तमान परिवाद इस जिला मंच में संस्थित करने की आवश्यकता पड़ी, जिसके माध्यम से उसने विपक्षी से मूल सेल डीड वापस करने के साथ-साथ बतौर क्षतिपूर्ति रू0 एक लाख एवं रू011,000/-वाद व्यय स्वरुप दिलाये  जाने  की  प्रार्थना  किया  है।
उपरोक्त पर्यवेक्षणोंपरान्त मंच का यह अभिमत है कि प्रथम दृष्टया विपक्षी द्वारा सेवा में कमी प्रतीत होती है। ऐसा करके विपक्षी ने व्यापार विरोधी प्रक्रिया को अपनाया है चूॅकि विपक्षी उपस्थित नहीं है एवं परिवादिनी के कथन अकाट्य है। ऐसी स्थिति में मंच के समक्ष परिवादिनी के कथनों पर विश्वास करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। परिवादिनी ने बार-बार विपक्षी से संपर्क किया है। परिवादिनी को विपक्षी             के   पास   जाने   आदि  में  भाग - दौड़  करनी  पड़ी  है,

 

 


इससे स्वतः स्पष्ट है कि निश्चित रुप से परिवादिनी को मानसिक व शारीरिक कष्ट हुआ है,  फलस्वरुप परिवादिनी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह इस निर्णय की तिथि सेे छः सप्ताह के अंदर परिवादिनी को उसके द्वारा बंधक रखे गये प्रश्नगत भवन का विक्रय विलेख मूल रुप में दे दें। इसके अतिरिक्त विपक्षी परिवादिनी को मानसिक क्लेश हेतु रू010,000/-(दस हजार) तथा रू05000/-(पाॅच हजार) वाद व्यय अदा करगें, यदि विपक्षी उक्त निर्धारित अवधि के अंदर परिवादी को यह धनराशि अदा नहीं करते है तो विपक्षी को , समस्त धनराशि पर उक्त तिथि  से ता अदायेगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।
(गीता यादव)          (गोवर्द्धन यादव)   (संजीव शिरोमणि)       
  सदस्य                सदस्य            अध्यक्ष

            दिनांक 10 अप्रैल, 2015

 

 
 
[HON'BLE MR. Sanjeev Shiromani]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Govardhan Yadav]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Geeta Yadav]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.