Uttar Pradesh

StateCommission

A/2002/1937

Narain Dutt Panday - Complainant(s)

Versus

Central Bank Of India - Opp.Party(s)

Girish Chandra Sinha

07 Feb 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2002/1937
( Date of Filing : 16 Aug 2002 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Narain Dutt Panday
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Central Bank Of India
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 
PRESENT:
 
Dated : 07 Feb 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।

 

अपील संख्‍या :1937/2002

 

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, प्रतापगढ़ द्वारा परिवाद संख्‍या-136/1996 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 05-07-2002 के विरूद्ध)

 

नारायण दत्‍त पाण्‍डेय उम्र लगभग48 वर्ष पुत्र स्‍व0 श्री खेड़गेश्‍वर पाण्‍डेय ग्राम व पोस्‍ट बीरापुर तहसील पट्टी जिला प्रतापगढ़।

अपीलार्थी/परिवादी

बनाम्

 

  1. ब्रांच मैनेजर, सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, रानीगंज ब्रांच, पोस्‍ट रानीगंज, तहसील रानीगंज, जिला प्रतापगढ़।
  2. रीजनल मैनेजर, सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, लंका, जिला वाराणसी, उ0प्र0।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षीगण

     समक्ष  :-

  1. मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार,       अध्‍यक्ष।
  2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना,              सदस्‍य।

     उपस्थिति :

     अपीलार्थी की ओर से उपस्थित-        कोई नहीं।

     प्रत्‍यर्थी  की ओर से उपस्थित-            श्री जफर अजीज।   

 

दिनांक : 11-02-2022

 

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय

 

       परिवाद संख्‍या-136/1996 नारायण दत्‍त पाण्‍डेय बनाम क्षेत्रीय प्रबन्‍धक, सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया व एक अन्‍य में जिला उपभोक्‍ता आयोग, प्रतापगढ़  द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनां‍क

 

 

-2-

 

05-07-2002 के विरूद्ध यह अपील धारा-15  उपभोक्‍ता  संरक्षण अधिनियम-1986 के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गयी है।

  ‘’आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला आयोग ने परिवाद निरस्‍त करते हुए परिवाद को इस प्रकार से निर्णीत किया कि प्रतिपक्षी बैंक से अपेक्षा की जाती है कि वह साधारण वादकारी की तरह वाद में उलझने के बजाय परिवादी के अधिक  वसूल की गयी ब्‍याज की धनराशि परिवादी को यथाशीघ्र वापस कर देगी। ऐसा न होने पर परिवादी सक्षम न्‍यायालय में निदान हेतु जा सकता है।‘’

  विद्धान जिला आयोग के निर्णय एवं आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवादी के परिवादी की ओर से प्रस्‍तुत अपील योजित की गयी है।

  अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार है कि परिवादी कृषि स्‍नातक है और उसने वर्ष 1976 में इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय, इलाहाबाद से कृषि विषय से स्‍नातक  परीक्षा उत्‍तीर्ण की है। परिवादी को भारत सरकार (कृषि मंत्रालय) द्वारा चलायी गयी स्‍वजीविकोपार्जन योजना की जानकारी हुई जिसके अन्‍तर्गत भारत सरकार (कृषि मंत्रालय) द्वारा उक्‍त योजना ग्रामीण क्षेत्रों में ‘’कृषि सेवा केन्‍द्र’’ की स्‍थापना करके कृषि विकास एवं बेरोजगार कृषि स्‍नातकों, अभियन्‍ताओं व डिप्‍लोमाधारकों को आत्‍मनिर्भर बनाने हेतु प्रारम्‍भ की गयी थी। परिवादी ने उक्‍त योजना में चयन हेतु अपना आवेदन प्रस्‍तुत किया एवं सफलतार्पूवक प्रशिक्षण प्राप्‍त किया, जिसका प्रमाण पत्र परिवादी को दिया गया। तत्‍पश्‍चात भारत सरकार कृषि मंत्रालय द्वारा संचालित स्‍वजीविकोपार्जन योजना के अन्‍तर्गत प्रशिक्षणोंपरान्‍त 05 प्रतिशत साधारण ब्‍याज पर 69,000/-रू0 ऋण मैसी फारमूसन ट्रैक्‍टर मय कृषि यंत्रों के क्रय हेतु दिनांक 06-09-1978 को सेण्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया रानीगंज से परिवादी को प्रदान किया गया और परिवादी को ट्रैक्‍टर एवं संबंधित उपकरण उपलब्‍ध कराये गये। परिवादी द्वारा पूर्ण लगन एवं निष्‍ठा पूर्वक कृषि सेवा केन्‍द्र का संचालन किया जाता रहा, लेकिन कुछ समय पश्‍चात ही बैंक के असहानुभूति पूर्ण रवैये एवं असहयोग तथा

 

 

 

  1.  

यकायक डीजल आपूर्ति बाधित हो जाने के कारण नियमित निर्धारित देय भुगतान की किश्‍त बाधित हो गयी तथा परिवादी द्वारा अथक प्रयास के बावजूद देय भुगतान की किश्‍तें नियमित नहीं की जा सकी तथा यकायक ट्रैक्‍टर में असाधारण खराबी आ जाने के कारण कृषि सेवा केन्‍द्र पूर्णतया असफल हो गया जिसके कारण परिवादी देयकों का भुगतान करने में असमर्थ हो गया तब बैंक द्वारा जमानतदारों को भी अवशेष धनराशि की वूसली हेतु कानूनी कार्यवाही की चेतावनी दी जाने लगी तथा परिवादी के विरूद्ध वसूली प्रमाण पत्र जिलाधिकारी, प्रतापगढ़ को प्रेषित किया गया। साथ ही परिवादी के पिता स्‍व0 खड़गेश्‍वर पाण्‍डेय जो कि जमानतदार थे, को भी प्रताडि़त किया जाने लगा और इस प्रताड़ना के कारण वसूली प्रमाण पत्र के अनुक्रम में अपनी भूमि को बेंचकर बैंक को अवशेष धनराशि का भुगतान करना परिवादी द्वारा प्रारम्‍भ कर दिया गया और दिनांक 27-08-1982 तक संबंधित ऋण खाते में दिखाया गया अवशेष धनराशि मु0 एक लाख एक हजार चौरासी रूपया पचास पैसा जमा कर दिया गया जो कि सरकार के निर्देश व नियम के प्रतिकूल था तथा निर्देशित ब्‍याज दर के मुताबिक वसूली न करके  विपक्षी संख्‍या-2 ने अधिक धनराशि ऋण खाते में जमा कराया। इस प्रकार विपक्षीगण ने परिवादी से जानकारी के बावजूद चक्रबृद्धि ब्‍याज और अनुदान जो ब्‍याज के लिए सरकार द्वारा प्रदत्‍त था उसे भी परिवादी से वसूल लिया।

परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय के आदेशानुसार बैंक व अन्‍य वित्‍तीय संस्‍थाओं को केवल 05 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज ही वसूल किये जाने हेतु आदेशित किया गया, किन्‍तु विपक्षीगण द्वारा विधि विरूद्ध ढंग से चक्रबृद्धि ब्‍याज वसूला गया। परिवादी अधिक वसूली गयी धनराशि की मांग निरंतर करता रहा, किन्‍तु विपक्षीगण द्वारा अधिक वसूली गयी धनराशि का भुगतान आज तक नहीं किया गया, अत: विवश

 

 

 

 

  1.  

होकर परिवादी ने परिवाद योजित करते हुए निम्‍न अनुतोष दिलाये जाने की याचना की है :-

  1. याची प्रथम पक्ष को द्धितीय पक्ष से मु0 18264.85 रूपये मय 12 ½ प्रतिशत  वार्षिक ब्‍याज की दर से ब्‍याज दिलाया जावे। 
  2. याची को हुई मानसिक प्रताड़ना व प्रताड़ना कार्यवाही से प्रभावित होने के कारण मु0 50,000/-रू0 द्धितीय पक्षगण से दिलाया जाय।
  3. अन्‍य जिस किसी भी उपशम का अधिकारी याची प्रथम पक्ष पाया जावे, दिलाया जाय।

  विपक्षी संख्‍या-2 ने प्रतिवाद मुख्‍यतया इस आधार पर किया कि परिवादी के कारोबार में असफल होने से किश्‍तों की नियमित अदायगी न होने पर विपक्षी ने वसूलयाबी हेतु रिकवरी सर्टिफिकेट जिलाधिकारी को भेजा तो दिनांक 27-08-1992 की अदायगी हो गयी। परिवाद काल बाधित है। माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा  प्रतिपादित सिद्धांत सर्वोपरि है, परन्‍तु लेखा-जोखा दुरूस्‍ती के बाद भी सुनवाई की अधिकारिता व्‍यवहार न्‍यायालय को है।

  विद्धान जिला आयोग ने उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्‍तागण को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध अभिलेखों तथा सशपथ पत्र का सम्‍यक परिशीलन किया। वास्‍तव में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय के निर्देश पर कृषि सेवा केन्‍द्रों के पुनर्वास हेतु सरकार ने एक पुनरीक्षित योजना लागू की। मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने सन्‍दर्भित विनिर्णय में उसी पुनर्वास योजना के क्रियान्‍वयन हेतु दिशा-निर्देश दिया, उसमें यह स्‍पष्‍ट है कि 01 मार्च, 1993 से पूर्व बंद हो चुके कृषि सेवा केन्‍द्रों का कुछ भी नहीं किया जाना हैं।  उनसे बकाया धन वसूल होना है, बैंक साधारण ब्‍याज ही वूसलेगी, पेनल अथवा चक्रबृद्धि ब्‍याज नहीं। विनिर्दिष्‍ट दर पर ही ब्‍याज वसूल किया जायेगा।

  परिवादी के विद्धान अधिवक्‍ता ने यू0 पी0 स्‍टेट एग्रो इण्डिया कारपोरेशन लि0 द्वारा निर्गत प्रमाण पत्र दिनांकित 26-10-1985 की छायाप्रति अभिलेख 11/3 की ओर ध्‍यान आकृष्टि करते हुए कहा कि इसमें ‘’कृषि सेवा केन्‍द्र ऋण अदायगी के बाद भी चलाते रहने’’ का उल्‍लेख है। अस्‍तु परिवादी का कृषि सेवा केन्‍द्र बंद न माना जायेगा।

 

 

-5-

परन्‍तु परिवादी द्वारा परिवाद पत्र की धारा-5 में की गयी स्‍वीकारोक्ति से तथा परिवादी के बैंक के खाता संख्‍या-988 में दिनांक 01-04-1988 को उसे इनआपरेटिव होने की प्रविष्टि से हम इस अभिमत के हैं कि दिनांक 01-03-1993 से पूर्व परिवादी का कृषि सेवा केन्‍द्र बंद हो चुका था।  इस पुर्नवास योजना के लाभ का हकदार तो वह न था परन्‍तु उससे चक्रबृद्धि ब्‍याज प्रतिपक्षी ने गलत वसूल किया है। विपक्षी ने इस अभिकथन का विनिर्ष्टिष्‍ट रूप से खण्‍डन भी नहीं किया सिर्फ यह कहा कि हिसाब फहमी का मामला निपटाने का अधिकार दीवानी न्‍यायालय को है। निश्‍चय ही ऐसा है परन्‍तु मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय के दिशा-निर्देश के पश्‍चात विपक्षी स्‍वयं भी तो अधिक वसूली गयी धनराशि वापस कर सकते हैं।

  दिनांक 27-08-1992 को वसूली गयी अधिक धनराशि तथा मानसिक क्‍लेश की क्षतिपूर्ति हेतु दिनांक 10-07-1996 को योजित प्रस्‍तुत परिवाद निश्‍चय ही समय परिसीमा से बाधित है1 परिवादी के विद्धान अधिवक्‍ता ने फोरम का ध्‍यान अभिलेख 19 की ओर आकृष्‍ट करते हुए कहा कि सेन्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया के क्षेत्रीय कार्यालय से दिनांक 28-05-1996 को विपक्षी संख्‍या-2 ने परिवादी के प्रतिवेदन के संदर्भ में उससे कुछ सूचनायें मांगी जिससे स्‍पष्‍ट है कि परिवादी का प्रतिवेदन उस तिथि दिनांक 28-05-1996 तक लम्बित था, अस्‍तु परिवाद काल बाधित नहीं कहा जा सकता। यदि उनकी यह बात मान लें तब भी प्रतिवेदन लम्बित रहते यह परिवाद पोषणीय न होगा। फिर अनुतोष तो अधिक वसूली गयी धनराशि की वापसी का है जिसकी परिसीमा दिनांक 22-08-1992 में आगणित होगी। अस्‍तु प्रस्‍तुत परिवाद कालबाधित होने के कारण विद्धान जिला आयोग द्वारा निरस्‍त किया गया। ‍

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ताश्री जफर अजीज उपस्थित हैं।

प्रत्‍यर्थी के विद्धान अधिवक्‍ता का तर्क है विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश विधि अनुसार है तथा विद्धान जिला आयोग ने पत्रावली का भली-भॉंति परिशीलन करने के पश्‍चात उपरोक्‍त निर्णय पारित किया है। अत: अपील निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

 

 

  1.  

मेरे द्वारा प्रत्‍यर्थी के विद्धान अधिवक्‍ता के तर्क को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध प्रपत्रों एवं विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का सम्‍यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।

समस्‍त तथ्‍यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा पत्रावली के परिशीलनोंपरान्‍त मेरे विचार से विद्धान जिला आयोग द्वारा जो निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है वह विधि अनुसार है जिसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता प्रतीत नहीं होती है।

तदनुसार अपील निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

 

अपील निरस्‍त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 05-07-2002 की पुष्टि की जाती है।

   अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 

(न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)(विकास सक्‍सेना)

 

 

प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 

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