Uttar Pradesh

StateCommission

A/2004/427

Mukundi Lal - Complainant(s)

Versus

Central Bank of India - Opp.Party(s)

Anil Kumar Mishra

05 May 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2004/427
( Date of Filing : 23 Feb 2004 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Mukundi Lal
A
...........Appellant(s)
Versus
1. Central Bank of India
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 05 May 2022
Final Order / Judgement

मौखिक

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-427/2004

मुकन्‍दी लाल पुत्र श्री मंगल सिंह, निवासी शाहपुर कुतुब, पोस्‍ट खास ब्‍लाक लोधा, जनपद अलीगढ़।

                             अपीलार्थी/परिवादी

बनाम्  

प्रबन्‍धक शाखा सेण्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, शाखा बारहदारी, अलीगढ़।

                         प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

 

समक्ष:-                                                   

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य

2. माननीय डा0 आभा गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से     : श्री अनिल कुमार मिश्रा, विद्वान अधिवक्‍ता।  

प्रत्‍यर्थी की ओर से       : कोई नहीं।

दिनांक:  05.05.2022 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.                 परिवाद संख्‍या-268/2002, मुकन्‍दी लाल बनाम प्रबन्‍धक, शाखा सेण्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया में विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, अलीगढ़  द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 20.01.2004 के विरूद्ध यह अपील स्‍वंय परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत की गई है।

2.         परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का कथन है कि उसके द्वारा केवल एक भैंस के लिए ऋण लिया गया था। दूसरी भैंस का ऋण प्राप्‍त नहीं किया गया, जबकि विपक्षी बैंक दूसरी भैंस के लिए भी ऋण लेना दर्शा रहा है।

3.         विपक्षी का कथन है कि परिवादी को दो भैंस क्रय करने के लिए ऋण स्‍वीकृत हुआ था, जिसमें से अंकन 6,000/- रूपये राजकीय उपदान था तथा अंकन 4,000/- रूपये मार्जिन मनी थी। पहली भैंस का ऋण  दिनांक  26.02.1998  को  स्‍वीकृत हुआ, जिसकी किश्‍त समय पर

-2-

जमा की गई। दूसरी भैंस के लिए ग्राम विकास अधिकारी की संस्‍तुति थी तथा अनुमोदन था, इसलिए दिनांक 15.09.2000 को अंकन 9,000/- रूपये का ऋण स्‍वीकार किया गया, जिसमें से अंकन 5,000/- रूपये का उपदान परिवादी के खाते में क्रेडिट किया गया।

4.         दोनों पक्षकारों की साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि आवेदक द्वारा दूसरी भैंस क्रय करने के लिए भी ऋण प्राप्‍त किया गया है और तदनुसार परिवाद खारिज कर दिया गया।

5.         इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गई है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने साक्ष्‍य के विपरीत निर्णय पारित किया है। दूसरी भैंस के लिए कभी भी ऋण प्राप्‍त नहीं किया गया। प्रथम भैंस क्रय करने के लिए लिए गए ऋण पर 886/- रूपये बकाया थे, जो उनके द्वारा दिनांक 02.06.1998 को जमा किया गया, जिसे जमा नहीं दर्शाया गया।

6.         अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

7.         बैंक का स्‍पष्‍ट कथन है कि प्रथम भैंस क्रय करने के लिए समस्‍त ऋण की अदायगी समय पर कर दी गई, इसलिए इस चूक का कोई महत्‍व नहीं है कि प्रथम भैंस के लिए, लिए गए ऋण की राशि में अंकन 600/- रूपये जमा नहीं दर्शाए गए। बैंक का यह कथन नहीं है कि प्रथम भैंस क्रय करने के लिए, लिए गए ऋण की राशि परिवादी पर बकाया है, अपितु केवल यह कथन है कि परिवादी द्वारा दूसरा ऋण भी प्राप्‍त किया  गया  है।  चूंकि  दूसरे ऋण को जारी करने के लिए  विपक्षी बैंक के खाते

-3-

में अंकन 5,000/- रूपये का उपदान भी सरकार से प्राप्‍त हुआ है। अत: इस समस्‍त कार्यवाही को विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग के द्वारा अमान्‍य नहीं किया जा सकता। परिवादी का यह कथन है कि विपक्षी           बैंक  ने धोखा कारित करते हुए फर्जी दस्‍तावेज तैयार करते हुए दूसरा ऋण असत्‍य रूप से परिवादी की तरफ दर्शा दिया है और सरकार द्वारा दिए गए उपदान की राशि भी गबन कर ली है। अत: ये सभी आरोप आपराधिक प्रकृति के हैं, इसलिए परिवादी को आपराधिक कार्यवाही करनी चाहिए। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्‍तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। अपील खारिज होने योग्‍य है।

आदेश

8.             प्रस्‍तुत अपील खारिज की जाती है।

           उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

     आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

          (सुशील कुमार)                        (डा0 आभा गुप्‍ता)

              सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-2 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA]
MEMBER
 

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